tag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post4236950429813849316..comments2023-10-17T13:42:06.127+05:30Comments on मनसा वाचा कर्मणा: मो को कहाँ ढूंढता रे बन्देRakesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-59958283516033014932013-03-05T07:28:54.327+05:302013-03-05T07:28:54.327+05:30सार्थक पोस्ट सार्थक पोस्ट Vandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-67689133159229245232013-03-04T10:32:11.859+05:302013-03-04T10:32:11.859+05:30परमानन्द, आनंद प्राप्ति की पराकाष्ठा ,यही शायद ईश्...परमानन्द, आनंद प्राप्ति की पराकाष्ठा ,यही शायद ईश्वरीय स्थिति -ईश्वर!<br />आपके विचार सार्थक हैं .धन्यवाद<br />latest post<a href="http://kpk-vichar.blogspot.in/2013/03/blog-post.html#links" rel="nofollow"> होली</a>कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-23012585944820468672012-03-03T16:30:05.800+05:302012-03-03T16:30:05.800+05:30bahut umda post ,old is gold ,kisi satsang se kam ...bahut umda post ,old is gold ,kisi satsang se kam nahi raha yahan aana .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-86622848517272782862011-06-18T12:22:07.525+05:302011-06-18T12:22:07.525+05:30आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......ज़रा गौर ...आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......ज़रा गौर फरमाइए<br />http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-57892860740449613502011-04-23T22:50:53.034+05:302011-04-23T22:50:53.034+05:30ओह! बेहद ही सुन्दर बात कह दी आपने!...... आपके इस व...ओह! बेहद ही सुन्दर बात कह दी आपने!...... आपके इस विश्लेषण से हमें भी एक और दृष्टिकोण मिला है.. धन्यवाद!वन्दना महतो ! (Bandana Mahto)https://www.blogger.com/profile/16009745507164533185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-19138756490194465202011-03-04T16:33:56.814+05:302011-03-04T16:33:56.814+05:30badi sunder post hai... sach mein man hi kabhi kab...badi sunder post hai... sach mein man hi kabhi kabhi bhatka deta hai aur man hi uske kareeb bhi le jata hai... aur ye bhi sach hai ki jitna dhyaan karen utna hi ye man kaboo mein aata hai... :-) is post ke liye shukriya!<br /><br />mere hindi blog pe aane ke liye aur apke sawaal ke liye bhi dhanyawaad! jab logon ko marte hue aur tadapte hue dekhti hoon (Libya, Iraq, Afghanistan, Naxal movement in India, other African countries and so many places today and also in the history of this world) to sawaal karti usse... ho sake to is link par yeh rachna bhi padiye... <br /><br />http://vrinittogether.blogspot.com/2010/10/blog-post_15.htmlAnjana Dayal de Prewitt (Gudia)https://www.blogger.com/profile/13896147864138128006noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-72407546219926058232011-03-01T01:49:20.953+05:302011-03-01T01:49:20.953+05:30आदरणीय राकेश कुमार जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
म...<b><i>आदरणीय राकेश कुमार जी </i></b> <br />सादर सस्नेहाभिवादन !<br /> <br /><b>मो को कहां ढूंढता रे बंदे ! </b> आलेख के माध्यम से आपने बहुत सुंदर संदेश दिया है …<b> मन मुग्ध हो गया </b> <br /> हालांकि <b> मन मन की गति न्यारी न्यारी … </b> <br /> लेकिन याद हो आया -<b> मन ही देवता , मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय <br />मन के हारे हार र्है , मन के जीते जीत ! <br /></b><br />सच है जी <b>आनंद मन ही में विद्यमान है </b>!<br /><br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! <br /></a></b> <br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-84442537322810519812011-02-28T19:07:25.104+05:302011-02-28T19:07:25.104+05:30"शास्त्रों के अनुसार समस्त आनंद मन ही में वि..."शास्त्रों के अनुसार समस्त आनंद मन ही में विद्यमान है" <br />तत्व-सार!!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-22647089863859410732011-02-28T15:03:05.149+05:302011-02-28T15:03:05.149+05:30मन में अब ऐसा लगने लगा कि कुछ जागर्ति सी आ रही है ...मन में अब ऐसा लगने लगा कि कुछ जागर्ति सी आ रही है और चेतना से ओतप्रोत होता जा रहा है मन मेरा. मै उत्साहित हो गया और फिर मन से मैं यह कहने लगा ' हे मेरे मन तू ही तो आनंद स्वरुप है, क्योंकि तेरा मालिक मैं और मेरा मालिक वह ईश्वर केवल ' आनंद ' स्वरुप ही तो हैं...<br />बहुत ही सुंदर आलेख.संध्या शर्माhttps://www.blogger.com/profile/06398860525249236121noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-23301931694695493052011-02-27T14:36:50.715+05:302011-02-27T14:36:50.715+05:30@ > ताउश्री जी,
आपके सुवचन मेरा मनोबल बढ़ाते हैं...@ > ताउश्री जी,<br />आपके सुवचन मेरा मनोबल बढ़ाते हैं. आपके दर्शन और ब्लोगत्व गुण<br />वाली टिपण्णी ने तो निहाल कर दिया मुझे. आपके चरणों में सादर प्रणाम .कृपा बनाये रखियेगा .Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-47150740052059722472011-02-27T12:22:23.586+05:302011-02-27T12:22:23.586+05:30ज्योति सिंह जी ,
आपका यह कहना सही है मन की गति निर...<b> ज्योति सिंह जी ,<br />आपका यह कहना सही है मन की गति निराली है,इस पर संयम पाना आसान नहीं .<br />आपके विचार सार्थक हैं .धन्यवाद</b>Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-101817908272667592011-02-26T21:01:45.761+05:302011-02-26T21:01:45.761+05:30बहुत ही सुंदर आलेख. आखिर मन बेचारा कहां जायेगा? वो...बहुत ही सुंदर आलेख. आखिर मन बेचारा कहां जायेगा? वो भी तो हमारा ही एक अविभाज्य हिस्सा है. मन से कैसी लडाई? हमने तो मन को कह दिया है बेटा करले तुझसे जितनी बदामाशी की जा सके. आखिर किसी जन्म में तो तू थकेगा ही. हम तो बस मन की बाजीगरी को देखते हुये दृष्टा बनने की कोशीश करते हैं. पर मन इतना चालू चीज है कि एक पल दृष्टा भाव आते ही कहीं और उलझा लेता है. इस ब्लाग के माध्यम से आप निहायत ही सुंदर विचार परोस रहे हैं, बहुत आभार और शुभकामनाएं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-34670678718733771092011-02-26T18:55:50.354+05:302011-02-26T18:55:50.354+05:30man ki gati nirali hai ,is par sanyam paana aasaan...man ki gati nirali hai ,is par sanyam paana aasaan nahi ,lekh aur vichar dono hi uttam .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-34012408260624920422011-02-25T17:33:53.537+05:302011-02-25T17:33:53.537+05:30@ > Sagebob ji
आपको आनंद का अनुभव हुआ यह मेरे ल...@ > Sagebob ji<br />आपको आनंद का अनुभव हुआ यह मेरे लिए हर्ष की बात है.बड़े दिल वाले छोटे हो ही नहीं सकते .आप तो चर्चा को सार्थकता प्रदान कर रहें हैं इसके लिए आभारी हूँ आपका. कृपया ,प्रश्न अवश्य दागते रहिएगा<br />ब्लॉग जगत में आप जैसे संत हैं इसका हम सभी को गर्व होना चाहिए .Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-8376697060266389572011-02-25T17:15:16.540+05:302011-02-25T17:15:16.540+05:30@ > Rajey Sha ji
शर्मा जी आप अंतर्यामी हैं प्रभ...@ > Rajey Sha ji<br />शर्मा जी आप अंतर्यामी हैं प्रभु कहाँ छिपे थे अब तक ,आपके हास्यव्यंग तो सभी को गुदगुदाते हैं.कृपया ,समय समय पर आकर <br />हास्य रस की फुहार अवश्य छोड़ते रहिएगा .सादर प्रणाम स्वीकार करें.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-6892944129575719112011-02-25T16:23:29.762+05:302011-02-25T16:23:29.762+05:30आपकी पोस्ट से लग है कि आपको परमात्मा का साक्षात...आपकी पोस्ट से लग है कि आपको परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका है, प्रभु प्रणाम स्वीकारें।Rajeyshahttps://www.blogger.com/profile/01568866646080185697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-68695789352032588212011-02-25T13:56:29.169+05:302011-02-25T13:56:29.169+05:30आदरणीय राकेशजी,
आपने मेरी टिप्पणी पर बहुत ही गहन व...आदरणीय राकेशजी,<br />आपने मेरी टिप्पणी पर बहुत ही गहन विचार किया है.आभारी हूँ.<br />दो मन होने का विश्लेषण जो आपने किया उस से मेरी बताई समस्या का काफी हद तक समाधान हो गया है.<br />मैं बहुत ही छोटा व्यक्ति हूँ.अध्यात्म पथ के व्यवहारिक पक्ष को ढूंढता रहता हूँ.<br />इस पथ पर शब्दों के ढेर लगे हुए हैं.लेकिन व्यवहारिक पक्ष ढूंढें नहीं मिलता है.<br />लोगों की भीड़ जुटी रहती है महात्माओं के आस पास,लेकिन देखता हूँ कि व्यवहार तो बदलता नहीं.न महात्माओं का न भक्तों का.<br />ज़्यादा तर झोलियाँ खाली ही हैं.<br />मैंने सुना था कि जिस पेड़ को फल लग जाते हैं वह झुक जाता है.<br />ऐसा ही इक फला फूला पेड़ ढूंढ रहा हूँ.<br />इतने सालों से अध्यात्म पथ पर चल के जो जाना है वो यह कि इस पथ पर एक्ला चलो रे ही ठीक रहता है.<br />आपके जैसी आत्मा से संवाद करने से मुझे आनंद अनुभव हो रहा है.<br />आपका फिर से आभार.<br />अपने प्रशन तो दागता ही रहूँगा.आप के स्नेह का इच्छुक.विशालhttps://www.blogger.com/profile/06351646493594437643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-83885861153621314162011-02-25T07:53:43.858+05:302011-02-25T07:53:43.858+05:30@ > Rajesh Kumar 'Nachiketa' ji
राजेश ज...@ > Rajesh Kumar 'Nachiketa' ji<br />राजेश जी आपने ठीक ही कहा है की नाम नाम जप आज के समय में बहुत बड़ा सहारा है .हमारे मन बुद्धि और प्राण जगत की घटनाओं से इतने ज्यादा त्रसित व ग्रसित होते रहते हैं कि सकारात्मक सोच और ध्यान करने कि सामर्थ हममें नहीं रह पाती.ऐसे में नाम जप जहाँ हमारी प्राण शक्ति को बढाता है वहीँ बुद्धि और मन दोनों को स्थिर करने में भी सहायक होता है .इसीलिये कहा भी गया है 'कलियुग केवल नाम अधारा,सुमरि सुमरि नर उतरें पारा'Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-76931272407127452242011-02-25T07:32:41.133+05:302011-02-25T07:32:41.133+05:30@ >sagebob ji,
आपने जो दो मन होने की बात कही वह...@ >sagebob ji,<br />आपने जो दो मन होने की बात कही वह यह है कि ध्यान की स्थति में आप अपनी बुद्धि और मन दोनों के ही दृष्टा हैं.दोनों ही चंचल हैं.जहाँ आप बुद्धि में विचारोँ को आता जाता देख रहें हैं वहीँ आप मन में उदय और अस्त होते हुए भावों को भी.मन और बुद्धि की ये दो क्रियाएँ ही शायद आपको दो मन के रूप में प्रतीत होती हों.बुद्धि में "सत्-चित -आनंद"का विचार जितना गहरा व स्थाई होता जाएगा तभी वह मन में आनंद का भाव उदय कर पायेगा और फिर आपही की कविता के अनुसार 'पहाडी गांव के अकेले कमरे के अंधरे सन्नाटे में'सब कुछ में केवल आनंद रह जाएगा,वर्ना यदि विचार भटकता है तो सब कुछ में कुछ का कुछ दिखलाई पड़ सकता है.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-26948006520320131572011-02-24T17:45:28.930+05:302011-02-24T17:45:28.930+05:30@ > sagebob ji,
आपने अति सुंदर प्रश्न किया है ....@ > sagebob ji,<br />आपने अति सुंदर प्रश्न किया है .वास्तव में ध्यान योग की प्रक्रिया को ही कुछ सरल करके मैंने लिखने की कोशिश की है .जो की भगवद गीता का अध्याय ६ है.इस प्रक्रिया का सफलतम प्रयोग तब हो सकेगा जब हम 'विषाद योग','सांख्य योग','कर्म योग','ज्ञान योग ' और 'कर्म संन्यास योग' की प्रक्रीयाओं को भी क्रमानुसार ठीक से समझे और अपनाएँ.क्योंकि मन शुरू में विषादग्रस्त होता है ,ऐसे में सीधे ध्यान योग का प्रयोग करने में कठनाई तो आती ही है .फिर भी यदि थोड़ी देर भी मन स्थिर होता है ,तो वह भी एक सार्थक अनुभव ही हुआ. बाहर की सब बातों को मन से निकालकर यदि अच्छे एकांत वातावरण में ध्यान करने का नित्य अभ्यास किया जाए तो कुछ न कुछ आनंद/शान्ति का अनुभव अवश्य होने लगेगा.आनंद की मात्रा व्यक्ति- व्यक्ति की मानसिक स्थति पर भी निर्भर करती है .आप के प्रश्न का अभी कुछ समाधान मै कर पाया या नहीं,कृपया बताएँ.चर्चा आगे भी चलती रहेगी.धन्यवाद .Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-34371863923837441392011-02-24T16:39:36.148+05:302011-02-24T16:39:36.148+05:30आदरणीय राकेशजी,
आपकी पोस्ट कई बार पढी.मन के बारे म...आदरणीय राकेशजी,<br />आपकी पोस्ट कई बार पढी.मन के बारे में आप का चिंतन लाजवाब है.<br />पर क्या एकांत में बैठने से और ईश्वर का ध्यान करने से मन स्थिर हो जाता है.इसकी भटकन तो रुकती ही नहीं है.थोड़ी देर तो ध्यान स्थिर होता है फिर पता नहीं कहाँ चल देता है.<br />कई बार तो लगता है दो मन हैं ,एक तो चिंतन कर रहा होता है दूसरा इधर उधर भटक रहा होता है.<br />मैं शब्दों का खिलाड़ी तो नहीं हूँ,इस लिए अपनी बात को सीधे साधे शब्दों में लिख रहा हूँ.<br />कृपया मन को लगाने का तरीका बताईये.<br />आभारी रहूँगा.<br />सलाम.विशालhttps://www.blogger.com/profile/06351646493594437643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-50968004669218892022011-02-24T15:40:27.218+05:302011-02-24T15:40:27.218+05:30जीवनोपयोगी शोधपरक लेख ....
बहुत-बहुत आभारजीवनोपयोगी शोधपरक लेख ....<br /><br />बहुत-बहुत आभारसुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-45813198687300854472011-02-24T10:28:38.206+05:302011-02-24T10:28:38.206+05:30जीवन दर्शन से परिपूर्ण रोचक लेख के लिए बधाई।जीवन दर्शन से परिपूर्ण रोचक लेख के लिए बधाई।Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-7800353434881696412011-02-24T08:25:18.642+05:302011-02-24T08:25:18.642+05:30.
@-आपने मेरा नामकरण 'राकेश' से 'रमेश....<br /><br />@-आपने मेरा नामकरण 'राकेश' से 'रमेश' किया यह भी अच्छा लगा . <br /><br />-----<br /><br />Rakesh ji , <br /><br />I humbly apologize for writing the incorrect spelling of your kind name . <br /><br />Indeed Rakesh is far more sweeter than Ramesh .<br /><br />Smiles .<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1656329921289531877.post-71794787232357519522011-02-24T07:10:24.864+05:302011-02-24T07:10:24.864+05:30जो अन्दर बैठा है उसे घर से बाहर ढूढ़ रहे हैं सब।जो अन्दर बैठा है उसे घर से बाहर ढूढ़ रहे हैं सब।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com