Followers

Wednesday, July 20, 2011

सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -२

किसी भी  चाहत की उत्पत्ति आनंद प्राप्ति के लिए   होती है. यह अलग बात है कि उस  चाहत की
पूर्ति पर आनंद मिले या न मिले. अथवा जो आनंद मिले वह स्थाई न होकर अस्थाई ही रहे.
जैसे जैसे हमारी सोच व अनुभव परिपक्व होते जाते  है ,हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाई
आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने लगते हैं.वास्तव में  चाहत  माया  का ही रूप है.जीव और
ईश्वर के बीच ईश्वर को पाने की चाहत अर्थात 'श्री ' (सीता) जी किस प्रकार से शोभा पाती हैं इसका
वर्णन  करते  हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं :

            उभय बीच श्री सोहइ  कैसी , ब्रह्म जीव बिच माया जैसी.

जैसा कि मैंने अपनी पिछली  पोस्ट में कहा कि 'सीता जन्म' हृदय स्थली में 'सत्-चित-आनंद' को पाने
की  सच्ची चाहत का उदय होना  है.अर्थात ऐसी चाहत जो हमे 'स्थाई चेतन आनंद' की प्राप्ति करा सके,
जिस  आनंद को   हमारे शास्त्रों में 'सत्-चित-आनंद' या परमात्मा के नाम से पुकारा गया है.
'सीतारूपी' चाहत अत्यंत दुर्लभ है जो आत्मज्ञान  के अनुसंधान व खोज  का ही  परिणाम है,सीताजी
भक्ति स्वरूपा   हैं, जो   समस्त चाहतों की 'जननी' , अत्यंत सुन्दर , श्रेय व कल्याण करनेवाली है.
सीता जी की सुंदरता का निरूपण करते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं :-

             सुंदरता  कहुं सुन्दर करई, छबि गृहं दीपसिखा जनु  बरई
             सब उपमा कबि  रहे जुठारी , केहिं  पटतरौं  बिदेहकुमारी 


सीताजी की शोभा, सुंदरता को भी सुन्दर करनेवाली है.वह ऐसी मालूम होती हैं मानो सुन्दरता रुपी घर 
में दीपक की लौं जल रही हो.सारी उपमाओं को तो कवियों ने झूंठा कर रखा है. मैं जनक नंदनी श्री 
सीताजी की किससे  उपमा दूँ .

कहते हैं सीताजी का अवतरण तब हुआ था जब  वैदेह राजा जनक ने प्रजा के हितार्थ वृष्टि कराने
हेतू भूमि में हल चलाया था और हल की नोंक भूमि में गड़े एक घड़े से टकराई थी.उस घड़े में  से ही एक
अति सुन्दर सुकोमल कन्या प्रकट हुई,जिसका नाम हल के नुकीले भाग के नाम पर "सीता" रखा गया.
जनक जी ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में अपनाया इसलिये उनका नाम "जानकी" या "वैदेही"
भी कहलाया. राजा जनक पूर्ण आत्मज्ञानी हैं  जिन्हें अपनी देह में भी किंचित मात्र आसक्ति नहीं है .
इसीलये उन्हें 'वैदेह' कहते हैं. वे अपने  आत्मस्वरूप में सदा स्थित हो आत्म तृप्त रहते हैं.उन्हें कर्म
करने की कोई आवश्यकता नहीं है तो भी लोकहितार्थ  वृष्टि हेतू पृथ्वी पर हल चलाने का 'कर्म योग'
करते हैं. जिसके फलस्वरूप 'सीता'  यानि भक्ति का प्रादुर्भाव होता है.वृष्टि का अभिप्राय यहाँ
आनंद से ही है.

उपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग'  की भी आवश्यकता
है, जिससे   'भक्तिरुपी' सीताजी   का उदय हो  पाए और  चहुँ और आनंद की वृष्टि  हो सके. हल की
नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत  'सीता' जी की खोज
का कार्य संपन्न कर् पाता है.

सीता जी  'सत्-चित-आनंद' परमात्मा यानि 'राम' का ही  वरण करतीं  हैं. राम को 'राम को पाने की
चाहत' यानि सीताजी  अत्यंत प्रिय है. इसलिये इनको 'रामवल्लभाम'  भी कहते हैं.सीताजी की वंदना
करते हुए  श्रीरामचरितमानस के शुरू में ही  गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :-

                     उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं          क्लेशहारिणीम
                     सर्वश्रेयस्करीम सीतां नतोSहं      रामवल्लभाम

जो उत्पत्ति ,स्थिति और संहार करनेवाली हैं, कलेशों का हरण करनेवाली  हैं, सब प्रकार से कल्याण 
करनेवाली हैं,श्री राम जी की प्रियतमा हैं,उन सीता जी को मैं नमस्कार करता हूँ.


सीता जी यानि भक्ति  ही जीव जो परमात्मा का  अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
का 'संहार'  करके  कलेशों  का हरण कर लेतीं  हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही  करती रहतीं  हैं.

.ऐसी 'भक्ति' माता  सीता जी का  मैं हृदय से  नमन करता हूँ .

                 सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी 


अगली पोस्ट में हम 'सीताजी' व उनकी लीला के  आध्यात्मिक चिंतन करने का एक और प्रयास करेंगें.

मैं सभी सुधिजनों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१'
पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियाँ देकर मेरा उत्साहवर्धन किया है . जिससे यह पोस्ट मेरी लोकप्रिय पोस्टों
(Popular Posts) में अति शीघ्र ही चौथे स्थान पर आ गई है.

मैं आशा करता हूँ कि इस पोस्ट पर भी सुधिजनों का प्यार और कृपा  मुझ पर बनी रहेगी.




148 comments:

  1. आज आपके ब्लॉग पर आकर अपार आनंद की प्राप्ति हुई है ! अभी तो आपकी बहुत सारी पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ना हैं ! गूढ़ विषय पर आपकी लेखनी बड़ी ही सरलता व सहजता से चली है ! मेरा साधुवाद स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  2. बहुत ज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
    आभार इस पोस्ट के लिए ..!!

    ReplyDelete
  3. आजकी इस चर्चा से यह सिद्ध हुआ कि इच्छा रूपी सीता ही माया है, सीता ही भक्ति है, क्या वही आत्मज्ञानी की बुद्धिस्वरूपा भी नहीं है...ज्ञानवर्द्धक इस पोस्ट के लिये आभार!

    ReplyDelete
  4. सीता भक्ति है - और बिना सीता के राम को नहीं पाया जा सकता |राधा भक्ति है - जिसके द्वारा मानव मात्र श्याम जी तक पहुँच पाए |

    विदेह जी [अर्थात जो देह से नहीं आत्मा से ही बंधा हो ) के ही मन की भूमि पर जब प्रभु प्रेम का हल चलता है - तब ही सुकोमल भक्ति जन्म लेती है - नहीं तो नहीं |

    यह बात तो सर्वमान्य सत्य है कि भक्ति तो हमेशा प्रभु का वरण करती ही है | किन्तु इससे भी अधिक ध्यान देने की बात यह है कि प्रभु भी भक्ति का ही वरण करते हैं - और उसे आपने ह्रदय में स्थान देते हैं ....

    ReplyDelete
  5. माफ़ कीजिये - ऊपर "भक्ति जन्म लेती है" लिख आई हूँ | नहीं - जन्म नहीं लेती - वह तो पहले से ही मौजूद है, पर अब तक अप्रकट थी | अब बस प्रकट हो जाती है मन के आँगन में - और फिर बढती जाती है - बढती ही चली जाती है - जब तक प्रभु को प्राप्त ना कर ले ....

    ReplyDelete
  6. बहुत ज्ञानवर्धक और मार्गदर्शक लेख के लिए बहुत बहुत आभार|

    ReplyDelete
  7. शिल्पा जी,
    शब्द भावों को समझने के लिए होते हैं.अप्रकट से प्रकट होने का नाम हम'जन्म' भी दे सकते हैं.
    राम या कृष्ण भी तो जब साकार रूप से प्रकट होते है,तो उनके प्रकट होने को भी हम उनका जन्म होना
    मानते हैं.परमात्मा और परमात्मा की भक्ति हमेशा थे,हमेशा हैं,और हमेशा ही रहेंगें.शास्वत और
    संतान हैं ये.

    ReplyDelete
  8. 'संतान' को 'सनातन' पढियेगा.

    ReplyDelete
  9. माँ जानकी को प्रणाम।

    ReplyDelete
  10. अच्छी उपमाएं दी हैं आपने !
    इस सबके बावजूद भी यह शोचनीय है कि प्रायः लोग अंधविश्वास में पड़कर न तो न तो अपनी बेटियों का नाम ही सीता रखते हैं और न ही उनके जैसा भाग्य उनके लिए पसंद करते हैं।

    ReplyDelete
  11. bahut hi badiya gyanopayogi prastuti ke liye aabhar!

    ReplyDelete
  12. अद्भुत दर्शन!! अनुपम चिंतन!! प्रेरक चित्रण!!

    सीता जन्म के साथ ही विदेह भाव, कर्मयोग और भक्तिमार्ग की समयक् स्थापना!!

    ReplyDelete
  13. भक्ति का प्रकट होना या जन्म होना, हमारे अहंकार का नाश करता है।

    ReplyDelete
  14. बहुत गहन चिंतन और विश्लेषण।
    आपने सारे प्रकरण को बहुत ही सरलता से हमारे सामने रखा है। मन तृप्त हुआ इसे पढ़कर।

    ReplyDelete
  15. अध्यात्मिक चेतना से जागृत यह आलेख देश की प्राचीन संस्कृति से परिचय करा रही है.. सीता जी के संस्कृति और अध्यात्मिक महत्व को बताती यह आलेख बढ़िया है... संग्रहनीय है... उत्तम

    ReplyDelete
  16. सीता माता की अपार महत्ता को दर्शाती अतुलनीय पोस्ट आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा

    ReplyDelete
  17. सीता जी की सही मायने में पहचान हो रही है...आपकी यह आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक पोस्ट हमें रामभक्ति का मार्ग दिखाती है...आपका ह्रदय से आभार

    ReplyDelete
  18. सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
    वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
    का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.

    मन को शांत करने वाली पंक्तियाँ ... सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  19. सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
    वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
    का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.


    आपने इस श्रखंला में ज्ञान, बह्क्ति और प्रेम की सरिता प्रवाहित कर रखी है जिसमें डूबने के बाद निकलना मुश्किल है, बहुत ही श्रेष्ठतम कार्य, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  20. भूल सुधार:-

    बह्क्ति = भक्ति, पढा जाये.

    रामराम.

    ReplyDelete
  21. सीता जी के कई नामों की व्याख्या पड़ने को मिली .
    पढ़ के अच्छा लगा.
    ---------------------------------------------
    मैंने आपको फोल्लो किया है,

    ReplyDelete
  22. ...लेकिन आज की भागमभाग में स्थाई आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने का भी समय नहीं लोगों को, वे तो अस्थाई आनंद से काम चलाए बैठे हैं :(

    ReplyDelete
  23. bahut hi bahumulya bichaar...in tathyon ke bishay mein bahut samay se thodi bahut jaankari hai lekin aapke lekho se choti choti mahatwapurna baaaton ka gyan ho jata hai...aapki agli post ka intzaar rahega..pranam

    ReplyDelete
  24. बहुत गहन चिंतन....
    ज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
    आभार !

    ReplyDelete
  25. आपके विचार और आलेख प्रभावित करते हैण...अत्यंत सरल होना इनकी खूबी है. सीताजी व उनकी लीला के आध्यात्मिक चिंतन का इन्तजार करेंगे.

    शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  26. आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक बढ़िया आलेख है

    ReplyDelete
  27. बहुत ज्ञानवर्धक और व्याख्यात्मक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  28. इतना सुन्दर चित्रण सिर्फ़ आप ही कर सकते है राकेश जी…………आप पर प्रभु की पूर्ण कृपा बरस रही है बिना भक्ति मे डूबे कोई इतना गहन और सूक्ष्म विश्लेषण नही कर सकता…………हम तो आपकी ज्ञानमयी वाणी से कृतकृत्य हुये…………ये परम लाभ हमे निरन्तर कराते रहिये…………आभारी रहेंगे।

    ReplyDelete
  29. "सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी"
    अध्यात्मिक चेतना से ओतप्रोत, ज्ञानवर्धक आलेख आत्मा को शांति प्रदान कर रहा है... बहुत - बहुत आभार आपका...

    ReplyDelete
  30. बहुत ज्ञानवर्धक और सार्थक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।...अभार..

    ReplyDelete
  31. उपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
    जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता
    है, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल की
    नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोज
    का कार्य संपन्न कर् पाता है.
    badi hi sundarata se varnan kiya ,kab padh daali pata hi nahi chala ,sita janm adbhut raha aur uska aadhaar bhi ,ek ek naam ke arth spsht jo kiye hai aapne wo to kamaal hai ,saath me dohe to chaar chaand laga dete hai inme ,aapko padhna bhi saubhagya hai hamara .kafi samya baad padhna hua ,sukhad anubhav raha .aapki aabhari hoon aur na aane ke liye mafi chahti hoon .

    ReplyDelete
  32. आदरणीय गुरु जी नमस्ते ! इस लेख को हमने बहुत ध्यान से तथा एक एक शब्दों को पढ़ा है |
    बहुत सार्थक लिखा है आपने | आप के इस लेख को पढ़ के यूँ लग रहा है की साक्षात् वेद ज्ञान ही मिल रहा है |
    आपने सीता शब्द की बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है | अब ये किसी को ये संशय नहीं होना चाहिए
    की ये सीता शब्द मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के बारे में नहीं अपितु परम पिता परमात्मा से सम्बंधित है

    ReplyDelete
  33. bahut gyaanvardhak post hai.aabhar.

    ReplyDelete
  34. बहुत महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! शानदार और मार्गदर्शक आलेख!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com

    ReplyDelete
  35. .

    बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक अध्यात्मिक चिंतन !


    ऐसी 'भक्ति' माता सीता जी का मैं हृदय से नमन करती हूँ ...


    सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी

    .

    ReplyDelete
  36. राकेश जी..आपकी पोस्ट अभूत ज्ञानवर्धक है...सीता ,जनक सभी को आपने किस प्रकार दार्शनिकता से जोड़ दिया है...ये अनुपम है ...सुन्दर प्रस्तुति है..!!

    ReplyDelete
  37. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...इस ज्ञानवर्धक प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    ReplyDelete
  38. कुछ दिन पहले वाल्मीकि रामयण का हिन्दी अनुवाद पढ़ा था. लेकिन उसमें इस तरह के वर्णन का अभाव था. काफ़ी अच्छा है. चिन्तन से परिपूर्ण.

    ReplyDelete
  39. बहुत गहराई के साथ और विचारणीय बात का उल्लेख किया है आपने! मैं ये मानती हूँ की अगर चाहत हो किसी चीज़ को पाने की तो वो चाहत ज़रूर पूरी होती है ! ये निर्भर करता है की वो चाहत पूरी होने पर कभी ख़ुशी या कभी गम से झेलना पड़ता है! हर इंसान के जीवन में ख़ुशी और गम दोनों आते हैं जो एक सिक्के के दो पहलु समान होते हैं! सीताजी की परम भक्ति और अपने पति परमेश्वर श्री राम जी से चाहत ही उनके पास खींच लायी! उन दोनों का अटूट बंधन इस बात का प्रतिक है की जहाँ चाह है वहाँ राह है!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://khanamasala.blogspot.com

    ReplyDelete
  40. भाई,इस ब्लॉग को पढ़ते ही सारा tension दूर हो जाता है.
    आपका अद्भुत योगदान है ब्लॉग जगत को.वाह.

    ReplyDelete
  41. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  42. किसी भी चाहत की उत्पत्ति आनंद प्राप्ति के लिए होती है. यह अलग बात है कि उस चाहत की
    पूर्ति पर आनंद मिले या न मिले. अथवा जो आनंद मिले वह स्थाई न होकर अस्थाई ही रहे.
    जैसे जैसे हमारी सोच व अनुभव परिपक्व होते जाते है ,हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाई
    आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने लगते हैं.वास्तव में चाहत माया का ही रूप है.
    मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ और हाँ चाहत पूर्ति पर आनंद मिल सकता है पर ये कभी स्थाई हो ही नहीं सकता क्युकी मानव स्वभाव कभी स्थिर रहता ही नहीं वो एक चाहत पूरी होते ही दूसरी चाहत की तरफ भागता है और उसके दुःख का सबसे बड़ा कारण भी यही है |
    बहुत सुन्दर विचार यहाँ आकार कुछ अलग मिलता है और अच्छा भी लगता है | हर बार की तरह एक और ज्ञानवर्धक पोस्ट जिसका वर्णन बहुत खूबसूरती से किया गया है |
    आपका बहुत - बहुत शुक्रिया :)

    ReplyDelete
  43. "उपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
    जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता
    है, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल की
    नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोज
    का कार्य संपन्न कर् पाता है."

    बड़े ही तार्किक और प्रायोगिग ढंग से आपने गूढ़ तथ्यों का व्याख्यान किया है

    आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए मेरा आभार स्वीकारें
    फणि राज

    ReplyDelete
  44. सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी

    aapka aabhar ke aapne सीय राममय ke adhyatmik chintan ke dwar ko prakashmaan kiya.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  45. सहज शब्दों में सूक्ष्म-ज्ञान की व्याख्या कर जनक,सीता,राम के विराट स्वरूप की अनुभूति कराती अलौकिक पोस्ट.

    ReplyDelete
  46. आदरणीय राकेश जी
    सादर अभिवादन !

    सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी

    ज्ञानवर्द्धक पोस्ट के लिये आभार ...

    ...और निरंतर बहती ज्ञान गंगा का प्रवाह कभी मंद न हो , इसके लिए
    हार्दिक शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  47. राकेश जी, आनंद आया!

    'योगिराज कृष्ण', निराकार 'योगेश्वर विष्णु' के अष्टम और 'सर्वश्रेष्ठ अवतार', अर्थात निराकार शक्ति रूप से आरम्भ कर अन्धकारमय अनंत निरंतर बढ़ते शून्य के ही भीतर साकार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को एक आम मनोरंजक और सरल सांकेतिक कथा के माध्यम से दर्शा गए प्राचीन योगी - जिसमें प्रथम अवतार मगरमच्छ है; दूसरा कूर्म अर्थात कछुआ; तीसरा वराह अर्थात जंगली सूअर; चौथा नरसिंह अर्थात आधे सिंह और आधे मानव; पांचवे, पूर्ण मानव रूप में शक्तिशाली वामन; छटे कुल्हाड़ी वाले परशुराम; सातवें धनुर्धर राम; आठवें सुदर्शन-चक्र धारी श्री कृष्ण... जो कहते हैं कि यद्यपि सम्पूर्ण सृष्टि उनके (विराट रूप के) भीतर है, 'माया' से सब उन्हें अपने भीतर देखते हैं!

    वर्तमान में हमारे सौर-मंडल के एक सदस्य पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति पर शोध कार्य का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है,,, और जैसा वर्तमान में भी 'हम' जान पाए हैं, अरबों वर्षों से असंख्य तारों आदि से बनी अनंत विभिन्न तस्तरिनुमा गैलेक्सियों में उपस्थित हमारी सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाली गैलेक्सी, जो सुदर्शन-चक्र समान शून्य में अपने केंद्र के चारों और घूम रही है जहां अपार शक्ति वाला 'ब्लैक होल' उपस्थित माना जाता है वर्तमान में, और प्राचीन 'हिन्दू' के शब्दों में 'सहस्त्र सूर्यों के प्रकाश वाले कृष्ण',,,

    और हमारी गैलेक्सी के किनारे की ओर उसके ही भीतर उपस्थित हमारे सौर-मंडल को ब्रह्माण्ड का सत्व माना गया है अनादिकाल से...और 'कृष्ण' भी कहते हैं कि वे ही (हिन्दू के लिए गंगाधर एवं चंद्रशेखर शिव अर्थात पृथ्वी पर प्राप्त शक्ति के स्रोत) सूर्य और (रहस्यमय शक्ति के स्रोत, जिसे सागर में ज्वार-भाटा प्रतिबिंबित करते हैं) चन्द्रमाँ को प्रकाशमान करते हैं :)

    और हमारी कथाएँ मानव को सौर-मंडल के ९ सदस्यों, सूर्य से शनि तक, के सार के माध्यम से ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब मानते हुए, संकेत करते हैं धनुर्धर अर्जुन और धनुर्धर राम को विभिन्न काल में सूर्य का ही मोडल होना...और उसी प्रकार द्रौपदी और सीता को चन्द्रमा का प्रतिरूप!... जिसे चकोर भी पाने के लिए 'पीयू पीयू' करते दीखता है... और शिव के मस्तक पर भी उनको कूल रहने के लिए 'इंदु' अर्थात चन्द्रमा को दर्शाया जाता आ रहा है 'हिन्दू' द्वारा :)

    ReplyDelete
  48. गुरूजी प्रणाम ..आज के समय में इसकी उपयोगिता नकारा नहीं जा सकता ! ज्ञान की समुचित उपयोग जनकल्याण में होनी चाहिए ! तभी ज्ञान की उपयोगिता सिद्ध होती है ! बहुत सुन्दर पोस्ट !

    ReplyDelete
  49. जब हम सत-चित-आनंद के लिए सघन विचार करते हैं तो वह घनीभूत होकर हमारी चेतना में अनवरत चलता रहता है |अचानक हमें सूक्ष्म परिवर्तन महसूस होता है , उस आनंद की झलक मिलती है | ये सतत स्मरण ही हमारे ह्रदय में सीता जी यानी भक्ति को जगाते रहते है .आपका पोस्ट अमूल्य है |जो ह्रदय की धरोहर है| शुभकामना|

    ReplyDelete
  50. बहुत सुंदर..!!!

    आप इतना समय ज्ञानवर्धक बातें लिख कर यहाँ प्रेषित करने में लगाते हैं..कभी आपसे आमने-सामने वार्तालाप होगा तो..'ज्ञान-गंगा' अवश्य बहेगी..!!!

    हार्दिक शुभकामनाएँ..!!

    ReplyDelete
  51. बहुत ही सुंदर लिखते है आप राकेश जी, हमेशा अगली कड़ी का इंतजार रहता है, सच में आपके पोस्ट बहुमूल्य होते हैं,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  52. गहन और गूढ़ आध्यात्मिक चिंतन का सहज प्रवाह और निर्वाह. सुंदर प्रस्तुति. आभार. मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  53. इतनी सुन्दर व्याख्या अन्यत्र दुर्लभ है .भाई साहब .कृतार्थ हो गया यह पल .

    ReplyDelete
  54. ",हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाईआनंद की चाहत को....चाहत माया का ही रूप है.जीव औरईश्वर के बीच ईश्वर को पाने की चाहत अर्थात 'श्री ' (सीता) जी किस प्रकार से शोभा पाती हैं......."
    सदा , सद -चित . सद-आनंद ही मनुष्य मात्र का जीवन जीवन उद्देश्य रहा है ,जिसको कई प्रतिमानों में रख कर अपनी तईं जानने का प्रयास किया गया , जिसमें आपकी अध्यात्मक शैली अनूठी लगती है .माता सीता का आधार पसंद आया , शक्ति स्वरुप ,कितनी स्वीकार हैं पता लगता है ....... सद प्रयास बहुत ही सफल है ,,शुभकामनायें जी /

    ReplyDelete
  55. @ भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
    जनकल्याण के लिए उसे ‘जमीन में हल चलाने‘ अर्थात निरंतर ‘कर्मयोग‘ की भी आवश्यकता
    है, जिससे भक्तिरुपी सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके। हल की
    नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत ‘सीता‘ जी की खोज
    का कार्य संपन्न कर पाता है।

    ज्ञान, भक्ति और कर्म की सुंदर व्याख्या।
    रामकथा के मर्म की उत्तम विवेचना करते हैं आप।

    ReplyDelete
  56. आपके ब्लॉग पर आकर अपार आनंद की प्राप्ति हुई . सुन्दर चित्रण राकेश जी भक्तिरुपी सीताजी की खोज का गहन और सूक्ष्म विश्लेषण, आपकी ज्ञानमयी अध्यात्मक अनूठी शैली से कृतकृत्य हुये बहुत आभार.

    ReplyDelete
  57. आपके गूढ़ अध्यन का लाभ हमें भी मिल रहा है ... सीता और रजा जनक के माध्यम से जीवन के गहरे रहस्य को खोल दिया आपने ... गज़ब का व्याख्यान है ...
    राकेश जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी पोस्ट लिखने का ...

    ReplyDelete
  58. हमेशा की तरह 'राम-कथा' का प्रसाद सुखद रहा...सीता मैया की जय हो !

    ReplyDelete
  59. चिंतन जारी रखें. हम सब का कल्याण हो रहा है. आभार.

    ReplyDelete
  60. जानकारी से भरे आलेख के लिए धन्यवाद...

    ReplyDelete
  61. jai SIYA-RAM,

    Apne gyan ko is tarah baant kar aap ek nek kary kar rahe hain. dhanyawad

    ReplyDelete
  62. सीता जी के बारे में कभी इतनी गहनता से विचार नहीं किया.आप की लेखनी द्वारा एक नया अध्याय पढ़ रहे हैं.
    उनके इस विराट स्वरूप से परिचय करवाया.
    आभार.

    ReplyDelete
  63. Wonderful post...
    Loved the deep meaning conveyed and especially the lines by Tulsidas ji...
    Shubh Din.

    ReplyDelete
  64. जनक नंदिनी माँ सीता से जुडी एक सुंदर ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आपका हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  65. सीता जी के बारे में इतना ज्ञान बस यही आकर मिला
    आभार आपका इस सर्जन के लिए

    ReplyDelete
  66. आमतौर पर पूरे दिन जिस तरह की खबरों के बीच रहता हूं, मन दुखी रहता है।
    लेकिन इस तरह की पोस्ट पर आकर वाकई सुकून मिलता है। तमाम नई जानकारी मिली आपके इस लेख से। आपके साथ मैं भी'भक्ति' माता सीता जी का मैं हृदय से नमन करता हूँ .

    ReplyDelete
  67. सीय राम मय सब जग जानी | करउं प्रनाम जोरिजुग पानी |
    ............बस आनंद ही आनंद
    ........आपके सुन्दर अध्यात्मिक चिंतन ko पढ़कर मन पवित्र हो जाता है

    ReplyDelete
  68. करउ प्रनाम जोरि जुग पानी" ----ati-sundar

    ReplyDelete
  69. भाई राकेश जी आपकी हर पोस्ट सुन्दर और सराहनीय होती है |बधाई और शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  70. राकेश जी
    आप मेरे ब्लॉग पर आये, मुझे समर्थन दिया , बहुत- बहुत आभार / आपकी प्रस्तुति भी बहुत प्रभावपूर्ण है / एक बार पुनः आभार, धन्यवाद , आता रहूँगा

    ReplyDelete
  71. चिंतन की अथाह गहराई है हर पोस्ट में | उत्तम पोस्ट |

    ReplyDelete
  72. राकेश जी ,संबल देने के लिए आभार . आध्यात्म को जीवन में उतारने पर एक अलग शक्ति मिलती है.

    ReplyDelete
  73. आप भी सीता व राम जी का जो वर्णन करते हो
    कि बस बोलती बंद हो जाती है,
    देर से आया क्योंकि मैं श्रीखंण्ड महादेव की दुर्गम यात्रा पर गया हुआ था।

    ReplyDelete
  74. माता सीता के विषय में इतना गहन अध्ययन आपकी विद्वता को प्रदर्शित करती है .पढने में आनंद आ गया .आभार .

    ReplyDelete
  75. sita shbd me sansar hai .itna pavan varnan kiya ki man prasan hogaya .sita ji ko aaj bahut achchhi tarah jana
    abhar
    rachana

    ReplyDelete
  76. सुंदरता कहुं सुन्दर करई, छबि गृहं दीपसिखा जनु बरई
    सब उपमा कबि रहे जुठारी , केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी
    wah.....man ekdam mantr-mugdh ho gaya.bahut achcha laga.

    ReplyDelete
  77. सीता मैया ..............
    एक अध्यात्मिक चिंतन का सुख ही नहीं, वरन नारी जाती और परंपरा का दर्शन भी... एक आदर्श संस्कृति भी
    ....सर आपका ब्लॉग एक अनुपम भेट है हम सबके लिए.

    ReplyDelete
  78. दर्शन से भरपूर पोस्ट |अच्छी जानकारी |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  79. दर्शन व अध्यात्म से पूर्ण है आपका यह ब्लॉग मन को शांति पहुंचाता है एक बार फिर राम चरित को पढ़ने की इच्छा जागी है

    ReplyDelete
  80. अध्यात्म,दर्शन,और मार्ग दर्शक पोस्ट.पहले मुझे किष्किन्धा कांड और सुन्दर कांड मुह जबानी याद था सुन्दर कांड और राम रक्षा स्त्रोत रोज पढ़ लिया करती थी. फिर इधर घर गृहस्थी में इतना व्यस्त हुई ये सब करना मुश्किल हो गया पर मैं ये भी मानती हूँ की घर गृहस्ती की जो जिम्मेदारी प्रभू ने मुझे दी है उसका निर्वाह भी अगर एक दो प्रतिशत कर सकूं तो वो भी प्रभु की पूजा अर्चना के बराबर ही है.पर इतना जानती हूँ की फिर जब व्यस्तता कम होगी तो ये ही पूजा पाठ फिर से शुरू कर पाऊँगी

    ReplyDelete
  81. आपकी श्रद्धा,भक्ति और परिपूर्ण ज्ञान को प्रणाम...

    इतना अच्छा लेख....इतना गहन अध्ययन....

    नि:शब्द कर दिया आपने !!



    काफी लम्बे समय से आप सभी की रचनाओं से दूर रही हूँ !

    अभी भी कोशिश में हूँ कि नियमित रह सकूं...क्षमा चाहती हूँ..!!

    ReplyDelete
  82. बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक...

    ReplyDelete
  83. भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता है

    ज्ञानगंगा यूँ ही बहती रहे ..., आभार!

    ReplyDelete
  84. सीता ही शक्ति है .... आदिशक्ति ..... मात्... माया ... सभी ... बहुत ही सुंदर लेख ...

    साधुवाद.

    ReplyDelete
  85. बहुत ज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
    आभार इस पोस्ट के लिए ..!!

    ReplyDelete
  86. निरंतर कर्म करते हुए उन कर्मों को रामजी के चरणों में अर्पित करें तो ही सीताजी की प्राप्रि संभव है । बहुत ही ज्ञानवर्धक तथा रोचक पोस्ट । अगली कडी का इन्तजार करेंगे ।

    ReplyDelete
  87. I read both the posts, part 1 and 2. It gave me peace of mind.

    ReplyDelete
  88. आप मेरे ब्लॉग पर आये , आपका आभार ... यहाँ आ कर सीता का अर्थ ही अलग पाया ... वो शक्ति है , भक्ति है ... सीता के
    विषय में इतना गहन अध्ययन ...आपका पोस्ट अमूल्य है...

    ReplyDelete
  89. great and an insightful read... Lovely !!
    Mythology is great and interesting.

    ReplyDelete
  90. gud effort!!!!111

    ReplyDelete
  91. Dear Rakesh ji,

    Namaskaar!

    Your post is really very knowledgeable and meaningful. Congrats on writing such a nice post.

    Wish you all the best.

    ReplyDelete
  92. adhyatm par bahut sunder dhang se vivechan karte hai sukhad laga padhna...

    ReplyDelete
  93. प्रभावशाली लेखन सुन्दर दर्शन आपकी लेखनी से जो पाया वो बहुत अच्छा लगा मन को...

    ReplyDelete
  94. दर्शन ***दर्शन ****दर्शन ! सीता जी के अद्भुत दर्शन *****

    "सीताजी की शोभा, सुंदरता को भी सुन्दर करनेवाली है.वह ऐसी मालूम होती हैं मानो सुन्दरता रुपी घर
    में दीपक की लौं जल रही हो.सारी उपमाओं को तो कवियों ने झूंठा कर रखा है. मैं जनक नंदनी श्री
    सीताजी की किससे उपमा दूँ "

    आपकी लेखनी को सलाम राकेश जी ...

    ReplyDelete
  95. kya baat hai sahab ji
    aapse aur aapki kavitao se milkar khusi hui

    ReplyDelete
  96. आपके लिए ख़ास शुद्ध शाकाहारी रेसिपी पोस्ट किया है मैंने !
    http://khanamasala.blogspot.com
    मेरे इन दोनों ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
    http://urmi-z-unique.blogspot.com
    http://amazing-shot.blogspot.com

    ReplyDelete
  97. हाज़िर हूँ सर ...
    आनंदमय लेखनी और आश्रम की अनुभूति दिलाता आपका ब्लॉग, मन भाव विभोर हो उठता है !
    प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete
  98. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  99. "सीता "शब्द की सुन्दर सार्थक व्याख्या करती एक विज्ञ पोस्ट ....http://sb.samwaad.com/
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/ http://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete
  100. आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ६-८-११ शनिवार को नयी-पुरानी हलचल पर ..कृपया अवश्य पधारें..!!

    ReplyDelete
  101. सुन्दर चिंतन....

    ReplyDelete
  102. aapki ye post zara-si padhi hi thi ki, ek khayal aaya ki kyon na iska pratham part pahle padh lena chahiye... aur yakinan maine koi galti nahi ki... itne sundar varnan ke liye bahut-bahut dhnyawaad... aur itnee saari jaankaariyon ke liye abhaar...
    agle part ka intzaar rahega...

    ReplyDelete
  103. राम-कथा के दार्शनिक और आध्यात्मिक पक्ष लौकिक पक्ष से कहीं अधिक
    समृद्ध और कल्याणमय हैं -वहाँ मन में प्रश्न नहीं जागते .बस समाधान और प्रशान्ति !

    ReplyDelete
  104. उपस्थित श्रीमान...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  105. बहुत ज्ञानवर्धक ,अति सुंदर मनमोहक
    आप मेरे ब्लॉग पर आये , आपका आभार

    जय श्री राम
    जय श्री राम

    ReplyDelete
  106. आपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
    पर ये दोस्त आपका पुराना है,
    इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
    क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है

    ⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
    `⋎´✫¸.•°*”˜˜”*°•✫
    ..✫¸.•°*”˜˜”*°•.✫
    ☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
    /▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
    / .. ˚. ★ ˛ ˚ ✰。˚ ˚ღ。* ˛˚ 。✰˚* ˚ ★ღ

    !!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!

    फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
    मित्रता एक वरदान

    शुभकामनायें

    ReplyDelete
  107. बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट ...

    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ. सीता माँ के बारे में इतना अच्छा वर्णन पहली बार पढ़ा.. बहुत खुशी हुई.. अब हमेशा आते रहूँगा ..

    धन्यवाद.

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  108. aadarniy sir
    main aapse vilamb se tippni karne ke liye xhama chahti hun .dar-asal bar -bar ye likhna ki swasthy theek nahi ho pa raha hai achha nahi lagta isi se bahut sharmindagi mahsus karti hun.
    aaj badi himmat juta kar aap ke blog par aai hun.
    addhbhut vishhleshhan kiya hai aapne maa seeta ke naam ki itni sundar tareeke se vykhya ki hai ki vo aapjaise virle hi kar paate hain.bahut hi badhiya laga padh kar .aap to guru dronachary jaise ho gaye hain mere liye aap jaise gyani ki mai kya commet duh kabhi kabhi sochna pad jaata hai.vilab ke liye aapse punah xhama chahti hun.
    thodi der ho jaaye par aapke blog par aaungi jarur.
    sadar naman
    poonam

    ReplyDelete
  109. राकेश जी सबसे पहले मेरा धन्यवाद स्वीकार कीजिये मेरे ब्लॉग को अनुसरित एवं उचित मार्ग दर्शन के लिए .आपके अध्यात्मिक ज्ञान की गंगा को सदर नमन . विश्लेषण और शोध दोनों ही उत्कृष्ट हैं.

    ReplyDelete
  110. rakesh ji padharane ke liye,aabhar.seeta ji ke baare m aakane mehanat se jankarijutakar hamari nazar ki sadhuwad ke patrhai aap.

    ReplyDelete
  111. ऑस्ट्रेलिया में आपका हार्दिक स्वागत है! ऑस्ट्रेलिया बहुत ख़ूबसूरत देश है और यहाँ देखने के लिए बहुत ही सुन्दर सुन्दर जगह है! मैं पर्थ में रहती हूँ जो बहुत बड़ा शहर है, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है और यहाँ लोग बहुत अच्छे हैं! पूरे पश्चिम ऑस्ट्रेलिया की आबादी है २.३ मिलियन ! आप मेरे सभी ब्लॉग पर आकर हर एक पोस्ट पर इतनी सुन्दर टिप्पणी देते हैं जिसके लिए मैं आपका शुक्रियादा करना चाहती हूँ!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com

    ReplyDelete
  112. ज्ञानवर्द्धक पोस्ट...

    ReplyDelete
  113. नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया


    चलो मेरा लिखा मत पढ़ो,


    पोस्ट आपका इंतजार कर रहीं हैं

    ReplyDelete
  114. सीता जी के बारे में ज्ञान बढ़ाने के लिए आभार हमको तो यह सब मालूम ही नहीं था

    ReplyDelete
  115. Very beautifully written Rakesh ji...
    Really well presented... The lines by Tulsidas ji are thought provoking.
    Have a great week ahead:)

    ReplyDelete
  116. "'सीता जन्म' हृदय स्थली में 'सत्-चित-आनंद' को पाने
    की सच्ची चाहत का उदय होना है."
    राकेश सर,आपकी आलेख गहन अध्यात्मिक अनुभव का सार है.साथ ही अत्यंत मार्गदर्शी एवं अनुकरणीय भी है. वर्तमान समाज को दिशा दिखाते आलेख के लिए बधाई स्वीकार करें

    ReplyDelete
  117. अध्यात्मिक चेतना से जागृत कराती यह आलेख, देश की प्राचीन संस्कृति से परिचय कराती यह आलेख, सीता जी के संस्कृति और अध्यात्मिक महत्व को बताती यह आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है...
    आपकी लेखनी को सलाम राकेश जी.. अब हमेशा आता रहूँगा .. बधाई स्वीकार करें !!

    ReplyDelete
  118. Raakesh Ji, many-many thanks to join me.. A lot of thanks.. Please accept... Your creation really incredible..

    ReplyDelete
  119. आप अपना कीमती वक़्त देकर मेरे हर एक ब्लॉग पर आकर इतनी सुन्दरता से टिप्पणी देते हैं उसके लिए धन्यवाद कहना भी कम होगा!
    You are welcome at my new posts-
    http://urmi-z-unique.blogspot.com/
    http://amazing-shot.blogspot.com

    ReplyDelete
  120. गहन चिंतन से परिपूर्ण भक्ति और ज्ञान वर्धक आलेख..आभार

    ReplyDelete
  121. सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
    वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
    का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.

    भक्ति ही इश्वर के पथ पर हमें ले जाती है… सच है… और भक्ति में ही हम कठिन समय में इश्वर की सामर्थ पाते हैं… बहुत सुंदर पोस्ट! दरअसल यह पोस्ट पहले ही पढ़ ली थी पर किसी करणवश टिप्पणी नहीं कर पाई… इश्वर से प्रार्थना है की आप इसी तरह सबका मार्गदर्शन करते रहें!

    ReplyDelete
  122. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  123. आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    ReplyDelete
  124. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  125. हार्दिक शुभकामना स्वतंत्रता दिवस की|

    ReplyDelete
  126. It's great stuff. I enjoyed to read this blog.

    ReplyDelete
  127. भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर'कर्मयोग' की भी आवश्यकताहै, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल कीनोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोजका कार्य संपन्न कर् पाता है.

    बहुत ज्ञानवर्धक है... मार्गदर्शी एवं अनुकरणीय...
    यहाँ पर आकर बहुत अच्छा लगा|

    ReplyDelete
  128. आप मेरे बड़े भैया जैसे ही हैं और मेरे सभी ब्लॉग पर आकर प्रत्येक पोस्ट पर अपना कीमती वक़्त देकर टिप्पणी करने के लिए ये बहन दिल से शुक्रियादा करती है! मैं भले ही ऑस्ट्रेलिया में क्यूँ न रहूँ पर भारतीय हूँ और अपने देश के प्रति प्यार हमेशा बरकरार रहेगा! मैं भारत में पली बड़ी हूँ,अपना बचपन वहीँ बिताया,स्कूल कॉलेज से लेकर मेरा परिवार और दोस्त सभी भारत में है इसलिए मैं हमेशा जुडी रहती हूँ! आप मेरे खाना मसाला ब्लॉग पर आए देखकर बहुत अच्छा लगा!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://urmi-z-unique.blogspot.com/
    http://amazing-shot.blogspot.com

    ReplyDelete
  129. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  130. " सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं ,वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं."

    वाह, भला इससे सुंदर व सार्थक व्याख्या क्या हो सकती है। आज आपका सीता जी पर यह लेख पढकर मन व हृदय दोनों सीताजी के प्रति भक्तिभाव से सराबोर हो गया ।

    ReplyDelete
  131. राकेश जी सीता जी के जन्म के बारे में पहले से भी जानती हूँ
    पर आपने विस्तार से बताया है इसके लिये धन्यवाद।
    आपसे एक भ्रम दूर करना था।मैने कहीं सुना था कि जिस घडे
    से सीता जी निकलीं थीं उसमै संत लोगों ने दानव के विनाश
    के लिये अपने खून जमा कर सीता जी के जन्म
    की लीला रची थी क्या ये सही है। मेरी रचना उसकी यादें
    अधूरी थी लाइट चली गई थी अब पुनः पढै।

    ReplyDelete
  132. निशा जी, बहुत बहुत आभार आपका मेरी इस पोस्ट पर
    पधारने के लिए.आपकी पोस्ट पर निम्न टिपण्णी मैंने की है.

    'वाह! अब आनंद आया आपकी सुन्दर भावपूर्ण
    प्रस्तुति पढकर.
    बहुत बहुत शुक्रिया निशा जी पूरी कविता पढवाने के
    लिए और मेरे ब्लॉग पर भी आपके आने के लिए.

    आपने सीता जन्म के बारे में ठीक ही कहा है
    कि पौराणिक कहानी अनुसार ऋषि मुनियों
    ने कर के रूप में अपना रक्त रावण और दानवों
    को दिया था, जिसे घड़े में भरकर जनकपुरी के
    पास की भूमि में गाड दिया गया था.जिस से
    कालांतर में 'सीता'जी प्रकटी.

    आध्यात्मिक चिंतन के अनुसार इसको ऐसे माना
    जा सकता है कि रावण अहंकार का प्रतीक है,
    दानव कुविचारों और कुभावों के, जिस कारण
    ऋषि मुनियों को खुद अपने से ही संघर्ष और
    तप करना पड़ता था ,'प्रेम' और 'भक्ति' के
    अन्वेषण के लिए.क्यूंकि शुष्क ज्ञान मार्ग में अहंकार
    और कुविचार बाधक होते थे.यह संघर्ष और तप ही रक्त
    का द्योतक है जो अन्वेषण के 'कालपात्र' के रूप
    में घड़े में डालकर भूमि में गाड दिया गया.
    यह 'कालपात्र' जब निकला तब ऋषि मुनियों
    का 'प्रेम' और 'भक्ति' पर किया हुआ अन्वेषण
    ही सीता रूप में प्रकट माना जा सकता है.'

    ReplyDelete
  133. आध्यात्मिक चिंतन की यह प्रभावशाली कड़ी निरंतर चलती रहे!

    ReplyDelete
  134. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  135. Today your blog has received immense pleasure! Today, after reading this article on your Sita, both mind and heart became enamoured with devotion towards Sitaji.
    Web hosting

    ReplyDelete
  136. Zenyataa – Luxury at Your Feet! On the repetitive and quick paced, aggressive edge of the footwear business, the much-expanded business aggregate Mapsko Group, made its invasion as Mapsko Shoes Pvt. Ltd., with the dispatch of its exceptional image Zenyataa. Being in fact propelled, the range gloats of versatility, development and complete adaptability.
    Zenyataa shoes

    ReplyDelete
  137. I'm following your blog consistently and got extraordinary data. I truly like the tips you have given. You're the best for sharing. Will allude a ton of companions about this.
    smart watch answer call
    sports watch for kids

    ReplyDelete
  138. It's difficult to come by proficient individuals on this subject, Thank you for this article!
    interactive flat panel
    smart classroom solutions

    ReplyDelete
  139. Astoundingly supportive information for a phenomenal blog … Thank you for sharing this information !!
    best digital marketing company
    best digital marketing company in delhi

    ReplyDelete