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Thursday, October 20, 2011

सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -५

आनंद की परिकाष्ठा परमानन्द है.  हर  मनुष्य  में   चिंतन   मनन करने की  स्वाभाविक
प्रक्रिया होती  है.परन्तु , परमानन्द का चिंतन करना ही  वास्तविक सार्थक चिंतन है.परमानन्द
परमात्मा का स्वाभाविक रूप है ,जिससे  जुडना  'योग' कहलाता  है.  जब मनुष्य परमानन्द
के विषय में  चिंतन  मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा  उससे जुड़ने का  यत्न भी करता है
तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है.

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ६, श्लोक संख्या ३  में वर्णित है :-

                 आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं  कर्म  कारणमुच्यते 

योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष  अर्थात मुनि के लिए कर्म करना ही 
हेतू  या कारण है.

योग में तब  तक आरूढ़ नहीं हुआ जा सकता जब तक कि  परमानन्द का मनन न हो और
उसे पाने की इच्छा न हो .इसी इच्छा के उदय होने  को  हृदय में 'सीता जन्म' होना माना गया है.
योग के लिए केवल इच्छा ही नहीं कर्म भी आवश्यक है. कर्म का अर्थ यहाँ केवल ऐसे  सद् कर्म हैं
जिनके करने से  'परमानन्द' से जुड़ा जा सके.इन कर्मों के विपरीत जो भी कर्म हैं वे बंधनकारक है.
वह  सद् कर्म जो केवल परमानन्द या सत्-चित -आनंद परमात्मा को पाने की ही अभिलाषा
से किये  जाये तो  श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार 'यज्ञ' कहलाते  है.परमात्मा का 'नाम जप' करना
ऐसा ही एक सद् कर्म व यज्ञ है.

जप यज्ञ को सभी प्रकार के  यज्ञ कर्मों में सर्वोत्तम माना गया है.श्रीमद्भगवद्गीता के 'विभूति योग'
अध्याय १० में   यज्ञों में 'जप यज्ञ' को  परमात्मा की साक्षात विभूति ही बतलाया गया है.
इसलिये जप यज्ञ के विषय में थोडा जानना आवश्यक हो जाता है.

जैसे गेहूँ अनाज आदि  शरीर का अन्न हैं,  सद् भाव  मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि  काअन्न है,
इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप  करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को
धारण कर सबल होने लगता  है,जिससे चंचल मन और  बुद्धि भी  स्थिर  होते हैं.जप करना सहज और
सरल है.किसी भी अवस्था,काल ,परिस्थिति में जप किया जा सकता है.जप यज्ञ में परमात्मा का नाम
या मन्त्र जिसका जप किया जाता है , बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिसको समझ कर  सच्चे  हृदय से जप
किये जाने से ही प्रभाव होता है.  मन्त्र या नाम में जिस जिस  प्रकार के भाव समाविष्ट होते हैं ,वे हृदय
में उदय होकर प्राण और मन का लय कराते जाते हैं. यदि नाम में हम कुभाव समाविष्ट कर  स्वार्थ के
लिए दूसरों का अहित  सोच केवल  दिखावे के लिए ही  जप करें तो 'मुहँ मे राम बगल में छुरी' वाली
कहावत चित्रार्थ होगी और बजाय योग के हम पतन की और उन्मुख हो जायेंगें.

गोस्वामी तुलसीदास जी  परमात्मा के  नाम जप के लिए यहाँ तक लिखते है कि

                चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ , कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ 

चारों युगों में और चारो वेदों में नाम के  जप का प्रभाव  है ,परन्तु ,कलियुग में तो विशेष प्रभाव है.
नाम जप के  अतिरिक्त कलियुग में  अन्य कोई सक्षम  साधन नहीं है .चारों युग हमारे ही हृदय में
घटित होते रहते हैं.जब हृदय में कलियुग का प्रभाव होता है तो हम तमोगुण अर्थात आलस्य ,प्रमाद
हिंसा ,अज्ञान आदि  की वृतियों  से आवर्त रहते हैं.ऐसे में परमात्मा से योग के लिए नाम जप सबसे
अधिक प्रभावकारी साधन  है. युगों  के  आध्यात्मिक  निरूपण  के  सम्बन्ध  में  मेरी  पोस्ट
'राम जन्म आध्यात्मिक चिंतन-२' को भी सुधिजनों द्वारा  पढा जा सकता है.

गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस में यह भी लिखते हैं कि

                  देखिअहिं  रूप  नाम   आधीना ,रूप  ग्यान  नहिं  नाम  बिहीना 
' रूप नाम के अधीन देखा जाता है,परन्तु  नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता है.'

जैसे 'हाथी' कहते ही हाथी के रूप का भी मन में आभास होने लगता है ऐसे ही परमात्मा के नाम जप
करने से हृदय में परमात्मा के रूप यानि  'परमानन्द' का आभास  व अनुभव होने लगता है.नाम जप
चाहे निर्गुण निराकार परमात्मा का किया जाये या सगुण साकार परमात्मा का,दोनों का फल यह
'परमानन्द' का अनुभव ही है.

सुधिजनों ने पंचतंत्र  की कहानियों के विषय में सुना व पढा अवश्य होगा. कहते हैं इन कहानियों की
रचना अल्प समय में ही मंद बुद्धि  राजकुमारों को नीति ,आचार व व्यवहार  सिखाने के लिए की गई थी.
कहानियों के अधिकतर पात्र पशु पक्षी हैं ,जिनसे कहानियाँ इतनी रोचक व सरल हो गईं हैं कि उनका सार
सहज ही हृदयंगम हो जाता है.इसी प्रकार से   गूढ़ आध्यात्मिक तथ्य श्रीरामचरितमानस व  अन्य पुराणों
आदि में वर्णित कहानी व  लीला  के माध्यम  से आसानी से  ग्रहणीय हो जाते हैं.जरुरत है तो बस
इन कहानी और 'लीला' को रूचि लेकर पढ़ने की और सकारात्मक सूक्ष्म अवलोकन करके समझने की.

नाम जप के महत्व के सम्बन्ध में मैं यहाँ पर 'सीता लीला ' का एक संक्षिप्त वर्णन करना चाहूँगा.
जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके राम जी के पास लौटे  तो राम जी ने उनसे  पूछा कि हनुमान
जी यह बतलाइये कि  लंका में राक्षस राक्षसनियों  के बीच घिरी सीता जी अपने प्राणों की रक्षा किस
प्रकार से कर रहीं हैं.तब इस प्रश्न का उत्तर हनुमान जी इस प्रकार से देते हैं (श्रीरामचरितमानस,
सुन्दरकाण्ड, दोहा संख्या ३०):-

                   नाम  पाहरू   दिवस  निसि,  ध्यान   तुम्हार   कपाट
                   लोचन  निज  पद    जंत्रित , जाहिं  प्राण   केहिं  बाट  

(१)सीताजी रात दिन नाम जप करती रहती हैं जो पहरेदार की तरह उनके प्राणों की देखभाल करता है.

(२)वे नाम जप के साथ साथ आपका ध्यान भी करती रहती  हैं.जिससे उनके प्राणों की सुरक्षा और
भी बढ़ जाती है. जैसे कि किसी घर की सुरक्षा के लिए एक पहरेदार की नियुक्ति करके, घर के दरवाजे
यानि कपाट भी बंद कर दिए जाएँ.क्यूंकि बिना कपाट बंद  किये  केवल पहरेदार से ही  घर की सुरक्षा
अधूरी रह सकती है.

(३)यही नहीं  वे नेत्रों को भी अपने चरणों में निरंतर लगाये रखतीं हैं.'चरण' जो चलने  का प्रतीक है,  में
नेत्रों को लगाने से अभिप्राय  है  कि वे  अपने किये गए व किये जा रहे कर्मों पर भी अपनी नजर रखती हैं.
यह ऐसे ही  है जैसे  कि घर में पहरेदार की नियुक्ति  के अतिरिक्त  घर के कपाट बंद करके उनमें
ताला भी लगा दिया जाये.अब बतलाइये उनके प्राण (बिना उनकी इच्छा के) किस प्रकार  से निकल पायेंगें.

इस प्रकार से भीषण विपरीत परिस्तिथियों में भी नाम जप के सहारे  सुरक्षित रह कर योग में किस
प्रकार से आरुढ हुआ जा सकता है,यह आध्यात्मिक तथ्य  उपरोक्त 'सीता लीला' के प्रकरण से सहज
ग्रहण हो  जाता है.  जप,ध्यान और निरंतर अपने कर्मों का अवलोकन करने से प्राण इतना सबल हो
जाता है कि हमारी बिना इच्छा के वह  शरीर से नहीं निकल सकता.अर्थात जप यज्ञ से  इच्छा मृत्यु भी
हुआ जा सकता है.

अंत में कबीरदास जी की निम्न वाणी  से मैं  इस पोस्ट का समापन करता हूँ.

                      खोजी  हुआ   शब्द   का,  धन्य  सन्त  जन  सोय 
                      कह कबीर गहि शब्द को, कबहूँ  न  जाये   बिगोय. 

जो  शब्द  (यानि परमात्मा के नाम) की  खोज करता है,वह  सन्त जन  धन्य हैं .कबीरदास जी कहते हैं कि
शब्द को ग्रहण करके वह कभी भी पतित  नहीं हो सकता.

सभी सुधि जनों का मैं हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरा  निरंतर उत्साहवर्धन किया है . आप सभी  की
सद्प्रेरणा  से ही  मैं  यह पोस्ट भी लिख पाया हूँ. आशा है  आपकी अमूल्य टिप्पणियों के माध्यम से
मेरा  निरंतर मार्गदर्शन होता रहेगा. जप यज्ञ  के बारे में आप सभी सुधिजनों के अपने अपने विचार व
अनुभव जानकर मुझे बहुत खुशी होगी.

मेरी सभी सुधिजनों को   आनेवाले त्यौहारों  धनतेरस, दीपावली,गोवर्धन व भैय्या दूज की  बहुत
बहुत  हार्दिक  शुभकामनाएँ व बधाई.