आनंद का चिंतन करना अदभुत है, मंगलकारी है . आनंद का एक एक पद, एक एक शब्द,
एक एक अक्षर मधुरातिमधुर है. आप सुधिजनों ने मेरी पोस्ट 'रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन- १'
व 'रामजन्मआध्यात्मिक चिंतन- २' पर जो टिप्पणियाँ कीं उनमें आनंद ही आनंद समाया है ,
जिससे मन आनंद निमग्न हों गया है. और विशाल भाई के इन उद्गारों ने " सत आनंद ,
चित आनंद, असीम आनंद,बोध स्वरूपानंद ,ज्ञान स्वरूपानंद,अनिर्वचनीय आनंद,अचिन्त्य आनंद,
अपरिमेय आनंद,आनंदमय आनंद, बस आनंद ही आनंद." ने तो मानो आनंद की बरसात ही
कर दी है.
आईये चलिये आनंद की इसी तरंग में ही अब आगे बढते हैं. राम, दशरथ, कौशल्या, युगों का
तात्विक चिंतन कर लेने के पश्चात अब 'अवधपुरी' या 'अयोध्यापुरी' का तत्व चिंतन करने का
प्रयास करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं:-
नौमि भौम वार मधुमासा, अवधपुरी यह चरित प्रकासा
बंदउ अवधपुरी अति पावनि, सरजू सरि कलि कलुष नसावनि
अवधपुरी का शाब्दिक अर्थ है ऐसी पुरी जहाँ कोई वध न हो. इसी प्रकार इसका पर्यायवाची
अयोध्यापुरी का भी अर्थ हैं ऐसी पुरी जहाँ कोई युद्ध न हो. श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ५, श्लोक १३)
के अनुसार 'नवद्वारे पुरे देही' कहकर इस नौ छिद्रों वाले शरीर को ही नवद्वार रुपी पुरी
बतलाया गया है जिसमें जीव यानि 'देही' का निवास है.
अपने अपने दृष्टिकोण,भावों और विचारों से हम अपने ही अंदर 'अवधपुरी' या 'लंका पुरी' की
स्थापना कर लेतें हैं. यदि हम स्वयं को शरीर मानकर अपने ही अहंकाररुपी रावण के साम्राज्य
में आसुरी सम्पदा ईर्ष्या, द्वेष,चिंता, दुराशा,दंभ आदि को लेकर जीते हैं तो लंकापुरी की स्थापना
हो जाती हैं.परन्तु, अवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का
अनुसरण कर 'आत्मज्ञान' की आवश्यकता है.
हमारे शास्त्रों में शरीर को आत्मा का एक आवरण मात्र बताया गया है. मै जब अपने
को शरीर मानता हूँ तो उसका 'वध' अथवा मरण अवश्यम्भावी है.जिस कारण मृत्यु भय
मुझे सताने लगता है.मृत्यु भय के रहते हृदय में 'रामजन्म' यानि चिर स्थाई आनंद का उदय
होना सम्भव ही नहीं है मृत्यु भय के कारण ही मै जीवन में तरह तरह की कुचेष्टायें करता हूँ.
समस्त भ्रष्ट आचरण की जननी ऐसी कुचेष्टाएं ही हैं .परन्तु , जब मै स्वयं को
'सत्-चित-आनंद' परमात्मा का अंश 'आत्मा' मानता हूँ तो आत्मा के अवध होने के कारण मुझे
यह समझ आ जाता है कि मेरी मृत्यु किसी भी प्रकार से भी सम्भव नहीं है. मै मृत्यु के
भय से निजात पा अपने ही स्वरुप 'आनंद' का निर्बाध रूप से चिंतन व अनुभव करने में
समर्थ हो जाता हूँ. श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा के बारे में कहा गया है :-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:
अर्थात इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती,जल गला नहीं सकता,
और वायु सुखा नहीं सकती.
आत्मा का स्वरुप अजर है, अमर है,नित्य है, 'सत्-चित-आनंद' है, अवध है, अर्थात आत्मा का
'वध' कभी भी सम्भव नहीं है जब इन भावों और विचारों का विवेकपूर्ण पोषण कर मै अपने
हृदय में गहन चिंतन द्वारा अच्छी प्रकार से स्थापित कर लेता हूँ तभी मेरे हृदय में 'अवधपुरी'
स्थापित होने लगती है. मृत्यु का डर मेरे हृदय से निकल जाता है , हृदय शांत हो जाता है.
मेरे विचारों और भावों में भी कोई किसी प्रकार का संघर्ष या युद्ध नहीं रह जाता , इसीलिए
अवधपुरी को 'अयोध्यापुरी' भी कहा गया है. ऐसी अयोध्या या अवधपुरी में ही राम यानि
'सत्-चित-आनंद' का जन्म नवमी तिथि, दिन मंगलवार (भौम) और मधुमास यानि बसंत ऋतु
में होता है.
नवमी तिथि,मंगलवार और मधुमास हृदय की उन स्थिति का सूचक हैं जब आत्मज्ञान की
साधना ,अभ्यास और उपवास परिपक्वता को प्राप्त हो,और हृदय में मंगल व उल्लास का सर्वत्र
संचार हो जाये. 'उपवास' का अर्थ केवल कुछ खाना पीना छोडना मात्र नहीं ,बल्कि
मन बुद्धि के साथ राम के निकट जप, ध्यान और उपासना के द्वारा वास करना है .
'सत्-चित-आनंद' का भाव तब विभिन्न रंगों से मन को सदा सराबोर किये रखता है और
मन सहज ही गा उठता है :-
होली खेले रघुबीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा
ऐसी पावन अवधपुरी को हमारा शत शत नमन है, जिसमें आत्मज्ञान रूपी 'सरजू' नदी सदा
प्रवाहित होती रहती है, जो 'कलियुग' की कलुषता का हृदय से नाश करती है और जिसमें
राम का जन्म होकर राम चरित्र का प्रकाश हो पाता है. अफ़सोस! ऐसे विकार रहित प्रभु
के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुःखी है, नाम का निरूपण करके नाम
का यत्न पूर्वक जप रुपी साधन करने से वही राम ऐसे प्रकट हो जाता है जैसे रत्न के
जानने से उसका मूल्य. इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :-
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी , सकल जीव जग दीन दुखारी
नाम निरूपन नाम जतन ते , सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें
राम, दशरथ व कौशल्या के बारे में मेरी पोस्ट 'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-१' तथा चारो
युगों (सतयुग,द्वापर ,त्रेता एवम कलियुग) के बारे में मेरी पिछली पोस्ट
'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-२' में प्रकाश डाला गया है.जो सुधिजन चाहें वे इन पोस्टों
का अवलोकन कर अपने सुविचार प्रकट कर आनंद की वृष्टि कर सकते हैं.
एक एक अक्षर मधुरातिमधुर है. आप सुधिजनों ने मेरी पोस्ट 'रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन- १'
व 'रामजन्मआध्यात्मिक चिंतन- २' पर जो टिप्पणियाँ कीं उनमें आनंद ही आनंद समाया है ,
जिससे मन आनंद निमग्न हों गया है. और विशाल भाई के इन उद्गारों ने " सत आनंद ,
चित आनंद, असीम आनंद,बोध स्वरूपानंद ,ज्ञान स्वरूपानंद,अनिर्वचनीय आनंद,अचिन्त्य आनंद,
अपरिमेय आनंद,आनंदमय आनंद, बस आनंद ही आनंद." ने तो मानो आनंद की बरसात ही
कर दी है.
आईये चलिये आनंद की इसी तरंग में ही अब आगे बढते हैं. राम, दशरथ, कौशल्या, युगों का
तात्विक चिंतन कर लेने के पश्चात अब 'अवधपुरी' या 'अयोध्यापुरी' का तत्व चिंतन करने का
प्रयास करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं:-
नौमि भौम वार मधुमासा, अवधपुरी यह चरित प्रकासा
बंदउ अवधपुरी अति पावनि, सरजू सरि कलि कलुष नसावनि
अवधपुरी का शाब्दिक अर्थ है ऐसी पुरी जहाँ कोई वध न हो. इसी प्रकार इसका पर्यायवाची
अयोध्यापुरी का भी अर्थ हैं ऐसी पुरी जहाँ कोई युद्ध न हो. श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ५, श्लोक १३)
के अनुसार 'नवद्वारे पुरे देही' कहकर इस नौ छिद्रों वाले शरीर को ही नवद्वार रुपी पुरी
बतलाया गया है जिसमें जीव यानि 'देही' का निवास है.
अपने अपने दृष्टिकोण,भावों और विचारों से हम अपने ही अंदर 'अवधपुरी' या 'लंका पुरी' की
स्थापना कर लेतें हैं. यदि हम स्वयं को शरीर मानकर अपने ही अहंकाररुपी रावण के साम्राज्य
में आसुरी सम्पदा ईर्ष्या, द्वेष,चिंता, दुराशा,दंभ आदि को लेकर जीते हैं तो लंकापुरी की स्थापना
हो जाती हैं.परन्तु, अवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का
अनुसरण कर 'आत्मज्ञान' की आवश्यकता है.
हमारे शास्त्रों में शरीर को आत्मा का एक आवरण मात्र बताया गया है. मै जब अपने
को शरीर मानता हूँ तो उसका 'वध' अथवा मरण अवश्यम्भावी है.जिस कारण मृत्यु भय
मुझे सताने लगता है.मृत्यु भय के रहते हृदय में 'रामजन्म' यानि चिर स्थाई आनंद का उदय
होना सम्भव ही नहीं है मृत्यु भय के कारण ही मै जीवन में तरह तरह की कुचेष्टायें करता हूँ.
समस्त भ्रष्ट आचरण की जननी ऐसी कुचेष्टाएं ही हैं .परन्तु , जब मै स्वयं को
'सत्-चित-आनंद' परमात्मा का अंश 'आत्मा' मानता हूँ तो आत्मा के अवध होने के कारण मुझे
यह समझ आ जाता है कि मेरी मृत्यु किसी भी प्रकार से भी सम्भव नहीं है. मै मृत्यु के
भय से निजात पा अपने ही स्वरुप 'आनंद' का निर्बाध रूप से चिंतन व अनुभव करने में
समर्थ हो जाता हूँ. श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा के बारे में कहा गया है :-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:
अर्थात इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती,जल गला नहीं सकता,
और वायु सुखा नहीं सकती.
आत्मा का स्वरुप अजर है, अमर है,नित्य है, 'सत्-चित-आनंद' है, अवध है, अर्थात आत्मा का
'वध' कभी भी सम्भव नहीं है जब इन भावों और विचारों का विवेकपूर्ण पोषण कर मै अपने
हृदय में गहन चिंतन द्वारा अच्छी प्रकार से स्थापित कर लेता हूँ तभी मेरे हृदय में 'अवधपुरी'
स्थापित होने लगती है. मृत्यु का डर मेरे हृदय से निकल जाता है , हृदय शांत हो जाता है.
मेरे विचारों और भावों में भी कोई किसी प्रकार का संघर्ष या युद्ध नहीं रह जाता , इसीलिए
अवधपुरी को 'अयोध्यापुरी' भी कहा गया है. ऐसी अयोध्या या अवधपुरी में ही राम यानि
'सत्-चित-आनंद' का जन्म नवमी तिथि, दिन मंगलवार (भौम) और मधुमास यानि बसंत ऋतु
में होता है.
नवमी तिथि,मंगलवार और मधुमास हृदय की उन स्थिति का सूचक हैं जब आत्मज्ञान की
साधना ,अभ्यास और उपवास परिपक्वता को प्राप्त हो,और हृदय में मंगल व उल्लास का सर्वत्र
संचार हो जाये. 'उपवास' का अर्थ केवल कुछ खाना पीना छोडना मात्र नहीं ,बल्कि
मन बुद्धि के साथ राम के निकट जप, ध्यान और उपासना के द्वारा वास करना है .
'सत्-चित-आनंद' का भाव तब विभिन्न रंगों से मन को सदा सराबोर किये रखता है और
मन सहज ही गा उठता है :-
होली खेले रघुबीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा
ऐसी पावन अवधपुरी को हमारा शत शत नमन है, जिसमें आत्मज्ञान रूपी 'सरजू' नदी सदा
प्रवाहित होती रहती है, जो 'कलियुग' की कलुषता का हृदय से नाश करती है और जिसमें
राम का जन्म होकर राम चरित्र का प्रकाश हो पाता है. अफ़सोस! ऐसे विकार रहित प्रभु
के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुःखी है, नाम का निरूपण करके नाम
का यत्न पूर्वक जप रुपी साधन करने से वही राम ऐसे प्रकट हो जाता है जैसे रत्न के
जानने से उसका मूल्य. इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :-
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी , सकल जीव जग दीन दुखारी
नाम निरूपन नाम जतन ते , सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें
राम, दशरथ व कौशल्या के बारे में मेरी पोस्ट 'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-१' तथा चारो
युगों (सतयुग,द्वापर ,त्रेता एवम कलियुग) के बारे में मेरी पिछली पोस्ट
'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-२' में प्रकाश डाला गया है.जो सुधिजन चाहें वे इन पोस्टों
का अवलोकन कर अपने सुविचार प्रकट कर आनंद की वृष्टि कर सकते हैं.
आदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
भगवान राम के विषय में आध्यात्मिक चिंतन सुंदर और सार्थक
लेख बहुत अच्छा और विचारणीय है। बहुत ही गहनता से आपने उसे प्रस्तुत किया है
आत्मा अमर है इसीलिए मृत्यु का भय मन से निकल देना चाहिए
ReplyDeleteसुंदर आध्यात्मिक चिंतन..... रामजी के पावन चरित्र के विषय में जितना भी पढ़ें कम लगता है..... आभार इन सार्थक पोस्ट्स के लिए
ReplyDeleteअध्यात्मिक चिंतन की श्रृंखला में अद्भुत प्रस्तुति....राम-माय कर डाला आपने तो.
ReplyDeleteअवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का अनुसरण कर 'आत्मज्ञान' की आवश्यकता है| बहुत सुन्दर शब्दों में भगवन रामजी के विषय में अध्यात्मिक चिंतन|धन्यवाद|
ReplyDeletebahut hi gehen aadhyatmik chintan se paripoorn adbhut prastuti.
ReplyDeleteaabhar.
अच्छा लगा अध्यात्म कि ये बातें पढ़ना
ReplyDeleteआनंद का रसपान करवाते जाईये,राकेश जी.
ReplyDeleteनए विशेषण ढूँढने पढेंगे आपकी राम मय रस माला के लिए.
अतृप्त ह्रदय लिए जा रहूँ,जल्द आता हूँ .
आपका आभार.
आज अध्यात्म आनन्द में नहा गये, बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteइस आध्यात्मक चिन्तन को कल के चरेचा मंच पर ले लिया है!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी आलेख लिखा है आपने!
priy rakesh ji
ReplyDeletesader bandan ,
purushottam ram ka varnan ek sagunopasak ka hi nahin purvagrah chhod de to sabka adhytm - chintan ka sanmarg pratit hota hai,' bhav yahi kiye chaman muskrata rahe gulon ki tarah " jo ramrajya ka nihitarth hai . sarthak vyakhya ji .upkar ji .
अवधपुरी और अयोध्यापुरी का विश्लेषण बहुत अच्छा लगा ..कभी इस तरह सोचा ही नहीं था ... बहुत अच्छी और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट ...आभार
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन और अति सुंदर ,धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छा चिंतन अच्छे भाव... शुभकामनायें भाई जी !!
ReplyDeletebeautifully written
ReplyDeleteआपका यह लेख पढा या आनंद की सुर सरिता में नहा लिये एक ही बात है।अवधपुरी व सरयू की महत्ता तो इतनी है कि कहते हैं कि कुम्भ व मकर स्नानोत्सव पर्व के उपरान्त लोगों की मलीनता को धोते-धोते संगम इतना मलिन हो गया संगम सरयू-स्नान कर पुनः धवल व पवित्र हो जाता है।
ReplyDeleteसंगृहीत करने और बार बार पढने लायक पोस्ट है ...
ReplyDeleteबहुत आभार !
aanand varshan kar rahen hain bhaai sahib aap to .
ReplyDeleteavdh vaasi ho rhaa hai man .
veerubhai .
सच्चिदानंद को प्राप्त करने के लिए कोई अलग उपक्रम नहीं करना पड़ता है..अंग्रेजी में एक कहावत है ..hands to work and heart to pray..बस आनंद की अनुभूति होने लगती है.. सही कहा ये हम पर निर्भर करता है कि हम कहाँ रहना चाहते हैं...अवधपुरी में या लंकापुरी में .विचारणीय पोस्ट ..आभार
ReplyDeleteइस ज्ञान गंगा मे नहाकर तो धन्य हो गये………एक एक शब्द का अर्थ जिस तरह से आप समझा रहे है उसके लिये तो मेरे पास शब्द ही नही हैं जो ज्ञान बडे बडे संत महात्मा देते हैं वो आप यहां सबको सुलभ करवा कर बहुत ही उत्तम कार्य कर रहे हैं…………आभार्।
ReplyDeleteराकेश जी ,
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और विचारणीय पोस्ट है ..लोग जगह और नाम में भटकते हैं ..आपने उन नामों का आध्यात्मिक अर्थ बता कर दिशा सुझा दी है आन्नद प्राप्ति की ..बहुत बहुत बधाई आपको
राकेश जी ,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक और आध्यात्मिक चिंतन बहुत ही सुन्दर है ..आपने तो आनंद की बरसात ही कर दी है...आपके सत्संग से मेरे हृदय में भी 'अवधपुरी'
स्थापित होने लगी है. बहुत बहुत बहुत आभार आपका.......
आप तो रामायण के प्रत्येक शब्द प्रतीक से मनोज्ञ चिंतन कर रहे है।
ReplyDeleteअवध को अहिंसा से जोड़कर अन्ततः आत्मा के अजर-अमर होने के सिद्धांत को सारगर्भित विस्तार देकर स्थापित कर लिया।
इस आध्यात्मिक चिंतन विश्लेषण में हमें संग रखने का आभार!!
ऐसी पावन अवधपुरी को हमारा शत शत नमन है, --और श्रीराम को भी हमारा अनेको नमन --
ReplyDeleteआपके द्वारा ज्ञान कुछ अलग ही दुनिया में भ्रमण कराता है ---नमन ...
अध्यात्म पर इतना गहन एवं विषद वर्णन हमें बहुत कुछ दे रहा है. जो इतने सारगर्भित ढंग से प्रस्तुत करके पढ़ाने के लिए आप धन्यवाद के पात्र है.
ReplyDeleteरामायण के स्थानों और पात्रों के बारे में एक गहन अध्यात्मिक विश्लेषण बहुत ही नया और ज्ञानवर्धक लगा..रामायण के अध्ययन को आप ने एक नयी और सार्थक दिशा दी है..आभार
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पर आया राकेश भाई । जैसा कि खुशदीप भाई ने बता ही दिया और मुझे खुशी है कि हिंदी को अब एक और ऐसा ब्लॉग और ब्लॉगर मिल गया है जिस पर उसे गर्व करना चाहिए ..पिछले सारे अंक ही पढ रहा शाम से । बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteआपका मानस चिंतन अर्थों का एक नया संसार सृजित करता है जिसमें विचरण करना सुखप्रद है, शांतिप्रद है।
ReplyDeleteआ0 राकेश जी!
ReplyDeleteसद्साहित्य का आचमन कराने हेतु आभार!
===========================
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
राम-राम जप ले प्राणी बेडा पार हो जायेगा,
ReplyDeleteमत सोच सच मैं भी जपता हूँ।
हम भाई साहिब हिंदी में टिपण्णी करना सीख गयें हैं .आइन्दा टिपण्णी आपको देवनागरी में ही मिलगी "रोमानिया सौतन में नहीं "।
ReplyDeleteइति!आदाब !
बहुत सुंदर विश्लेषण। सारगर्भित पोस्ट। आध्यात्मिक सुख और संतोष का अनुभव।
ReplyDeleteआभार।
आपका ब्लाग, मैंने ब्लाग रोल में जोड़ लिया है :)
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteआप भी ब्लागर सम्मेलन में थे ना मैं आपको मिला ना आप हमें मिले।
वीरू जी हिन्दी में बहुत अच्छे जी।
जाट देवता(संदीप पँवार) जी.
ReplyDeleteजी हाँ, मुझे अफ़सोस है कि आपसे मिलना नहीं हों पाया.कई ओर ब्लोगर्स साथियों से भी मिलना नहीं हुआ.यदि शुरू का समय, जो लगभग व्यर्थसा ही चला गया,में ब्लोगर्स के मिलन व introduction पर केंद्रित रहता तो ज्यादा अच्छा होता.आप तो गाजियाबाद में ही हैं.फिर कभी मिल सकते हैं.आभार
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
ReplyDeleteन चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:... yahi sampoornta hai
अवध पर एक सुन्दर सुचिंतित आलेख - अब सरयू भी सहज ही ध्यानाकर्षण की अधिकारिणी हो जाती हैं !
ReplyDeleteaapke blog par pahli baar aayi hoon kuch alag laga aadhyaatmik chitan par aadharit.truelly speaking is vishay par adhik jankari nahi.par padhkar achcha laga kuch jaankari mili.i m following ur blog.taaki aage bhi labhanvit hoti rahoon.
ReplyDeleteअनूठी और भावपूर्ण व्याख्या की है आपने आभार.
ReplyDeleteसुन्दर आध्यात्म चिंतन.
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक चिंतन।
ReplyDeleteसुंदर-सार्थक शुभ विचार ....आनंद की शुभ वृष्टि हुई हम पर .....!!
ReplyDeleteआभार ...!!
राकेश जी,
ReplyDeleteअब तो ब्लॉगजगत को भी अवध बना देने का कोई मंत्र दीजिए, जिससे आगे यहां किसी की भावनाओं या विश्वास का वध न हो...
जय हिंद...
आध्यात्मिक रूप से नई परिभाषाएं पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteसुन्दर आलेख ।
खुशदीप भाई,
ReplyDeleteमन में आनंद को बस जगह दीजिये, और 'गीता' के आत्म ज्ञान से मन को अवध बना लीजिये.
फिर देखतें हैं कौन किसका वध करता है.
आप भी तो कहतें हैं
'छोडो कल की बातें,कल की बात पुरानी,
नए दौर में लिखेंगें हम मिल कर नई कहानी ,
हम ब्लोगिस्तानी ,हम ब्लोगिस्तानी.'
महामंत्र तो आपने ही दे दिया है खुशदीप भाई.
Rakesh Sir - All your posts are very beautifully written... and very informative... thanks and keep writting such stuffs.... Padke accha lagta hai :)
ReplyDeleteश्री राम जी का नाम ही आनंदित कर देने वाला है. बहुत अच्छा लेखन.
ReplyDeleteआज सुबह चार साल का बेटा कह रहा था कि राम जी को जंगल की रक्षा करने के लिए जंगल भेजा गया था तो अनायास ही लगा कि रामायण की पर्यावरण चेतना के रूप में भी अध्यनन हो सकता है ... अर्थात राम और रामायण की जितने कोणों से समीक्षा की जाये कम है. आपकी आध्यात्मिक चेतना अदभुद है...
ReplyDeleteऐसी पावन अवधपुरी को हमारा शत शत नमन है, जिसमें आत्मज्ञान रूपी 'सरजू' नदी सदा
ReplyDeleteप्रवाहित होती रहती है, जो 'कलियुग' की कलुषता का हृदय से नाश करती है और जिसमें
राम का जन्म होकर राम चरित्र का प्रकाश हो पाता है. अफ़सोस! ऐसे विकार रहित प्रभु
के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुःखी है, नाम का निरूपण करके नाम
का यत्न पूर्वक जप रुपी साधन करने से वही राम ऐसे प्रकट हो जाता है ,adbhut ,avadhpuri aur ayodhya ka vishleshan kamaal ka raha ,main mafi chahti hoon yahan aakar padh chuki hoon ise aage ,magar tippani ki chuk kaise ho gayi samjh nahi aaya ,achchha kiya yaad dila diya aap bahut hi nek insaan hai ,aabhari hoon .
अपने अपने दृष्टिकोण,भावों और विचारों से हम अपने ही अंदर 'अवधपुरी' या 'लंका पुरी' की
ReplyDeleteस्थापना कर लेतें हैं. यदि हम स्वयं को शरीर मानकर अपने ही अहंकाररुपी रावण के साम्राज्य
में आसुरी सम्पदा ईर्ष्या, द्वेष,चिंता, दुराशा,दंभ आदि को लेकर जीते हैं तो लंकापुरी की स्थापना
हो जाती हैं.परन्तु, अवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का
अनुसरण कर 'आत्मज्ञान' की आवश्यकता है |
मैं आपकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ इन्सान के विचार ही उसे अच्छा और बुरा कार्य करने को प्रेरित करते हैं | अगर हम एक अच्छी सोच और सकारात्मक विचार के साथ जीना सिख जाएँ तो भगवान को ढुंढना इतना भी कठिन नहीं वो तो हरपल हमारे भीतर हैं हमारी संकुचित सोच ही उसे हमसे दूर कर देती है |
बहुत सुन्दर विचार | ज्ञानवर्थक पोस्ट |
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी , सकल जीव जग दीन दुखारी
नाम निरूपन नाम जतन ते , सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें
गहन अध्यात्मिक चिंतन. बहुत सुंदर विचार. फिर आप तो विज्ञान और कानून दोनों के जानकार है, मामले कि तह तक जाने में आपसे ज्यादा सक्षम कौन होगा. सुंदर आलेख. बधाई.
ReplyDeleteराकेश जी, यह आलेख कई बार पढा। जितना भी समझ सका उससे ज्ञानवर्धन भी हुआ और मन भी प्रसन्न हुआ।
ReplyDeleteरटे रटाये उद्बोधनों के बीच एक अलग ही दृष्टि दिखती है तो बहुत अच्छा लगता है।
धन्य हुआ ये लेख पढ़ कर ...सच में बार बार पढने योग्य अदभुद लेख है , स्मार्ट इन्डियन जी सही कह रहे हैं
ReplyDelete"रटे रटाये उद्बोधनों के बीच एक अलग ही दृष्टि दिखती है तो बहुत अच्छा लगता है।
अवधपुरी : ऐसी पुरी जहाँ कोई वध न हो
इसका पर्यायवाची अयोध्यापुरी : ऐसी पुरी जहाँ कोई युद्ध न हो
शरीर : नवद्वार रुपी पुरी (होने का नजरिया)
उपवास : मन बुद्धि के साथ राम के निकट जप, ध्यान और उपासना के द्वारा वास करना है
इस लेख में इन अर्थों को पढ़ कर हर किसी को समझ आ जाना चाहिए की शब्द का कितने गहरे अर्थ होते हैं, अक्सर मनघडंत बातों और अर्थों के शोर के बीच इनके मूल अर्थ को दबा दिया जाता है ..... खैर ..... मैं फिर पढने आऊंगा :)
एक बात कहनी थी......
ReplyDeletehttp://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com
ये एक ग्रुप ब्लॉग है , अगर आप नहीं गए हों तो कृपया एक बार अवश्य यहाँ जा कर देखें , यहाँ अच्छी रचनाएं पढने को मिलती हैं , वैसे तो मैं खुद भी नियमित नहीं पढ़ पाता लेकिन ऐसा ग्रुप ब्लॉग अपने आप में एक नया और अच्छा प्रयास लगता है इसलिए बता रहा हूँ :)
काश कि ये देश फिर से उसी युग मे लौट जाये। आपकी व्याख्या बहुत रोचक और अध्यात्म रस मे सराबोर है। अब आप ही बतायें प्रशंसा के सिवा और क्या कहें?
ReplyDeleteधन्यवाद और शुभकामनायें।
मेरे ब्लॉग पर नियमित रूप से आने के लिए और टिपण्णी देकर हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ! बहुत सुन्दर आलेख! आध्यात्मक चिंतन! सार्थक पोस्ट! बेहतरीन प्रस्तुती! बधाई!
sunder vyakhya/...
ReplyDeleteअच्छा लेख |बधाई
ReplyDeleteआशा
aadarniy sir
ReplyDeleteaapka bahut bahut aabhaar jo aapne mere blog par aakar apne comments v bahumuly samarthan dekar mera housla badhaya.
sir waqai aapke post par aane me bahut hi vilamb ho gaya iske liye hriday se xhama -prarthini hun.
sir dar asal swasthy ki aniymitta ke karan roz
net par nahi aa paati hun kyon ki jyada der net parbaithne ki manahi hai .aapne to apne addhbhut vicharon me hame shamil karke ek nai anubhuti se paricit karvaya hai .
sir aapke cocmments hamesha hi mera utsaah bdhte hain . main khudhi bahut bahut sharmindagi mahsus kar rahi hun .aur sir aapne ye kya likh diya hai ---main aapse naraj .ye bhala kaise ho sakata hai . aapki saari posto me itni suxhmata aur itni baariki se har shbd ke arth ke saath vishhleshhan kiya hai ki jo bhi ek bar aapki post par pahunch jaayega fir dubaara aapke blog par aapki post ko padhne ke liye lalayit hi rahega .
sir itnai gahraai se kisi baat ko grahan karke us par apne gahan anubhav ke dwara use suxhmata se vishhleshhit karna ye aapke gajab ke dhairy v
amuly gyaan ko hi parilaxhit karta hai .ye atishyokti nahi hai jo baat dil me aapke post ko padh karanubhav hua use hi shabdo ka rup de rahi hun.sir ddusre vilamb ka ek karan yah bhi hai ki post to main kisi se bhi dalwa deti hun par pura vishwas ki aap meri paristhitiyon ko samjhte hue mujhe is vilamb ke liye dil se xhma karenge .kal bhi maine aapki post par tippni dali thi par vo pata nahi kyon mahi post ho paai .aur aaj bhi sabsetippni khud hi deti hun .par sach baat to ye bhi hai ki jab kisi tarah comments dene baithti hun to lagta hai ki pahle jitne comments aaye hain unka jawab to de dun .bas do ya char commenta dal kar rah jaati hun isliye bahut logon ke blog par chah kar bhi nahi pahunch paati .aashahi nahi pahle aap par hi tippni dal rahi hun yah bhi post hogi ki nahi ,asmanjas me hun .
अपने अपने दृष्टिकोण,भावों और विचारों से हम अपने ही अंदर 'अवधपुरी' या 'लंका पुरी' की
स्थापना कर लेतें हैं. यदि हम स्वयं को शरीर मानकर अपने ही अहंकाररुपी रावण के साम्राज्य
में आसुरी सम्पदा ईर्ष्या, द्वेष,चिंता, दुराशा,दंभ आदि को लेकर जीते हैं तो लंकापुरी की स्थापना
हो जाती हैं.परन्तु, अवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का
अनुसरण कर 'आत्मज्ञान' की आवश्यकता है.
aaj ke post ki in panktiyon ne mujhe jyada hi prabhavit kiya .
bahut hisateek aur grhaniy post .ek baar punah xhama yachna ke saath
hardik abhinandan
poonam
इतना मनोहारी अध्यात्म चिंतन ....वह भी अवधपुरी
ReplyDeleteभक्ति गंगा में स्नान .... मन पवित्र हो गया
आनंद ही आनंद ....
आदरणीय गुरूजी नमस्ते !
ReplyDeleteगहन अध्यात्मिक चिंतन.को बहुत ही सरल तरीके से बताया है आपने!
बहुत सही कहा है आपने-- 'उपवास' का अर्थ केवल कुछ खाना पीना छोडना मात्र नहीं ,
बल्कि मन बुद्धि के साथ राम अर्थात उस परम पिता परमात्मा के निकट जप, ध्यान
और उपासना के द्वारा वास करना है .
आत्मा का स्वरुप अजर है, अमर है,नित्य है, 'सत्-चित-आनंद' है, अवध है, अर्थात
आत्मा का 'वध' कभी भी सम्भव नहीं है इस लिए अपने शरीर को अवध पूरी भी कहते हैं.
इस जानकारी भरी पोस्ट के लिए आपको हार्दिक बधाई ..
आपको पढ़ना हमेशा सुखद होता है...एक अद्भुत अनुभूति!! आभार.
ReplyDeleteआनंद का चिंतन करना अदभुत है, मंगलकारी है .
ReplyDeleteराम ....जो रमा हुआ है हर जगह जिसके बिना कोई जगह खाली नहीं ..ऐसे सृष्टि के कर्ता के बारे में सोचना आनंद तो देगा ही ना ..जो स्वयं सचिदानंद है ....उसे खुद के समीप महसूस करना उसका चिंतन करना जीवन की गति को बदल देता है ......अवधपुरी का शाब्दिक अर्थ है ऐसी पुरी जहाँ कोई
वध न हो. कबीर जी ने भी इस शब्द को इस तरह से प्रयोग किया है "अबधू जोगी जग थैं न्यारा" यह भक्ति भावना हर व्यक्ति के ह्रदय में वास नहीं करती ..जिसके ह्रदय में वास करती है वह जग से नयारा हो जाता है ..सच में वह अवधपुरी में बस जाता है ....और यह बध कोई शारीरिक बध नहीं है ...यहाँ पर सब तरह के बध से मुक्त होना होगा और फिर जीवन को आनंद में स्थापित करना होगा ...आपका आभार एक नये दृष्टिकोण के लिए ..!
आपका ब्लॉग फोलो कर लिया है...... वैसे पोस्ट ममा पढ़ा करेंगीं ..... :) जय श्रीराम
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक चिंतन किया है आपने ... आभार ।
ReplyDeleteराकेश जी ... इतनी सूक्ष्मता से कभी अवध और अयोध्या को सोच ही नही सके हम ... इस आध्यात्म कासच मेईएन कोई छोर नही है ...
ReplyDeleteआत्मा अवध है अमर है ... और मनुष्य के प्रयास से अवध ुआनी राम के करीब है .... वाह ... बहुत ही सुंदर जीवन दर्शन है .... मज़ा आ गया ... आनंद आ गया पढ़ कर ...
सर ...भगवान् श्री राम के विषय में इस उत्तम कोटि की आध्यात्मिक प्रस्तुति को पढ़कर मन प्रसन्न हुआ.सरल रूप में आपका ये चिंतन एक अलग सा अहसास कराता है.
ReplyDeleteआभार राकेश जी---- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता....कर्म व व्यवहारिक , ग्यान कान्डिक व तात्विक अर्थार्थ होते हैं इन कथाओं / बिन्दुओं /घटनाओं के----
ReplyDelete---त्रिविध आनन्दमय.... जैसे अनहद नाद सा बज रहा हो सुदूर शून्य में...अन्तर्मानस में...ह्रदयाकाश में...घटाकाश में...
--रामकथा पर मेरी क्रिति--शूर्पण्खा...AIBA के ब्लोग पर देखें व अपना मत अवश्य दें...
राकेश कुमार जी!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आया और आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण लेख पढ़ा। साहित्य और दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण बातें समझ में भी आईं और रुचिकर भी लगीं। रामचरित तो अपने आप में परिपूर्ण महाकाव्य है। अतः - रामनाम का जाप करु तजि सारे उपचार, जैसे घटत न अंक नौ, नौ के लिखत पहार।
आपके साथ जुड़ने का मौका मिला ...सौभाग्य
ReplyDeleteअवधपुरी और अयोध्यापुरी का विश्लेषण बहुत अच्छा लगा .....बहुत खूब...कभी ऐसा सोचा नहीं था ....
Well... Rakesh ji. It's my pleasure to read you.
ReplyDeleteI liked this post very much-
- Rajeev Panchhi
राकेश कुमार जी हमें तो अवधपुरी और अयोध्या के अर्थ आज समझ आये और वह भी आपके कारण , ऐसी पोस्ट बहुत आराम से पढ़ी जाती आपका बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteराकेशजी, आनंद की अनवरत धारा का रसमय आस्वादन करवाने और अपने ब्लॉग पर निमंत्रित करने की क्रपा करने के लिए सादर आभार
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन सुंदर ,सार्थक और रुचिकर लगीं।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
"अवध है, अर्थात आत्मा का
ReplyDelete'वध' कभी भी सम्भव नहीं है"
इस तरह 'अवध' का अर्थ आप के द्वारा ही जानने का मिला
आपका चिंतन, मनन और लेखन इसी तरह चलते रहें
मंगलकामनाएं
भाई राकेश जी बहुत सुंदर ढंग से आपने आध्यात्मिक विश्लेषण किया है बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |जून तक कुछ अधिक व्यस्तता रहेगी
ReplyDelete@अवधपुरी की स्थापना के लिए अपने को शरीर मानना छोड़ हमें सद्विवेक का अनुसरण कर ‘आत्मज्ञान‘ की आवश्यकता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार। हमें अपने भीतर अवधपुरी की स्थापना का प्रयास करना चाहिए।
अवधपुरी और अयोध्या का अतिसुन्दर वर्णन पा के प्रसन्नता हुए..
ReplyDeleteअवधपुरी और लंकापुरी सब हमारे सोच पर निर्भर है...
कहा भी गया है..
जाकी रहे भावना जैसी
प्रभु मूरत तेहि देखे तैसी..
बहुत सुन्दर ज्ञान मिला.....
थोडा लेट आया इस बार जरा ब्यस्त था.... जल्दी जल्दी में पढ़कर इस लेख के सार्थक ज्ञान से वंचित नहीं रहना चाहता था..
aapne maharshi dayanand ji ki bhawana ko prakat kiya hai dhanyavad.
ReplyDeleteaapka mere blog par swagat hai.
Dr Varsha Singh has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन से भरपूर आलेख....पढ़ कर आनंद आ गया.
हार्दिक शुभकामनायें !
डॉ. दलसिंगार यादव has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteराकेश कुमार जी!
आपके ब्लॉग पर आया और आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण लेख पढ़ा। साहित्य और दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण बातें समझ में भी आईं और रुचिकर भी लगीं। रामचरित तो अपने आप में परिपूर्ण महाकाव्य है। अतः - रामनाम का जाप करु तजि सारे उपचार, जैसे घटत न अंक नौ, नौ के लिखत पहार।
Posted by डॉ. दलसिंगार यादव to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 12:35 PM
anju choudhary..(anu) has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteआपके साथ जुड़ने का मौका मिला ...सौभाग्य
अवधपुरी और अयोध्यापुरी का विश्लेषण बहुत अच्छा लगा .....बहुत खूब...कभी ऐसा सोचा नहीं था ....
Posted by anju choudhary..(anu) to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 1:52 PM
Anonymous has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteWell... Rakesh ji. It's my pleasure to read you.
I liked this post very much-
- Rajeev Panchhi
Posted by Anonymous to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 5:18 PM
raakesh ji aapki saadgi ka jawaab nahi ,aapki tippani padhkar muskaan aap hi do inch phail uthi isliye jawab dene ka man ho utha ,niraakar ko dekha to nahi abhi tak ,kyoki ise to sirf mahsoos kiya jaa sakta hai .haan paya jaroor ja sakta hai .aabhari hoon dil se aapki .
ReplyDeleteSunil Kumar has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteराकेश कुमार जी हमें तो अवधपुरी और अयोध्या के अर्थ आज समझ आये और वह भी आपके कारण , ऐसी पोस्ट बहुत आराम से पढ़ी जाती आपका बहुत बहुत आभार
Posted by Sunil Kumar to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 5:53 PM
कविता रावत has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन सुंदर ,सार्थक और रुचिकर लगीं।
हार्दिक शुभकामनायें !
Posted by कविता रावत to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 6:10 PM
Ashok Vyas has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDelete"अवध है, अर्थात आत्मा का
'वध' कभी भी सम्भव नहीं है"
इस तरह 'अवध' का अर्थ आप के द्वारा ही जानने का मिला
आपका चिंतन, मनन और लेखन इसी तरह चलते रहें
मंगलकामनाएं
Posted by Ashok Vyas to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 6:10 PM
Ashok Vyas has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteराकेशजी, आनंद की अनवरत धारा का रसमय आस्वादन करवाने और अपने ब्लॉग पर निमंत्रित करने की क्रपा करने के लिए सादर आभार
Posted by Ashok Vyas to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 6:07 PM
जयकृष्ण राय तुषार has left a new comment on your post "रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन - ३":
ReplyDeleteभाई राकेश जी बहुत सुंदर ढंग से आपने आध्यात्मिक विश्लेषण किया है बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |जून तक कुछ अधिक व्यस्तता रहेगी
Posted by जयकृष्ण राय तुषार to मनसा वाचा कर्मणा at May 12, 2011 9:37 PM
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteप्राय: अवध, अयोध्या आदि से हम मूढ़मति लोग सिर्फ़ स्थूल अर्थ ग्रहण करते हैं जैसे यह सिर्फ़ एक भूभाग है। सरल एवम रोचक तरीके से आप इन शब्दों के सूक्ष्म अर्थ समझा रहे हैं, यह अपने आप में एक पुण्य का कार्य है। आपके ब्लाग पर बहुधा देर से आना होता है, वजह वर्तमान का व्यवस्थित जीवन है वरना हम भी आदमी थे काम के:) देर से आने से आप का कोई नुकसान नहीं होता, हम ही नुकसान पाते है। मी लार्ड, इसलिये मुकदमे का निर्णय सुनाते समय हमारी mercy petition का ध्यान रखें। आपकी अति कृपा होगी।
प्रिय संजय भाई,
ReplyDeleteयह तो पक्की बात है कि मुझे आपका इंतजार रहता है.अब आपने आकर मुकदमा भी अपने पक्ष में निर्णित करा ही लिया है.
मेरा तो यही मानना है कि अवध या अयोध्या नगरी यदि हमारे मन में ही बस जाये,तो केवल 'राम-मंदिर' ही नहीं साक्षात 'रामजी' का
वास ही हों जायेगा वहां. फिर कोई सरकार,कोर्ट -कचहरी आदि नहीं रोक पायेगी हृदय में 'राम मंदिर' के निर्माण से.आभार.
सचमुच बहुत ही सुंदर एवं ज्ञानवर्द्धक पोस्ट, धन्यवाद! देरी से आने की लिये क्षमाप्राथी हूँ....
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी मिलने पर ऐसा लगा जैसे मेरा लिखना सार्थक हुआ! आपने जिस गाने का ज़िक्र किया है वो मेरा सबसे पसंदीदार गाना है!
ReplyDeleteaaj kal bahut jyada vyvastaa kee vajah se main blog me padarpan nahi kar paa rahi hun .. aapki post par kafi vilamb se pahuchi hun... anand aatma, Ram bhagwan, geeta ke vicharon se otprot aapki post adbhut aur agyan ko mitane vali alokik post hai ... kintu behad vyvasta kee vajah se main dhairya purvak purey manoyog se abhi rasaaswadan nahi kar payi hun ... fir punah aana hoga kyoonki abhi main Videsh Yaatra par jaa rahi hun .. aane par punah... Shubhkaamnayen
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक चिंतन।
राम के पास देर से आना हुआ इस बहाने पता चला कि आप की याददाश्त कितनी तेज है !
ReplyDeleteराम हमारे नायक हैं लेकिन आज हम उन्हें प्रतीक रूप में ही मानते हैं.अगर हम उनके सच्चे भक्त हैं तो फिर उनके आदर्शों पर भी तो अमल करें.हर जगह अनैतिक कृत्य हो रहे हैं और हम फिर भी 'राम-भक्त' बने हुए हैं !
आपके इस प्रयास से हो सकता है कि सोते हुए लोगों की नींद खुले !
गुरूजी प्रणाम ..शरीर जब अवधपुरी बन जाता है , तभी समन्वय की होली दिल खोल कर खेली जाती है ! बहुत ही सठिक ढंग से आध्यात्म की प्रस्तुति ! सराहनीय कदम !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteसुन्दर,सार्थक चिंतन है..........बहुत सुन्दर एवं सरल ढंग से एक एक शब्द की व्याख्या आपके द्वारा करी गयी है..........इसके लिए साधुवाद
ReplyDeleteaqap ke ek adhyatm chintan ayr darshan ki baton ko padh ke man ke kapat mano khul gaye .
ReplyDeleteaapki soch aur lekhni ko pranam hai
der se aai mafi chati hoon .
saader
rachana
बहुत सुंदर
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
aapki samjhai hui ye vyakhya bahut hi adbhut hai,hum to bus aapko dhanywaad kehna chahte hai ki aadhyatma ki kitab bhale hi na padhi hai par suni hai katha mein,par aaj apke blog k zariye kuch naya naya sa laga.padh kar bahut khushi hui.koti-koti dhanywaad aapko..........
ReplyDeleteगीता और रामायण का संजोग
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteनमस्कार ! आपका धन्यवाद .सुन्दर आध्यत्मिक प्रस्तुति आपके ब्लॉग जरिये हम बहुत कुछ जान पा रहे है ..माफ़ी चाहती हू देरी से आने के लिए आपके ब्लॉग पे कही भी FOLLOE BUTTON नहीं है इस कारण आपके updates हम तक नहीं पहुच पाते .... पर अब आपको ये शिकायत नहीं होगी .... सादर
वाह कभी इन शब्दों का इस रूप में देखा ही नहीं था एक अलग ही या ये कहू की कुछ सही ही अर्थ बता दिया आप ने इन शब्दों का | ज्ञान बढ़ाने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिंतन से भरपूर आलेख....पढ़ कर आनंद आ गया.
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
इंतजार है अगली पोस्ट का ..
ReplyDeleteअद्भुत है आपका चिंतन .शब्द यूँही नहीं उपजे इस बात को सिद्ध करता है आपका लेख .आपकी शब्द यात्रा सुन्दर ,आनंदपूर्ण है .आप मेरे लिए आदरणीय है आप जैसे व्यक्तित्व का मेरे ब्लॉग को पसंद करना मेरा सौभाग्य है.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आध्यात्मिक चिंतन
ReplyDeleteइतने सरल शब्दों में विश्लेषित किया है...कि बार-बार पढ़ने की इच्छा हो..
सार्थक आलेख.
आनंद.... परमआनंद की अनुभूति..
ReplyDeleteजय राम जी की ...
अवधपुरी और अयोध्यापुरी का विश्लेषण बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteसुंदर आध्यात्मिक चिंतन के लिए बधाई.
आध्यात्मिक चिंतन से लबरेज़ आपका ब्लॉग और ये पोस्ट लाजवाब है.पहली बार पढ़ा,मज़ा आ गया. मेरे ब्लॉग पर आप आये,आभारी हूँ.
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम !
रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन शृंखला बहुत उपयोगी और सार्थक सिद्ध हो रही है … इतने लोग लाभान्वित हो रहे हैं । अवश्य ही आप साधुवाद के अधिकारी हैं ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हमारे ब्लॉग पर आने क लिए और हमे फ़ॉलोकर क लिया बहुत बहुत्र शुक्रिया.हमारी रचना आपको पसंद आई ये देख कर हमे लिखने का प्रोत्साहन मिला आपसे!!:)
ReplyDeleteआदरणीय राकेशजी,
ReplyDeleteमुआफी चाहता हूँ,देर से पहुँच पाया.
अवधपुरी के सात्विक सौंदर्य के अध्यात्मिक चिंतन से मन आनंद से भर गया है.
नाम,रूप,लीला और धाम ,ये चारों राम के स्वरूप हैं.इन चारों में से किसी एक का चिंतन करने से राम का चिंतन हो जाता है.
आपने अवधपुरी से आत्माराम की जो यात्रा करवाई है,बहुत ही अनूठी है.बहुत आभार.
बस आनंद ही आनंद.
अगली पोस्ट का इंतज़ार है.
आदरणीय राकेश जी, सर्वप्रथम आपका आभार, पहली बार आपका ब्लॉग देखा कितना आनंद आया कहने के लिये शब्द नहीं हैं, पुरानी पोस्ट भी धीरे धीरे पढूंगी.
ReplyDeleteटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteआपके नए पोस्ट का इंतज़ार है!
good feelig to read it.
ReplyDeleteइन प्रस्तुतियों के लिए आपका आभार..!
ReplyDelete