अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम
सकलगुणनिधानं वानरणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
अतुलित बल के धाम , सोने के पर्वत के समांन कान्तियुक्त शरीर वाले ,दैत्यरूपी वन को आग
लगा देने वाले (अधम वासनाओं का भस्म करने वाले), ज्ञानियों में सर्वप्रथम,सम्पूर्ण गुणों के भण्डार
वानरों के स्वामी ,श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ.
मेरी पोस्ट 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१' से 'रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन-४' व 'सीता जन्म
-आध्यात्मिक चिंतन १' से 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -५' तक मैंने 'राम', 'दशरथ','कौसल्या'
'सतयुग, त्रेता ,द्वापर व कलयुग', 'उपवास', 'अयोध्या', 'अवधपुरी', 'सरयू', 'सीता' , 'पार्वती', 'शिव',
'अर्थार्थी, जिज्ञासु ,आर्त व ज्ञानी भक्त' , 'जप यज्ञ' आदि का चिंतन आध्यात्मिक रूप से करने की
कोशिश की है. इस प्रकार के चिंतन से हमें यह लाभ है कि हम पौराणिक या ऐतिहासिक वाद विवादों
से परे हटकर अपना ध्यान केवल 'सार तत्व' पर केंद्रित करने में समर्थ होने लगते हैं. ज्यूँ ज्यूँ उचित
साधना का अवलंबन कर सार्थक चिंतन मनन से 'सार तत्व' हमारे अंत;करण में घटित होने लगता है
तो हम अखण्ड आनंद की स्थिति की और अग्रसर होते जाते हैं.
मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-५' में 'जप यज्ञ' पर कुछ प्रकाश डाला गया था.
इस पोस्ट में मैं हनुमान जी के स्वरुप का आध्यात्मिक चिंतन करने का प्रयास करूँगा. हनुमान जी
वास्तव में 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का साक्षात ज्वलंत स्वरुप ही हैं.साधारण अवस्था में हमारे मन,
बुद्धि,प्राण अर्थात हमारा अंत:करण अति चंचल हैं जिसको कि प्रतीक रूप मे हम वानर या कपि भी
कह सकते हैं. लेकिन जब हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम ' का सहारा लेते हैं तो प्राण सबल होने लगता है.
कल्पना कीजिये जब अंत:करण प्राणायाम व 'जप यज्ञ' से पूर्ण संपन्न हो जाये तो उसका स्वरुप
क्या होगा .शास्त्रों में 'हनुमान जी' की कल्पना मेरी समझ में इसी प्रकार के अंत:करण से ही की गई है.
'जप यज्ञ' या 'प्राणायाम' बिना वायु के संभव नही है.इसीलिए हनुमान जी को 'पवन पुत्र', 'वात जातं'
कहा गया है. 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' से पूर्ण संपन्न अंत: करण को 'वानराणामधीशं' नाम से भी
पुकारा गया है.क्योंकि ऐसा अंत:करण ही समस्त अंत;करणों का स्वामी हो सकता है जो प्रचंड शक्ति
पुंज व अग्निस्वरूप होने के कारण 'हेमशैलाभदेहं' के रूप में भी ध्याया जा सकता है.जिसमें समस्त
विकारों,अधम वासनाओं को भस्म करने की स्वाभाविक सामर्थ्य है. ऐसा अंत:करण सकल गुण निधान,
ज्ञानियों में सर्व प्रथम,राम जी का प्रिय भक्त भी होना ही चाहिये.इस प्रकार से अंत; करण की सर्वोच्च
अवस्था का हनुमान जी के रूप में ध्यान कर, हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का अवलंबन करें तो ही
हनुमान जी की वास्तविक पूजा व आराधना होगी.
हम देखते हैं कि जगह जगह हनुमान जी के मंदिर बने हुए हैं. मंगलवार को हनुमानजी पर प्रसाद चढाने
वालों की लंबी भीड़ भी लगी होती है.हम अधिकतर अंधानुकरण करते हुए हनुमान जी की मूर्ति के
मुख पर प्रसाद लगा, या हनुमान जी पर सिन्दूर आदि का लेप कर अपनी इतिश्री समझ लेते हैं. क्या
इस प्रकार के कर्म काण्ड से ही हमारा अंत:करण सबल हो पायेगा? यदि हनुमान जी की भक्ति का हमें
वास्तविक लाभ लेना है तो निश्चित ही हमें जप यज्ञ व प्राणायाम से अपने अंत:करण को सबल करना
होगा. तभी हनुमान जी प्रसन्न होकर हमें राम जी से मिलवा देंगें यानि 'सत्-चित -आनंद' स्वरुप का
साक्षात्कार करवा देंगें. क्योंकि वे ही तो रामदूत भी हैं.
कहते हैं हनुमान जी सुग्रीव के सेनापति थे. सुग्रीव वह है जिसकी ग्रीवा सुन्दर हो अर्थात जो अच्छा गायन
करे. जो सांसारिक विषयों का गायन करे वह अच्छा गायन नही कहलाता. लेकिन जो केवल परम तत्व
का या परमात्मा का ही गायन करे वही अच्छा गायन करने वाला सुग्रीव कहलाता है. गायन में 'प्राणायाम'
और 'जप यज्ञ' की प्रमुख भूमिका हैं .ऐसा गायन जब संगीत का सहारा लेता है तो 'सुग्रीव' बन पाता है.
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि यदि हम अच्छा गायन करना चाहें , या सुग्रीव बनना चाहें तो बिना
हनुमान जी को अपना सेनापति नियुक्त करे ऐसा नही कर सकते हैं .सुग्रीव की मित्रता राम जी से कराने
में हनुमान जी ही सहायक होते हैं.
हनुमान तत्व को सही प्रकार से समझ कर ध्याया जाये तो हमारे बल, बुद्धि ,इच्छा शक्ति निश्चित रूप से
ही विकसित होंगें और शुद्ध आत्म ज्ञान की प्राप्ति हमें अवश्य हो जायेगी.फिर तो सब वन ,वनस्पति,पर्वत
आदि हमें पवित्र ही जान पड़ेंगें. इसीलिए कबीरदास जी भी अपनी वाणी में कहते हैं:-
सब बन तो तुलसी भये, परबत सालिगराम
सब नदियें गंगा भई, जाना आतम राम
आप सुधि जनों ने मेरी पिछली सभी पोस्टों पर अपने अमूल्य विचार व टिपण्णी प्रस्तुत कर हर पोस्ट
को भरपूर सार्थकता प्रदान की है. यहाँ तक कि मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म- आध्यात्मिक चिंतन-५'
को तो अब तक की सबसे अधिक लोकप्रिय पोस्ट बना दिया है. इसके लिए मैं आप सभी का हृदय से
आभारी हूँ.मुझे आप सभी से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है.विशेषकर डॉ. नूतन गैरोला जी,
'Human' जी, वंदना जी,हरकीरत 'हीर' जी, शिल्पा जी , अशोक व्यास जी ने अपने अमूल्य विचारों
से मेरे प्रयास का मूल्य कई गुणा बढ़ा दिया है.
मैं आप सब से विनम्र क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपके स्नेहिल आग्रह के बाबजूद यह पोस्ट मैं कुछ देरी से
प्रकाशित कर पाया हूँ. मेरी यह कोशिश रहेगी कि प्रत्येक माह मैं एक पोस्ट प्रकाशित कर दूँ.
क्योंकि व्यस्तता के कारण मैं अपनी पोस्ट जल्दी प्रकाशित नही कर पाता हूँ.इसके अतिरिक्त
सभी सुधिजन भी जल्दी जल्दी पोस्ट पर नही आ पाते हैं.और यदि जल्दी जल्दी पोस्ट प्रकाशित
हो तो पिछली पोस्टें उनके पढ़ने से रह जाती हैं.मेरा उद्देश्य ब्लॉग जगत के अधिक से अधिक जिज्ञासू
और प्रभु प्रेमी सुधिजनों से विचार विमर्श और सार्थक सत्संग करना है.इसलिये मैं सभी से यह भी
विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि जब भी समय मिले आप मेरी पिछली पोस्टों का भी अवलोकन जरूर
करें व अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करने की कृपा करें.
यूँ तो हनुमान लीला अपरम्पार है.फिर भी अगली पोस्ट में हनुमान लीला का कुछ और भी चिंतन करने
का प्रयत्न करूँगा .आशा है मेरी इस पोस्ट पर आप सभी प्रेमी सुधिजन अपने अमूल्य विचार और अनुभव
भरपूर प्रस्तुत कर मुझे अवश्य ही अनुग्रहित करेंगें.
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम
सकलगुणनिधानं वानरणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
अतुलित बल के धाम , सोने के पर्वत के समांन कान्तियुक्त शरीर वाले ,दैत्यरूपी वन को आग
लगा देने वाले (अधम वासनाओं का भस्म करने वाले), ज्ञानियों में सर्वप्रथम,सम्पूर्ण गुणों के भण्डार
वानरों के स्वामी ,श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ.
मेरी पोस्ट 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१' से 'रामजन्म - आध्यात्मिक चिंतन-४' व 'सीता जन्म
-आध्यात्मिक चिंतन १' से 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -५' तक मैंने 'राम', 'दशरथ','कौसल्या'
'सतयुग, त्रेता ,द्वापर व कलयुग', 'उपवास', 'अयोध्या', 'अवधपुरी', 'सरयू', 'सीता' , 'पार्वती', 'शिव',
'अर्थार्थी, जिज्ञासु ,आर्त व ज्ञानी भक्त' , 'जप यज्ञ' आदि का चिंतन आध्यात्मिक रूप से करने की
कोशिश की है. इस प्रकार के चिंतन से हमें यह लाभ है कि हम पौराणिक या ऐतिहासिक वाद विवादों
से परे हटकर अपना ध्यान केवल 'सार तत्व' पर केंद्रित करने में समर्थ होने लगते हैं. ज्यूँ ज्यूँ उचित
साधना का अवलंबन कर सार्थक चिंतन मनन से 'सार तत्व' हमारे अंत;करण में घटित होने लगता है
तो हम अखण्ड आनंद की स्थिति की और अग्रसर होते जाते हैं.
मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-५' में 'जप यज्ञ' पर कुछ प्रकाश डाला गया था.
इस पोस्ट में मैं हनुमान जी के स्वरुप का आध्यात्मिक चिंतन करने का प्रयास करूँगा. हनुमान जी
वास्तव में 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का साक्षात ज्वलंत स्वरुप ही हैं.साधारण अवस्था में हमारे मन,
बुद्धि,प्राण अर्थात हमारा अंत:करण अति चंचल हैं जिसको कि प्रतीक रूप मे हम वानर या कपि भी
कह सकते हैं. लेकिन जब हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम ' का सहारा लेते हैं तो प्राण सबल होने लगता है.
कल्पना कीजिये जब अंत:करण प्राणायाम व 'जप यज्ञ' से पूर्ण संपन्न हो जाये तो उसका स्वरुप
क्या होगा .शास्त्रों में 'हनुमान जी' की कल्पना मेरी समझ में इसी प्रकार के अंत:करण से ही की गई है.
'जप यज्ञ' या 'प्राणायाम' बिना वायु के संभव नही है.इसीलिए हनुमान जी को 'पवन पुत्र', 'वात जातं'
कहा गया है. 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' से पूर्ण संपन्न अंत: करण को 'वानराणामधीशं' नाम से भी
पुकारा गया है.क्योंकि ऐसा अंत:करण ही समस्त अंत;करणों का स्वामी हो सकता है जो प्रचंड शक्ति
पुंज व अग्निस्वरूप होने के कारण 'हेमशैलाभदेहं' के रूप में भी ध्याया जा सकता है.जिसमें समस्त
विकारों,अधम वासनाओं को भस्म करने की स्वाभाविक सामर्थ्य है. ऐसा अंत:करण सकल गुण निधान,
ज्ञानियों में सर्व प्रथम,राम जी का प्रिय भक्त भी होना ही चाहिये.इस प्रकार से अंत; करण की सर्वोच्च
अवस्था का हनुमान जी के रूप में ध्यान कर, हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का अवलंबन करें तो ही
हनुमान जी की वास्तविक पूजा व आराधना होगी.
हम देखते हैं कि जगह जगह हनुमान जी के मंदिर बने हुए हैं. मंगलवार को हनुमानजी पर प्रसाद चढाने
वालों की लंबी भीड़ भी लगी होती है.हम अधिकतर अंधानुकरण करते हुए हनुमान जी की मूर्ति के
मुख पर प्रसाद लगा, या हनुमान जी पर सिन्दूर आदि का लेप कर अपनी इतिश्री समझ लेते हैं. क्या
इस प्रकार के कर्म काण्ड से ही हमारा अंत:करण सबल हो पायेगा? यदि हनुमान जी की भक्ति का हमें
वास्तविक लाभ लेना है तो निश्चित ही हमें जप यज्ञ व प्राणायाम से अपने अंत:करण को सबल करना
होगा. तभी हनुमान जी प्रसन्न होकर हमें राम जी से मिलवा देंगें यानि 'सत्-चित -आनंद' स्वरुप का
साक्षात्कार करवा देंगें. क्योंकि वे ही तो रामदूत भी हैं.
कहते हैं हनुमान जी सुग्रीव के सेनापति थे. सुग्रीव वह है जिसकी ग्रीवा सुन्दर हो अर्थात जो अच्छा गायन
करे. जो सांसारिक विषयों का गायन करे वह अच्छा गायन नही कहलाता. लेकिन जो केवल परम तत्व
का या परमात्मा का ही गायन करे वही अच्छा गायन करने वाला सुग्रीव कहलाता है. गायन में 'प्राणायाम'
और 'जप यज्ञ' की प्रमुख भूमिका हैं .ऐसा गायन जब संगीत का सहारा लेता है तो 'सुग्रीव' बन पाता है.
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि यदि हम अच्छा गायन करना चाहें , या सुग्रीव बनना चाहें तो बिना
हनुमान जी को अपना सेनापति नियुक्त करे ऐसा नही कर सकते हैं .सुग्रीव की मित्रता राम जी से कराने
में हनुमान जी ही सहायक होते हैं.
हनुमान तत्व को सही प्रकार से समझ कर ध्याया जाये तो हमारे बल, बुद्धि ,इच्छा शक्ति निश्चित रूप से
ही विकसित होंगें और शुद्ध आत्म ज्ञान की प्राप्ति हमें अवश्य हो जायेगी.फिर तो सब वन ,वनस्पति,पर्वत
आदि हमें पवित्र ही जान पड़ेंगें. इसीलिए कबीरदास जी भी अपनी वाणी में कहते हैं:-
सब बन तो तुलसी भये, परबत सालिगराम
सब नदियें गंगा भई, जाना आतम राम
आप सुधि जनों ने मेरी पिछली सभी पोस्टों पर अपने अमूल्य विचार व टिपण्णी प्रस्तुत कर हर पोस्ट
को भरपूर सार्थकता प्रदान की है. यहाँ तक कि मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म- आध्यात्मिक चिंतन-५'
को तो अब तक की सबसे अधिक लोकप्रिय पोस्ट बना दिया है. इसके लिए मैं आप सभी का हृदय से
आभारी हूँ.मुझे आप सभी से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है.विशेषकर डॉ. नूतन गैरोला जी,
'Human' जी, वंदना जी,हरकीरत 'हीर' जी, शिल्पा जी , अशोक व्यास जी ने अपने अमूल्य विचारों
से मेरे प्रयास का मूल्य कई गुणा बढ़ा दिया है.
मैं आप सब से विनम्र क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपके स्नेहिल आग्रह के बाबजूद यह पोस्ट मैं कुछ देरी से
प्रकाशित कर पाया हूँ. मेरी यह कोशिश रहेगी कि प्रत्येक माह मैं एक पोस्ट प्रकाशित कर दूँ.
क्योंकि व्यस्तता के कारण मैं अपनी पोस्ट जल्दी प्रकाशित नही कर पाता हूँ.इसके अतिरिक्त
सभी सुधिजन भी जल्दी जल्दी पोस्ट पर नही आ पाते हैं.और यदि जल्दी जल्दी पोस्ट प्रकाशित
हो तो पिछली पोस्टें उनके पढ़ने से रह जाती हैं.मेरा उद्देश्य ब्लॉग जगत के अधिक से अधिक जिज्ञासू
और प्रभु प्रेमी सुधिजनों से विचार विमर्श और सार्थक सत्संग करना है.इसलिये मैं सभी से यह भी
विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि जब भी समय मिले आप मेरी पिछली पोस्टों का भी अवलोकन जरूर
करें व अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करने की कृपा करें.
यूँ तो हनुमान लीला अपरम्पार है.फिर भी अगली पोस्ट में हनुमान लीला का कुछ और भी चिंतन करने
का प्रयत्न करूँगा .आशा है मेरी इस पोस्ट पर आप सभी प्रेमी सुधिजन अपने अमूल्य विचार और अनुभव
भरपूर प्रस्तुत कर मुझे अवश्य ही अनुग्रहित करेंगें.
26/11/2011को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com> नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जय श्रीराम आप बताते जाओ हम पढते जा रहे है, वैसे तो रामाय़ण पढने का समय नहीं निकाल पाते है लेकिन आप के द्धारा काफ़ी जानकारी मिल जाती है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यह श्रंखला भी अच्छी शुरू की है..... आभार
ReplyDeleteआदरणीय भाई राकेश जी,
ReplyDeleteहनुमान तत्व की व्याख्या आपकी कलम से बहुत ही सार्थक हो कर निकली है.
प्राणायाम और जप यज्ञ के रूप में हनुमंत का ध्यान सच में आनंदित कर गया.
धन्य है आपकी कलम.
"बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु,
होही राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ."
भक्ति योग का आरम्भ भी हनुमान जी हैं और अंत भी हनुमंत.
हम देखते हैं कि जगह जगह हनुमान जी के मंदिर बने हुए हैं. मंगलवार को हनुमानजी पर प्रसाद चढाने वालों की लंबी भीड़ भी लगी होती है.हम अधिकतर अंधानुकरण करते हुए हनुमान जी की मूर्ति के
ReplyDeleteमुख पर प्रसाद लगा, या हनुमान जी पर सिन्दूर आदि का लेप कर अपनी इतिश्री समझ लेते हैं .....!
"हनुमान " शब्द अपने आप में एक अलग व्याख्या की अपेक्षा रखता है ....उस पर प्रकाश डालने की आवश्यकता है .....चिंतन के दृष्टिकोण से यह पोस्ट सही है ......!
जी केवल जी. आपसे अपेक्षा करता हूँ कि 'हनुमान' शब्द की व्याख्या पर आप अपने अमूल्य विचार यहाँ अवश्य प्रस्तुत कीजिये.मैं भी अगली पोस्ट में इस पर और विचार करने की कोशिश करूँगा.
ReplyDeleteआपकी अमूल्य टिपण्णी और विचार मेरा सुन्दर मार्गदर्शन करेंगें..
हमारे मन रुपी सीता व हृदयरुपी राम को प्राणवायु रुप हनुमान के ही ध्यान द्वारा जान सकते हैं,अर्थात् हनुमान ही परमब्रह्म की प्राप्ति के माध्यम हैं। सुंदर प्रस्तुति राकेश जी।
ReplyDeleteaaderniy bhai saheb..sadar pranam..aapke blog blog jagat ka anmol khajaana hai..sampurn blog jagat ko main khajuraho ke mandir ki parikram maanta hoon..kam, bhog basna, jeevan ke moh maya se jude pahlun ramkar jab man dukh se paripurna ho jaata hai tab ishwar se milne use jaane se uski anubhuti jyada hoti hai..jo aadmi paseene se lathpath hai use matra hawa ka ek jhoka atyant sukh ki anubhuti pradan karta hai..mahine bhar bhog bilas ki duniya ke bhraman ke baad jab achanak aapke blog mandir per ishwar ke chintan ka air conditioner mil jaata hai to man gadgad ho jaata hai..maine aapke saare lekh padhe hain..main mahaj teeka lagakar prasad chadhakar itishree nahi karna chahta hoon..aapka blog sirf comment karne ke liye nahi hai apitu baar baar padhne aaur chintan ke liye hain..ishwar bhakti ka nochod man ko bhavuk kar deta hai..pichle ek mahine se dengu fever ki bajah se bed rest per tha..chahkar bhi blog jagat se nahi jud paaya..aaj thoda theek mehsoos kar raha hoon aaur ..ishwar ko jaane ki lalsa aaur aapka ashirwad paane ke liye hajir hoon...is mrityu lok per aap jaise bhakton ke madhyam se ishwar se juda rahu yahi meri lalsa hai..aapse berukhi ka to koi sawal hee nahi uthta..aapki lekhni ko naman aaur aapko sadar pranam ke sath
ReplyDeleteपढ़ती तो रोज हूँ रामायण पर गूढ़ अर्थ समझ नहीं आते |आपने आज हनुमान शब्द की सुन्दर व्याख्या की है |
ReplyDeleteइसी प्रकार हम जैसे लोगों का ज्ञान बढाते रहिये |आभार
आशा
केसरी नंदन की लीला तो अपरम्पार है ही.. !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ! मैं आपके ब्लॉग को और पोस्ट को
पहले से ही पढ़ते आ रहा हूँ ! यहाँ आना बेहद अच्छा लगता है !
सब बन तो तुलसी भये, परबत सालिगराम
ReplyDeleteसब नदियें गंगा भई, जाना आतम राम
सार्थक चिंतन ...आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ।
यदि हनुमान जी की भक्ति का हमें
ReplyDeleteवास्तविक लाभ लेना है तो निश्चित ही हमें जप यज्ञ व प्राणायाम से अपने अंत:करण को सबल करना
होगा. तभी हनुमान जी प्रसन्न होकर हमें राम जी से मिलवा देंगें यानि 'सत्-चित -आनंद' स्वरुप का
साक्षात्कार करवा देंगें. क्योंकि वे ही तो रामदूत भी हैं.
.....बहुत सच कहा है..बहुत ज्ञानवर्धक और हनुमान के सच्चे स्वरुप का बोध कराता एक उत्कृष्ट आलेख...आभार
गुरूजी प्रणाम ---वायु और हनुमान , प्राणायाम और राम दर्शन ---बहुत ही सुन्दर संयोग यहाँ मिला है ! शब्द - शब्द में सार ! दो बार पढ़ा ! बहुत सुन्दर , अनुकरणीय लेख !
ReplyDeleteश्री हनुमान निश्छल ह्रदय और अनन्य भक्ति का एक अद्भुत संगम हैं.उन पर गहरा विश्वास अकल्पनीय बाधाओं से मुक्ति दिला सकता है.आप के ब्लॉग में आना,आप की पोस्ट पढना एक बहुत सुन्दर अनुभव है.मैं अब लगातार आप को पढ़ती रहूंगी.धन्यवाद !
ReplyDeleteसार्थक चिंतन ...आभार इस प्रस्तुति के लिए ।
ReplyDeleteजय श्री राम,जय हनुमान
वातजातं नमामि।
ReplyDeleteGreat site and nice design. Such interesting sites are really worth comment.
ReplyDeleteFrom everything is canvas
हनुमान जी के बारे में नयी आलेखशृंखला शुरू करने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteMeeta ji ने निम्न टिप्पणी प्रेषित की है,जो किन्ही कारणों
ReplyDeleteसे प्रकाशित नही हो पाई है.
meeta has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
श्री हनुमान निश्छल ह्रदय और अनन्य भक्ति का एक अद्भुत संगम हैं.उन पर गहरा विश्वास अकल्पनीय बाधाओं से मुक्ति दिला सकता है.आप के ब्लॉग में आना,आप की पोस्ट पढना एक बहुत सुन्दर अनुभव है.मैं अब लगातार आप को पढ़ती रहूंगी.धन्यवाद !
Posted by meeta to मनसा वाचा कर्मणा at November 26, 2011 4:40 PM
हनुमानजी पर यह श्रंखला बहुत अच्छी लगी ..आगे से भी इनकी जीवनी के कुछ अलग पहलु आपकी कलम से पड़ने को मिलेगे ..हनुमानजी का अपना एक अलग ही स्वरूप हैं
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत देर से लगती हैं पर बहुत प्रेरणा दायक होती हैं ..आभार !
केवलराम जी की टीप पर ध्यान दीजिए सर...
ReplyDeleteहनुमान जी के स्वरूप कि व्यख्या करने के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteहनुमान का मतलब होता है समर्पण ,सकारात्मक सोच, आस्था
और विश्वास आपकी पोस्ट पर आकार बहुत अच्छा लगा बधाई
इस श्रृंखला का इंतज़ार रहेगा ..सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआभार हनुमत श्रृंखला के लिए...जारी रहें..आनन्द आ रहा है.
ReplyDeleterespected rakeshji, many thanks to enlighten....
ReplyDeletehanuman is the ultimate of bhakti. param-brahm can only be realized through bhakti. maan, i.e,Ego,is the biggest obstacle in realization.....
that way hanuman can be iterpreted as annihilation of Ego......
thanks again...
ॐ हनुमते नमः!
ReplyDeleteपरमभक्त हनुमान जी की लीला श्रृंखला भक्ति और ज्ञान की गंगा बहाती रहे!
हमेशा की तरह सारगर्भित पोस्ट ....आभार
ReplyDeleteआप की महीने में एक बार आने वाली पोस्ट, दर्जनों पोस्ट्स से अधिक दमदार होती है, इसे धीरे-धीरे पढ़ने का मज़ा है। एक ऐसा ब्लॉग जिसे पढ़ने से ज्ञान चक्षु खुलने में काफी मदद मिलती है। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteनतमस्तक हूँ इस चिन्तन पर और इस व्याख्या पर्…………आप बहुत बढिया कार्य कर रहे है सूक्ष्म ज्ञान उपलब्ध कराना कोई मामूली कार्य नही है…………बेहद उत्तम श्रृंखला शुरु की है। हनुमान का वास्तविक अर्थ बताकर आपने हमे अनुग्रहित किया…………एक अर्थ जो मुझे पता है वो भीयहाँ लिख रही हूँ। कहते है जिसने अपने मान का हनन कर दिया हो वो है हनुमान्……………जो मान अपमान से परे हो गया हो और जिस हाल मे प्रभु खुश रहे और रखें उसी मे अपनी खुशी चाही हो वो ही कहलाता है हनुमान्………हनुमान होना आसान कहाँ है ? दास्य भाव को तो सम्पूर्ण समर्पण के बाद ही अपनाया जा सकता है और ये हम मानवो के लिये इतना आसान कहाँ ? हम सब बनना तो चाहते है हनुमान पाना तो चाहते है भगवान मगर समर्पण नही कर पाते उस तरह जिस तरह हनुमान जी ने किया एक बार उस स्तर तक पहुँचे तो भगवान कौन से हम से दूर हैं वो तो खुद मिलने को बेचैन है मगर हमारी पुकार और कर्म मे ही कहीं ना कहीं कमी है।
ReplyDeleteu've provide us a great insight of the gods we worship daily, visit daily but understand so little.
ReplyDeleteyet again a fantastic post connecting the real-world activities with lord hanumana. True he is perfect yogi :)
Nice read !!
Hanumaan ji par is post ke liye dhanyawaad… bhakti aur karm/sewa dono hi mein vo anukarniya hain… agli post ka intezaar rahega.
ReplyDeleteRespected Rakesh ji,
ReplyDeleteHanumaan ji ke vishay men vistrit roop se jaankar achha lagaa! App bahut achha likhte hain! I wish you all the best!
सर अभिभूत हूँ मैं ..आपको कोटि कोटि नमन ..हनुमान जी के विषय में आपकी विस्तृत भक्तिभावमय प्रस्तुति से मन आनंदित हो गया...जय हो प्रभु हनुमान जी ...जय हो आपकी इतने सुन्दर मन के चक्षुओं को प्रकाशित करने वाले आलेख को साझित करने के लिये.....शुभ कामनायें ..जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....
ReplyDeleteराकेश जी ...मेरे क्षेत्र में नेट की समस्या भी रहती है....मेरे विलम्ब से आने के लिये क्षमा याचना सहित सादर अभिनन्दन ...
ReplyDeleteश्री हनुमान निश्छल ह्रदय और अनन्य भक्ति का एक अद्भुत संगम हैं.उन पर गहरा विश्वास अकल्पनीय बाधाओं से मुक्ति दिला सकता है.
ReplyDeleteआपकी इस भक्तिमय पोस्ट बहुर अच्छी लगी मन आत्मविश्वास उत्त्पन्न हो जाता है इस प्रकार के आलेख को पढ़ कर आभार
समयांतराल का आपका निर्णय एकदम सही है। शास्त्रों में वर्णित पात्रों की आपके द्वारा की जाने वाली व्याख्या जल्दी जल्दी पोस्ट्स आने से शायद आसानी से समझ न भी आयें। वास्तव में आपकी पोस्ट् अमृत घट की तरह हैं, जिनका घूँट-घूँट करके लेकिन सतत पान करना बहुत आनंददायक है, सिर्फ़ सतही तौर पर पढ़ी जाने वाली सामग्री नहीं है यह।
ReplyDeleteजय श्री राम।
मनोजवं मारुत तुल्य वेगं
ReplyDeleteजितेंद्रियं बुध्दिमतां वरिष्ठं
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं
श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ।
अभिभूत हो गई यह पोस्ट पढ कर । मन को जप यज्ञ से हनुमान बनाना होगा तभी राम जी की प्राप्ती का मार्ग सुकर होगा । महीने में एक ऐसी पोस्ट सारे अहं वाले विचार नष्ट कर देती है ।
संजय @ मो सम कौन ? has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteसमयांतराल का आपका निर्णय एकदम सही है। शास्त्रों में वर्णित पात्रों की आपके द्वारा की जाने वाली व्याख्या जल्दी जल्दी पोस्ट्स आने से शायद आसानी से समझ न भी आयें। वास्तव में आपकी पोस्ट् अमृत घट की तरह हैं, जिनका घूँट-घूँट करके लेकिन सतत पान करना बहुत आनंददायक है, सिर्फ़ सतही तौर पर पढ़ी जाने वाली सामग्री नहीं है यह।
जय श्री राम।
Posted by संजय @ मो सम कौन ? to मनसा वाचा कर्मणा at November 28, 2011
अंजनी पुत्र आंजनेय पर आपकी यह नयी श्रंखला का स्वागत योग्य है. ... कोच्ची से...
ReplyDeleteसुन्दर व्याख्या !हनू -मान का मतलब ही उच्चतर मान है .मन की उद्दात्त अवस्था है .आभार सटीक व्याख्या के लिए .
ReplyDeleteराकेश जी क्षमा करें आपकी पोस्ट पर जल्दी अपने विचार नहीं दिए थे क्योंकि उसको पढ़ कर ...पूरा आत्मसात कर रही थी ...आपने मेरे काम की भी बहुत सारी बातें लिखीं हैं -संगीत से सम्बंधित .....और अब आप समझ पा रहे होंगे की योग के साथ जब हम सुग्रीव बनना चाहें तो बिना हनुमान जी की कृपा के ये मुमकिन नहीं है ....साधक को बहुत सारी बातें ध्यान में रख कर साधना करना पड़ती है ....साधना का अर्थ ही यही है ....आपके इस आलेख से कई विचारों को मार्ग मिल रहा है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है ...
शुभकामनायें आपको .
आपने बेहद सरल शब्दों में इसकी व्याख्या की है. मेरे रचना को पढ़ने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteAmit Chandra has left a new comment on the post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteआपने बेहद सरल शब्दों में इसकी व्याख्या की है. मेरे रचना को पढ़ने के लिए धन्यवाद.
'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' से पूर्ण संपन्न अंत: करण को 'वानराणामधीशं' नाम से भी
ReplyDeleteपुकारा गया है.क्योंकि ऐसा अंत:करण ही समस्त अंत;करणों का स्वामी हो सकता है जो प्रचंड शक्ति
पुंज व अग्निस्वरूप होने के कारण 'हेमशैलाभदेहं' के रूप में भी ध्याया जा सकता है.जिसमें समस्त
विकारों,अधम वासनाओं को भस्म करने की स्वाभाविक सामर्थ्य है.
आपने इस पोस्ट में हनुमान तत्व की अद्भुत व्याख्या की है,हमारे गुरूजी भी कहते हैं कि राम व लक्ष्मण वायुपुत्र के कंधे पर विराजमान हैं अर्थात सत्य व सजगता चाहिए तो श्वास का सहारा लेना होगा, श्वास के सहारे ही सीता रूपी भक्ति का भी पता चलता है, इसीलिए जप व प्राणायाम का अध्यात्म में बहुत महत्व है.
आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहती है, आभार!
हनुमत्-साधना हेतु बहुत उपयुक्त परिचय एवं प्रस्तावना के साथ आगे के सोपान चढने का मार्ग निर्मित हो रहा है .साधु!
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ और आपको पढ़ कर आपार ख़ुशी हुई बहुत सा ज्ञान अर्जित किया मगर अफ़सोस इस बात का रहा की में अब तक आपके इस लेखनी से वंचित रहा !
आप बहुत अच्छा लिखते हैं, आभार !
राकेश भैया - बहुत सुन्दर लेख - बहुत ही :) | इश्वर आपकी भक्ति यूँ ही बढ़ाते रहें |
ReplyDeleteधन्यवाद :)
shilpa mehta has left a new comment on the post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteराकेश भैया - बहुत सुन्दर लेख - बहुत ही :) | इश्वर आपकी भक्ति यूँ ही बढ़ाते रहें |
धन्यवाद :)
आपके व्लॉग पर प्रथम बार आया हूँ । खुशी इस बात की हुई कि हनुमान जी के बारे सुंदर जानकारी से परिचित हुआ । अब आना जाना लगा रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रेम सरोवर has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteआपके व्लॉग पर प्रथम बार आया हूँ । खुशी इस बात की हुई कि हनुमान जी के बारे सुंदर जानकारी से परिचित हुआ । अब आना जाना लगा रहेगा । धन्यवाद ।
हनुमान तत्व को सही प्रकार से समझ कर ध्याया जाये तो हमारे बल, बुद्धि ,इच्छा शक्ति निश्चित रूप से
ReplyDeleteही विकसित होंगें और शुद्ध आत्म ज्ञान की प्राप्ति हमें अवश्य हो जायेगी.फिर तो सब वन ,वनस्पति,पर्वत
आदि हमें पवित्र ही जान पड़ेंगें.bilkul sahi n satik bat jaki rahi bhavna jaisi prabhu murat nirkhi tin taisi.
हनुमान जी के बारे में इतना ज्ञान नहीं था और आपने बहुत सुन्दरता से विस्तारित रूप से व्याख्या किया है जिससे काफी जानकारी मिली! जब मैं जमशेदपुर में रहती थी तब हनुमान जी का मंदिर मेरे घर के पीछे ही था और रोज़ सुबह शाम जाती थी ! जैसे जैसे मैं हनुमान जी के बारे में पढ़ती गई मैंने अपने आपको उस हनुमान मंदिर में पाया! सुबह उठकर आपका पोस्ट पढ़कर मन को बड़ी शांति मिली! आप इतना अच्छा लिखते हैं की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पड़ गए !
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
hanuman ji ke vishay me itani acchi or vistrut jankari ke liye apka dhanywaad ...
ReplyDeletebahut hi acchi jankari deti sundar prastuti hai...
aabhar
बहुत ही ज्ञान प्राप्त हुआ आपकी इस post पर आकर हनुमान जी की विषय में बहुत ही अच्छी व्याख्या की है आपने मैं भी उनको बहुत मानती हूँ आभार ...मगर मुझे लगता है अब आप बुरा मान गए हैं इसलिए न जाने कितनी पोस्ट हैं मेरी जिनपर आप अब तक नहीं आए...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी सारी पोस्ट पर आपका स्वागत है ...
ReplyDeleteआह...अतिसुन्दर सात्विक तत्व चिंतन....
ReplyDeleteमन आह्लाद से भर गया...
साधुवाद आपका...
प्रतीक्षा रहेगी आगामी कड़ियों की...
Pallavi has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञान प्राप्त हुआ आपकी इस post पर आकर हनुमान जी की विषय में बहुत ही अच्छी व्याख्या की है आपने मैं भी उनको बहुत मानती हूँ आभार ...मगर मुझे लगता है अब आप बुरा मान गए हैं इसलिए न जाने कितनी पोस्ट हैं मेरी जिनपर आप अब तक नहीं आए...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी सारी पोस्ट पर आपका स्वागत है ...
राकेश भैया - इधर देखती हूँ की कई टिप्पणियां (मेरी भी ) आप मेल के inbox से प्रकाशित कर रहे हैं | इसके लिए आप यह भी कर सकते हैं
ReplyDelete- blogger.com (dashboard)
- comments (यहाँ तीन tabs हैं ------ published / awaiting moderation / spam
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- जो टिपण्णी spam नहीं है और प्रकाशित की जानी है - उसके check box में tick कर के "not spam " क्लिक करें - टिपण्णी प्रकाशित हो जायेगी :)
और एक बात कहनी थी - रेत का नया महल बन गया है - आप सादर आमंत्रित हैं - वहां आयें, और अपने विचारों से अवगत करायें :)
आज मंगलवार है. शुभ दिन है मेरे लिए कि हनुमान जी पर इतना गहन चिंतन और लेखन पढने का अवसर मिला... सिंदूर और प्रसाद हम भी चढाते हैं .. लेकिन अब उनके मूल तत्व को आत्मसात करने की कोशिश भी करेंगे... मेरा मार्गदर्शन करता आलेख...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सारगर्भित और ओजपूर्ण आलेख... आभार
ReplyDeleteवाकई मंगलवार को मंदिर और बूंदी की दूकान के बाहर लंबी लाइन होती है. आपने बहुत अच्छे भाव बताये हैं आलेख में. आभार.
ReplyDeletesir aapke blog par niymit rup se nahi aa pati hun vystta k karan ,par har baar ki post rochak v jankari vardhak hoti hai ...........aabhar aisi prstuti k liye
ReplyDeleteआपने अति सुन्दर और सूक्ष्म व्याख्या किया है हमारे प्रिय हनुमान का . हनुमान की तरह हम सब में सोयी शक्तियां हैं , जिसे जितनी जगाई जाती है वो राम के और पास आ जाते हैं . पर इस और हमारा ध्यान कम ही जाता है बस पूजा करके अपना काम चला लेते हैं . आपको हार्दिक आभार सुन्दर पोस्ट के लिए .
ReplyDeleteअध्यात्म का रस पीने वाला ही इश्वर व उसके अंश को समझता है ,परिभाषित करता है ,इश्वर नाम लेवा तो परमात्मा के प्रिय पावन चरणों के पास रहने वाली खाक ,को भी नमन करता है ,सर्व गुण संपन्न श्री हनुमान जी तो प्रभु के अभिन्न अध्यात्म गुण हैं ,उनकी चर्चा कोई अध्यात्मिक व्यक्तित्व ही कर सकता है / आप द्वारा इन विषयों पर लिखना ,सदा सुखद होता है ,आत्मीयता देता है संस्कारों को बल देता है ,निश्चित ही आप आदर के प्रतिमान बन जाते हैं ......बहुत -२ आदर ../
ReplyDeleteराकेश जी !! .. आपको पुनः पुनः धन्यवाद ..इतनी सार्थक, ज्ञानवर्धक पोस्ट मुझ जैसे अज्ञानी चंचलचित् (कपि रूप) को भी पढ़ने को मिलती है, और इन आलेखों से जरूर हमारे अंदर ज्ञान की ज्योति प्रकाशमय हो जाती है .. आप का लेख मन दीपक में ज्ञान का तेल भर देता है... हनुमान तत्व की स्थापना के लिए कपि मन को बार बार सत्संग की जरूरत पड़ती है .. जो कि एक बार फिर आपके आलेख को पढ़ने से मिलती है..
ReplyDeleteदेखती हूँ लोग मन के भय भूत को भगाने के लिए हनुमान जी का नाम विषम परिस्थितियों में याद करते है ..और वाकई में मंगलवार को बूंदी लड्डू उनकी मूर्ति के मुह पर चिपकी रहती हैं...पर हनुमान तत्व का ज्ञान नहीं होता है.. हनुमान जी इस लोक में भक्तों में भी परमभक्त है ... उनके जैसा भक्त कभी नहीं हुवा ... निर्विकार शुद्ध मन से की गयी राम जी के लिए दास और मित्रभाव से की गयी सच्ची भक्ति मारुत नंदन भगवान हनुमान जी ही कर सकते थे .. भगवान स्वरुप हैं उन की वंदना में उनके हनुमान तत्व में डूब श्रद्धा भक्ति से किये गए जप तप प्राणायाम से हमें राम तत्व और परमानंद की प्राप्ति होती है..
आपके ब्लॉग में आ कर एक आनंद की प्राप्ति होती है.. आत्मा के शुद्धिकरण के लिए ऐसे लेखों से कुछ सार मिलता है... आपका दिल से आभार ..हां आपने हमारा नाम भी इस लेख में लिखा है.. अभी मैं खुद को प्रभु के चरणों में मूरख मानती हूँ... अभी मन को तपना है शुद्धता की अग्नि में.. उस चरम को पाना है जहां मुझमें में मैं ना हो मतलब मेरा परिचय मेरे मन से सोऽहं (I am that I am ) ही हो... बस तभी किसी को ज्ञान देने लायक समझूंगी.. और आपने हमें इस योग्य समझा ... आपका आभार ...
.
मुझे आज आपके ब्लॉग में आ कर और भी प्रसन्नता हुवी ... जब मैंने पाया कि मेरे खुद अपने परिवार के दो सदस्य भी आपके ब्लॉग में आते हैं ...१) मेरे पति जो पेशे से सर्जन है ..अति अति व्यवस्ता रहती है उनकी ...श्रीनगर रहते हैं . वो टाइपिंग भी ज्यादा नहीं जानते .. सिर्फ रिपोटिंग के लिए मतलब भर का टाइप करते हैं... उनका कमेन्ट देखा ..वे बहुत स्प्रिचुअल है .बहुत खुशी हुवी..
ReplyDeleteDr.M.N.Gairola said...
respected rakeshji, many thanks to enlighten....
hanuman is the ultimate of bhakti. param-brahm can only be realized through bhakti. maan, i.e,Ego,is the biggest obstacle in realization.....
that way hanuman can be iterpreted as annihilation of Ego......
thanks again...
२) मेरे अपने बड़े भाईसाहब ..बदरीनाथ के पास जोशीमठ में रहते हैं ...उनका भी कमेन्ट आपके ब्लॉग में है ...
श्रीप्रकाश डिमरी /Sriprakash Dimri said...
सर अभिभूत हूँ मैं ..आपको कोटि कोटि नमन ..हनुमान जी के विषय में आपकी विस्तृत भक्तिभावमय प्रस्तुति से मन आनंदित हो गया...जय हो प्रभु हनुमान जी ...जय हो आपकी इतने सुन्दर मन के चक्षुओं को प्रकाशित करने वाले आलेख को साझित करने के लिये.....शुभ कामनायें ..जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....
इस तरह से हमारा परिवार आपका पाठक है.. यह जान कर मुझे भी खुशी हुवी.. सादर
मेरे लिखे कमेन्ट नहीं दिखे..
ReplyDeleteडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति has left a new comment on the post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteराकेश जी !! .. आपको पुनः पुनः धन्यवाद ..इतनी सार्थक, ज्ञानवर्धक पोस्ट मुझ जैसे अज्ञानी चंचलचित् (कपि रूप) को भी पढ़ने को मिलती है, और इन आलेखों से जरूर हमारे अंदर ज्ञान की ज्योति प्रकाशमय हो जाती है .. आप का लेख मन दीपक में ज्ञान का तेल भर देता है... हनुमान तत्व की स्थापना के लिए कपि मन को बार बार सत्संग की जरूरत पड़ती है .. जो कि एक बार फिर आपके आलेख को पढ़ने से मिलती है..
देखती हूँ लोग मन के भय भूत को भगाने के लिए हनुमान जी का नाम विषम परिस्थितियों में याद करते है ..और वाकई में मंगलवार को बूंदी लड्डू उनकी मूर्ति के मुह पर चिपकी रहती हैं...पर हनुमान तत्व का ज्ञान नहीं होता है.. हनुमान जी इस लोक में भक्तों में भी परमभक्त है ... उनके जैसा भक्त कभी नहीं हुवा ... निर्विकार शुद्ध मन से की गयी राम जी के लिए दास और मित्रभाव से की गयी सच्ची भक्ति मारुत नंदन भगवान हनुमान जी ही कर सकते थे .. भगवान स्वरुप हैं उन की वंदना में उनके हनुमान तत्व में डूब श्रद्धा भक्ति से किये गए जप तप प्राणायाम से हमें राम तत्व और परमानंद की प्राप्ति होती है..
आपके ब्लॉग में आ कर एक आनंद की प्राप्ति होती है.. आत्मा के शुद्धिकरण के लिए ऐसे लेखों से कुछ सार मिलता है... आपका दिल से आभार ..हां आपने हमारा नाम भी इस लेख में लिखा है.. अभी मैं खुद को प्रभु के चरणों में मूरख मानती हूँ... अभी मन को तपना है शुद्धता की अग्नि में.. उस चरम को पाना है जहां मुझमें में मैं ना हो मतलब मेरा परिचय मेरे मन से सोऽहं (I am that I am ) ही हो... बस तभी किसी को ज्ञान देने लायक समझूंगी.. और आपने हमें इस योग्य समझा ... आपका आभार ...
.
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteमुझे आज आपके ब्लॉग में आ कर और भी प्रसन्नता हुवी ... जब मैंने पाया कि मेरे खुद अपने परिवार के दो सदस्य भी आपके ब्लॉग में आते हैं ...१) मेरे पति जो पेशे से सर्जन है ..अति अति व्यवस्ता रहती है उनकी ...श्रीनगर रहते हैं . वो टाइपिंग भी ज्यादा नहीं जानते .. सिर्फ रिपोटिंग के लिए मतलब भर का टाइप करते हैं... उनका कमेन्ट देखा ..वे बहुत स्प्रिचुअल है .बहुत खुशी हुवी..
Dr.M.N.Gairola said...
respected rakeshji, many thanks to enlighten....
hanuman is the ultimate of bhakti. param-brahm can only be realized through bhakti. maan, i.e,Ego,is the biggest obstacle in realization.....
that way hanuman can be iterpreted as annihilation of Ego......
thanks again...
२) मेरे अपने बड़े भाईसाहब ..बदरीनाथ के पास जोशीमठ में रहते हैं ...उनका भी कमेन्ट आपके ब्लॉग में है ...
श्रीप्रकाश डिमरी /Sriprakash Dimri said...
सर अभिभूत हूँ मैं ..आपको कोटि कोटि नमन ..हनुमान जी के विषय में आपकी विस्तृत भक्तिभावमय प्रस्तुति से मन आनंदित हो गया...जय हो प्रभु हनुमान जी ...जय हो आपकी इतने सुन्दर मन के चक्षुओं को प्रकाशित करने वाले आलेख को साझित करने के लिये.....शुभ कामनायें ..जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....
इस तरह से हमारा परिवार आपका पाठक है.. यह जान कर मुझे भी खुशी हुवी.. सादर
Posted by डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति to मनसा वाचा कर्मणा at November 29, 2011 9:25 PM
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति जी,
ReplyDeleteमैं आपका और आपके परिवार का हृदय से शुक्रगुजार हूँ.
आप सब ने यहाँ आकर जो मेरा उत्साहवर्धन किया है उसे
मैं ईश्वर की असीम अनुकम्पा ही कहूँगा.
न जाने क्यों कुछ कमेन्ट मेल पर तो आ रहें हैं,पर यहाँ इस पोस्ट पर प्रकाशित नही हो पा रहें हैं.मैं कोशिश कर रहा हूँ कि सभी कमेंट्स को मैं यहाँ प्रकाशित कर दूँ.प्रकाशन में हुई देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ.
एक बार फिर से आप सभी का बहुत बहुत आभार.
प्रियवर , श्री हनुमान जी महाराज के विग्रह के विषय में आपकी इतनी सारगर्भित चर्चा पढ़ कर आँखें खुल गयीं ! बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी देने के लिए !
ReplyDeleteहमारे पुश्तैनी घर के आंगन में शताब्दियों से महाबीरी ध्वजा लहरा रही है ! हमने दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों के भारतीय मूल के निवासियों के घरों में भी वैसी ही ह्नुमानी ध्वजा देखी है !वहाँ भी विग्रह के साथ साथ ध्वजा की भी पूजा होती है ! महाबीरी ध्वजा पूजन पर कुछ प्रकाश डालें !
Bhola-Krishna has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग १":
ReplyDeleteप्रियवर , श्री हनुमान जी महाराज के विग्रह के विषय में आपकी इतनी सारगर्भित चर्चा पढ़ कर आँखें खुल गयीं ! बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी देने के लिए !
हमारे पुश्तैनी घर के आंगन में शताब्दियों से महाबीरी ध्वजा लहरा रही है ! हमने दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों के भारतीय मूल के निवासियों के घरों में भी वैसी ही ह्नुमानी ध्वजा देखी है !वहाँ भी विग्रह के साथ साथ ध्वजा की भी पूजा होती है ! महाबीरी ध्वजा पूजन पर कुछ प्रकाश डालें !
आदरणीय भोला-कृष्ण जी,
ReplyDeleteआपकी सुन्दर टिपण्णी के लिए धन्यवाद.यह मेरे मेल पर तो आ गई है,पर न जाने क्यूँ मेरी पोस्ट पर प्रकाशित नही हुई है.
इसको मैं अपनी ओर से पोस्ट पर भी प्रकाशित कर रहा हूँ.
महाबीरी ध्वजा अर्जुन के रथ का प्रतीक है.अर्जुन अध्यात्म का परम जिज्ञासू, भगवान का परम भक्त,शिष्य और महारथी भी है.जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के अमृतमय ज्ञान-गंगा को प्रवाहित किया.इसके पूजन से निश्चित ही हम श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान के श्रवण,मनन के अधिकारी होकर अध्यात्म पथ पर अग्रसर हो जीवन का सर्वश्रेष्ठ लाभ उठा सकेंगें.
पूजन का अर्थ केवल कर्म काण्ड की ही क्रिया मात्र नही है.भगवान कृष्ण इस सम्बन्ध में श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १८ श्लोक ७० में अपना निम्न मत पूजन के सम्बन्ध में बतलाते हैं.
ReplyDeleteअध्येष्यते च य इमं धर्य्म संवादमावयोः
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मति:
जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों (कृष्ण अर्जुन)के संवादरूप
गीता शास्त्र को पढ़ेगा,उसके द्वारा भी मै ज्ञान यज्ञ से पूजित होऊँगा,ऐसा मेरा मत है.
महाबीरी ध्वजा कृष्ण अर्जुन संवाद की साक्षी है.अत: इसके
पूजन का अर्थ मैं श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान को पढ़ना,सुनना,समझना और तदानुरूप उस पर चलने का प्रयास करना ही समझता हूँ.
Sabse pehle toh main shamaprarthi hun, yahan aane me der ho gayi...
ReplyDeleteBahut sundar lekh, pura vivaran vichaar karne pe majboor kar deta hai.. saath hi saath mann bhakti ke ras main sarabor ho jaata hai... Bahut kuch seekhne ko milta hai yahan.. Bahut bahut Aabhar...
भैया - पिछली टिपण्णी में भी मैंने यही कहा था - फिर कह रही हूँ | शायद आपको मिली नहीं हो |
ReplyDeleteअपने ब्लोगेर.कॉम के dashboard में जाइए
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अवर्णनीय पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteराकेश जी , हम तो इस मामले में पूरे नास्तिक हैं । इसलिए इतनी गूढ़ आध्यात्मिक बातें समझ नहीं आती । कभी मंदिर भी नहीं जाते । कर्म को ही पूजा मानते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन सुग्रीव का शाब्दिक अर्थ जानकर और आपका आध्यात्मिक ज्ञान देखकर बहुत अच्छा लगा ।
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
आपकी कलम से बहुत ही सार्थक जानकारी मिली है !
आपको हार्दिक आभार सुन्दर पोस्ट के लिए!
बजरंगबली के शरणों में जाकर असीम मानसिक शांति प्राप्त होती है। आपकी इस श्रृंखला का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
http://khanamasala.blogspot.com/
हनुमान जी श्रीरामचंद्र जी के परम भक्त थे और मैं भी हनुमान जी का भक्त हूँ ! मैं भारत में रहने के समय नियमित रूप से हनुमान जी के मंदिर में जाती थी और मन को बड़ी शांति मिलती थी! हनुमान जी के बारे में आपने इतनी सुन्दरता से व्याख्या किया है की मैं और क्या कह सकती हूँ! जय श्री हनुमान !
राकेश जी आपका ब्लॉग तो ज्ञान और चिंतन का भंडार है हम अक्सर आपके ब्लॉग को पढ़ते रहते है आपकी शान में कुछ कहना ऐसा है जैसे सूरज को दिया दिखाना आपका लेखन टिप्पणियों का मोहताज नहीं
ReplyDeleteआभार और शुभकामनायें
aapka aabhar ki aapne mera hosla badaya,aapkee post par comment karna suraj ko diya dikhana hoga.............
ReplyDeleteराकेश जी
ReplyDeleteहनुमान जी की सुंदर व्याख्या की है,बेहतरीन पोस्ट,..
ब्लॉग में आने के लिए आभार,..
हनुमान जी के बारे में सभी बचपन से गुणगान करते हैं, lagbhag सभी लोगो हनुमान चालीसा कंठस्थ याद होती है.
ReplyDeleteनास्तिक होते हुए भी मुझे ये कंठस्थ है . हनुमान जी का इतना अच्छा गुणगान. निश्चय ही अतुलनीय है .
कोई भी कार्य जिसे करने में शक्ति लगनी होती हैं, अनायास ही मुह से जय बजरंग बलि निकल पड़ता है.
मेरे ब्लॉग पे मेरा उत्साह बर्धन के लिए धन्यबाद
.मेरा उद्देश्य ब्लॉग जगत के अधिक से अधिक जिज्ञासू
ReplyDeleteऔर प्रभु प्रेमी सुधिजनों से विचार विमर्श और सार्थक सत्संग करना है
आदरणीय श्रीराजेशजी,
यह सत्संग वैभव ही सच्चा धन है, आप का सत्कार्य सचमुच उत्तम है। आपका अनेकानेक धन्यवाद।
मार्कण्ड दवे ।
आध्यात्मिक दर्शन से ओत प्रोत इस ब्लॉग को पढ़ना एक सुखद अनुभूति रही।
ReplyDeleteआज अद्भुत संजोग है सुबह ही सुंदर कांड का पाठ किया बड़ी बेटी का आज जनम दिन है और अब आपका ब्लॉग देखा हनुमान जी का फिर स्मरण ...............
ReplyDeleteबहुत सुंदर है आपका ब्लॉग
सुन्दर आलेख, राकेश जी!
ReplyDelete@ महाबीरी ध्वजा पर एक और दृष्टि
भारत छोड़ने के बाद भी दक्षिण अमेरिका आये बन्धक मज़दूरों ने भारत से अपना नाता बनाये रखा था। और यह नाता था तीन बातों से - रामचरितमानस, आंगन में छोटा मन्दिर, और उसके साथ लगी झंडी/ध्वजा। दक्षिण अमेरिका के हिन्दुओं के जीवन में यह महावीरी ध्वजा आज भी उनकी उस विरासत को जीवित रखे है जो उनके पुरखों के देश में लुप्त हो चुकी है।
जय बजरंग बली...!
ReplyDeleteस्वस्थ रहो और ऐसे प्रवचन करते रहिये !
शुभकामनाएँ!
भक्ति भाव से ओत प्रोत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
आपने सही कहा कि कर्मकांड से मन सबल नहीं होता। पवनसुत की महिमा को आपने विभिन्न प्रकार से समझाया है ।
ReplyDeleteआभार आपका।
बहुत आनंद हुआ, आपके ब्लॉग और आध्यात्मिक चिंतन से परिचय पा कर| मेरे ब्लॉग पे आकर आपने सम्मानित किया इसलिए ह्रदय से आभार|
ReplyDeleteसुन्दर तात्विक व्याख्या.....प्रस्तुत है एक मनहरण घनाक्षरी छंद...
ReplyDeleteदुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी,
बस हनुमत गुणगान नित करिये।
सिन्धु पार करि सिय सुधि लाये लन्क जारि ,
एसे बजरन्ग बली का ही ध्यान धरिये।
करें परमार्थ सतकारज निकाम भाव,
एसे उपकारी पुरुषोत्तम को भजिये ।
रोग दोष दुख शोक सब ही का दूर करें,
श्याम के हे राम दूत अवगुन हरिये ॥
bahut achchi bhaktimai post hai.aapne sahi kaha hai ki keval bhog lagane ya hanuman ji ke maathe par tilak lagane se upasna nahi ho jaati balki jap tap aur pranayam se antahkaran ko bal milta hai.ek gyaanvardhak post.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया श्रंखला
ReplyDeleteGyan Darpan
Matrimonial Site
जय बजरंग बली.
ReplyDeleteSita chintan ke baad Hanumat chintan bahut sukhkar laga. aabhaar.
ReplyDeleteएक अलग ही शांति और आध्यात्मिक सुख की अनुभूति होती है आपके ब्लॉग पर आकार ......सूक्ष्म विश्लेषण से सजी प्रस्तुति !
ReplyDeleteनमन पवनसुत !
राकेश भैया - बड़ा आश्चर्य हुआ - यह देख कर - कि आप अब तक रेत के महल देखने एक बार भी नहीं आये ? सादर आमंत्रित कर रही हूँ फिर से :) ज़रूर पधारियेगा |
ReplyDeleteअतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
ReplyDeleteदनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम
सकलगुणनिधानं वानरणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
man aanandit ho gaya rakesh ji....
Aapne Hanumanji ke swaroop ka Sahaj santulit evm pravavkari varnan kiya hai jo anukarniy hai bandniya hai.
ReplyDeleteभक्ति भाव से ओत प्रोत ,हनुमान जी का स्मरण, बहुत सुंदर है आपका ब्लॉग
ReplyDeleteme is post par 2-3 bar comment de chuki hun lekin ek baar bhi nayi dikha.
ReplyDeleteJai Hanuman! What more I can say? Congrats on writing this post!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी....ज्ञानवर्धन के लिए आभार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteVery divine, as a bhagat, I am thankful to you for this presentation.
ReplyDeleteSir, sorry for a late comment. I moved to another city and my schedule is taking a toll on me.
हनुमान के सच्चे स्वरुप का बोध कराता एक उत्कृष्ट आलेख...
ReplyDeleteयदि हनुमान जी की भक्ति का हमें
ReplyDeleteवास्तविक लाभ लेना है तो निश्चित ही हमें जप यज्ञ व प्राणायाम से अपने अंत:करण को सबल करना
होगा. तभी हनुमान जी प्रसन्न होकर हमें राम जी से मिलवा देंगें यानि 'सत्-चित -आनंद' स्वरुप का
साक्षात्कार करवा देंगें. क्योंकि वे ही तो रामदूत भी हैं.
सही बात कही,आपने.बड़ा ही सूक्ष्म विश्लेषण किया है,सुग्रीव का भी..सुन्दर लेख.
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
ReplyDeleteजय कपीश तिहुँ लोक उजागर
ज्ञान और चिंतन से भरपूर उत्कृष्ट पोस्ट...
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसादर अभिवादन.
अत्यंत लाभदायक और ज्ञानयुक्त चिंतन/आलेख पढकर मन प्रफुल्लित हो गया...
सादर आभार.
राकेश जी आपका आध्यात्मिक ज्ञान और उसकी सहज और सूक्ष्म विवेचना मन मोह लेती है. इसके लिए आपका जितना आभार माना जाय कम है.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर बड़ी शांति मिलती है. ना कोई विवाद ना कोई दुर्भावना. सिर्फ ज्ञान रुपी गंगा और अज्ञान को दूर करने का प्रयत्न.
अविरत यह गंगा प्रवाहित होती रहे.
शुभकामनायें.
Jai hanuman Gyan guni sagar ....
ReplyDeleteHanuman ko sampoorn roop se aatmsaat karna .... Yadi jeevan ka lakshy ho to jeevan safal hai ... Aap Gyan baant rahe hain ...
aapne sahi ka matr sindur kagane aur hanuman ji ke munh me mithai lagane se kuchh nahi hoga .aapki sarthak soch aur sunder lekhn ke liye
ReplyDeletedhnyavad
rachana
aadhyaatmikta agar jivan mein utar jaaye to jivan saral aur safal ho jaaye. hanumaan ji prateek hai aatmshakti ke. hanumatbhakti se aatmbal badhta hai aur shayad yahi sabse bada kaaran hai hanumaan ji ki pooja ka. bahut achchhi charcha, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteअगली कड़ी के इंतजार में,
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में आपका इंतजार है,....
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteपहले माता सीता जी के बारे में आपने विस्तार से अच्छी जानकारी दी, अब पवन सुत बजरंग बली की बारी है। सच में इंतजार रहेगा अगली कड़ी का.....
ज्ञान और चिंतन से भरपूर उत्कृष्ट पोस्ट .....
ReplyDeleteहनुमान के सच्चे स्वरुप का बोध कराता एक उत्कृष्ट आलेख| धन्यवाद|
ReplyDeletenamaskar rakesh ji
ReplyDeleteaapki post gyan ka bhandar hai .......jai hanuman
bahut hi aanand aata hai aapki post par aakar . ek atmik shanti milti hai . dhanyavad aapne mujhe bataya ....aane me der hogayi sirry . maine blog fillow kiya hai samaye se aati rahoongi . dhanyavad
"जो केवल परम तत्व का या परमात्मा का ही गायन करे वही अच्छा गायन करने वाला सुग्रीव कहलाता है.गायन में'प्राणायाम'और'जप यज्ञ'की प्रमुख भूमिका हैं.ऐसा गायन जब संगीत का सहारा लेता है तो'सुग्रीव'बन पाता है.इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि यदि हम अच्छा गायन करना चाहें,या सुग्रीव बनना चाहें तो बिना हनुमान जी को अपना सेनापति नियुक्त करे ऐसा नही कर सकते हैं.सुग्रीव की मित्रता राम जी से कराने में हनुमान जी ही सहायक होते हैं."
ReplyDeleteहनुमान जी के बारे इतना सूक्ष्म विश्लेषण....कैसे धन्यवाद दूँ आपको ! आपके लेख हमेशा प्रेरणादाई रहते हैं..!
एकदम सार्थक बात कही आपने राकेश जी,
ReplyDelete"इस प्रकार के चिंतन से हमें यह लाभ है कि हम पौराणिक या ऐतिहासिक वाद विवादों
से परे हटकर अपना ध्यान केवल 'सार तत्व' पर केंद्रित करने में समर्थ होने लगते हैं. ज्यूँ ज्यूँ उचित
साधना का अवलंबन कर सार्थक चिंतन मनन से 'सार तत्व' हमारे अंत;करण में घटित होने लगता है
तो हम अखण्ड आनंद की स्थिति की और अग्रसर होते जाते हैं."
हनुमान को हमारी संस्कृति में भय नाशक का दर्ज़ा दिया गया है !
ReplyDeleteकरोड़ों लोगों के दिलों में, उनके प्रति श्रद्धा, नाज़ुक समय पर हमारी रक्षा करने में सक्षम है !
इस शक्ति पुंज को नमन !
Bahut hi gyanvardhak post hoti hain aapki ...aabhaar... next post ka intjaar rahega...
ReplyDeleteग्यानवर्द्धक, सार्थक आलेख। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट. आभार
ReplyDeleteAapko waqayee me agaadh maaloomaat hai! Kaafee dertak padh rahee thee.
ReplyDeleteभक्ति भाव से ओत प्रोत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
हमें तो इतना पता ही नहीं था.........बहुत अच्छा लिखा है आपने...... धन्यवाद.......
ReplyDeleteabhi tak aapne sita ke bare mei kitna kuch bataya...ab a gayi unke bhakt ki bari... aap sach mei gyan ke bhandaar hai... dhanyawad...
ReplyDeleteहनुमान के सच्चे स्वरुप का बोध कराता सार्थक आलेख। | धन्यवाद
ReplyDeleteI am feeling so enlighten now after reading your blog!
ReplyDelete:)
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट्स पढ़ कर मन शांत और प्रसन्न चित्त हो जाता है
ReplyDeleteसार्थक चिंतन और गहन विवेचन!! बधाई
ReplyDeletebeautiful start
ReplyDeletewaiting to read the next part
आपने बहुत सुंदर जानकारी दी है... आपका आध्यात्मिक ज्ञान और उसकी विवेचना मन को आनंदित कर देती है... इंतजार है अगली कड़ी का...
ReplyDeleteBhai sahab!
ReplyDelete'Nayi purani halchal' par Sunita Shanu ji ke aalekh ne aapke blog ka raasta dikhaya...ab sochta hun ki pahle kyon na aaya... Khair der se hi sahi par satsang saubhagya se milta hai...aapka bahut bahut dhanyawad ki aap yahan adhyatm ki alakh jagaye baithe hain...aaj se main bhi is yagya main shamil hua...
Sabke antarman main Ram..
Shyam, Sabhi ke hain Hanuman...
Chhod dambh, lalach abhiman...
Kar le man main unka dhyaan..
Saarthak aalekh ke liye aapka hruday se abhari hun...
Shubhkamnaon sahit...
Deepak Shukla..
rakesh ji aaj hi lauti hoon kai mahino baad ,itne lambe samya ke baad man bhi nahi ho raha kuchh likhne ko ,kai vajah rahi door rahne ke ,abhi padh nahi pai hoon kal aapki post padhoongi .aapki dil se aabhari hoon jo brabar khabar lete rahe .
ReplyDeleteHello Sir,
ReplyDeleteRead your article, and to be true, it's quite interesting. Though, I am not much religious but still the information you've provided through this article about our deities, especially 'Hanuman' is very intriguing :)
I remember, when I was a child, My grandmother used to tell me about our gods and goddesses.. and that's what make me relate to this article so beautifully :)
-Sanjana
तब रघुपति जानत सब कारन, उठे हरषी सुर काज संवारन.
ReplyDeleteइस सुंदर प्रस्तुति को पढ़ कर हृदय में ये ही उभरा.
प्रभु राम समस्त जीवों पर कृपा करें.
आपके गहन लेख विचारवान बना देते हैं, आपका आभार.
शुभकामनायें
क्या राकेश भाई जरा-जरा सी बात पर कुट्टी कर देते हैं। अरे भई मै कई बार पढ़ चुकी इस पोस्ट को सारा ज्ञान बटोर कर ससुरजी को सुना भी दी। इतनी ज्ञानवर्धक पोस्ट हो और मै न पढ़ू ऎसा हो सकता है भला? बहुत सही तरीके से आपने प्राणायाम और जप का महत्व बताया है यही पिछली पोस्ट में भी समझा और इस बार भी यही समझ आया कि इश्वर को पाने का एक मात्र रास्ता आत्मा में विलीन हो जाना है। मुझे अगरबत्ती जलाना घंटी बजा कर जोर-जोर से आरती करना कतई पसंद नही है। मुझे लगता है इश्वर से यदि आँखें बन्द कर एकाग्रचित्त हो वार्तालाप किया जाये तो अवश्य किया जा सकता है। बाबा कहते हैं प्रार्थना में वह शक्ति है जो बड़े से बड़े खतरों से भी हमे उबार लेती है। और प्रार्थना प्राणायाम पर ही निर्भर है जब तक प्रार्थना हृदय से उठ कर आँखों के रस्ते प्रभु तक न पहुँचे तो समझो हम कुछ कह नही पाये या मन की मलीनता को धो नही पाये हैं। आपकी तरह ज्ञानी नही हूँ यह सब आध्यात्म की बातें कम ही समझती हूँ। कुछ गलत लिखा गया हो तो क्षमा करें।
ReplyDeleteसादर
रामायण के पात्रों को समझना इतना आसान कर देने के लिए आपको साधुवाद...
ReplyDeleteजय हिंद...
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://khanamasala.blogspot.com
aaj ifr bahut dino baad aapke blog par aa pai hu... aapki posts ko padhne ke liye sachmuch bahut concentration ki jarurat rahti hai, aur padhne ke baad utna hi maza aat hai... har paatra ko itni aasaani se samjhana koi aasaan kaarya nahi hai...
ReplyDeleteagli post ka intzaar rahega
मुझे बिलकुल याद है मैंने लिखा था आपके कमेन्ट चार्ट पर कि आपका ब्लॉग ज़रूर पढेंगे ....पर हुआ ये की हम यहाँ आये और देखा कि ये तो गहन चिंतन है, इसलिए समय निकाल के इत्मीनान से पढेंगे! अभी ये कमेन्ट बिना पढ़े ही पर किसी दिन एक साथ आपकी कई पोस्ट पढने वाली हूँ !!! तब तक के लिए मैंने कई लोगों को आपके इस अद्भुत ब्लॉग के बारे में बता दिया है :-)
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletesarva pratham to main ishwar ko naman karne ke saath hi aap ko bhi dil se bahut bahut dhanyvaad dena chahti hun ki aap meri aswasthata ke douraan meri anupasthiti par bhi barabar mere blog par aakar mera housla bathate rahe .
shayad yah aap sabhi ka sneh hi hai jo mujhe vapas kheench kar le aaya blog jagat me.varna mai to soch chuki thi ki ab blog par likhna band hi kar dungi.
sir,
aap ki hanumat hatheele par likhi gai post par mai abhi sirf ek sarsari nigaah hi daal paai hun .aapki kalam me sambhavatah saraswati hi viraj maan si ho gain hain tabhi to aap itne gudh se gudh vishhay par bhi kaitni gahnta se chintan kar kr use sarlta ke saath prastut kar dete hain .
bahut bahut xhama prarthini hun abhi jyaada type karne me dikkat ho rahi hai aasha hai ki aap meri pareshani ko samajh sakenge.
abhi punah aapke blog par vapsi hogi kyon ki abhi maine puri post padhi hi nahi hai so tippanibhi nahi de pa rahi hun
xhama prarthana ke saath
poonam
सब बन तो तुलसी भये, परबत सालिगराम
ReplyDeleteसब नदियें गंगा भई, जाना आतम राम
hanuman ji ke baare me jo likha hai wo kabile tarif hai ,adbhut ,mahavir ji syam bhakt rahe prabhu ke aur is bhakt ke anginat bhakt hai is duniya me ,ko nahi janat hai kapi sankat mochan naam tiharo .jai bajrang bali .
आपके नए पोस्ट के इंतजार में........
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्त है लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
नास्तिक बन्दों को भी खींच खींच कर ले आते हैं आप अपने अध्यात्म जोड़ने ....:))
ReplyDelete@ हनुमान जी वास्तव में 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का साक्षात ज्वलंत स्वरुप ही हैं.साधारण अवस्था में हमारे मन,
बुद्धि,प्राण अर्थात हमारा अंत:करण अति चंचल हैं जिसको कि प्रतीक रूप मे हम वानर या कपि भी
कह सकते हैं. लेकिन जब हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम ' का सहारा लेते हैं तो प्राण सबल होने लगता है.
हूँ.....कोशिश करेंगे .....:))
आपका ब्लॉग तो अतुलनीय ज्ञान का भण्डार है ! हनुमान जी के स्वरुप की आपने जो इतनी सुन्दर व्याख्या की है वह अन्यत्र कहीं मिलना दुर्लभ है ! यहाँ आकर वास्तव में ऐसा लगता है कि अन्धकार से प्रकाश में आ गये हैं ! अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी ! आभार !
ReplyDeleteThis is an excellent blog covering our spiritual very efficiently... Thanks...
ReplyDeleteगहन विवेचन ज्ञानवर्धक पोस्ट....राकेश जी
ReplyDeleteआदरणीय गुरु जी नमस्ते ...... "हनुमान " शब्द अपने आप में एक अलग व्याख्या की अपेक्षा रखता है . हनुमान जी के बारे में नयी आलेखशृंखला शुरू करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद . किन्तु एक बात जरुर ध्यान रखें हनुमान जी एक बन्दर नहीं अपितु एक प्रभु भक्त ग्यानी महापुरुष थे .
ReplyDeleteआजकल मै आत्म मंथन में लगा हूँ तथा आप जैसे ग्यानीओं के पोस्ट पर जाकर ज्ञान का अर्जन करने की कोशीश कर रहा हूँ . मेरे विचार से सीखने के लिए उम्र की कोई भी सीमा नहीं होती . हम कभी भी दावे के साथ नहीं कह सकते जो हम कह रहे हैं वही अंतिम सत्य है .. मेरे मानसिक गुरु महर्षि दयानंद जी का भी यही कहना है की सत्य को ग्रहण करने तथा असत्य को छोड़ने के लिए सदैव प्रयत्न करना चाहिए .... मैंने तो सदा आपके पोस्ट से बहुत कुछ सिखा ही है ......आपका मेरे प्रति स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार !!!!!!!
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे!!!!!
आप बहुत अच्छा लिखते है, सटीक लेखन और प्रासंगिक विषय के चयन पर आपको बधाई और मेरी ओर से अशेष शुभकामनाएं...आप इसी तरह लिखते रहे और अपने लेखन के आलोक से अज्ञानता और संदेहों को दूर करते रहे.
आज ईश्वर भी वहीं है जो लोगों के लिए भले काम करें, फिर चाहे वह जिस रूप में भी हो...हमने ईश्वर को देखा नहीं है...शायद किसी ने भी नहीं देखा हो, कुछ ने महसूस किया होगा
. आपको और आपकी लेखनी को दिल से सलाम.
१०८ टीपों की माला ही क्या कम थी....पवनपुत्र को याद करना हमेशा सुखद रहा है !
ReplyDeleteRakeshji,
ReplyDeleteThanks for the wonderful comments that you wrote at Random Thoughts(http://nishdil.blogspot.com/) I would have loved to contribute actively to your post too... But my Hindi is not all that good. I do understand and speak the language fairly well, but not very comfortable with reading... I take a lot of time to read and especially on spiritual matters, one has to concentrate and contemplate before one can write an opinion about it. So, Kindly excuse me for not posting my comments as frequently as I'd have liked to.
But I'd like to reiterate that this is a wonderful blog that you have and I have gained a lot of insight from it. Thank you!
Rakeshji,
ReplyDeleteOnce again, Thanks for the good words. I read your post on Hanuman and I liked your portrayal of Hanuman as Jap Yajna and Praanaayam. It is indeed an enlightening post. I shall surely try and read your posts... Thank you!
I am also interested in spiritual matters. These days I am trying to translate Bhagavad Gita from Malayalam (a word by word translation of the work done by my father) to English. It is progressing, albeit slowly. Hope to finish it soon and open it up for all the mumukshus...
Thank you!
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपका आलेख-हनुमानलीला-भाग १,पढा-इस विषय पर आपका गहन अध्ययन,पौराणिक अध्यात्मिकता को जिस विस्तार से प्रस्तुत किया,राकेश जी,मेरे मन के-मनके तो इस अथाह सागर में छोटे से मोती हैं या केवल सीप ही हैं.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लोग पर आते हैं,सराहते हैं,यह आपकी ग्यान-रूपी विशालता है.
भविष्य में आपके आलेखों के माध्यम से अपने तुच्छ ग्यान की सीमाओं को विस्तृत कर पाओंगी,ऐसा मेरा विश्वास है.
श्री अशोक व्यास जी ने मेल द्वारा निम्नलिखित टिपण्णी
ReplyDeleteप्रेषित की है :-
राकेशजी
जय हो
जय श्री कृष्ण
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपिश तीऊँ लोक उजागर
'जय जय जय हनुमान गुसाईं
कृपा करो गुरुदेव की नाईं'
हनुमान जी ने आप पर गुरु रूप में कृपा करके
आपके साथ साथ हम सबके सम्मुख 'जप यज्ञ'
'पवन पुत्र', 'सुग्रीव' के सेनापति संबंधी सन्दर्भ
के जिस गूढ़ तात्विक संकेत को प्रकट किया है
वो हम पर भी उनकी कृपा का प्रमाण है
अध्ययन, मनन, चिंतन के बाद नूतन दृष्टि से
पारमार्थिक विषय पर इतने सुधि पाठकों का
ध्यान आकर्षित करने के लिए भी बधाई
"यदि हनुमान जी की भक्ति का हमें
वास्तविक लाभ लेना है तो निश्चित ही हमें जप यज्ञ व
प्राणायाम से अपने अंत:करण को सबल करना
होगा. तभी हनुमान जी प्रसन्न होकर हमें राम जी से
मिलवा देंगें यानि 'सत्-चित -आनंद' स्वरुप का
साक्षात्कार करवा देंगें. क्योंकि वे ही तो रामदूत भी हैं."
बहुत अच्छे राकेश जी
उछल कूद करता ये मन, जब राम नाम गाता है
सीता मैया तक श्रद्धा का पुल इसको ले जाता है
राम काज करने की चाहत जाग्रत कर हनुमान
रसमयता से कर देते, सब भक्तो का कल्याण
अशोक व्यास
दिसम्बर १७ २०११
Ashok Vyas
ram ram rakesh bhaiya
ReplyDeleteaglee kadi ka intazaar hai :)
apka najariya padh kar ek naye najar se in chezo ko dekhne ka mauka mila. Bahut bahut dhanyvad.
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह से विश्लेषण किया है आपने !
ReplyDeleteउस परम चेतना की खोज करने वाला मन
इसे ही हमारे अध्यात्म में मारुती या हनुमान
कहा गया है ! आभार ब्लॉग पर आने का !
नतमस्तक,...सुंदर हनुमान लीला,...सुंदर पोस्ट .
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
मैं तो अनुमान लगाता रह गया
ReplyDeleteऔर हनुमान पूरी लंका जला गया
.शास्त्रों में 'हनुमान जी' की कल्पना मेरी समझ में इसी प्रकार के अंत:करण से ही की गई है.
ReplyDelete'जप यज्ञ' या 'प्राणायाम' बिना वायु के संभव नही है.इसीलिए हनुमान जी को 'पवन पुत्र', 'वात जातं'
कहा गया है. 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' से पूर्ण संपन्न अंत: करण को 'वानराणामधीशं' नाम से भी
पुकारा गया है.क्योंकि ऐसा अंत:करण ही समस्त अंत;करणों का स्वामी हो सकता है जो प्रचंड शक्ति
पुंज व अग्निस्वरूप होने के कारण 'हेमशैलाभदेहं' के रूप में भी ध्याया जा सकता है.जिसमें समस्त
विकारों,अधम वासनाओं को भस्म करने की स्वाभाविक सामर्थ्य है. ऐसा अंत:करण सकल गुण निधान,
ज्ञानियों में सर्व प्रथम,राम जी का प्रिय भक्त भी होना ही चाहिये.इस प्रकार से अंत; करण की सर्वोच्च
अवस्था का हनुमान जी के रूप में ध्यान कर, हम 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का अवलंबन करें तो ही
हनुमान जी की वास्तविक पूजा व आराधना होगी.
wonderful.......
isiliye shayad kaha bhi jate hai ki humari INNER POWER stong honi chahiye.......aadhyatmik drishti se dekhen to yahi hanuman ji ki shakti hai......
shaandaar post
बहुत सुंदर प्रस्तुती, नए पोस्ट का इंतजार ,.....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
नई पोस्ट --"काव्यान्जलि"--"नये साल की खुशी मनाएं"--click करे...
sundar prastuti :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteनई रचना-काव्यान्जलि--हमदर्द-
हनुमान जी की लीला बहुत ही न्यारी है
ReplyDeleteपढ़ा है एक हनुमान जी ही इस कलियुग में अकेले जीवित देवता हैं.
अक्सर अनायास ही कुछ काम करते वक़्त मुह से निकल आया है जय बजरंग बलि
ये ठीक उसी तरह है जैसे चोट लगने में अनायास मुंह से मां का नाम निकालता है
हनुमान जी की विषय में इतनी सारी बाते सचमुच ग्रहणीय हैं
अद्भुत व सार्थक चिंतन।
ReplyDeleteसाधुवाद श्रीमान।
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