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Friday, June 29, 2012

हनुमान लीला भाग-५

                         जय जय जय हनुमान गोसाँई, कृपा करहु गुरुदेव  की नाईं

मेरी पोस्ट ' हनुमान लीला भाग -१'  में हनुमान जी के स्वरुप का चिंतन करते हुए मैंने लिखा था

' हनुमान जी  वास्तव में 'जप यज्ञ'  व 'प्राणायाम' का साक्षात ज्वलंत  स्वरुप ही हैं.साधारण अवस्था में  हमारे  मन, बुद्धि,प्राण अर्थात हमारा अंत:करण  अति चंचल हैं जिसको कि  प्रतीक रूप मे हम वानर या कपि भी 
कह सकते हैं. लेकिन जब हम 'जप यज्ञ'  व  'प्राणायाम ' का सहारा लेते हैं तो  प्राण सबल होने लगता है. 


'हनुमान लीला भाग -२' में यह चर्चा की थी  कि


जीव जब दास्य भाव ग्रहण कर सब कुछ राम को सौंप केवल राम के  कार्य यानि आनंद का संचार और विस्तार करने के लिए पूर्ण रूप से भक्ति,जपयज्ञ , प्राणायाम  व कर्मयोग द्वारा नियोजित हो राम के अर्पित हो जाता है तो उसके अंत: करण में   'मैं' हनुमान भाव  ग्रहण करने लगता है. तब वह  भी मान सम्मान से परे होता जाता है और 'ऊँ  जय जगदीश हरे  स्वामी जय जगदीश हरे ...तन मन धन  सब है तेरा स्वामी सब कुछ है तेरा, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ..'  के शुद्ध  और सच्चे  भाव उसके  हृदय में  उदय हो  मानो वह हनुमान ही होता  जाता है.


'हनुमान लीला भाग -३' में मोह और अज्ञान का जिक करते हुए लिखा था 


समस्त अनिश्चिंतता,भय संदेह ,असुरक्षा का कारण 'मोह' अर्थात अज्ञान है,अज्ञान के साथ अभिमान
अर्थात यह मानना कि मुझे किसी आश्रय की आवश्यकता नही है अत्यंत शूलप्रद और कष्टदायी होता है


'हनुमान लीला भाग-४' में वर्णन किया था 


हनुमान जी का चरित्र अति सुन्दर,निर्विवाद और शिक्षाप्रद है,


भगवान की शरणागति को प्राप्त हो जाना  जीवन की सर्वोत्तम और  सुन्दर उपलब्धि है.  हनुमान की शरणागति  सर्वत्र सुंदरता का  दर्शन करानेवाली है,


उपरोक्त  बातों को अपने  मन मे रखकर , हनुमान जी का गुरु रूप में ध्यान करते हुए,इस पोस्ट में मैं श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १५  के श्लोक ५ में वर्णित तथ्यों  और व्याख्या का अवलंबन करते हुए' हनुमान लीला द्वारा कैसे परम पद यानि परमानन्द की स्थिति तक पहुँचा जा सकता है, उस साधना का उल्लेख करना चाहूँगा. परम पद या परमानन्द की यह स्थिति अव्यय है, अर्थात सदा ही बनी रहने वाली है. यह पद व्यय रहित है इसीलिए  'अव्यय' कहलाता  है ,कभी भी क्षीण होने वाला  नही है.जबकि सांसारिक हर सम्पदा या पद कभी न कभी क्षीण हो जाने वाला होता है .यहाँ तक कि 'स्वर्ग' लोक तक का सुख भी एक दिन पुन्य कर्मों के व्यय हो जाने पर क्षीण हो जाने वाला है.इसलिए इस व्यय रहित परमानन्द रुपी अव्यय  पद तक पहुंचना हम सबका ध्येय होना चाहिए.


श्रीमद्भगवद्गीता का  श्लोक निम्न प्रकार से है :-


                            निर्मानमोहा  जित संगदोषा,    अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः
                            द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदु:खसंज्ञैर ,गच्छ्न्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् 


श्लोक की टाइपिंग में हुई त्रुटि के लिए क्षमा चाहूँगा.उपरोक्त श्लोक में 'गच्छ्न्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्' के द्वारा  अमूढ़ (मूढता का सर्वथा त्याग करते  हुए)होकर 'अव्यय पद' तक पहुँचने  की साधना वर्णित  है,जिसकी व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती  है.


निर्मान्-   


पहली साधना है मान रहित होने की.जैसा कि हमने जाना कि हनुमान जी सदा मान रहित हैं.हमें भी अपने 
चंचल कपि रूप चित्त को हनुमान जी का ध्यान करते हुए मानरहित करने का प्रयास करते रहना  चाहिए.
अपने को मान देने की प्रक्रिया हमें लक्ष्य से भटका देती है.हम जिस भी इष्ट का ध्यान करते हैं,उसी के  हम में 
गुण भी आ जाते हैं.हनुमान जी का ध्यान करने से 'मान रहित' होने का गुण निश्चितरूप से हम में आ जाएगा,
मन में ऐसी आस्था और विश्वास रखकर हमें 'हनुमान जी' के  मानरहित स्वरूप का निरंतर चिंतन करना  चाहिये.


अमोहा -  


दूसरी साधना है मोह रहित होने की.अर्थात 'अमोहा' होने की. हनुमान जी 'ज्ञानिनामग्रगण्यम ' व 'बुद्धिमतां वरिष्ठम्'हैं.बालकाल में ही उन्होंने 'सूर्य' को मधुर फल जान कर भक्षण कर लिया था.'सूर्य' ज्ञान का प्रतीक है.सूर्य के भक्षण  का अर्थ है उन्होंने ज्ञान विज्ञान को बाल काल में ही पूर्णतया आत्मसात कर लिया था.जैसा की 'हनुमान लीला भाग -३' की पोस्ट में भी कहा गया था कि'समस्त अनिश्चिंतता,भय संदेह ,असुरक्षा का कारण 'मोह' अर्थात अज्ञान है' इसलिए  उस अव्यय पद यानि परमानन्द की स्थिति तक पहुँचने के लिए  'मोह' से निवृत्त हो जाना  भी अत्यंत आवश्यक है. इसके लिए हमें हनुमान जी का  'ज्ञानिनामग्रगण्यम ' व 'बुद्धिमतां वरिष्ठम्' रूप ध्यान में रख कर ज्ञान अर्जन की साधना निरंतर करते रहना चाहिये.


जित संग दोषा-  


संग दोष विषयों के संग व आसक्ति के कारण उत्पन्न होता है.श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय २, श्लोक ६२ में 
वर्णित है 'ध्यायतो विषयां पुंस: संगस्तेषूपजायते ...'. विषयों का ध्यान करने वाले पुरुष का उन विषयों से संग अथवा विषयों से आसक्ति हो जाती है. जिस कारण उसके मन में  विषय की कामना उत्पन्न हो जाती हैं,कामना में विघ्न पड़ने पर क्रोध की  उत्पत्ति  होती है.क्रोध से मूढ़ भाव अर्थात अज्ञान की प्राप्ति होती है,मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है,जिससे बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है.बुद्धि का नाश होने से पुरुष अपनी स्थिति से ही  गिर जाता है.अर्थात परम पद की ओर बढ़ने के बजाय वह पथ भ्रष्ट हो भटकाव की स्थिति में आ जाता है.इसलिए परम पद की यात्रा की  ओर अग्रसर होने में संग दोष को जीतना अतिआवश्यक है.हनुमान जी  'जितेन्द्रियं' व  'दनुजवनकृशानुं ' हैं अर्थात उन्होंने  अपनी  समस्त  इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की हुई है उनमें 'समस्त विकारों,अधम वासनाओं को भस्म करने   की  सामर्थ्य है. वे  विषयों का ध्यान करने के बजाय सदा राम जी (परम पद ) का ही ध्यान करते हैं.विषयों के ध्यान से चित्त को हटा परमात्मा का ध्यान करने से धीरे धीरे 'संग दोष' पर विजय प्राप्त की जा सकती है.  




अध्यात्मनित्या-  


हम अधिकतर बाहरी जगत का चिंतन करते रहते है.अपने स्वरुप का चिंतन 'अध्यात्म' के नाम से जाना जाता है.आंतरिक चिंतन  अर्थात अपने स्वरुप का नित्य चिंतन करने से भी हम परम पद की ओर  अग्रसर होते हैं.जीवात्मा परमात्मा का अंश है  अर्थात वह भी सत्-चित-आनन्द स्वरुप ही  है. परन्तु,जीवात्मा के  मन,बुद्धि और इन्द्रियाँ ब्राह्य प्रकृति में अत्यंत व्यस्त हो जाने के कारण उसे अपने स्वरुप का ध्यान लोप हो जाता है.नित्य प्रति स्वयं के स्वरुप का साक्षी भाव से  चिंतन व ध्यान  करना ही 'अध्यात्मनित्या'  है.हनुमान जी 'अध्यात्म नित्या' के कारण ही' सकलगुणनिधानं  व   वानरणामधीशं हैं. 




उपरोक्त श्लोक में वर्णित  शेष तीन साधनाओं ( विनिवृत्तकामाः, द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदु:खसंज्ञैर  की व्याख्या मैं अपनी अगली पोस्ट में करूँगा.आशा है सभी  सुधि जन अपने अपने विचार उपरोक्त साधनाओं के सम्बन्ध में अवश्य प्रस्तुत करेंगें.


पिछले महीने अमेरिका के टूर पर गया हुआ था.इस कारण और अपनी व्यस्तता के कारण यह पोस्ट देर से लिख पाया हूँ.इसके लिए सभी जिज्ञासु सुधि जनों से  क्षमाप्रार्थी हूँ, विशेषकर उनका जिन्होंने मुझे हनुमान लीला पर पोस्ट लिखने के लिए बार बार प्रोत्साहित किया है.


अमेरिका में  वहाँ की एक विख्यात हिंदी चैनल  ITV  के लिए ITV  के Director श्री अशोक व्यास जी ने श्रीमती सरू सिंघल जी (ब्लॉग 'words')  और मुझे लेकर एक इंटरव्यू लिया था. उसका youtube लिंक है     http://youtu.be/IcWHN6UzHKI 


श्रीमती सरू सिंघल (Saru singhal) जी ने अपने ब्लॉग words पर ' "Discussion on Blogging on ITV Gold": एक पोस्ट भी लिखी है.


सुधिजन इन लिंक्स का अवलोकन कर सकते हैं.मुझे जब भी समय मिलेगा तो मैं भी अलग से पोस्ट लिखूंगा.
अभी आप अपने विचार 'Followers'  की ब्लॉग्गिंग में क्या महत्ता है पर भी प्रकट कर सकते हैं. 
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