जो मन में है, वही वाणी में हो और वही कर्म में भी हो तो आचरण निष्कपट कहलाता है. सरल और निष्कपट होना ही सबसे कठिन बात है. आज के सबसे चर्चित आरूषी हत्याकांड में गाज़ियाबाद की कोर्ट ने डॉ.राजेश तलवार और उनकी पत्नी नूपुर तलवार को सी० बी० आई० की रिपोर्ट के आधार पर आरोपी माना है. हालाँकि उनके खिलाफ कोई भी सीधा सबूत नहीं है. परन्तु उनके आचरण के कारण ही वे संदेह और परिस्थितियो के आधार पर आरोपी मान लिए गए है. इस सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति की अलग अलग धारणा हो सकती है. हम सभी ने आरूषी हत्याकांड के सम्बन्ध में शुरू से ही काफी बार डॉ तलवार और उनकी पत्नी को मीडिया के माध्यम से देखा और जाना है. एक नवयुवक उत्सव ने तो उनको अपराधी मानते हुए और खुद ही यह समझते हुए कि उनको न्यायालय और व्यवस्था दंड नहीं दे पाएंगे, डॉ. तलवार पर कातिलाना हमला तक कर डाला.
एक घटना घटी जिसने आरूषी जैसी मासूम लड़की को लील लिया. इस घटना ने अपना प्रभाव सभी लोगो के मन पर अलग अलग प्रकार से डाला है. इसका प्रभाव सबसे अधिक तो डॉ. तलवार और उनकी पत्नी के मन पर ही हुआ होगा और होना चाहिए. क्योंकि आरूषी उनकी खुद की ही लड़की थी और घटनास्थल के सबसे नजदीक वे ही मौजूद थे. यदि वे किसी भी कारण से अपराध में लिप्त थे तो यह वे अच्छी तरह से जानते हैं. यदि वे पूर्ण तरह निर्दोष हैं तो यह उनकी वाणी और कर्म से भी परिलक्षित होना चाहिए था. पहले जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनको आरोपी मानकर कार्यवाही करनी शुरू की तो उन्होंने ही इस बात की मांग की थी कि मामले कि जाँच सी० बी० आई० करे. अब जब सी० बी० आई० ने जाँच करके उनको आरोपी मानते हुए न्यायालय में रिपोर्ट दी है और न्यायालय ने भी उनको आरोपी मानकर सर्मन जारी किये है. ऐसी दशा में यदि कोई व्यक्ति निर्दोष है तो उसके मन में क्या घटता होगा, उसकी वाणी कैसी होगी, उसका कर्म कैसा होगा यह प्रश्न विचारणीय है. जो लोग डॉ. तलवार और उनकी पत्नी के नजदीक है उनको भी सच्चाई की जरूर कुछ न कुछ जानकारी व अंदाजा होगा. यदि ऐसे लोग आगे आयें तो शायद इस मामले पर पर्दा उठ सके.
कुछ भी हो सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी. यदि खुले तो भी और न खुले तो भी. यदि डॉ. तलवार अपने मन को टटोले और सच्चाई का साथ दे तो अच्छा रहेगा और उनके मन का बोझ भी हल्का हो जायेगा.मनरूपी दर्पण बेशकीमती है इसी में ईश्वर के दर्शन हो सकते है और मानव पूर्ण आनंद को प्राप्त हो सकता है और इसी को मैला करके असीम दुःख और भटकन को भी प्राप्त हो सकता है. कहा भी गया है 'तेरा मन दर्पण कहलाये, भले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए'. कानून की प्रक्रिया बहुत लम्बी हो सकती है और इस दौरान आरोपी जरूरी नहीं है कि जीवित ही रह पाए और उसके जीवित न रहने की स्थिति में उसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही तो समाप्त हो जाती है, परन्तु आरोपी जीते हुए ही अपराध बोध से मुक्त हो सके यही उसके जीवन की सफलता है. मेरी तो यही कामना है की डॉ. तलवार और उनकी पत्नी निष्कपट आचरण करे और उन्हें उचित न्याय मिले ताकि वे किसी भी अपराधबोध से मुक्त रह सके.
"जो मन में है, वही वाणी में हो और वही कर्म में भी हो तो आचरण निष्कपट कहलाता है...... मनरूपी दर्पण बेशकीमती है इसी में ईश्वर के दर्शन हो सकते है और मानव पूर्ण आनंद को प्राप्त हो सकता है और इसी को मैला करके असीम दुःख और भटकन को भी प्राप्त हो सकता है...."
ReplyDeleteExcellent post! Thanks for sharing a profound spiritual lesson
वे बेटी के हत्यारे न हों। लेकिन वे पितृत्व और मातृत्व के हत्यारे अवश्य हैं। नाबालिग बेटी की पास के कमरे में हत्या हो जाए, नौकर की ह्ताय हो जाए, फिर उस की लाश छत पर पहुँच जाए। उन की नींद न टूटे। परिस्थिति जन्य साक्ष्य क्या कहते हैं। तलवार दंपति सचाई के साथ सामने नहीं आ रहे हैं।
ReplyDeleteब्लॉगजगत में पदार्पण के लिए आपका हार्दिक स्वागत ...आशा है आप हमारा मार्गदर्शन करेंगे ...आपका परिचय जानकार बहुत अच्छा लगा ..आपकी दोनों पोस्टें विचारणीय है ....शक्रिया
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteदो साल आठ महीने चौबीस दिन पहले तलवार परिवार के घर में असल में क्या हुआ, इस पर जब तक अंतिम तौर पर अदालत (सुप्रीम कोर्ट) पर्दा नहीं हटा देती तब तक किसी को दोषी करार देना उचित नहीं है...लेकिन दुनियावी अदालतों से भी बड़ी अदालत एक और होती है मन की अदालत...आप सबूतों को मिटा कर भले ही बचने का रास्ता निकाल लें, लेकिन अगर आप गुनहगार हैं तो जीते-जी कैसे चैन से रह पाएंगे...दुनिया से चले गए तो ऊपर वाला तो बैठा ही है आपके साथ अंतिम इनसाफ़ करने के लिए...
बिना देखे, अपने नतीजे निकाल लेने वाले मीडिया को आपकी इस पोस्ट से कुछ सीखना चाहिए...
जय हिंद...
आपका कहना सही है. मन के भीतर का गुनाह तो बना ही रहेगा.
ReplyDeleteइस मामले में दिनेशराय द्विवेदी जी के विचारों से इत्तेफ़ाक है.
आज हर मन मे बस यही एक सवाल है और इसका जवाब मिलना मुश्किल तो नही है बस बना दिया गया…………ये बात तो पक्की है कि मन ही इंसान का सबसे बडा आईना होता है सबसे भाग सकते है मगर खुद से भाग कर कहाँ जायेंगे …………आज शक की सूई बेशक तलवार दम्पत्ति पर है मगर यदि उन्होने ऐसा नही किया तो भी कही ना कही कुछ तो है जो छुपाया जा रहा है और उसके लिये पूरे मन और लगन से उन्हे सामने आना चाहिये वरना ज़िन्दगी भर खुद को भी माफ़ नही कर पायेगे …………जेसिका मामले मे देखिये उसकी बहन लगी रही तो न्याय मिला तो क्या इसमे नही मिल सकता …………वैसे भी कहा गया है कि कातिल कितना भी शातिर हो कोई ना कोई सबूत जरूर छोड कर जाता है आज भी यकीन है कि सबूत मिलेगा जरूर मगर बहुत ही गहन पडताल से ……………बेशक वक्त लगे मगर न्याय जरूर हो।
ReplyDeleteआदरणीय राकेश कुमार जी
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया ...आपने मेरे लेख की सराहना की ...आपके ब्लॉग का अनुसरण कर लिया है .....आशा है अब आपका मार्गदर्शन अनवरत रूप से मिलता रहेगा ....आपका आभार
राकेश जी , यदि सभी मन की बात सुन सकें तो अपराध अपने आप ही मिट जायेगा । क्योंकि मन कभी अपराध करने के लिए नहीं कहता । यह तो भौतिक और सांसारिक क्षणिक सुखों में लिप्त होकर मानव अपने मन का गला घोंट देता है ।
ReplyDeleteअपराध बोध कभी मनुष्य को चैन से नहीं बैठने देता । तलवार दंपत्ति को भी मन को साफ कर सच्चाई का साथ देना चाहिए ।
देश का न्यायालय छोड़ दे, स्वयं के न्यायालय में दोषी को सजा मिलती रहती है।
ReplyDelete@ राकेश जी ! आपके स्वागतार्थ हमने आवागामनीय पुनर्जन्म के बारे में एक परिचर्चा आयोजित की है .
ReplyDeleteकृपया आप तशरीफ़ लायें और हमारे विचारों की समीक्षा करें.
धन्यवाद .
http://charchashalimanch.blogspot.com/2011/02/awagaman.html
राकेश जी , दिल नही मानता कोई मां बाप अपनी ही ओलाद की बेरहमी से हत्या कर देगे, ऎसे मोंको पर तो मां बाप वेसे ही हादसे के कारण आधे पागल हो जाते हे,हो सकता हे इस मे कोई बडा हाथ हो, भ्गवान जाने, लेकिन बिना सबूतो के हमे किसी को भी दोषी नही कहना चाहिये,आगे भगवान जाने, अगर उन्होने ऎसा किया हे तो अब उन्हे अपना अपराध खुद ही मान लेना चाहिये, धन्यवाद
ReplyDelete.
ReplyDeleteमेरा दिल कहता है की डॉ तलवार और उनकी पत्नी ने ये खून नहीं किया। मैंने दो वर्ष पूर्व जब डॉ तलवार जेल से छूटे थे तब इनका interview TOI में पढ़ा था । जिसे पढ़कर कोई भी कह सकता था की वे एक ममतामयी पिता थे । और उस समय ये भी बताया गया था की डॉ तलवार उस रात घर पर नहीं थे बल्कि अन्य डाक्टरों के साथ एक मीटिंग में होटल में थे।
तीन वर्ष के अंतराल में सबूतों कों मिटा दिया गया , और इतना तोड़ मरोड़ दिया गया है की अब सच्चाई का सामने आना बहुत मुश्किल है । तलवार दम्पति के खिलाफ साक्ष्य इसलिए नहीं हैं , क्यूंकि क़त्ल उन्होंने नहीं किया। हाँ उनके हाव भाव ऐसे लगते हैं , जिससे ये लगता है की वे कुछ छुपा रहे हैं । मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो एक व्यक्ति बहुत प्रकार के भय में जीता है । मान मर्यादा से जुड़े कुछ पक्षों कों छुपाता है। यथा संभव अपनी इज्ज़त कों बचाना चाहता है ।
तलवार दम्पति कों , केस बंद हो जाने के बाद उसे reopen नहीं करना चाहिए था। उन्हें सजा हो या न हो , नुकसान में वे ही हैं क्यूंकि , बेटी उनकी खोयी हैं।
बेटी की मृत्यु बहुत बड़ा दुःख है । बहुत बड़ी सजा भी है । तलवार दम्पति के दुःख कों समझ सकती हूँ।
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जो मन में है, वही वाणी में हो और वही कर्म में भी हो तो आचरण निष्कपट कहलाता है. सरल और निष्कपट होना ही सबसे कठिन बात है. पहली पंक्ति ही मन को भा गयी.
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