राम यानि 'सत्-चित-आनंद' का भाव व्यक्ति के ह्रदय में जैसे जैसे घर करने लगता है,
उस व्यक्ति के विचारों, उसके भावों और कर्मों में भी यह भाव परिलक्षित होने लगता है.
वह बोलेगा तो आनंद होगा, वह लिखेगा तो आनंद होगा , वह मूर्ति या चित्र बनायेगा तो
उसकी बनाई मूर्ति या चित्र में भी आनंद द्रष्टिगोचर होगा . आनंद का चिंतन किसी भी
प्रकार से निरर्थक नहीं हो सकता है, अत: आनंद को धारण करना अति आवश्यक है.
हृदय में आनंद का भाव जैसे जैसे किशोर अवस्था को प्राप्त करेगा तो वह व्यक्ति की
दुराशा का भी नाश करेगा. यह दुराशा (wrong expectation) ही 'ताडका' रुपी राक्षसनी है, जो
जीवन में उलझन व भटकाव पैदा करती रहती है. अपनी दुराशाओं की वजह से ही व्यक्ति
अपने अच्छे खासे जीवन को भी नरक बना लेता है,
आनंद का भाव फिर आगे जाकर व्यक्ति की कठोरता, निष्ठुरता का भी अंत कर डालता है.
ये कठोरता और निष्ठुरता ही मानो 'खर-दूषण' हैं ,जो मन रुपी वन में छिपे दुर्दांत राक्षस हैं.
फिर अंत में यही आनंद का भाव उस व्यक्ति के अहंकार यानि 'दशानन' अथवा रावण को भी
मार गिरा कर रामराज्य या पूर्णानंद की स्थापना कर देता है. अहंकार को 'दशानन' इसलिये
कहा कि इसके भी दशों सिर होतें हैं. धन का, बल का , विद्या का , रूप का, यौवन का
आदि आदि. अहंकार के मरे बैगर 'पूर्णानंद' की स्थिति को प्राप्त नहीं किया जा सकता.
यदि हम किसी भी महापुरुष की जीवनी का सूक्ष्म अध्ययन करें तो पायेंगें कि उन
महापुरुष ने जीवन में 'सत्-चित-आनंद' भाव को ही धारण किया और अपनाया था ,जिस
वजह से वे महापुरुष बन सके और जन जन से उनको सम्मान मिला. यह जरूरी नहीं कि
'सत्-चित -आनंद' भाव को केवल रामरूप में ही धारण किया जाये. अपनी अपनी रुचि और
आस्था अनुसार वह कृष्ण, अल्लाह या ईसा आदि भी हो सकता है.
चूँकि इस लेख में हम रामजन्म का आध्यात्मिक चिंतन करने की कोशिश कर रहें हैं,
तो फिर रामजन्म पर ही पुनः विचार करतें हैं. राम के पिता 'दशरथ'जी को व राम की
माता 'कौशल्या' जी को हमने पिछले लेख 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन -१' में समझने
का एक प्रयास किया था. मन को यदि 'दशरथ' और बुद्धि को 'कौशल्या' बना लिया जाये
तो राम का जन्म हमारे हृदय में ही संभव है.
कहतें हैं राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था. अब हम त्रेता युग में कैसे पहुंचें आईये इस
पर भी विचार करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के 'उत्तरकांड' के दोहा
संख्या १०३ (ख} से आगे निम्न प्रकार से चारो युगों का निरूपण किया हैं:-
नित जुग धर्म होहिं सब केरे , हृदयँ राम माया के प्रेरे
सुद्ध सत्व समता बिग्याना , कृत प्रभाव प्रसन्न मन जाना
श्रीराम जी की माया से प्रेरित होकर सबके हृदयों में सभी युगों के धर्म नित्य होते रहते हैं.
शुद्ध सत्व गुण , समता ,विज्ञान और मन का प्रसन्न होना ही 'सतयुग' का प्रभाव होता है.
यानि यदि हममें सम्यक ज्ञान है, विवेक है, समता है विज्ञान है और मन भी हमारा प्रसन्न
है तो कहा जा सकता है कि हम 'सतयुग' में जी रहें हैं. गोस्वामी जी आगे लिखते हैं:-
सत्व बहुत रज कछु रति कर्मा , सब विधि सुख त्रेता का धर्मा
बहु रज स्वल्प सत्व कछु तामस, द्वापर धर्म हरष भय मानस
सत्वगुण अधिक हो ,कुछ रजो गुण हो ,अर्थात क्रियाशीलता हो, कर्मों में प्रीति हो, सब प्रकार
से सुख हो तो यह त्रेता का धर्म है. यानि सतोगुण के रूप में ज्ञान और विवेक के साथ साथ
कुछ क्रियाशीलता स्वरुप कर्मों में प्रीति होने से हृदय में रजो गुण का भी संचार हो तो कह
सकते हैं कि उस समय हम 'त्रेता युग' में जी रहें हैं
.
परन्तु जब रजोगुण अधिक बढ़ जाये, सत्व गुण के रूप में ज्ञान और विवेक थोडा ही रह जाये
और कुछ तमोगुण के रूप में ह्रदय में आलस्य ,प्रमाद, अज्ञान और हिंसा का भी संचार होकर
मन में कभी हर्ष हो ,कभी भय हो तब कह सकते हैं हम 'द्वापर युग' में जी रहे हैं.
'कलियुग' का निरूपण करते हुए गोस्वामीजी आगे लिखते हैं:-
तामस बहुत रजोगुण थोरा , कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा
तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि हृदय में बहुत बढ़ जाये ,रजोगुण
अर्थात क्रियाशीलता कम हो जाये, और ज्ञान व विवेक का तो मानो लोप ही हो जाये,
हृदय में चहुँ ओर विरोधी वृत्तियों का ही वास हो, सब तरफ अप्रसन्नता और विरोध हो,
तो कह सकते हैं हम उस समय 'घोर 'कलियुग' में ही जी रहे है.
यदि हम 'कलियुग' में जी रहें हो तो क्या यह संभव है कि हम अपनी मन:स्थिति को "त्रेता
युग' की बना लें. गोस्वामीजी इसका उत्तर इस प्रकार से देते हैं:-
बुध जुग धर्म जानी मन माहीं , तजि अधर्म रति धर्म कराहीं
बुद्धिमान लोग अपने मन का अवलोकन कर यह जान लेते हैं कि उनका मन कब किस
स्थिति में हैं .यानि मन 'कलियुग' में है या द्वापर में . वे मन कि स्थिति में सुधार लाने
के लिए तब अधर्म को तज कर धर्म करने में रूचि लेने लगते हैं. धर्म करने का तात्पर्य यहाँ
उन बातों के पालन करने से है जिससे मन में सतोगुण का उदय होकर ज्ञान और विवेक का
संचार हो और तमोगुण व रजोगुण घटकर 'सत्-चित-आनंद ' भाव को ह्रदय में स्थाई रूप से
धारण किया जा सके.
विभिन्न साधनों जैसे नामजप आदि में सत्संग भी इसके लिए अति उत्तम साधन है.
सत्संग के सम्बन्ध में कुछ विचार मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में भी किया
गया है. मेरा सुधिजनों से निवेदन है कि सत्संग पर चिंतन के लिए वे मेरी कथित पोस्ट
का अवलोकन कर सकते हैं.
यहाँ पर यह बताना भी मै उचित समझता हूँ कि तीनो गुणों अर्थात सतोगुण, रजोगुण व
तमोगुण के बारें में विस्तृत विवेचना भगवद्गीता के १४ वें अध्याय 'गुणत्रयविभागयोग'
में की गई जिसका सुधिजन अध्ययन कर लाभ उठा सकतें हैं.
इस प्रकार से हम श्री रामचरित्र मानस में और श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित ज्ञान के आधार
पर स्वयं अपने हृदय में ही 'त्रेतायुग' का उदय कर रामजन्म का मार्ग प्रशस्त कर सकतें हैं.
इससे अगली पोस्ट में हम 'अवधपुरी' / 'अयोध्यापुरी' व 'उपवास' आदि पर विचार करने
का प्रयास करेंगे.
मेरी चारों 'युगों' पर जी टीवी के मंथन कार्यकर्म में की गई चर्चा का
कुछ अंश ' http://www.zeenews.com/video/showvideo11180.html ' पर उपलब्ध है.
मेरा शुरू का परिचय ' http://www.zeenews.com/video/showvideo11181.html ' पर
कराया गया है.
उस व्यक्ति के विचारों, उसके भावों और कर्मों में भी यह भाव परिलक्षित होने लगता है.
वह बोलेगा तो आनंद होगा, वह लिखेगा तो आनंद होगा , वह मूर्ति या चित्र बनायेगा तो
उसकी बनाई मूर्ति या चित्र में भी आनंद द्रष्टिगोचर होगा . आनंद का चिंतन किसी भी
प्रकार से निरर्थक नहीं हो सकता है, अत: आनंद को धारण करना अति आवश्यक है.
हृदय में आनंद का भाव जैसे जैसे किशोर अवस्था को प्राप्त करेगा तो वह व्यक्ति की
दुराशा का भी नाश करेगा. यह दुराशा (wrong expectation) ही 'ताडका' रुपी राक्षसनी है, जो
जीवन में उलझन व भटकाव पैदा करती रहती है. अपनी दुराशाओं की वजह से ही व्यक्ति
अपने अच्छे खासे जीवन को भी नरक बना लेता है,
आनंद का भाव फिर आगे जाकर व्यक्ति की कठोरता, निष्ठुरता का भी अंत कर डालता है.
ये कठोरता और निष्ठुरता ही मानो 'खर-दूषण' हैं ,जो मन रुपी वन में छिपे दुर्दांत राक्षस हैं.
फिर अंत में यही आनंद का भाव उस व्यक्ति के अहंकार यानि 'दशानन' अथवा रावण को भी
मार गिरा कर रामराज्य या पूर्णानंद की स्थापना कर देता है. अहंकार को 'दशानन' इसलिये
कहा कि इसके भी दशों सिर होतें हैं. धन का, बल का , विद्या का , रूप का, यौवन का
आदि आदि. अहंकार के मरे बैगर 'पूर्णानंद' की स्थिति को प्राप्त नहीं किया जा सकता.
यदि हम किसी भी महापुरुष की जीवनी का सूक्ष्म अध्ययन करें तो पायेंगें कि उन
महापुरुष ने जीवन में 'सत्-चित-आनंद' भाव को ही धारण किया और अपनाया था ,जिस
वजह से वे महापुरुष बन सके और जन जन से उनको सम्मान मिला. यह जरूरी नहीं कि
'सत्-चित -आनंद' भाव को केवल रामरूप में ही धारण किया जाये. अपनी अपनी रुचि और
आस्था अनुसार वह कृष्ण, अल्लाह या ईसा आदि भी हो सकता है.
चूँकि इस लेख में हम रामजन्म का आध्यात्मिक चिंतन करने की कोशिश कर रहें हैं,
तो फिर रामजन्म पर ही पुनः विचार करतें हैं. राम के पिता 'दशरथ'जी को व राम की
माता 'कौशल्या' जी को हमने पिछले लेख 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन -१' में समझने
का एक प्रयास किया था. मन को यदि 'दशरथ' और बुद्धि को 'कौशल्या' बना लिया जाये
तो राम का जन्म हमारे हृदय में ही संभव है.
कहतें हैं राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था. अब हम त्रेता युग में कैसे पहुंचें आईये इस
पर भी विचार करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के 'उत्तरकांड' के दोहा
संख्या १०३ (ख} से आगे निम्न प्रकार से चारो युगों का निरूपण किया हैं:-
नित जुग धर्म होहिं सब केरे , हृदयँ राम माया के प्रेरे
सुद्ध सत्व समता बिग्याना , कृत प्रभाव प्रसन्न मन जाना
श्रीराम जी की माया से प्रेरित होकर सबके हृदयों में सभी युगों के धर्म नित्य होते रहते हैं.
शुद्ध सत्व गुण , समता ,विज्ञान और मन का प्रसन्न होना ही 'सतयुग' का प्रभाव होता है.
यानि यदि हममें सम्यक ज्ञान है, विवेक है, समता है विज्ञान है और मन भी हमारा प्रसन्न
है तो कहा जा सकता है कि हम 'सतयुग' में जी रहें हैं. गोस्वामी जी आगे लिखते हैं:-
सत्व बहुत रज कछु रति कर्मा , सब विधि सुख त्रेता का धर्मा
बहु रज स्वल्प सत्व कछु तामस, द्वापर धर्म हरष भय मानस
सत्वगुण अधिक हो ,कुछ रजो गुण हो ,अर्थात क्रियाशीलता हो, कर्मों में प्रीति हो, सब प्रकार
से सुख हो तो यह त्रेता का धर्म है. यानि सतोगुण के रूप में ज्ञान और विवेक के साथ साथ
कुछ क्रियाशीलता स्वरुप कर्मों में प्रीति होने से हृदय में रजो गुण का भी संचार हो तो कह
सकते हैं कि उस समय हम 'त्रेता युग' में जी रहें हैं
.
परन्तु जब रजोगुण अधिक बढ़ जाये, सत्व गुण के रूप में ज्ञान और विवेक थोडा ही रह जाये
और कुछ तमोगुण के रूप में ह्रदय में आलस्य ,प्रमाद, अज्ञान और हिंसा का भी संचार होकर
मन में कभी हर्ष हो ,कभी भय हो तब कह सकते हैं हम 'द्वापर युग' में जी रहे हैं.
'कलियुग' का निरूपण करते हुए गोस्वामीजी आगे लिखते हैं:-
तामस बहुत रजोगुण थोरा , कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा
तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि हृदय में बहुत बढ़ जाये ,रजोगुण
अर्थात क्रियाशीलता कम हो जाये, और ज्ञान व विवेक का तो मानो लोप ही हो जाये,
हृदय में चहुँ ओर विरोधी वृत्तियों का ही वास हो, सब तरफ अप्रसन्नता और विरोध हो,
तो कह सकते हैं हम उस समय 'घोर 'कलियुग' में ही जी रहे है.
यदि हम 'कलियुग' में जी रहें हो तो क्या यह संभव है कि हम अपनी मन:स्थिति को "त्रेता
युग' की बना लें. गोस्वामीजी इसका उत्तर इस प्रकार से देते हैं:-
बुध जुग धर्म जानी मन माहीं , तजि अधर्म रति धर्म कराहीं
बुद्धिमान लोग अपने मन का अवलोकन कर यह जान लेते हैं कि उनका मन कब किस
स्थिति में हैं .यानि मन 'कलियुग' में है या द्वापर में . वे मन कि स्थिति में सुधार लाने
के लिए तब अधर्म को तज कर धर्म करने में रूचि लेने लगते हैं. धर्म करने का तात्पर्य यहाँ
उन बातों के पालन करने से है जिससे मन में सतोगुण का उदय होकर ज्ञान और विवेक का
संचार हो और तमोगुण व रजोगुण घटकर 'सत्-चित-आनंद ' भाव को ह्रदय में स्थाई रूप से
धारण किया जा सके.
विभिन्न साधनों जैसे नामजप आदि में सत्संग भी इसके लिए अति उत्तम साधन है.
सत्संग के सम्बन्ध में कुछ विचार मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में भी किया
गया है. मेरा सुधिजनों से निवेदन है कि सत्संग पर चिंतन के लिए वे मेरी कथित पोस्ट
का अवलोकन कर सकते हैं.
यहाँ पर यह बताना भी मै उचित समझता हूँ कि तीनो गुणों अर्थात सतोगुण, रजोगुण व
तमोगुण के बारें में विस्तृत विवेचना भगवद्गीता के १४ वें अध्याय 'गुणत्रयविभागयोग'
में की गई जिसका सुधिजन अध्ययन कर लाभ उठा सकतें हैं.
इस प्रकार से हम श्री रामचरित्र मानस में और श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित ज्ञान के आधार
पर स्वयं अपने हृदय में ही 'त्रेतायुग' का उदय कर रामजन्म का मार्ग प्रशस्त कर सकतें हैं.
इससे अगली पोस्ट में हम 'अवधपुरी' / 'अयोध्यापुरी' व 'उपवास' आदि पर विचार करने
का प्रयास करेंगे.
मेरी चारों 'युगों' पर जी टीवी के मंथन कार्यकर्म में की गई चर्चा का
कुछ अंश ' http://www.zeenews.com/video/showvideo11180.html ' पर उपलब्ध है.
मेरा शुरू का परिचय ' http://www.zeenews.com/video/showvideo11181.html ' पर
कराया गया है.