रामजन्म के पावन पर्व रामनवमी की समस्त ब्लोगर जन को हार्दिक शुभकामनाएं.
इस पोस्ट में मै आप सभी सुधिजनों के साथ रामजन्म के विषय में आध्यात्मिक चिंतन
करना चाहता हूँ ,जिसपर मैंने अपने कुछ विचार " जी न्यूज " चैनल पर रामनवमी के
दिन (दि. १२.०४ .२०११) को "मंथन" कार्यकर्म (सुबह ६ से ७ बजे) में प्रस्तुत किये थे.
इस कार्यकर्म के लिए मै न तो कोई विशेष तैय्यारी कर पाया था और न ही मुझे ऐसे किसी
कार्यकर्म में सम्मिलित होने का कोई किसी प्रकार का अनुभव था.जो भी विचार मैं अपने
इस कार्यकर्म में रख पाया ,हो सकता है उनमें त्रुटियाँ रह गई हों. इसीलिए इस पोस्ट का
सर्जन कर रहा हूँ ताकि उन विचारों को यहाँ सम्मिलित करते हुए आप सभी सुधिजनों के समक्ष
भी रामजन्म पर आध्यात्मिक चिंतन प्रस्तुत कर सकूँ.आशा है आप सभी सुधिजन इस चिंतन
में सम्मलित हो अपने अपने बहुमूल्य विचारों को प्रस्तुत कर चर्चा को सार्थकता प्रदान करेंगें.
विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व मै अपना हार्दिक आभार व धन्यवाद "जी न्यूज" चैनल को,
प्रिय भाई खुशदीप जी, आदरणीय सर्जना शर्माजी, कार्यकर्म के संचालक श्री विनोद कुमार शर्माजी
और एंकर ममता जी व 'मंथन ' कार्यकर्म की समस्त टीम व स्टाफ को प्रेषित करना चाहता हूँ,
जिनके प्रोत्साहन व सहयोग की बिना मै रामजन्म पर अपना चिंतन 'मंथन' कार्यकर्म में प्रस्तुत
नहीं कर सकता था.
मै सर्जना शर्मा जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए दुआ करता हूँ और भगवान से प्रार्थना करता हूँ
कि वे अतिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर अपने 'रसबतिया' ब्लॉग के माध्यम से हम सब में भी सैदेव
रस और मंगल का संचार करती रहें.
राम को हम तीन स्तरों पर जान सकते हैं. आधिभौतिक ,आधिदैविक और आध्यात्मिक .
आधिभौतिक के द्वारा हम राम को भौतिक जगत में इतिहास ,भूगोल आदि के माध्यम से जानने
का प्रयास करते हैं, आधिदैविक में हम उनके दैवीय पक्ष को पुराणों आदि के माध्यम से जान पाते हैं.
आध्यात्मिक में हम उनको तत्व चिंतन के द्वारा जानने का प्रयत्न करते हैं.इस पोस्ट में मेरा ध्येय
राम को आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा जानने और समझने का है.
राम वह है जो कण कण में रमता हैं .वह परमात्मा है वह ही परमधाम है, जिसको पाकर हमें
पूर्ण शांति और विश्राम आये.वह निराकार भी है और साकार भी , निर्गुण भी है और सगुण भी.
भगवद्गीता के १२ वें अध्याय 'भक्ति योग' के अनुसार परमात्मा की भक्ति उनके निर्गुण निराकार
व सगुण साकार दोनों ही रूपों को ध्यान में रख कर की जा सकती है.आवश्यकता है तो मन और बुद्धि
को परमात्मा में लगाने की .गीता (अ.१२ श.८) में कहा गया है
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय
अर्थात तू मुझ में ही मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि का निवेश कर ,इसके उपरांत तू मुझ में ही
निवास करेगा,इसमें कुछ भी संशय नहीं है .
अनेक उदहारण से हम साकार को समझ सकते हैं. जैसे पानी भाप रूप में निराकार होता है
परन्तु यदि उसको ठंडा करके किसी बर्तन में जमा लिया जाये तो वही बर्फ रूप में साकार हो जाता है
और वही रूप ले लेता है जो बर्तन का होता है. इसी प्रकार निराकार परमात्मा भक्तों के हृदय रुपी
बर्तन में श्रद्धा और भक्ति से घनीभूत हो साकार रूप से भी व्यक्त होजाता है.
तुलसीदासजी ने रामचरित्र मानस में राम के निर्गुण निराकार और सगुण साकार दोनों ही रूपों की
अति सुन्दर विवेचना की है. निर्गुण निराकार रूप का वर्णन करते हुए तुलसी लिखते हैं
एक अनीह अरूप अनामा , अज सचिदानंद पर धामा
यानि परमात्मा एक है, उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है , उसका कोई रूप नहीं है, उसका कोई नाम नहीं है
उसका कोई जन्म नहीं है, वह सत्-चित-आनन्द है और वह ही परमधाम है.
दूसरी ओर तुलसी राम की बाल छवि को ह्रदय में आकार देते हुए आनन्द से निहारते हुए कहतें हैं
" वर दन्त की पंगति कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की
घुन्घरारी लटें लटकें मुख ऊपर ,कुंडल लोल कपोलन की
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की "
तथ्य यह है कि हम सब आनन्द चाहते हैं और आनन्द की खोज में ही जीवन में भटक रहे हैं.
सच्चे आनन्द के स्वरुप को न जानने और न पहचानने की वजह से ही यह भटकन है.
यदि हमें ऐसा आनन्द मिले जो क्षणिक हो,अस्थाई हो ,समय से बाधित हो ,आज हो कल न हो ,
तो उससे हमे पूर्ण संतुष्टि और आराम नहीं मिल सकता. परन्तु यदि आनन्द 'सत् ' हो ,चिर
स्थाई हो ,काल बाधित न हो, हमेशा बना रहे,ज्ञान और प्रकाश स्वरुप हो अर्थात 'चेतन' हो तो
ऐसा ही आनन्द 'सत्-चित-आनन्द' होता है जिसकी हम खोज रहे हैं , जिसे शास्त्रों में परमात्मा कहा
गया है.ऐसे आनन्द को प्राप्त करना ही हमारा परम लक्ष्य है,वही आखरी मंजिल है
इसीलिए वह ही 'परम धाम' है. आनन्द के सम्बन्ध में कोई पूर्वाग्रह करना कि वह
निर्गुण निराकार ही हो, या सगुण साकार न हो उचित नहीं जान पड़ता.
कहते हैं राम के पिता का नाम दशरथ है.तुलसी लिखते हैं
'मंगल भवन अमंगलहारी ,द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी '
दसरथ के आँगन में बिहार करनेवाले मंगल के भवन और अमंगल का हरण करने वाले श्रीराम
मेरे पर द्रवित हों,अर्थात पसीजें मेरे पर कृपा करें.
दशरथ का तात्पर्य सतोगुण संपन्न ऐसा मन है जो पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों के दश
रथों पर सवार होकर जीवन में नौ श्रेष्ठ मनोरथों को छोड़ ,दशम सर्वश्रेष्ठ मनोरथ 'सत्-चित आनन्द '
को ही ध्येय बना उसे मन के आँगन में ही प्राप्त भी कर लेता है.इसलिये ऐसा मन दशरथ है और
सत्-चित -आनन्द रुपी राम का जनक है.
यह भी कहते हैं कि राम की माता का नाम कौशल्या है. तुलसी लिखते हैं
"बंदउ कौशल्या दिसि प्राची ,कीरती जासु सकल जग माची "
मै कौशल्या जी की वंदना करता हूँ जो कि 'पूर्व दिशा ' हैं, जिनकी ख्याति समस्त जगत में फैली
हुई है. पूर्व दिशा में ही सूर्य का उदय होता है.यहाँ 'सत्-चित आनन्द ' का भाव ही सूर्य है.
कौशल्या वह बुद्धि है जो विचार करने में अति कुशल है, सूक्ष्म है,एकाग्र है, और सद्-चिंतन
के कौशल से " सत्-चित-आनन्द " भाव यानि राम जी का प्रसव करती है. इसलिये ऐसी बुद्धि
कौशल्या है और रामजी की माता है.
अब एक उदहारण द्वारा इसको समझने का पुनः प्रयास करतें हैं. यदि एक सुन्दर महल बना है
तो वह सगुण साकार रूप में नजर आता है. परन्तु जब वह महल नहीं बना था,तब वह निर्गुण
निराकार के रूप में उसके रचयिता के मानस में विद्यमान था . पहले उसको बनाने का भाव
रचियता के मन में प्रकट हुआ ,वही पुष्ट होकर जब मन में स्थापित हो गया और रचियता की
बुद्धि ने उसपर गहन मनन किया तो प्रथम उस महल का नक्शा प्रकट हुआ और फिर जब उसका
नक़्शे अनुसार ही निर्माण किया गया तो वह महल सगुण साकार रूप में प्रकट हो गया.सगुण
साकार रूप में वह महल वही वही सुविधा व आराम देने लगा जिन जिन को उसके रचयिता ने
अपने मन और बुद्धि में धारण किया था. यदि उस महल में कमियां होंगी तो उन सब का कारण
रचियता के मन और बुद्धि ही हैं.
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
दे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, तुलसी के शब्दों में हम फिर कह सकतें हैं
" भये प्रकट कृपाला ,दींन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी ,मुनि मन हारी,अदभुत रूप विचारी
रामजन्म की सभी को एक बार फिर शत शत बधाइयाँ .
अगली पोस्ट में हम अवधपुरी, त्रेतायुग, उपवास आदि का तत्व चिंतन करने का प्रयास करेंगें,
जिनका चिंतन उपरोक्त जी न्यूज चैनल के' मंथन ' कार्यकर्म में भी किया गया था.रामनवमी
पर प्रसारित मंथन प्रोग्राम को 'www.zeenews.com' और संभवतः 'www.youtube.com' पर भी
देखा जा सकता है.
बैसाखी के पावन पर्व की सभी सुधिजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ !
इस पोस्ट में मै आप सभी सुधिजनों के साथ रामजन्म के विषय में आध्यात्मिक चिंतन
करना चाहता हूँ ,जिसपर मैंने अपने कुछ विचार " जी न्यूज " चैनल पर रामनवमी के
दिन (दि. १२.०४ .२०११) को "मंथन" कार्यकर्म (सुबह ६ से ७ बजे) में प्रस्तुत किये थे.
इस कार्यकर्म के लिए मै न तो कोई विशेष तैय्यारी कर पाया था और न ही मुझे ऐसे किसी
कार्यकर्म में सम्मिलित होने का कोई किसी प्रकार का अनुभव था.जो भी विचार मैं अपने
इस कार्यकर्म में रख पाया ,हो सकता है उनमें त्रुटियाँ रह गई हों. इसीलिए इस पोस्ट का
सर्जन कर रहा हूँ ताकि उन विचारों को यहाँ सम्मिलित करते हुए आप सभी सुधिजनों के समक्ष
भी रामजन्म पर आध्यात्मिक चिंतन प्रस्तुत कर सकूँ.आशा है आप सभी सुधिजन इस चिंतन
में सम्मलित हो अपने अपने बहुमूल्य विचारों को प्रस्तुत कर चर्चा को सार्थकता प्रदान करेंगें.
विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व मै अपना हार्दिक आभार व धन्यवाद "जी न्यूज" चैनल को,
प्रिय भाई खुशदीप जी, आदरणीय सर्जना शर्माजी, कार्यकर्म के संचालक श्री विनोद कुमार शर्माजी
और एंकर ममता जी व 'मंथन ' कार्यकर्म की समस्त टीम व स्टाफ को प्रेषित करना चाहता हूँ,
जिनके प्रोत्साहन व सहयोग की बिना मै रामजन्म पर अपना चिंतन 'मंथन' कार्यकर्म में प्रस्तुत
नहीं कर सकता था.
मै सर्जना शर्मा जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए दुआ करता हूँ और भगवान से प्रार्थना करता हूँ
कि वे अतिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर अपने 'रसबतिया' ब्लॉग के माध्यम से हम सब में भी सैदेव
रस और मंगल का संचार करती रहें.
राम को हम तीन स्तरों पर जान सकते हैं. आधिभौतिक ,आधिदैविक और आध्यात्मिक .
आधिभौतिक के द्वारा हम राम को भौतिक जगत में इतिहास ,भूगोल आदि के माध्यम से जानने
का प्रयास करते हैं, आधिदैविक में हम उनके दैवीय पक्ष को पुराणों आदि के माध्यम से जान पाते हैं.
आध्यात्मिक में हम उनको तत्व चिंतन के द्वारा जानने का प्रयत्न करते हैं.इस पोस्ट में मेरा ध्येय
राम को आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा जानने और समझने का है.
राम वह है जो कण कण में रमता हैं .वह परमात्मा है वह ही परमधाम है, जिसको पाकर हमें
पूर्ण शांति और विश्राम आये.वह निराकार भी है और साकार भी , निर्गुण भी है और सगुण भी.
भगवद्गीता के १२ वें अध्याय 'भक्ति योग' के अनुसार परमात्मा की भक्ति उनके निर्गुण निराकार
व सगुण साकार दोनों ही रूपों को ध्यान में रख कर की जा सकती है.आवश्यकता है तो मन और बुद्धि
को परमात्मा में लगाने की .गीता (अ.१२ श.८) में कहा गया है
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय
अर्थात तू मुझ में ही मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि का निवेश कर ,इसके उपरांत तू मुझ में ही
निवास करेगा,इसमें कुछ भी संशय नहीं है .
अनेक उदहारण से हम साकार को समझ सकते हैं. जैसे पानी भाप रूप में निराकार होता है
परन्तु यदि उसको ठंडा करके किसी बर्तन में जमा लिया जाये तो वही बर्फ रूप में साकार हो जाता है
और वही रूप ले लेता है जो बर्तन का होता है. इसी प्रकार निराकार परमात्मा भक्तों के हृदय रुपी
बर्तन में श्रद्धा और भक्ति से घनीभूत हो साकार रूप से भी व्यक्त होजाता है.
तुलसीदासजी ने रामचरित्र मानस में राम के निर्गुण निराकार और सगुण साकार दोनों ही रूपों की
अति सुन्दर विवेचना की है. निर्गुण निराकार रूप का वर्णन करते हुए तुलसी लिखते हैं
एक अनीह अरूप अनामा , अज सचिदानंद पर धामा
यानि परमात्मा एक है, उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है , उसका कोई रूप नहीं है, उसका कोई नाम नहीं है
उसका कोई जन्म नहीं है, वह सत्-चित-आनन्द है और वह ही परमधाम है.
दूसरी ओर तुलसी राम की बाल छवि को ह्रदय में आकार देते हुए आनन्द से निहारते हुए कहतें हैं
" वर दन्त की पंगति कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की
घुन्घरारी लटें लटकें मुख ऊपर ,कुंडल लोल कपोलन की
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की "
तथ्य यह है कि हम सब आनन्द चाहते हैं और आनन्द की खोज में ही जीवन में भटक रहे हैं.
सच्चे आनन्द के स्वरुप को न जानने और न पहचानने की वजह से ही यह भटकन है.
यदि हमें ऐसा आनन्द मिले जो क्षणिक हो,अस्थाई हो ,समय से बाधित हो ,आज हो कल न हो ,
तो उससे हमे पूर्ण संतुष्टि और आराम नहीं मिल सकता. परन्तु यदि आनन्द 'सत् ' हो ,चिर
स्थाई हो ,काल बाधित न हो, हमेशा बना रहे,ज्ञान और प्रकाश स्वरुप हो अर्थात 'चेतन' हो तो
ऐसा ही आनन्द 'सत्-चित-आनन्द' होता है जिसकी हम खोज रहे हैं , जिसे शास्त्रों में परमात्मा कहा
गया है.ऐसे आनन्द को प्राप्त करना ही हमारा परम लक्ष्य है,वही आखरी मंजिल है
इसीलिए वह ही 'परम धाम' है. आनन्द के सम्बन्ध में कोई पूर्वाग्रह करना कि वह
निर्गुण निराकार ही हो, या सगुण साकार न हो उचित नहीं जान पड़ता.
कहते हैं राम के पिता का नाम दशरथ है.तुलसी लिखते हैं
'मंगल भवन अमंगलहारी ,द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी '
दसरथ के आँगन में बिहार करनेवाले मंगल के भवन और अमंगल का हरण करने वाले श्रीराम
मेरे पर द्रवित हों,अर्थात पसीजें मेरे पर कृपा करें.
दशरथ का तात्पर्य सतोगुण संपन्न ऐसा मन है जो पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों के दश
रथों पर सवार होकर जीवन में नौ श्रेष्ठ मनोरथों को छोड़ ,दशम सर्वश्रेष्ठ मनोरथ 'सत्-चित आनन्द '
को ही ध्येय बना उसे मन के आँगन में ही प्राप्त भी कर लेता है.इसलिये ऐसा मन दशरथ है और
सत्-चित -आनन्द रुपी राम का जनक है.
यह भी कहते हैं कि राम की माता का नाम कौशल्या है. तुलसी लिखते हैं
"बंदउ कौशल्या दिसि प्राची ,कीरती जासु सकल जग माची "
मै कौशल्या जी की वंदना करता हूँ जो कि 'पूर्व दिशा ' हैं, जिनकी ख्याति समस्त जगत में फैली
हुई है. पूर्व दिशा में ही सूर्य का उदय होता है.यहाँ 'सत्-चित आनन्द ' का भाव ही सूर्य है.
कौशल्या वह बुद्धि है जो विचार करने में अति कुशल है, सूक्ष्म है,एकाग्र है, और सद्-चिंतन
के कौशल से " सत्-चित-आनन्द " भाव यानि राम जी का प्रसव करती है. इसलिये ऐसी बुद्धि
कौशल्या है और रामजी की माता है.
अब एक उदहारण द्वारा इसको समझने का पुनः प्रयास करतें हैं. यदि एक सुन्दर महल बना है
तो वह सगुण साकार रूप में नजर आता है. परन्तु जब वह महल नहीं बना था,तब वह निर्गुण
निराकार के रूप में उसके रचयिता के मानस में विद्यमान था . पहले उसको बनाने का भाव
रचियता के मन में प्रकट हुआ ,वही पुष्ट होकर जब मन में स्थापित हो गया और रचियता की
बुद्धि ने उसपर गहन मनन किया तो प्रथम उस महल का नक्शा प्रकट हुआ और फिर जब उसका
नक़्शे अनुसार ही निर्माण किया गया तो वह महल सगुण साकार रूप में प्रकट हो गया.सगुण
साकार रूप में वह महल वही वही सुविधा व आराम देने लगा जिन जिन को उसके रचयिता ने
अपने मन और बुद्धि में धारण किया था. यदि उस महल में कमियां होंगी तो उन सब का कारण
रचियता के मन और बुद्धि ही हैं.
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
दे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, तुलसी के शब्दों में हम फिर कह सकतें हैं
" भये प्रकट कृपाला ,दींन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी ,मुनि मन हारी,अदभुत रूप विचारी
रामजन्म की सभी को एक बार फिर शत शत बधाइयाँ .
अगली पोस्ट में हम अवधपुरी, त्रेतायुग, उपवास आदि का तत्व चिंतन करने का प्रयास करेंगें,
जिनका चिंतन उपरोक्त जी न्यूज चैनल के' मंथन ' कार्यकर्म में भी किया गया था.रामनवमी
पर प्रसारित मंथन प्रोग्राम को 'www.zeenews.com' और संभवतः 'www.youtube.com' पर भी
देखा जा सकता है.
बैसाखी के पावन पर्व की सभी सुधिजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ !
राकेश जी,
ReplyDeleteप्रथम तो मंथन में भाग लेने के लिये बधाई!!
यह चिंतन भी प्रभावशाली है।
आपको भी शुभकामनाएँ!!
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म दे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है....
ReplyDeleteराकेश जी इतना सुन्दर लेख एवं इसमें नियोजित श्लोकों व दोहों की इतनी सुन्दर, सार्थक व भावपूर्ण व्याख्या व सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक अभिनन्दन...शुभकामनाएँ...
प्रभावी, पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteउत्तम चिंतन से युक्त जानकारीवर्द्धक आलेख पढकर अच्छा लगा ।
ReplyDelete"हरि अनंत हरि कथा अनंता"
ReplyDeleteलेकिन आपने राम के विषय में आध्यात्मिक चिंतन प्रस्तुत करके एक सराहनीय प्रयास किया है ...आपने जो अपनी भावनाएं उदाहरणों द्वारा पुष्ट की हैं वह आपके चिंतन और ज्ञान को दर्शाती हैं ....आपका आभार इस सार्थक पोस्ट के लिए ...!
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, तुलसी के शब्दों में हम फिर कह सकतें
bhav man ko chhoo gaye ,ati uttam ,dhero badhai manthan me bhag lene ke liye aapko .vichar bahut hi prabhavshaali hai .padhte huye har shabd dimag me chitrit ho rahe the ,adbhut .aanand ki anubhuti hui .
श्री राम जी के अध्यात्मिक जीवन चिंतन पर बहुत सुन्दर ढंग से ब्याख्या की है| श्लोकों द्वारा समझाने में सफल हुए हैं| इस भावपूर्ण व्याख्या व सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक अभिनन्दन|
ReplyDeleteआप को भी रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, तुलसी के शब्दों में हम फिर कह सकतें हैं
" भये प्रकट कृपाला ,दींन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी ,मुनि मन हारी,अदभुत रूप विचारी
adbhut chintan
गुरूजी प्रणाम ....बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति एवंग शुरुवात !
ReplyDeleteमुझे यहाँ आ कर आध्यात्मिक शांति मिलती है..
ReplyDeleteराम के जन्म का चिंतन पढ़कर मन प्रसन्न हो गया..
सार्थक और प्रभावी चिंतन .....मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन से जुड़ी इस पोस्ट के लिए आभार ...बढियां आपको भी
ReplyDeleteआप को भी रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआदरणीय गुरु श्री राकेश कुमार जी सादर नमस्ते !
ReplyDeleteआपने परम पिता परमात्मा के राम नाम की बहुत सुन्दर व्याख्या किया है.
ये वही राम है जिसे संत कबीर ने प्यार किया जिसे महात्मा गाँधी ने अपनाया.
जिसका गुण गुरु नानक ने अपने ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब में गाया है.
काश! हम राम नाम की इस महानता को समझते तो यह मंदिर मस्जिद का झगडा ही न होता.
आप के सत्संग के भाव बहुत ही गहरे हैं. आशा है आगे भी सत्संग यूँ ही चलता रहेगा.
मेरी ओर से हार्दिक शुभ कामनाएं ...........
इस ब्लॉग पर आकर एक अलग अनुभूति हुई। आध्यात्मिक ज्ञान अगर तर्क और सरल व्याख्या द्वारा समझाया जाए तो सहज ग्राह्य होता है। एक सुखद अनुभूति हुई। बहुत-बहुत आभार इस विचारोत्तेजक आलेख के लिए।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या.....आनंद आ गया आपधकर...चिंतन से भरा हुआ.....
ReplyDeleteसुज्ञ जी की बात अच्छी लगी ! वाकई यह चिंतन भी प्रभावी है !!आपको पढना अच्छा लगता है ....
ReplyDeleteआदरणीय राकेशजी,
ReplyDeleteआप का आलेख एक बार पढ़ कर तृप्ति नहीं होती.
मन रुक जाता है आपके ब्लॉग पर आकर.
आपको बधाई जी टी .वी. पर आने के लिए.
भगवान् कहते हैं कि
यः सेवते मामगुणं गुनात्परं
हृदा कदा वा यदि वा गुनात्मकम
सोऽहं स्वपादंचितरेनुभिः स्पृशन
पुनाति लोकत्रितयं यथा रविः.
फिर आता हूँ.
राकेश जी,
ReplyDeleteये तो इब्तदा-ए-इश्क है, आगे-आगे देखिए होता है क्या...
राम को हर जगह इनसान ढूंढता है, अपने अंदर कभी नहीं झांकता...अंदर के रावण को मार दे तो वहीं मिल जाएंगे राम...
जय हिंद
when ram is everywhere i there is a need to find him.
ReplyDeletewhen ram is everywhere why there is a need to find him
ReplyDelete@ > sm
ReplyDeleteIt's upto you.Like sunlight is all around,but if you want to be in a room with all windows closed,can you enjoy the sunlight.
Sameway,if you close all windows of your mind and heart to feel and realise happiness,can you enjoy happiness.Ram is eternal happiness covered by our ignorance and negativity.Don't we need to enjoy it by uncovering the ignorance and removing the negativity?
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है,...
आपने एक नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया है....
लेख बहुत अच्छा और विचारणीय है।
आपको बहुत-बहुत बधाई !
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है,...
esi hi koshish sabhi ki honi chaahiye..
bahut hi sunder aur gehen lekh... pad kar achcha laga...
when Ram is divine how can someone keep ram away in close room or darkroom.
ReplyDeleteIts all about thinking if want to see Ram in laptop he will be there.
if do not wish then he will not be there or no where.
@ > sm ji
ReplyDeleteYes,you are correct. The thinking and wishing of Ram (sat-chit-anand) must be so strong,
concentrated and powerful that Ram is seen everywhere whether inside or outside.
राकेश जी,
ReplyDeleteप्रथम तो मंथन में भाग लेने के लिये बधाई!!
और अब माफ़ी चाहती हूँ कि आपके ब्लोग पर देर से आ पाई क्योंकि जब आपने ये पोस्ट लगाई होगी तो उन दिनो मै भी बिज़ी चल रही थी…………देवी भागवत की कथा चल रही थी वो सुनने जा रही थी इसलिये देखने और पढने से रह गयी………………बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है आपने राम जन्म पर्……………बहुत ही गहनता भरी है और जिस तरह आपने उसे प्रस्तुत किया है उसमे आगे नतमस्तक हूँ।
यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, तुलसी के शब्दों में हम फिर कह सकतें हैं
" भये प्रकट कृपाला ,दींन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी ,मुनि मन हारी,अदभुत रूप विचारी
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई ..।
"वर दन्त की पंगति कुंद कली,अधराधर पल्लव खोलन की
ReplyDeleteचपला चमके घन बीच जगे, ज्यूँ मोतिन माल अमोलन की
घुन्घरारी लटें लटकें मुख ऊपर ,कुंडल लोल कपोलन की
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की "
@ इसे कहते हैं 'दुर्मिल सवैया' :
इसमें आठ सगण होते हैं :
सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा
फिलहाल आपके दिये छंद में लिपिगत त्रुटियाँ हैं.
आप यदि तुलसी जी के द्वारा लिखित छंद देखेंगे तो इस तरह होगा :
______________________________________
वर दंत कि पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की.
चपला चमके घन बीच जगे, जनु मोतिन माल अमोलन की.
घुँघरारि लटें लटकें मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलन की.
नियुछावरि प्राण करैं तुलसी, बलि जाउ लला इन बोलन की.
______________________________________
@ राकेश जी, नमस्ते.
मुझपर तुलसी की 'कवितावली' नहीं है, लेकिन छंद की दृष्टि से ऐसा ही लिखा होना चाहिए. चेक कर लीजिएगा.
सच में .... राम-जन्म उत्सव मनाने के बहाने हम सभी आज़ भी रामराज्य की परिकल्पना कर प्रसन्न हो लेते हैं.
@ > भाई प्रतुल जी,
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये यह मेरे लिए हर्ष की बात है.'कवितावली'मेरे
पास भी नहीं है.जो किशोर अवस्था में आज से ४०-४५ साल पहले का याद था लिख दिया.कुछ त्रुटि अंग्रेजी से हिन्दी में लिखने के कारण भी हो सकती है.आपने त्रुटि को सही किया व 'दुर्मिल सवैया' के बारे में सुन्दर जानकारी दी इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.प्रसन्न और आनंदित होना ही हम सब का ध्येय है.
आदरणीय राकेश कुमार जी
ReplyDeleteप्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !
आपको " जी न्यूज " चैनल पर देखने का अवसर फिर कब मिलेगा … ?
वैसे आपको पढ़ना भी बहुत सुखद है …
परमात्मा आपकी ऊर्जा उत्तरोतर द्विगुणित करे …
आपको भी
* श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
रामनवमी की हार्दिक बधाई देते हुए आपको साधुवाद देना चाहता हूँ कि बहुत ही सशक्त पोस्ट लगाई है राम जन्मोत्सव की आपने!
ReplyDeleteअरे आपके यहाँ तो फॉलोवर की लिस्ट ही नहीं है!
ReplyDeleteकैसे इस ब्लॉग को फॉलो करें जिससे कि
फीड मुझ तक पहुँचती रहे!
राकेश जी वो तो मजाक में कहा था की एक किलो मीटर ऊपर से जाती है --माफ़ी वकील साहेब !
ReplyDeleteजी टी.वी .के बारे में पहले से पता होता तो हम भी आपके दर्शनों का लाभ उठा लेते --
राम भक्त को राम है प्यारा !
हम को लागे सारा जग न्यारा !
बहुत सुंदर है आपके भाव !दोस्तों से मजाक करना अच्छा लगता है वकील साहेब !धन्यवाद
हमारे रोम-रोम में बसने वाले श्री राम की अनंत कथा को आपके श्री मुख से सुनना सुखद है .बहुत बहुत आभार.. मंथन में भाग लेने के लिये बधाई
ReplyDeleteek aur achhe vayktitwa evam blogger se milna sukhad raha.....post per kuch likne ka hamara
ReplyDeletegyan alp hai...
apko subhkamnayen....
pranam.
आदरणीय राकेश जी ,
ReplyDeleteइतना गहन अध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण लेख ह्रदय को पवित्र कर गया |
लेखनी यहीं आकर तो धन्य होती है | बहुत-बहुत साधुवाद ....
श्रीराम जन्म की बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें |
सुंदर और सार्थक लेखन.
ReplyDeleteश्री राम जन्म की आपको भी ढेरों शुभकामनाएँ.
आदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
" भये प्रकट कृपाला ,दींन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी ,मुनि मन हारी,अदभुत रूप विचारी
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई ..।
राम के विषय में आध्यात्मिक चिंतन सुंदर और सार्थक लेखन.
ReplyDeleteश्री राम जन्म की आपको भी ढेरों शुभकामनाएँ.
Just visited to read your reply
ReplyDeletethx
भाई राकेश जी बहुत सुंदर आलेख उत्तम प्रस्तुति बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteमैं तो बहुत गम्भीर चिंतन पर विचार नही करती बस इतना मानती हूँ कि श्रीराम समाज के लिए प्रेरणास्पद है। हम उनके एक गुण को भी अपना लें तो समाज के लिए सार्थक होगा।
ReplyDelete@यदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है।
बहुत ही सटीक विवेचना। सत्-चित्-आनंद को प्राप्त करने के लिए मन-बुद्धि का निर्मल होना आवश्यक है।
बहुत सुंदर तुलना की है आपने।
ज्ञान चक्षु खोलने वाली पोस्ट । गीता और रामायण का अद्भुत संगम । वैसे भी श्री कृषणजी और राम जी एक ही हैं ।
ReplyDeleteइनकी सर्वव्यापिता को समझने की ज़रुरत है । फिर भी लोग न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं ।
बधाई राकेश कुमार जी ।
aadarniy sir
ReplyDeletesarva -pratham aapko hardik badhai . j-news channal par aapki atirek saflta ke liye.
dusre aap jaise viddwan mere blog par aaye aur apna bahumuly samay diya .uske liye bhi aapko hardik dhanyvad.
aapka ram-chintan post padha ,sach maniye itni vistrit jankari to kabhi mujhe mili hi nahi .
aapki post padh kar hi bhagvaan ke teeno swaroopo ko jaana .man ko bahut hi achha laga bahut hi gyan purnprastuti .
hardik dhanyvaad avam naman
poonam
प्रभु श्री राम के बारे में आपका लेख पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया. आपने बेहद उम्दा तरीके से
ReplyDeleteअपनी बात रखी. सार्थक लेखन के लिए आप बधाई के पात्र हैं. आपको भी प्रभु श्री राम के जन्मदिन
के अवसर पर ढेरों शुभकानाएँ.
राम को हम तीन स्तरों पर जान सकते हैं. आधिभौतिक ,आधिदैविक और आध्यात्मिक .
ReplyDeleteआधिभौतिक के द्वारा हम राम को भौतिक जगत में इतिहास ,भूगोल आदि के माध्यम से जानने
का प्रयास करते हैं, आधिदैविक में हम उनके दैवीय पक्ष को पुराणों आदि के माध्यम से जान पाते हैं.
आध्यात्मिक में हम उनको तत्व चिंतन के द्वारा जानने का प्रयत्न करते हैं.इस पोस्ट में मेरा ध्येय
राम को आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा जानने और समझने का है.
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित विवेचना की है आपने.
बहुत-बहुत साधुवाद ....
राकेश जी मंथन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आपको बधाई और शुभकामना .... राम पर जितनी बात की जाए कम है.. चाहे आध्यात्मिक हो या भौतिक... लेकिन एक बात तो है गोस्वामी तुलसीदास ने राम को भारतीय जनमानस में पुनर्स्थपित किया है.. रामनवमी की हार्दिक शुभकामना...
ReplyDeleteराकेश जी ,
ReplyDeleteसबसे पहले मंथन पर भाग लेने के लिए बधाई ...
दशरथ शब्द की व्याख्या बहुत अच्छी लगी ...इस द्रष्टि से कभी सोचा नहीं था ...बहुत उत्कृष्ट लेख ..आभार
अध्यात्म पर लेखन एक विशेषज्ञता का काम है ,राजनीति और व्यवस्था पर तो हर कोई हाथ साफ़ कर लेता है.इस मायने में आप सबसे अलग कर रहे हैं.
ReplyDeleteरामचरितमानस को पढ़ना,सुनना हमेशा से अच्छा रहा है.तुलसी की यह कृति अनपढ़ और विद्वान दोनों को अपनी तरह का आनंद देती है.
वकील साहब राम-राम,
ReplyDeleteराम का नाम ही महान है।
सबने बहुत कह दिया बस हाजिरी लगानी थी।
विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व मै अपना हार्दिक आभार व धन्यवाद "जी न्यूज" चैनल को,
ReplyDeleteप्रिय भाई खुशदीप जी, आदरणीय सर्जना शर्माजी, कार्यकर्म के संचालक श्री विनोद कुमार शर्माजी
और एंकर ममता जी व 'मंथन ' कार्यकर्म की समस्त टीम व स्टाफ को प्रेषित करना चाहता हूँ,
जिनके प्रोत्साहन व सहयोग की बिना मै रामजन्म पर अपना चिंतन 'मंथन' कार्यकर्म में प्रस्तुत
नहीं कर सकता था.
मै सर्जना शर्मा जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए दुआ करता हूँ और भगवान से प्रार्थना करता हूँ
कि वे अतिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर अपने 'रसबतिया' ब्लॉग के माध्यम से हम सब में भी सैदेव
रस और मंगल का संचार करती रहें.
अरे हमें तो इतने दिनों से पता ही नहीं था इतने ब्लोगर जी न्यूज़ से जुड़े हैं ...बस खुशदीप जी को छोड़ ....
और ये सर्जना जी को क्या हुआ ...?
हमारी भी दुआ है वे जल्दी स्वस्थ लाभ करें ....
@ जैसे पानी भाप रूप में निराकार होता है
परन्तु यदि उसको ठंडा करके किसी बर्तन में जमा लिया जाये तो वही बर्फ रूप में साकार हो जाता है
और वही रूप ले लेता है जो बर्तन का होता है. इसी प्रकार निराकार परमात्मा भक्तों के हृदय रुपी
बर्तन में श्रद्धा और भक्ति से घनीभूत हो साकार रूप से भी व्यक्त होजाता है.
बहुत अच्छा उदाहरण दिया आपने ...
आपको रामजन्म की शत शत बधाइयाँ ....!!
राहुल जी , बहुत सुन्दर , उदाहरण सहित व प्रायोजनिक व्याख्या के साथ राम के नाम, उसकी महिमा और सत्-चित्-आनंद की सुगमता की अतिशय भावपूर्ण व मार्मिक व्याख्या के लिए हार्दिक बधाई व अभिनंदन।यहाँ आकर मन,हृहय व आत्मा सभी धन्य हो गये। इसीलिए तो तुलसीदास जी ने कहा- दैहिक,दैविक, भौतिक तापा । राम-राज्य नहिं काहुहिं ब्यापा। पुनः आभार।
ReplyDelete.
ReplyDeleteराकेश जी ,
बहुत सुन्दर जानकारी दी है आपने। कौशल्या और दशरथ का अर्थ भी बताया । मेरे लिए ये जानकारी पूर्णतया नयी है। आपके लेखों से ज्ञान वर्धन होता है। राम नवमी के अवसर पर इस बेहतरीन एवं प्रभावी प्रस्तुति के लिए बधाई एवं शुभकामनायें।
कुछ व्यस्तता के कारण देर से आ पाई यहाँ , जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
.
यदि आनन्द 'सत् ' हो ,चिर
ReplyDeleteस्थाई हो ,काल बाधित न हो, हमेशा बना रहे,ज्ञान और प्रकाश स्वरुप हो अर्थात 'चेतन' हो तो
ऐसा ही आनन्द 'सत्-चित-आनन्द' होता है जिसकी हम खोज रहे हैं , जिसे शास्त्रों में परमात्मा कहा
गया है.ऐसे आनन्द को प्राप्त करना ही हमारा परम लक्ष्य है,वही आखरी मंजिल है
इसीलिए वह ही 'परम धाम' है.
.....Ram ke bare mein bahut gahan adhyatmik chintan..aanand kee bahut saarthak vyakhya. bahut gyanvardhak post.
Blog par kuchh vyastata kee vajah se aana naheen ho paya, jiske liye chhamapraarthee hun.
बहुत ही सार्थक और प्रभावी चिंतन .
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteआप के अन्दर के आत्मा राम को नमन.
राम के अध्यात्मिक रूप की,दशरथ की ,कौशल्या की और सगुन और निर्गुण राम की जो व्याख्या आपने की है,उसकी प्रसंशा मेरी वाणी से परे है.
निशब्द हूँ,राम मय वाणी में रम गया हूँ.
आपकी वाणी में माँ शारदा है.
आपके लिए तो मैं बस यही कह सकता हूँ.
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुंधरा पुण्यवती च तेन
अपारसंवित्सुखसागरेअस्मिन लीनं परं ब्रह्मणि यस्य चेतः
जिसका चित अपार ब्रह्मानंद सुखसागर स्वरूप इस परब्रह्म में लीन है,उसके द्वारा कुल पवित्र हो गया ,उसकी माँ भी कृतकृत्य हो गयी और धरती भी पुण्यमयी हुई.
राम नवमी की शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद व आपको भी परिवार सहित रामनवमी की विलंबित शुभकामनायें।
ReplyDeleteबचपन में हमारे एक अध्यापक थे श्री सरपाल सर, ’श्रीराम चन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भव भय दारूणम’ का पाठ करते थे और करवाते थे तो सारा वातावरण बहुत आलौकिक सा हो जाता था। आज फ़िर से उनकी याद आ गई।
अगली बार ’मंथन’ जैसे कार्यक्रम की अग्रिम सूचना देने की कृपालता करियेगा ताकि हम जैसे भी, जो हाल फ़िलहाल टीवी से दूर हैं, कुछ वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें।
अच्छी संगति का यही लाभ बताते रहे हैं बड़े-बूढ़े कि भले का संग करने मात्र से इस भवसागर से तरने का चांस बना रहता है, इसी स्वार्थ से गिरते पड़ते, लुढ़कते लुढ़कते आपके पीछे पीछे बने रहेंगे।
पांडवों के अश्वमेघ यज्ञ के समय के दृष्टांत में जब ’सुपच’ मुनि को आमंत्रित करने के लिये द्रौपदी गई थी तो वहाँ कहा गया था कि सत्संग में जाने के लिये उठाये गये एक पग में एक अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य लाभ मिलता है। युग बदला है तो प्रतीक भी बदल गये हैं। छ: नहीं सात टन का देनदार था, एक पंक्ति को एक टन के बराबर मान देते हुये पिछला हिसाब बराबर, नया शुरू। कृपया पावती दें:)
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिन्तन हैऔर हमारे लिये कई अच्छी जानकारियाँ भी। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी, धन्यवाद!
ReplyDeleteशुद्ध ब्रह्म परात्पर राम कालात्मक परमेश्वर राम
शेष तल्प सुख निद्रित राम ब्रह्माद्यमराप्रार्धित राम
चंड किरण कुल मन्डन राम श्रीमद्दशरथनन्दन राम
कौशल्या सुखवर्धन राम विश्वामित्र प्रियधन राम॥
@ > प्रिय संजय @ मो सम कौन,
ReplyDeleteयार,तुसी तो वाकई में ग्रेट हो.इतनी प्यारी प्यारी ज्ञान की चुटीली गल
(बातें)करते हो कि तुमने तो मुझे ही ऋणी बना छोड़ा है अपना.तुम्हें पावती क्या दूं ,सिवाय इसके कि तुम्हारा ब्लॉग जगत में नाम मै अब 'मो सम कौन कुटिल खल कामी' के बजाय 'तो सम कौन चुटील गल ज्ञानी' दे रहा हूँ.
पावती संभाल कर रखना ,समय पर काम आएगी.
@ > Smart Indian-स्मार्ट इंडियन,
ReplyDeleteआपने मेरे ब्लॉग पर आ जो रामधुन लगाई है उसको मैंने आपके ब्लॉग पर जाकर सुना. धन्य हो गया मेरा यह ब्लॉग इस सुन्दर आदित्य रामधुन को पाकर.आपका बहुत बहुत आभार.
राम हम सभी पर कृपा करें और अपनी शुद्ध प्रेमा भक्ति प्रदान करें बस यही कामना और दुआ है मेरी.
प्रभावी, पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteईश्वर के सगुन और निर्गुण रूप के बारे में अपने बहुत अच्छी व्याख्या की है | सत्चितानंद रुपी ईश्वर को अपने अन्दर प्रकट करने के लिए मन और बुद्धि कैसी हो यह अपने बहुत ही स्पष्ट शब्दों उदाहरणसहित बताया है | आपका यह लेख पढ़ कर कुछ देर के लिए ही सही प्रभु के करीब हो गया | इतने सुन्दर और ज्ञानवर्धक लेख के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें |
ReplyDeleteयदि मन हमारा दशरथ हो, बुद्धि हमारी कौशल्या तो ही वे राम यानि सत्-चित-आनन्द को जन्म
ReplyDeleteदे सकतें हैं और ऐसे ही मन और बुद्धि वन्दनीय है, बहुत खुबसूरत बात कही है |
आज पहली बार आपके ब्लॉग में आना हुआ और आना साकार हो गया बहुत सुन्दर विवरण दिया है आपने श्री राम का | हमने इस लेख को २ बार पड़ा और बहुत अच्छा अनुभव हुआ बहुत सी जानकारियां भी मिली |
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट |
राकेश जी आप ही हैं राम जी। जिनके विचार राम होते हैं, राकेश, राजन, रामपाल, राजेश नामधारी होते हैं। नाम का पहला अक्षर रा हो तो विचारों पर राज हो जाता है रामजी के विचारों का। आपने तो विचारों की अच्छी सुगंध फैलाई है।
ReplyDelete@ > अविनाश जी,
ReplyDeleteकहा गया है
"तुझ में राम, मुझ में राम, सब में राम समाया
सब से करले प्यार जगत में कोई नहीं पराया रे "
आप में भी राम समाया है.फिर नाम से भेद क्यूँ करतें हैं.आपका प्यार और आशीर्वाद मिले मेरे लिए तो यही काफी है.
आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण सुंदर व्याख्या...!!!
ReplyDeleteसादर!