शुभ भावों और विचारों का ऐसा बहायें रंग, मन भीगे होली में और खूब जमे सत्संग
तन की होली तो आज सभी खेल रहें है,चलिए थोडा मन की होली भी खेल ली जाये.
मन की होली के लिए प्रथम 'शुभ' के प्रतीक गणेशजी का ध्यान करते हुए मन -मष्तिक में
सुंदर भावों और विचारों का आवाहन करते हैं और फिर सर्जन के प्रतीक ब्रह्मा जी का
पूजन करते हैं ताकि एक अच्छी सार्थक पोस्ट का सर्जन हो . वाणी की प्रतीक सरस्वती जी
का वंदन करते हुए आईये रंगों की सुंदर बौछार शुरू करते है. लेकिन साहब रंग भी तो 'श्रेय'
मार्का पक्के ही होने चाहिए जो सत्यम शिवम सुंदरम के भावों को पोषित करते हुए जीवन
को आनंदमय बना सदा कल्याण करें . 'प्रेय' मार्का नकली और सस्ते रंगों से तो बचना
पड़ेगा जो मिलावटी होते हैं और अन्ततः नुकसान ही करते हैं.
लेकिन 'श्रेय' मार्का रंग आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे रंगों की पहचान के लिए
विवेक की अति आवश्यकता है. अब विवेक कहाँ से लाएं? चिंता की कोई बात नहीं है ,यह
भी मिल ही जायेगा, बस थोडा सत्संग जमा लिया जाये, क्योंकि रामचरितमानस में
तुलसीदास जी कह गए हैं:-
बिनु सत्संग बिबेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
यूँ तो सत्संग और राम कृपा से सभी परिचित होंगे ,फिर भी जब रंग बहाने ही हैं तो यहाँ सत्संग
और राम कृपा को थोडा और समझने का प्रयास करते हैं. सत्संग का मतलब सच्चा संग.
साधारणतया सत्संग का मतलब हम कुछ कीर्तन, भजन, गाना या प्रवचन आदि सुनना ही समझते
हैं. लेकिन संग तो हमारा बहुत सी चीजों से हो सकता है. जैसे भोजन करते समय भोजन का.
अच्छा पोष्टिक सतोगुणी भोजन ग्रहण करें तो खाने का सत्संग होता है .इसी प्रकार सही समय
पर सही काम करें तो समय का सत्संग होता है. सुबह जल्दी उठकर शौच आदि से निवर्त हो
व्यायाम, स्नान ध्यान पूजन करें तो सुबह के समय का अच्छा सत्संग हो जाता है..अच्छी
ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें तो पुस्तकों का सत्संग हो जायेगा. अच्छी पोस्टों का पढ़ना ,
उनपर सार्थक टिप्पणिओं और प्रति-टिप्पणिओं को पढ़ना और करना भी ब्लॉग
जगत का सत्संग है. अच्छे सकारात्मक सद् विचारों का संग भी सुन्दर सत्संग है.
सद् गुणी ज्ञानवान व्यक्तिओं का संग भी सत्संग ही कहलाता है कर्णप्रिय शांति ,
आनन्द और सद् भावों का संचार करने वाले संगीत का सत्संग . आदि आदि.
मतलब ये कि जब तक हम सत्संग नहीं करते हैं तब तक हमारा बुरी बातों से निसंग नहीं हो पाता.
यदि हम तमो रजो गुणी खाना ही खाते रहेंगे तो सतो गुणी खाने के आनन्द का अनुभव कैसे कर
सकते हैं.सत्संग से आनन्द का अनुभव जैसे जैसे बढ़ता जाता है, अनावश्यक बेकार कि बातों से
छुटकारा मिलता जाता है. सत्संग से कितनें लोगों को बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग,शराब,
गुस्सा करना आदि से छुटकारा पाते हुए मैंने देखा है . जैसे जैसे बुरी बातों से निसंग
होता जाता है ,मन में मोह यानि अज्ञान का विनाश हो ज्ञान का प्रकाश होता जाता है,
ज्ञान के उदय होने से ही विवेक का उदय होता है .विवेक के द्वारा ही निश्चल तत्व
समझने में आने लगता है कि जीवन में क्या करना है और क्या नहीं. ऐसा समझ आते
ही तो फिर जीवन निश्चल तत्व की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है . यदि ऐसा
जीवन में घटित होता है और सभी भ्रमों से छुटकारा मिल जाये तो यही जीवन मुक्ति है.
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने मोह-मुद्गर में लिखा है
सत्संग गत्वे निसंगत्वं, निसंगत्वे निर्मोहत्वम
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वम,निश्चल तत्वे जीवनमुक्ति
भज गोविन्दम भज गोविन्दम ,गोविन्दम भज मूड मते
तो फिर मुक्ति के लिए उलझन और भटकन कैसी? मुक्ति तो आप-हम सब का इन्तजार कर रही
है, बस जरा सत्संग जमा लीजिए . लेकिन थोडा रुकिए, राम कृपा को भी तो समझ लेते हैं.राम
कृपा हमारे पिछले और वर्तमान कर्मों का ही तो समग्र रूप है . भूतकाल में यदि हमने अच्छे विचारों,
भावों और कर्मों का संग किया हो तो सत्संग हमे कभी न कभी दैव योग से
मिल ही जाता है ,और यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग
करें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.
पिछले का पछताना क्या,अब तो वर्तमान की ही सोचें . कहा भी गया है
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
आईये 'श्रेय' रंगों की बौछार से सत्संग जमा ही लेते हैं.
आपकी सार्थक और रंगारंग टिप्पणिओं का इन्तजार है.
देर न लगाइये बस आ जाईये ,खुशी के रंगों से नहला जाईये .
आप सभी को होली के पावन रंगमय पर्व पर बहुत बहुत मंगल कामनायें .
जाते जाते हमारी पत्नी साहिबा की ओर से कुछ रसमयी तुकबंदी
कोयल की कूक सुन
मन में उठी उमंग
रोम रोम बहने लगी
मादक,मृदुल तरंग
उपवन में चलने लगी
मीठी ,मधुर बयार
आते ही मधुमास ने
दिया है अपना प्यार
फागुन में जब मौज से
पूछा उसका हाल
चहुँ और उड़ने लगा
केसरिया गुलाल
डाल डाल लहरा गया
सुंदर पुष्प गुलाब
साँसों में राधा बसी
धडकन में नन्द लाल
पिचकारी का 'बैट' है
'गेंद ' बने हैं गाल
क्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
तन की होली तो आज सभी खेल रहें है,चलिए थोडा मन की होली भी खेल ली जाये.
मन की होली के लिए प्रथम 'शुभ' के प्रतीक गणेशजी का ध्यान करते हुए मन -मष्तिक में
सुंदर भावों और विचारों का आवाहन करते हैं और फिर सर्जन के प्रतीक ब्रह्मा जी का
पूजन करते हैं ताकि एक अच्छी सार्थक पोस्ट का सर्जन हो . वाणी की प्रतीक सरस्वती जी
का वंदन करते हुए आईये रंगों की सुंदर बौछार शुरू करते है. लेकिन साहब रंग भी तो 'श्रेय'
मार्का पक्के ही होने चाहिए जो सत्यम शिवम सुंदरम के भावों को पोषित करते हुए जीवन
को आनंदमय बना सदा कल्याण करें . 'प्रेय' मार्का नकली और सस्ते रंगों से तो बचना
पड़ेगा जो मिलावटी होते हैं और अन्ततः नुकसान ही करते हैं.
लेकिन 'श्रेय' मार्का रंग आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे रंगों की पहचान के लिए
विवेक की अति आवश्यकता है. अब विवेक कहाँ से लाएं? चिंता की कोई बात नहीं है ,यह
भी मिल ही जायेगा, बस थोडा सत्संग जमा लिया जाये, क्योंकि रामचरितमानस में
तुलसीदास जी कह गए हैं:-
बिनु सत्संग बिबेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
यूँ तो सत्संग और राम कृपा से सभी परिचित होंगे ,फिर भी जब रंग बहाने ही हैं तो यहाँ सत्संग
और राम कृपा को थोडा और समझने का प्रयास करते हैं. सत्संग का मतलब सच्चा संग.
साधारणतया सत्संग का मतलब हम कुछ कीर्तन, भजन, गाना या प्रवचन आदि सुनना ही समझते
हैं. लेकिन संग तो हमारा बहुत सी चीजों से हो सकता है. जैसे भोजन करते समय भोजन का.
अच्छा पोष्टिक सतोगुणी भोजन ग्रहण करें तो खाने का सत्संग होता है .इसी प्रकार सही समय
पर सही काम करें तो समय का सत्संग होता है. सुबह जल्दी उठकर शौच आदि से निवर्त हो
व्यायाम, स्नान ध्यान पूजन करें तो सुबह के समय का अच्छा सत्संग हो जाता है..अच्छी
ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें तो पुस्तकों का सत्संग हो जायेगा. अच्छी पोस्टों का पढ़ना ,
उनपर सार्थक टिप्पणिओं और प्रति-टिप्पणिओं को पढ़ना और करना भी ब्लॉग
जगत का सत्संग है. अच्छे सकारात्मक सद् विचारों का संग भी सुन्दर सत्संग है.
सद् गुणी ज्ञानवान व्यक्तिओं का संग भी सत्संग ही कहलाता है कर्णप्रिय शांति ,
आनन्द और सद् भावों का संचार करने वाले संगीत का सत्संग . आदि आदि.
मतलब ये कि जब तक हम सत्संग नहीं करते हैं तब तक हमारा बुरी बातों से निसंग नहीं हो पाता.
यदि हम तमो रजो गुणी खाना ही खाते रहेंगे तो सतो गुणी खाने के आनन्द का अनुभव कैसे कर
सकते हैं.सत्संग से आनन्द का अनुभव जैसे जैसे बढ़ता जाता है, अनावश्यक बेकार कि बातों से
छुटकारा मिलता जाता है. सत्संग से कितनें लोगों को बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग,शराब,
गुस्सा करना आदि से छुटकारा पाते हुए मैंने देखा है . जैसे जैसे बुरी बातों से निसंग
होता जाता है ,मन में मोह यानि अज्ञान का विनाश हो ज्ञान का प्रकाश होता जाता है,
ज्ञान के उदय होने से ही विवेक का उदय होता है .विवेक के द्वारा ही निश्चल तत्व
समझने में आने लगता है कि जीवन में क्या करना है और क्या नहीं. ऐसा समझ आते
ही तो फिर जीवन निश्चल तत्व की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है . यदि ऐसा
जीवन में घटित होता है और सभी भ्रमों से छुटकारा मिल जाये तो यही जीवन मुक्ति है.
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने मोह-मुद्गर में लिखा है
सत्संग गत्वे निसंगत्वं, निसंगत्वे निर्मोहत्वम
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वम,निश्चल तत्वे जीवनमुक्ति
भज गोविन्दम भज गोविन्दम ,गोविन्दम भज मूड मते
तो फिर मुक्ति के लिए उलझन और भटकन कैसी? मुक्ति तो आप-हम सब का इन्तजार कर रही
है, बस जरा सत्संग जमा लीजिए . लेकिन थोडा रुकिए, राम कृपा को भी तो समझ लेते हैं.राम
कृपा हमारे पिछले और वर्तमान कर्मों का ही तो समग्र रूप है . भूतकाल में यदि हमने अच्छे विचारों,
भावों और कर्मों का संग किया हो तो सत्संग हमे कभी न कभी दैव योग से
मिल ही जाता है ,और यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग
करें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.
पिछले का पछताना क्या,अब तो वर्तमान की ही सोचें . कहा भी गया है
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
आईये 'श्रेय' रंगों की बौछार से सत्संग जमा ही लेते हैं.
आपकी सार्थक और रंगारंग टिप्पणिओं का इन्तजार है.
देर न लगाइये बस आ जाईये ,खुशी के रंगों से नहला जाईये .
आप सभी को होली के पावन रंगमय पर्व पर बहुत बहुत मंगल कामनायें .
जाते जाते हमारी पत्नी साहिबा की ओर से कुछ रसमयी तुकबंदी
कोयल की कूक सुन
मन में उठी उमंग
रोम रोम बहने लगी
मादक,मृदुल तरंग
उपवन में चलने लगी
मीठी ,मधुर बयार
आते ही मधुमास ने
दिया है अपना प्यार
फागुन में जब मौज से
पूछा उसका हाल
चहुँ और उड़ने लगा
केसरिया गुलाल
डाल डाल लहरा गया
सुंदर पुष्प गुलाब
साँसों में राधा बसी
धडकन में नन्द लाल
पिचकारी का 'बैट' है
'गेंद ' बने हैं गाल
क्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली