कहते हैं प्रयागराज तीर्थ में तीन अति पवित्र नदियों का संगम होता है. गंगा ,जमुना और सरस्वती. प्रतीक रूप में जहाँ गंगा को भाव और भक्ति की धारा माना गया है तो यमुना को विधि और निषेध (यह करो और यह न करो) रुपी कर्मों की कहानी , और सरस्वती को तो ब्रह्म ज्ञान की वह गुप्त धार मानते हैं जो जगत में भी गुप्तरूप से प्रवाहित होती रहती है. इसीलिए प्रयागराज को तीर्थराज कहा जाता है . संतों के समाज को भी तीर्थराज की ही उपमा दी गयी है जिससे सदा आनंद और मंगल का उद्गम होता रहता है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस में लिखा है
मुद मंगलमय संत समाजू , जो जग जंगम तीर्थराजू
अर्थात संत समाज आनंद और मंगलमय है जो कि जगत में तीरथराज के समान ही है,
संत वास्तव में ऐसा व्यक्ति है जिसका अंत सुखद हो. अर्थात जिसने जीवनभर ऐसे भाव, कर्म और विचारों का आचरण किया हो जिससे मरने के बाद भी लोग उसे याद रखें और वह खुद भी सदा अंत:करण में तृप्त और संतुष्ट रहे. संतों के समाज में ही भाव-भक्ति, कर्म रहस्य और ज्ञान की ऐसी ऐसी बातें जानने को मिलती हैं कि लगता है आनंद सागर में ही गोते लगा लिए हों.जिसमे स्नान कर मन निर्मल हो जाता है .
ब्लॉग जगत में आये मुझे एक महीना से कुछ कम समय ही हुआ होगा. परन्तु जो मेरा अनुभव रहा
वह बहुत ही सुखद रहा . यूँ तो अच्छा बुरा सभी जगह मिलेगा , पर दैवयोग से मुझे जो दर्शन हुआ उसे मै शुभ ही मानता हूँ . यहाँ ज्ञान की बाते जानने को मिली ,भाव और भक्ति का रस मिला और कर्म रहस्य के बारे में भी बहुत सी जानकारी मिली . मै अभी तक कुल चार पोस्ट ही लिख पाया हूँ .इन पोस्टों पर जो भी टिप्पणिओं के रूप में वैचारिक सहयोग मुझे ब्लॉग जगत के सुधिजनो का मिला उससे मेरा मनोबल बढ़ा है. मैंने भी समय और सुविधा अनुसार अपने विचार अन्य सुधिजन के ब्लोग्स पर प्रस्तुत किये हैं और बहुत ही सुंदर विचारों का आदान प्रदान करने का मुझे मौका मिला. डॉ. दिव्या जी ने मेरी पोस्ट 'मो को कहाँ ढूंढता रे बन्दे' पर अति सुंदर विचार प्रस्तुत करते हुए बताया की हमारे अन्दर दो तरह की आवाजे होती हैं ,एक मन की और दूसरी आत्मा की .आत्मा की आवाज ही हमारा सदा कल्याण करती है जो एक बार ही होती है
इस सम्बन्ध में संतजनों और शास्त्र के आधारपर मुझे जो जानने को मिला वह यह है कि जीवन में हम सदा आनंद को ही खोजते रहते हैं .एक प्रकार का आनन्द तो वह है जो वास्तव में हो न, पर अज्ञान के कारण शुरू में दिखलाई पड़ता हो और जिसका अंत अंततः दुःख ही निकलता हो. इस प्रकार के आनंद के मार्ग को जीवन में अपनाना ' प्रेय मार्ग' को अपनाना कहलाता है . अर्थात जो मन को प्रिय लगे पर जिसका अंत कल्याणकारी नहीं होता. जैसे सिगरट ,शराब आदि पीना, व्यर्थ का वार्तालाप (chating) करना, आदि आदि .
आनंदका दूसरा मार्ग जो आत्मा के 'सत-चित-आनंद' भाव से पोषित होता है उसे शास्त्रों में ' श्रेय मार्ग ' बतलाया गया है. इस मार्ग का अनुसरण करने से हो सकता है यह शुरू में कष्ट प्रद लगे पर अंत में यही मार्ग हमे निर्मल चिर आनंद प्राप्त कराता है जो सैदेव हमारा कल्याण करता है .ऐसे ही श्रेय मार्ग के दर्शन की मांग अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से की थी. जिस कारण 'भगवद गीता' जैसे अनुपम और अलोकिक ज्ञान का प्रसाद जगत को मिल पाया . अत: आनंद का चिंतन और अनुसरण करते हुए हमें सदा सजग और ध्यान रख कोशिश करनी चाहिए कि हम केवल 'श्रेय मार्ग' का ही अनुसरण करें जो हमारा निश्चित रूप से कल्याण करे . 'श्रेय मार्ग' की जानकारी हमें सत पुरुषों व सत शास्त्रों के संग से मिलती है .हम भाग्यशाली हैं कि आज के युग में यह जानकारी हमें ब्लॉग जगत के माध्यम से भी सहज में उपलब्ध हो सकती है बशर्ते हम ईमानदारी से कोशिश करे .यदि ब्लॉग जगत में संत समाज मिल जाए तो समझो साक्षात् तीर्थराज ही की उपलब्धि हो गयी. फिर तो कल्याण ही कल्याण है जीवन में.
आपने सही कहा कि बस ईमानदार कोशिश की जरुरत है. बहुत उम्दा आलेख.
ReplyDeleteजारी रहें.
प्रयास ही आवश्यक हैं, शेष आता ही रहता है, उसके हिसाब किताब में समय व्यर्थ न हो।
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख है आपका. संत के बारे में मैंने अपने एक शेर में कहा था:-
ReplyDeleteसंत है वो कि जो रहा करता
भीड़ के संग भीड़ से कटके
नीरज
अपने कर्म को किये जाये ....बस ...कितनी सार्थक बात लिए है आपका आलेख......
ReplyDeleteआपको सतत लेखन की शुभकामनायें
संत की परिभाषा बहुत ही सुन्दर तरीके और सलीके से प्रस्तुत की है…………आज के वक्त मे मगर सच्चा संत ही मिलना दुर्लभ है क्योंकि उनके आचरण और व्यवहार मे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत फ़र्क होता है …………लेकिन जिसे एक बार सच्चा संत मिल जाये तो उनके जीवन की दिशा और धारा दोनोही बदल जातीहैं …………आपने एक बेहद उम्दा आलेख लगाया है……………बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय राकेश कुमार जी ,
ReplyDeleteसप्रेम अभिवादन !
बहुत ही प्रेरक , जीवनोपयोगी और पवित्र लेखन है आपका | लेखनी यहीं धन्य होती है |
बहुत अच्छा लगा |
आप जैसे लोगो की इस ब्लॉग जगत में बहुत जरुरत है ,क्योकि यहाँ भी असामाजिक तत्व अपने पर फैलाने में लगे है ! कुछ ब्लॉग पढ़ने पर तौबा करना पड़ता है ..! कृपया आप मेरे ब्लॉग पर भी एक बार आये ..और अपनी आभास भी देकर जाये ! जो मुझे किसी संत के आशीर्वाद से कम नहीं लगेगा !वैसे आप का हर पोस्ट पढ़ता हूँ और जीवन में सिखाने को मिलाता है .मुझे किसी के ब्लॉग पर चुपके से जाने में बहुत संकोच होता है ..अतः कुछ न कुछ टिपण्णी कर ही देता हूँ ! आप के अनुसरण का आभारी हूँ.!
ReplyDeleteआपके इस सार्थक प्रयास को नमन ....आशा है आप अपने अनुभव और ज्ञान से हम सबको मार्गदर्शन प्रदान करेंगे ....निरंतर लेखन के लिए अनेक शुभकामनायें ..मुझ पर अपना आशीष बनाये रखना
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteआपने भी मेरी प्रिय फिल्म आनंद ज़रूर देखी होगी...
उस फिल्म का अंत इस पंक्ति से होता है...
आनंद मरा नहीं, आनंद कभी मरते नहीं...
जो आनंद त्याग कर दूसरे के चेहरे पर खुशी देखने से मिलता है वही परमानंद है...
जय हिंद...
bahut sunder aur prernadayak post likhi hai, Rakesh ji. der se aane ki liye kshamaprarthi hoon.
ReplyDeleteआदरणीय राकेशजी,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत बार पढी है मैंने.
आपकी पोस्ट पर टिप्पणी जल्दी से नहीं की जाती.
आपने बहुत से विषय समेट दिए इस बार.
संत लक्षण,परमानंद लक्षण ,प्रेय मार्ग और श्रेय मार्ग.
आपके आनंद के आनंद ने आनंदित कर दिया.
आनंद की चाह तो की जा सकती है.
व्यवहारिक रूप में चाह के बिना नहीं रहा जा सकता है.
लेकिन चाह श्रेय मार्ग की हो न कि प्रेय मार्ग की.
शुभ कामनाएं.
bahut hi badhiya likha hai .jaldi me padhi hoon phir se aaungi .
ReplyDeleteसुन्दर और ज्ञानवर्धक - मन की अध्यात्म से जुडा आपका यह पहलू अच्छा लगा ... कल आपकी पोस्ट चर्चामंच पर होगी... आप चर्चामंच पर और अमृतरस ब्लॉग में आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करे .. आपका स्वागत
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
http://amritras.blogspot.com
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ReplyDeleteराकेश जी ,
बहुत ही सारगर्भित बातें कहीं है आपने लेख में । संत जनों का सानिद्ध्य मिल जाए तो जीवन यात्रा आसन हो जाती है । और फिर मोती तो गहरे पानी में उतरने पर ही मिलता है । ब्लॉग जगत में भी एक से बढ़कर एक हीरे मोती हैं । छह माह की अवधी में अच्छे बुरे की थोड़ी परख भी हो गयी है । सार ग्रहण कर , थोथा उड़ाना सीख लिया । बहुत कुछ सीखा है ब्लॉग-जगत में संतजनों की संगत में और काफी-कुछ सीखना अभी बाकी है ।
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I am sorry for being late here .
ReplyDeleteआपका आलेख पढते पढते मन 'सत-चित-आनंद' की लहरों को छूने लगता है. मन को एक दिशा देने में आपके आलेख निश्चय जी प्रभावी हैं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आपके सार्थक प्रयास को नमन..
ReplyDeleteसारगर्भित लेख ...ब्लॉग जगत में आप जैसों की ज़रूरत है जो अच्छाइयों को दिखाते हैं .....लेख पढ़ कर मन वचन भी शुद्ध हो जाता है ....
ReplyDeleteसार्थक लेख...स्वस्थ चिन्तन...
ReplyDeleteविज्ञान और आध्यात्म का ...अनूठा संगम ..बहुत ही सुन्दर लेख...परम सौभाग्य मेरा ...आपका कोटि कोटि अभिनन्दन....
ReplyDeleteसादर स्नेह !!!
राकेश जी ,
ReplyDeleteजय सीया राम
आपकी स्नेह भरी धमकी का असर देख लिजिए । आपने लिखना बंद किया तो लोग इतने अच्छे सद्विचारों से वंचित हो जायेंगें । मुझे समय बहुत कम मिल पाता है । चाहती हूं सबका लिखा पढ़ूं लेकिन आजकल बच्चों की परीक्षाएं हैं । दफ्तर और फिर सामाजिक ज़िम्मेदारिंयां भी कोशिश रहेगी कि सबका लिखा पढ़ूं .
सारगर्भित बहुत ही सुन्दर लेख है
ReplyDeleteनकारात्मक चीजों को नजरंदाक करके ही कुछ सार्थक किया जा सकता है. आशा है आगे भी ऐसे ही पठनीय लेख पढने को मिलेंगे.
हार्दिक शुभ कामनाएं
बच्चन साहब भी कहते है....
ReplyDeleteकोशिश करने वालों के कभी हार नहीं होती.
अर्थात जो मन को प्रिय लगे पर जिसका अंत कल्याणकारी नहीं होता. जैसे सिगरट ,शराब आदि पीना, व्यर्थ का वार्तालाप (chating) करना, आदि आदि .
ReplyDeleteआनंदका दूसरा मार्ग जो आत्मा के 'सत-चित-आनंद' भाव से पोषित होता है उसे शास्त्रों में ' श्रेय मार्ग ' बतलाया गया है. इस मार्ग का अनुसरण करने से हो सकता है यह शुरू में कष्ट प्रद लगे पर अंत में यही मार्ग हमे निर्मल चिर आनंद प्राप्त कराता है।
तत्व यही है, तथ्य यही है,और सार भी यही है।
जैसा ब्लॉग का शीर्षक
ReplyDeleteवैसे सद्विचार
इन्हें बनाना चाहिए
अपना आचार।
बहुत ही अच्छा लिखा आपने.. विचारों में एक खुशबू सी है. महसूस करने वाले कर लेते हैं..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी और सार्थक आलेख
ReplyDeleteसंत जनों की संगति कल्याणकारी होती है...
बहुत ही सही कह रहे हैं आप |
ReplyDeleteसार्थक और प्रेरक प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
I couldn't refrain from commenting. Exceptionally well written!
ReplyDeleteAlso visit my blog post - link