आनंद की परिकाष्ठा परमानन्द है. हर मनुष्य में चिंतन मनन करने की स्वाभाविक
प्रक्रिया होती है.परन्तु , परमानन्द का चिंतन करना ही वास्तविक सार्थक चिंतन है.परमानन्द
परमात्मा का स्वाभाविक रूप है ,जिससे जुडना 'योग' कहलाता है. जब मनुष्य परमानन्द
के विषय में चिंतन मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा उससे जुड़ने का यत्न भी करता है
तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है.
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ६, श्लोक संख्या ३ में वर्णित है :-
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते
योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष अर्थात मुनि के लिए कर्म करना ही
हेतू या कारण है.
योग में तब तक आरूढ़ नहीं हुआ जा सकता जब तक कि परमानन्द का मनन न हो और
उसे पाने की इच्छा न हो .इसी इच्छा के उदय होने को हृदय में 'सीता जन्म' होना माना गया है.
योग के लिए केवल इच्छा ही नहीं कर्म भी आवश्यक है. कर्म का अर्थ यहाँ केवल ऐसे सद् कर्म हैं
जिनके करने से 'परमानन्द' से जुड़ा जा सके.इन कर्मों के विपरीत जो भी कर्म हैं वे बंधनकारक है.
वह सद् कर्म जो केवल परमानन्द या सत्-चित -आनंद परमात्मा को पाने की ही अभिलाषा
से किये जाये तो श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार 'यज्ञ' कहलाते है.परमात्मा का 'नाम जप' करना
ऐसा ही एक सद् कर्म व यज्ञ है.
जप यज्ञ को सभी प्रकार के यज्ञ कर्मों में सर्वोत्तम माना गया है.श्रीमद्भगवद्गीता के 'विभूति योग'
अध्याय १० में यज्ञों में 'जप यज्ञ' को परमात्मा की साक्षात विभूति ही बतलाया गया है.
इसलिये जप यज्ञ के विषय में थोडा जानना आवश्यक हो जाता है.
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को
धारण कर सबल होने लगता है,जिससे चंचल मन और बुद्धि भी स्थिर होते हैं.जप करना सहज और
सरल है.किसी भी अवस्था,काल ,परिस्थिति में जप किया जा सकता है.जप यज्ञ में परमात्मा का नाम
या मन्त्र जिसका जप किया जाता है , बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिसको समझ कर सच्चे हृदय से जप
किये जाने से ही प्रभाव होता है. मन्त्र या नाम में जिस जिस प्रकार के भाव समाविष्ट होते हैं ,वे हृदय
में उदय होकर प्राण और मन का लय कराते जाते हैं. यदि नाम में हम कुभाव समाविष्ट कर स्वार्थ के
लिए दूसरों का अहित सोच केवल दिखावे के लिए ही जप करें तो 'मुहँ मे राम बगल में छुरी' वाली
कहावत चित्रार्थ होगी और बजाय योग के हम पतन की और उन्मुख हो जायेंगें.
गोस्वामी तुलसीदास जी परमात्मा के नाम जप के लिए यहाँ तक लिखते है कि
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ , कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ
चारों युगों में और चारो वेदों में नाम के जप का प्रभाव है ,परन्तु ,कलियुग में तो विशेष प्रभाव है.
नाम जप के अतिरिक्त कलियुग में अन्य कोई सक्षम साधन नहीं है .चारों युग हमारे ही हृदय में
घटित होते रहते हैं.जब हृदय में कलियुग का प्रभाव होता है तो हम तमोगुण अर्थात आलस्य ,प्रमाद
हिंसा ,अज्ञान आदि की वृतियों से आवर्त रहते हैं.ऐसे में परमात्मा से योग के लिए नाम जप सबसे
अधिक प्रभावकारी साधन है. युगों के आध्यात्मिक निरूपण के सम्बन्ध में मेरी पोस्ट
'राम जन्म आध्यात्मिक चिंतन-२' को भी सुधिजनों द्वारा पढा जा सकता है.
गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस में यह भी लिखते हैं कि
देखिअहिं रूप नाम आधीना ,रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना
' रूप नाम के अधीन देखा जाता है,परन्तु नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता है.'
जैसे 'हाथी' कहते ही हाथी के रूप का भी मन में आभास होने लगता है ऐसे ही परमात्मा के नाम जप
करने से हृदय में परमात्मा के रूप यानि 'परमानन्द' का आभास व अनुभव होने लगता है.नाम जप
चाहे निर्गुण निराकार परमात्मा का किया जाये या सगुण साकार परमात्मा का,दोनों का फल यह
'परमानन्द' का अनुभव ही है.
सुधिजनों ने पंचतंत्र की कहानियों के विषय में सुना व पढा अवश्य होगा. कहते हैं इन कहानियों की
रचना अल्प समय में ही मंद बुद्धि राजकुमारों को नीति ,आचार व व्यवहार सिखाने के लिए की गई थी.
कहानियों के अधिकतर पात्र पशु पक्षी हैं ,जिनसे कहानियाँ इतनी रोचक व सरल हो गईं हैं कि उनका सार
सहज ही हृदयंगम हो जाता है.इसी प्रकार से गूढ़ आध्यात्मिक तथ्य श्रीरामचरितमानस व अन्य पुराणों
आदि में वर्णित कहानी व लीला के माध्यम से आसानी से ग्रहणीय हो जाते हैं.जरुरत है तो बस
इन कहानी और 'लीला' को रूचि लेकर पढ़ने की और सकारात्मक सूक्ष्म अवलोकन करके समझने की.
नाम जप के महत्व के सम्बन्ध में मैं यहाँ पर 'सीता लीला ' का एक संक्षिप्त वर्णन करना चाहूँगा.
जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके राम जी के पास लौटे तो राम जी ने उनसे पूछा कि हनुमान
जी यह बतलाइये कि लंका में राक्षस राक्षसनियों के बीच घिरी सीता जी अपने प्राणों की रक्षा किस
प्रकार से कर रहीं हैं.तब इस प्रश्न का उत्तर हनुमान जी इस प्रकार से देते हैं (श्रीरामचरितमानस,
सुन्दरकाण्ड, दोहा संख्या ३०):-
नाम पाहरू दिवस निसि, ध्यान तुम्हार कपाट
लोचन निज पद जंत्रित , जाहिं प्राण केहिं बाट
(१)सीताजी रात दिन नाम जप करती रहती हैं जो पहरेदार की तरह उनके प्राणों की देखभाल करता है.
(२)वे नाम जप के साथ साथ आपका ध्यान भी करती रहती हैं.जिससे उनके प्राणों की सुरक्षा और
भी बढ़ जाती है. जैसे कि किसी घर की सुरक्षा के लिए एक पहरेदार की नियुक्ति करके, घर के दरवाजे
यानि कपाट भी बंद कर दिए जाएँ.क्यूंकि बिना कपाट बंद किये केवल पहरेदार से ही घर की सुरक्षा
अधूरी रह सकती है.
(३)यही नहीं वे नेत्रों को भी अपने चरणों में निरंतर लगाये रखतीं हैं.'चरण' जो चलने का प्रतीक है, में
नेत्रों को लगाने से अभिप्राय है कि वे अपने किये गए व किये जा रहे कर्मों पर भी अपनी नजर रखती हैं.
यह ऐसे ही है जैसे कि घर में पहरेदार की नियुक्ति के अतिरिक्त घर के कपाट बंद करके उनमें
ताला भी लगा दिया जाये.अब बतलाइये उनके प्राण (बिना उनकी इच्छा के) किस प्रकार से निकल पायेंगें.
इस प्रकार से भीषण विपरीत परिस्तिथियों में भी नाम जप के सहारे सुरक्षित रह कर योग में किस
प्रकार से आरुढ हुआ जा सकता है,यह आध्यात्मिक तथ्य उपरोक्त 'सीता लीला' के प्रकरण से सहज
ग्रहण हो जाता है. जप,ध्यान और निरंतर अपने कर्मों का अवलोकन करने से प्राण इतना सबल हो
जाता है कि हमारी बिना इच्छा के वह शरीर से नहीं निकल सकता.अर्थात जप यज्ञ से इच्छा मृत्यु भी
हुआ जा सकता है.
अंत में कबीरदास जी की निम्न वाणी से मैं इस पोस्ट का समापन करता हूँ.
खोजी हुआ शब्द का, धन्य सन्त जन सोय
कह कबीर गहि शब्द को, कबहूँ न जाये बिगोय.
जो शब्द (यानि परमात्मा के नाम) की खोज करता है,वह सन्त जन धन्य हैं .कबीरदास जी कहते हैं कि
शब्द को ग्रहण करके वह कभी भी पतित नहीं हो सकता.
सभी सुधि जनों का मैं हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरा निरंतर उत्साहवर्धन किया है . आप सभी की
सद्प्रेरणा से ही मैं यह पोस्ट भी लिख पाया हूँ. आशा है आपकी अमूल्य टिप्पणियों के माध्यम से
मेरा निरंतर मार्गदर्शन होता रहेगा. जप यज्ञ के बारे में आप सभी सुधिजनों के अपने अपने विचार व
अनुभव जानकर मुझे बहुत खुशी होगी.
मेरी सभी सुधिजनों को आनेवाले त्यौहारों धनतेरस, दीपावली,गोवर्धन व भैय्या दूज की बहुत
बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई.
प्रक्रिया होती है.परन्तु , परमानन्द का चिंतन करना ही वास्तविक सार्थक चिंतन है.परमानन्द
परमात्मा का स्वाभाविक रूप है ,जिससे जुडना 'योग' कहलाता है. जब मनुष्य परमानन्द
के विषय में चिंतन मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा उससे जुड़ने का यत्न भी करता है
तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है.
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ६, श्लोक संख्या ३ में वर्णित है :-
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते
योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष अर्थात मुनि के लिए कर्म करना ही
हेतू या कारण है.
योग में तब तक आरूढ़ नहीं हुआ जा सकता जब तक कि परमानन्द का मनन न हो और
उसे पाने की इच्छा न हो .इसी इच्छा के उदय होने को हृदय में 'सीता जन्म' होना माना गया है.
योग के लिए केवल इच्छा ही नहीं कर्म भी आवश्यक है. कर्म का अर्थ यहाँ केवल ऐसे सद् कर्म हैं
जिनके करने से 'परमानन्द' से जुड़ा जा सके.इन कर्मों के विपरीत जो भी कर्म हैं वे बंधनकारक है.
वह सद् कर्म जो केवल परमानन्द या सत्-चित -आनंद परमात्मा को पाने की ही अभिलाषा
से किये जाये तो श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार 'यज्ञ' कहलाते है.परमात्मा का 'नाम जप' करना
ऐसा ही एक सद् कर्म व यज्ञ है.
जप यज्ञ को सभी प्रकार के यज्ञ कर्मों में सर्वोत्तम माना गया है.श्रीमद्भगवद्गीता के 'विभूति योग'
अध्याय १० में यज्ञों में 'जप यज्ञ' को परमात्मा की साक्षात विभूति ही बतलाया गया है.
इसलिये जप यज्ञ के विषय में थोडा जानना आवश्यक हो जाता है.
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को
धारण कर सबल होने लगता है,जिससे चंचल मन और बुद्धि भी स्थिर होते हैं.जप करना सहज और
सरल है.किसी भी अवस्था,काल ,परिस्थिति में जप किया जा सकता है.जप यज्ञ में परमात्मा का नाम
या मन्त्र जिसका जप किया जाता है , बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिसको समझ कर सच्चे हृदय से जप
किये जाने से ही प्रभाव होता है. मन्त्र या नाम में जिस जिस प्रकार के भाव समाविष्ट होते हैं ,वे हृदय
में उदय होकर प्राण और मन का लय कराते जाते हैं. यदि नाम में हम कुभाव समाविष्ट कर स्वार्थ के
लिए दूसरों का अहित सोच केवल दिखावे के लिए ही जप करें तो 'मुहँ मे राम बगल में छुरी' वाली
कहावत चित्रार्थ होगी और बजाय योग के हम पतन की और उन्मुख हो जायेंगें.
गोस्वामी तुलसीदास जी परमात्मा के नाम जप के लिए यहाँ तक लिखते है कि
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ , कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ
चारों युगों में और चारो वेदों में नाम के जप का प्रभाव है ,परन्तु ,कलियुग में तो विशेष प्रभाव है.
नाम जप के अतिरिक्त कलियुग में अन्य कोई सक्षम साधन नहीं है .चारों युग हमारे ही हृदय में
घटित होते रहते हैं.जब हृदय में कलियुग का प्रभाव होता है तो हम तमोगुण अर्थात आलस्य ,प्रमाद
हिंसा ,अज्ञान आदि की वृतियों से आवर्त रहते हैं.ऐसे में परमात्मा से योग के लिए नाम जप सबसे
अधिक प्रभावकारी साधन है. युगों के आध्यात्मिक निरूपण के सम्बन्ध में मेरी पोस्ट
'राम जन्म आध्यात्मिक चिंतन-२' को भी सुधिजनों द्वारा पढा जा सकता है.
गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस में यह भी लिखते हैं कि
देखिअहिं रूप नाम आधीना ,रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना
' रूप नाम के अधीन देखा जाता है,परन्तु नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता है.'
जैसे 'हाथी' कहते ही हाथी के रूप का भी मन में आभास होने लगता है ऐसे ही परमात्मा के नाम जप
करने से हृदय में परमात्मा के रूप यानि 'परमानन्द' का आभास व अनुभव होने लगता है.नाम जप
चाहे निर्गुण निराकार परमात्मा का किया जाये या सगुण साकार परमात्मा का,दोनों का फल यह
'परमानन्द' का अनुभव ही है.
सुधिजनों ने पंचतंत्र की कहानियों के विषय में सुना व पढा अवश्य होगा. कहते हैं इन कहानियों की
रचना अल्प समय में ही मंद बुद्धि राजकुमारों को नीति ,आचार व व्यवहार सिखाने के लिए की गई थी.
कहानियों के अधिकतर पात्र पशु पक्षी हैं ,जिनसे कहानियाँ इतनी रोचक व सरल हो गईं हैं कि उनका सार
सहज ही हृदयंगम हो जाता है.इसी प्रकार से गूढ़ आध्यात्मिक तथ्य श्रीरामचरितमानस व अन्य पुराणों
आदि में वर्णित कहानी व लीला के माध्यम से आसानी से ग्रहणीय हो जाते हैं.जरुरत है तो बस
इन कहानी और 'लीला' को रूचि लेकर पढ़ने की और सकारात्मक सूक्ष्म अवलोकन करके समझने की.
नाम जप के महत्व के सम्बन्ध में मैं यहाँ पर 'सीता लीला ' का एक संक्षिप्त वर्णन करना चाहूँगा.
जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके राम जी के पास लौटे तो राम जी ने उनसे पूछा कि हनुमान
जी यह बतलाइये कि लंका में राक्षस राक्षसनियों के बीच घिरी सीता जी अपने प्राणों की रक्षा किस
प्रकार से कर रहीं हैं.तब इस प्रश्न का उत्तर हनुमान जी इस प्रकार से देते हैं (श्रीरामचरितमानस,
सुन्दरकाण्ड, दोहा संख्या ३०):-
नाम पाहरू दिवस निसि, ध्यान तुम्हार कपाट
लोचन निज पद जंत्रित , जाहिं प्राण केहिं बाट
(१)सीताजी रात दिन नाम जप करती रहती हैं जो पहरेदार की तरह उनके प्राणों की देखभाल करता है.
(२)वे नाम जप के साथ साथ आपका ध्यान भी करती रहती हैं.जिससे उनके प्राणों की सुरक्षा और
भी बढ़ जाती है. जैसे कि किसी घर की सुरक्षा के लिए एक पहरेदार की नियुक्ति करके, घर के दरवाजे
यानि कपाट भी बंद कर दिए जाएँ.क्यूंकि बिना कपाट बंद किये केवल पहरेदार से ही घर की सुरक्षा
अधूरी रह सकती है.
(३)यही नहीं वे नेत्रों को भी अपने चरणों में निरंतर लगाये रखतीं हैं.'चरण' जो चलने का प्रतीक है, में
नेत्रों को लगाने से अभिप्राय है कि वे अपने किये गए व किये जा रहे कर्मों पर भी अपनी नजर रखती हैं.
यह ऐसे ही है जैसे कि घर में पहरेदार की नियुक्ति के अतिरिक्त घर के कपाट बंद करके उनमें
ताला भी लगा दिया जाये.अब बतलाइये उनके प्राण (बिना उनकी इच्छा के) किस प्रकार से निकल पायेंगें.
इस प्रकार से भीषण विपरीत परिस्तिथियों में भी नाम जप के सहारे सुरक्षित रह कर योग में किस
प्रकार से आरुढ हुआ जा सकता है,यह आध्यात्मिक तथ्य उपरोक्त 'सीता लीला' के प्रकरण से सहज
ग्रहण हो जाता है. जप,ध्यान और निरंतर अपने कर्मों का अवलोकन करने से प्राण इतना सबल हो
जाता है कि हमारी बिना इच्छा के वह शरीर से नहीं निकल सकता.अर्थात जप यज्ञ से इच्छा मृत्यु भी
हुआ जा सकता है.
अंत में कबीरदास जी की निम्न वाणी से मैं इस पोस्ट का समापन करता हूँ.
खोजी हुआ शब्द का, धन्य सन्त जन सोय
कह कबीर गहि शब्द को, कबहूँ न जाये बिगोय.
जो शब्द (यानि परमात्मा के नाम) की खोज करता है,वह सन्त जन धन्य हैं .कबीरदास जी कहते हैं कि
शब्द को ग्रहण करके वह कभी भी पतित नहीं हो सकता.
सभी सुधि जनों का मैं हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरा निरंतर उत्साहवर्धन किया है . आप सभी की
सद्प्रेरणा से ही मैं यह पोस्ट भी लिख पाया हूँ. आशा है आपकी अमूल्य टिप्पणियों के माध्यम से
मेरा निरंतर मार्गदर्शन होता रहेगा. जप यज्ञ के बारे में आप सभी सुधिजनों के अपने अपने विचार व
अनुभव जानकर मुझे बहुत खुशी होगी.
मेरी सभी सुधिजनों को आनेवाले त्यौहारों धनतेरस, दीपावली,गोवर्धन व भैय्या दूज की बहुत
बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई.
अति अति सुन्दर ... मुझे अतिरेक हर्ष मिला आपकी इस पोस्ट पर आ कर ... मैं इस विषय पर अपने विचार लिखूंगी ... आपको तो बधाई और शुभकामना ... आप हमें ऐसे ही विषयों की जानकारी दे .. सादर
ReplyDeleteराकेश जी, आपक हार्दिक आभार!
ReplyDeleteराकेश जी नमस्कार,
ReplyDeleteभक्ति व योग तो सच्चे दिल से किये जाये तभी ठीक रहते है।
चाहे कितने युग बीत जाये वेदों का कोई मुकाबला नहीं हो सकता है। हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक लेख रहा।
आपको भी आने वाले सभी दिनों व त्यौहार की शुभकामनाएँ।
जय श्रीराम,
प्रभु की कृपा भयउ सब काजू,जनम हमार सुफल भा आजू !.....
ReplyDeleteनाम-महिमा अच्छी रही .आपको भी दीपावली की शुभकामनाएँ !
बहुत सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteपढ़कर भक्तिमय हो गये!
बहुत सुंदर लेख..... हार्दिक शुभकामनायें आपको भी.....
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आज सुबह पहले आपका पोस्ट पढ़कर भक्तिमय हो गई ! इतना सुन्दर आलेख लिखा है आपने कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती! मैंने दो बार पढ़ा और मन को बड़ी शांति मिली! भक्ति से परिपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ इस उम्दा आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Kya post hai Rakesh Kumar ji. Aapki posts padh kar mann shant ho jata hai and atma manthan shuru ho jata hai...
ReplyDeleteJap ka mahatva kitne spast shabdon mein bata diya...
Aapko bhi Diwali aur Nav Varsh ki hardik Shubhkamnayein.
My Yatra Diary...
जय श्री राम !
ReplyDeleteआपको हार्दिक शुभकामनायें !
मन पवित्र करता आलेख।
ReplyDeleteजब मनुष्य परमानन्द के विषय में चिंतन मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा उससे जुड़ने का यत्न भी करता है तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है.
ReplyDeleteसही कहा आपने ....मन को साध कर खुद को सब विषयों से हटाकर अपने ध्यान को परमात्मा में लीन करना ही जीवन का मंतव्य है ...और जब हम ह्रदय से पवित्र हो जाते हैं तो आनंद की अवस्था को प्राप्त करते हैं .....आपका आभार
बहुत सुन्दर लेख!
ReplyDeleteपढने के बाद एक सुखद एहसास की अनुभूति हुई ....आभार
दीपावली और भाई दूज की मुबारक ,शुभकामनायें ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भक्तिभाव से परिपूर्ण आलेख,पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा|
ReplyDeleteमैं श्रीराम जी की कथा को सरल कविता में लिखने का प्रयास कर रही हूँ|इस क्रम में दो कविताएँ प्रकाशित कर चुकी हूँ|आप अपना विचार देने की कृपा करेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी|नीचे लिंक दे रही हूँ|
http://madhurgunjan.blogspot.com/
जप, ध्यान व सद्कर्मों के द्वारा परम आनंद की प्राप्ति की जा सकती है, इस आशय को स्पष्ट करता हुआ आपका यह सुंदर लेख अत्यंत सराहनीय है... आभार तथा आने वाले पर्वों के लिये बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भक्तिभाव से परिपूर्ण आलेख|मन को परमात्मा में लीन करना ही जीवन का मंतव्य है|आने वाले पर्वों के लिये शुभकामनायें|
ReplyDeleteभक्तिमय सुन्दर आलेख..दीपावली की शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteआपके तत्व निरूपण से अभिभूत हूँ। साधारण कथानक से साधारण शब्दों में गूढ दर्शन को व्याख्यायित करते है। आपके इस ज्ञानदान से निर्मल भावों में अभिवृद्धि होती है। आभार आपका!!
भक्तिमय और आनंदमय आलेख ......
ReplyDeleteआपको भी दीवाली की ढेर सारी शुभकामनाएँ
१)सीताजी रात दिन नाम जप करती रहती हैं जो पहरेदार की तरह उनके प्राणों की देखभाल करता है.
ReplyDelete(२)वे नाम जप के साथ साथ आपका ध्यान भी करती रहती हैं.जिससे उनके प्राणों की सुरक्षा और
भी बढ़ जाती है. जैसे कि किसी घर की सुरक्षा के लिए एक पहरेदार की नियुक्ति करके, घर के दरवाजे
यानि कपाट भी बंद कर दिए जाएँ.क्यूंकि बिना कपाट बंद किये केवल पहरेदार से ही घर की सुरक्षा
अधूरी रह सकती है.
(३)यही नहीं वे नेत्रों को भी अपने चरणों में निरंतर लगाये रखतीं हैं.'चरण' जो चलने का प्रतीक है, में
नेत्रों को लगाने से अभिप्राय है कि वे अपने किये गए व किये जा रहे कर्मों पर भी अपनी नजर रखती हैं.
यह ऐसे ही है जैसे कि घर में पहरेदार की नियुक्ति के अतिरिक्त घर के कपाट बंद करके उनमें
ताला भी लगा दिया जाये.अब बतलाइये उनके प्राण (बिना उनकी इच्छा के) किस प्रकार से निकल पायेंगें.
इतनी सरस और सुन्दर व्याख्या सिर्फ़ आप ही कर सकते है राकेश जी ………आप पर प्रभु की असीम अनुकम्पा है …………बेहद सुखद और विस्तृत वर्णन किया है…………ह्रदय से आभारी हूँ।
बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteआभार ..
ReplyDeletefir lautoongi tippani ke liye ...
नाम जप के अतिरिक्त कलियुग में अन्य कोई सक्षम साधन नहीं है .चारों युग हमारे ही हृदय में
ReplyDeleteघटित होते रहते हैं.जब हृदय में कलियुग का प्रभाव होता है तो हम तमोगुण अर्थात आलस्य ,प्रमाद
हिंसा ,अज्ञान आदि की वृतियों से आवर्त रहते हैं.ऐसे में परमात्मा से योग के लिए नाम जप सबसे
अधिक प्रभावकारी साधन है.
अति सुन्दर.
आपको भी दीपावली की शुभकामनाएँ.
A soulful post, calmed and taught me good things. Last couplet along with the description is profound. Thanks for sharing a post full of learnings with us.
ReplyDeleteआप को भी दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteआज तो बस हमारी हाजिरी ही लगा लीजिये
ऐसे आलेखों को तो तसल्ली से पढ़ने में ही आनंद आता है
सत्प्रयास हेतु साधुवाद
मेरी चिंता ये है कि परमानंद के इस भवसागर में गोते लगाने के लिए योग्य कैसे बना जाए...
ReplyDeleteजय हिंद...
नाम पाहरू दिवस निसि,ध्यान तुम्हार कपाट
ReplyDeleteलोचन निज पद जंत्रित,जाहिं प्राण केहिं बाट
इस दोहे की सुन्दर सारगर्भित व्याख्या की गयी है इस आलेख में.....
नाम जप की महिमा अपरम्पार है!!!
आने वाले त्योहारों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत सुंदर भक्तिमय आलेख...
ReplyDeleteआपको भी दीपावली की शुभकामनाएँ...
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है, इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को धारण कर सबल होने लगता है,
ReplyDeleteबहुत सही मार्गदर्शन कराता लेख ...
आपकी पोस्ट पर पुनः आयी ... और इस पोस्ट में निहित ज्ञान का आनंद लिया ... नाम की महत्ता के बारे में आपने बताया ..और वहीँ से जप निकला ..सही कहा हम अपनी कल्पना में किसी वस्तु को तब ही देख सकते हैं जब उसका नाम किसी भी तरह से हमारे मन मष्तिष्क में कौंध जाए.. बिना नाम के तो निर्वात है... जप से प्राण को बल और लय मिलता है क्यूंकि यह अन्तःकरण का अन्न है ... और हनुमान जी के माध्यम से सीता जी की जो बात राम भगवान तक पहुंची ..वह योग और परमांनद की प्राप्ति का रास्ता भी है - मैं तीसरे नंबर पर लिखी बात के लिए कहूँगी की जैसे सीता जी अपने कर्मों पर नजर रखती थी ...हमें भी अपने कर्मो पर निरंतर नजर रखनी चाहिए - तन की शुद्धि साफ़ रहनसहन, आहार के प्रति जागरूक रह कर किया जाता है मन और अन्तःकर्ण की शुद्धि सत्कर्म सतचरित्र रह कर ही होती है.. और हम दूसरों से कैसे बोल रहे हैं .. और जो हम बोलते हैं क्या हम अंतर्मन से भी वैसे ही शुद्ध हैं ... मतलब सिर्फ दिखावा तो नहीं करते ...सामान की चोरी या दूसरे की भावना की चोरी तो नहीं करते हैं .. विश्वास को बनाये रखते हैं .. दूसरों का सम्मान करते है .. अपनी आत्मा का सम्मान करते हैं ? गलत किये गए कार्य का पश्चताप आगे जीवन में हर परिस्तिथि में उस कार्य को सही करने की शपथ ले कर करते हैं या फिर जीवन में अपने को बार बार धिक्कार कर सवयम की आत्मा को दुखी कर करते हैं ..अपनी जिम्मेदारियों से मुह तो नहीं मोड़ते,आलस्यवश हम सांसारिक कर्मों और देवकर्मो से मुह तो नहीं मोड़ते ..कर्म का बहुत महत्त्व है ... कहते हैं कि बोए पेड़ बबूल को तो आम कहाँ से होयें ..हम जैसा करेंगे पायेंगे भी वैसा ही .. दान की महत्ता है.... सत्य बोलना चाहिए पर वह सत्य बोलने से बचे जो किसी के जीवन का नाश करने में सक्षम हो. ..इत्यादि ..
ReplyDeleteनाम जप का महत्व तो है ही ..यह हमें उस परमात्मा के करीब ले जाता है... हमारे चेतना को प्रभु के लिए जागृत करता है.. और ध्यान के द्वारा हम परमात्मा में लीन हो जाते हैं ... और यहीं कहीं जब हमारी आत्मा परमात्मा में लीन होती है होती है तब हमें कभी ना कभी आत्मा की शुद्धि और पूर्ण श्रद्धा की वजह ईश्वर कृपा हो जाती है और परमांनद की प्राप्ति होती है दिव्यदर्शन / डीवाइन इलुमिनेसन होता है... और यह आन्नद संसारभर के आनंद से बहुत बहुत बहुत ऊपर होता है... इसकी प्राप्ति करने वाले व्यक्ति के मन में सदा शांति और आनंद समाया रहता है... प्रभु उस आनंद की प्राप्ति करवाए ...शुभकामनाओं सहित
कर्म का अर्थ यहाँ केवल ऐसे सद् कर्म हैं
ReplyDeleteजिनके करने से 'परमानन्द' से जुड़ा जा सके.इन कर्मों के विपरीत जो भी कर्म हैं वे बंधनकारक है."
जप -तप और योग का आपका विशाल ज्ञान हमे भक्ति की और प्रेरित करता हैं ..बहुत -बहुत बधाई राकेश जी !
आने वाले अनेक त्योहारों की मंगल कामनाए आपको और आपके परिवारजन को भी ....
डॉ.नूतन डिमरी जी,
ReplyDeleteआपके गहन सार्थक सद् विचारों को जानकर मैं धन्य हो गया हूँ.
वास्तव में कर्मों के माध्यम से ही हम जीवन में सफर तय
करते हैं.अत: निरंतर किये गए और किये जा रहे कर्मों का
अवलोकन करना अत्यंत जरूरी है जो परमानन्द को पाने की साधना
का एक आवश्यक अंग है.ताकि वांछित सुधार करके हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ सकें.किये गए गलत कर्मों के लिए
पश्चाताप की अग्नि में जलना भी अंत:करण को निर्मल और
पावन करता है.
विपरीत भीषण परिस्थितियों में भी सीता जी अपनी लीला के द्वारा जप,ध्यान और पश्चाताप तीनों का समन्वय प्रस्तुत कर हमें परमानन्द को पाने का सुन्दर रास्ता सुझा रहीं हैं.
आपकी अनुपम टिपण्णी के लिए बहुत बहुत हार्दिक आभार.
नाम जप प्राण और आत्मा का अन्न है, बल्किुल सही कह रहे हैं आप।
ReplyDeleteनाम जप से प्राण और आत्मा को सकारात्मक उर्जा मिलती है।
बहुत सुंदर विश्लेषण।
योग .. भक्ति तप ... सभी तो उस परम आनंद की तरफ ले जाते हैं .. और जब तक वो आनंद मन में न हो तो ये सब भी संभव नहीं होता ... बहुत ही गूढ़ रहस्यों को आसानी से सुलझा रहे हैं आप ... नमन है राकेश जी ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर तो मन एकदम भक्ति भाव से भर जाता है.आभार.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक बधाई.
RAKESH JI AAP ANUTHA KARY KAR RAHEN HAIN SADHUWAD.DIWALI KI BADHAYI
ReplyDeleteजैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
ReplyDeleteइसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.
Kash aapke yeh shabd hum hamesha yaad rakh saken. Bahut sunder lekh. Aapko bhi dipawali ki shubhkamnayen!
sita ji ne kis tarah se apni raksha ki hai ye jo aapne bataya bahut hi sunder tarike bataya .bahut hi aanand aaya .
ReplyDeletedhnyavad
saader
rachana
उम्र के इस पड़ाव पर ऐसे ही आलेख मन को शांति देते हैं. बेहतरीन रही यह श्रंखला. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा. "कंडी (Kandy) – बौद्ध धर्म का एक और पालना" इस आलेख में सीता मैय्या को लंका में जहाँ रखा गया था वहां एक मंदिर बना है. देख सकते हैं..
ReplyDeletebahut achchha lagta hai aapke lekh ko padhna. ramayan kee rachna jivan mein sadvichaar laane ke liye ki gayee thee. uchit raah kya honi chaahiye ise prateekaatmak roop mein ramayan se samajhna chaahiye. raamkatha kee sameeksha aur vishleshan bahut achchhi tarah kiya hai aapne, dhanyawaad.
ReplyDeleteआपके इस आध्यात्मिक चिंतन का लाभ हम भी उठा रहे हैं।
ReplyDeleteनाम जप में तो मुझे भी काफ़ी विश्वास है।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
श्रेष्ठ एवं पवित्र चिंतन।
ReplyDeleteदीये की लौ की भाँति
ReplyDeleteकरें हर मुसीबत का सामना
खुश रहकर खुशी बिखेरें
यही है मेरी शुभकामना।
दीपपर्व की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट भक्तिमय लेख लिखा है आपने जिसमे नाम जप के बारे में भी बताया है ।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से अध्यात्मिक लाभ देने वाला लेख,आपका बहुत आभार
आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं क्यूंकि सत्संग से बड़ा कुछ नहीं (बिनु सत्संग विवेक न होई)
मैं कोई बहुत बड़ा ज्ञाता तो नहीं हूँ थोडा बहुत पढ़ लेता हूँ तो उसका उल्लेख करना चाहता हूँ ।
क्यूंकि ये बात सही है की नाम जप बहुत महत्व रखता है साधक की साधना में ।
एक तरफ जहाँ स्वयं भगवान् श्रीराम जी ने अरण्यकाण्ड में इसका माहात्म बताया भक्त शबरी को और नाम जप को नवधा(नौ प्रकार की भक्ति में) एक भक्ति माना
मंत्र-जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो वेद प्रकासा ।।
अथार्त मेरे नाम का जाप और मुझमे दृढ विश्वास ये पांचवी प्रकार की भक्ति है जिसे वेदों ने भी बताया है ।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने बालकाण्ड में नाम का महात्म बताया है
अगुन सगुन दुई ब्रह्म सरूपा ।अकथ अगाध अनादी अनूप ।।
मोरे मत बड़ नाम दुहूँ ते । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ।।
अथार्त निर्गुण(निराकार) और सगुन(साकार) ब्रह्म(ईश्वर) के दो रूप है जो की दोनों ही सनातन अनूप अकथनीय और अपार हैं । परन्तु मेरे मत में नाम इन दोनों से ऊपर है जिसने अपने दम पर ही
दोनों को अपने वश में कर रखा है ।
अस प्रभु ह्रदय अछत अविकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी ।।
नाम निरूपन नाम जतन ते ।।प्रगट भये जिमि मोल रतन ते ।।
अथार्त ऐसे विकाररहित प्रभु के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुःखी हैं। नाम का निरूपण करके (नाम के यथार्थ स्वरूप, महिमा, रहस्य और प्रभाव को जानकर) नाम का जतन करने से (श्रद्धापूर्वक नाम जप रूपी साधन करने से) वही ब्रह्म ऐसे प्रकट हो जाता है, जैसे रत्न के जानने से उसका मूल्य ।
जिस जीवन में गहनता होती है,त्वरा एवं तीव्रता होती है वह संतत्व को उपलब्ध होता है. मार्ग वही है...ध्यान के महुए में ज्ञान का गुड़ मिला कर अनवरत पान करना. आप इतने सहज सरल शब्दों में गूढ़ बातों को समझा देते है.आपको हार्दिक शुभकामना . यूँ ही हमें भक्तिमय करते रहें..
ReplyDeleteHuman ji,
ReplyDeleteआपके सुन्दर विचारों को जानकर मैं अभिभूत हूँ.
आपके सद् ग्यान को मेरा सादर नमन.
सुन्दर विस्तृत टिपण्णी के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
@ध्यान के महुए में ज्ञान का गुड़ मिला कर अनवरत पान करना.
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी,
आप अपनी पोस्ट से ही नही,टिपण्णी से भी'तन्मय' कर देती हैं जी.
बहुत बहुत आभार आपका.
नाम जप का महात्म्य हमारे संतों ने सदा ही बताया है और कलियुग में इससे सरल प्रभु के नैकट्य का उपाय दूसरा नही । राम नाम की महिमा तो रामरक्षा का ये श्लोक भी बताता है ।
ReplyDeleteराम रामेति रामेती रमे रामे मनोरमे
सहस्त्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने ।
आपके ब्लॉग पर आकर आपके लेख पढ कर शांति की अनुभूति होती है ।
apke lihke lekh pad kar man aadhyatm se jud jata hai..padte vakt pura mahaul bhakti may ho jata hai..ye mere liye bahut alag anubhav hai...
ReplyDeletesadar aabhar
दोहों के आगे दोहे
ReplyDelete=========
ज्योति-पर्व पर आपको, प्रेषित मंगल-भाव।
भव-सागर में आपकी, रहे चकाचक नाव॥
=========
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteWish you and family a very Happy Diwali Rakesh Kumar ji.
ReplyDeleteदीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteआपका यह गहन चिंतन ... आत्मिक सुकून देता है ..दीपोत्सव पर्व की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
ReplyDelete***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
नमस्कार,
ReplyDeleteआप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
धन्यवाद |
विनीत नागपाल
दीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteभक्तिमय एवं अध्यात्मिक प्रस्तुति !
सार्थक रचना, सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिली आपकी प्रतिक्रियाओं , शुभकामनाओं, मार्गदर्शन और समर्थन का आभारी हूँ.
"शुभ दीपावली"
==========
मंगलमय हो शुभ 'ज्योति पर्व ; जीवन पथ हो बाधा विहीन.
परिजन, प्रियजन का मिले स्नेह, घर आयें नित खुशियाँ नवीन.
-एस . एन. शुक्ल
** दीप ऐसे जले कि तम के संग मन को भी प्रकाशित करे ***शुभ दीपावली **
ReplyDeleteइतने सहज ढंग से इतना गूढ़ ज्ञान देने के लिये आभार..बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteनमन है राकेश जी ||
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ||
Aapne blog ke madhyam se aapne jo adhyatm ki dhara bahai hai, wah namniy hai. Sudhi pathko ko aapke blog ke madhyam labh pahunchata rahega tatha we labhanwit hote raheinge. Aapne is rachna mein achhe vishay ko uthaya hai. chit ki shudhi ke bina sari sadhna vyarth hai.Aur nam jap ke dwara chit ki shudhi swatah ho jati hai. Sare karmkand aur sari sadhna ka sar chit ki sudhi arthat nirmal man hai. Aapko tatha aapke pariwar ko deepawali ki hardik subhkamna.
ReplyDeleteआप को भी परिवार समेत दीवाली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteआपको, परिजनों और मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
आपको दीपावली के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteआशा
बहुत श्रम और शोध कर के लिखते हैं आप...
ReplyDeleteमेरे विचार में यह एक अनूठा विषय भी है जिस पर अधिक पढ़ा सुना नहीं गया ..सुझाव है..इन सभी लेखों को क्रमबद्ध कर के एक पुस्तक का रूप दे दीजीये....पुस्तक संग्रहणीय रहेगी..
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
गोस्वामी तुलसीदास जी परमात्मा के नाम जप के लिए यहाँ तक लिखते है कि
ReplyDeleteचहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ , कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ
चारों युगों में और चारो वेदों में नाम के जप का प्रभाव है ,परन्तु ,कलियुग में तो विशेष प्रभाव है.
नाम जप के अतिरिक्त कलियुग में अन्य कोई सक्षम साधन नहीं है .चारों युग हमारे ही हृदय में
घटित होते रहते हैं.जब हृदय में कलियुग का प्रभाव होता है तो हम तमोगुण अर्थात आलस्य ,प्रमाद
हिंसा ,अज्ञान आदि की वृतियों से आवर्त रहते हैं.ऐसे में परमात्मा से योग के लिए नाम जप सबसे
अधिक प्रभावकारी साधन है.
आभार इस बेहतरीन के लिए ..दिवाली मुबारक हो डॉ .जाकिर साहब आपको आपके अपनों को .
चूक के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .ऐसा हो गया आकस्मिक तौर पर तभी जाकिर भाई के ब्लॉग पर भी टिपण्णी की थी .राकेश जी एक बार फिर खेद व्यक्त करता हूँ इस चूक के लिए .उल्टा नाम जपा जप जाना ,बाल्मीकि भये सिद्ध समाना .दिवाली मुबारक .
ReplyDeleteगुरूजी प्रणाम - "" जैसे 'हाथी' कहते ही हाथी के रूप का भी मन में आभास होने लगता है ऐसे ही परमात्मा के नाम जप
ReplyDeleteकरने से हृदय में परमात्मा के रूप यानि 'परमानन्द' का आभास व अनुभव होने लगता है.नाम जप
चाहे निर्गुण निराकार परमात्मा का किया जाये या सगुण साकार परमात्मा का,दोनों का फल यह
'परमानन्द' का अनुभव ही है."" बहुत ही सार्थक क्योकि यह नाम के महत्त्व को आसानी से बोध करा देता है ! समयाभाव की वजह से आज - कल ब्लॉग जगत में नहीं आ पा रहा हूँ ! आप को सपरिवार दिवाली की शुभकामनाएं ! लक्ष्मी कृपा बनी रहे !
इस कल्याणकारी चिन्तन के सहभागी बनना हमारा सौभाग्य है !
ReplyDeleteदीप-पर्व की हार्दिक शुभ कामनायें !
राकेश जी मान देने के लिए आभार ये आपका बड़प्पन है ।
ReplyDeleteत्रुटीवश अंतिम चौपाई में 'सोइ प्रगटत' की जगह 'प्रगट भये' लिख गया हूँ ।
नाम जप भक्ति के अंतर्गत इतना गहन और गूढ़ है की इसकी संतों ने बहुत महिमा गई है आपको ऐसी उत्कृष्ट एवं अध्यात्मिक चिंतन से भरी पोस्ट के लिए बारम्बार बधाई !
नाम जप पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने बालकाण्ड में बहुत कुछ लिखा है
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
अथार्त नाम जप का माहात्म्य बताते हुए वे कहते हैं - अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।
जप और जाप में अंतर स्पष्ट करती हुई नेट से ली हुई एक पोस्ट का उल्लेख करना चाहूँगा
जप और जाप में मौलिक अंतर है। जप एक व्यक्तिगत क्रिया भाव है, लेकिन जाप सार्वभौमिक प्रक्रिया का सूत्र है जो प्राय: समूह या स्वयंभू रूपक से संपन्न हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि जप किसी फल की इच्छा से ही किया जाए, परंतु जाप फल की अभिलाषा से अभिन्न है।
इस तरह यह जाप गीता में भगवान की वाणी के विपरीत है, फिर भी इसे अव्यावहारिकनहीं कहा जा सकता। जप कल्याण भाव से होता है, जबकि जाप स्वार्थ भाव से होता है भले ही वह स्वार्थ कितना ही श्रेष्ठ व पवित्र क्यों न हो। सकारात्मक स्वार्थ कभी-कभी ईश्वर से मिला देता है, इसलिए साधना एक बडी उपलब्धि है। सकारात्मक स्वार्थ का तात्पर्य हितबद्धसाधना से लगाया जा सकता है। यह ठीक है कि नि:स्वार्थ प्रेम सदैव भक्ति का द्वार खोलता आया है, लेकिन मोक्ष की चाहत भी तो स्वार्थ ही है। जप सहज विनियोग है साधना का। यह जप सदैव भक्ति का सूत्र माना गया।
स्मरण, ध्यान और नामोच्चारण-येजप के विशेष अंग हैं। इनमें सबसे सरल नाम जप है। नाम की महिमा शास्त्रों, पुराणों एवं स्मृतियों में सहज की गई है। अनेक मुनियों ने नाम जप से परम पद पाया। देवर्षिनारद से बढकर इसका मर्म कौन जान सकता है। सच्चे भाव सहित नाम जप स्वत:अभीष्ट सिद्धदायकहै। संसार के समस्त भय, ताप एवं कष्ट इससे दूर होते हैं। यह अखंड यज्ञ के समान प्रभावी है। कलियुग में यह सर्वोत्तमउपाय है, लेकिन धर्मानुकूल आचरण से शरीर का शुद्ध रहना आवश्यक है। नाम जप से पापों का नाश तभी होता है, जब अंत:करण में प्रायश्चित भाव विद्यमान रहे। अधीरता से पुकारने पर प्रभु दौडे चले आते हैं, लेकिन इसमें भाव ही प्रधान है। सांसारिक चाह पूरी होना कोई कठिन काम नहीं, विशेष रूप से यह अपने कौशल और श्रम से संपन्न किया जाना संभव है। जहां अलौकिक संपन्नता की बात है, वहां नाम जप एक शक्ति का प्रवाह बनती है। इसलिए नाम जप को लौकिक और पारलौकिक दोनों आयाम दिए जाते हैं। अपने अंत:प्रेरणाको स्थिर करके नाम जप योग साधना द्वारा कोई भी साधारण मनुष्य जीवन में अभावों को दूर कर सकता है, रिक्तता भर सकता है।
इसके अलावा संत हमे बताते हैं की हम प्रभु के जिस भी नाम का जप करें (राम,शिव,गणेश,दुर्गा,कृष्ण ) रहे हैं उसमे पूर्ण श्रद्धा होना अत्यंत आवश्यक है ।
साथ ही नाम के अर्थ की महिमा भी जाननी चाहिए जैसे गोस्वामी जी ने प्रभु श्री राम के नाम राम के बारें में लिखा है ।
बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥
अथार्त मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है।
वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥
जप के प्रकार और जप करने के ढंग भी अलग अलग होते हैं जिसपर मुझे विस्तृत जानकारी नहीं(प्रयासरत हूँ,आभार यदि कोई इसका उल्लेख करे) जिसमे मानसिक जप उत्तम बताया गया है, हालाँकि गोस्वामी जी ने साधक को निश्चिन्त किया है
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
अथार्त अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।
मैं एक जिज्ञासु भक्त बनकर ऐसे सत्संगों का आनंद लेता रहता हूँ , आपका फिर से आभार और आपको तथा आपकी लेखनी को सादर नमन।
आपको तथा आपके परिवार,मित्रगण तथा शुभचिंतकों को दीपावली की बहुत शुभकामनाएं ।
सभी को दीपोत्सव की बहुत शुभकामनाएं ।
साधुवाद!
Human ji,
ReplyDeleteआपके सद् चिंतन मनन से मैं मंत्रमुग्ध हूँ.
बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है आपने 'नाम जप'की.
मैं सौभाग्यशाली हूँ कि आपके सुन्दर विचार मुझे
जानने को मिले.
बहुत बहुत आभार आपका.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय गुरु राकेश कुमार जी सादर नमस्ते !! मै देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ
ReplyDeleteलेकिन इससे फ़ायदा भी अधिक हुवा है की अन्य विद्त्जनों का सुन्दर विचार भी पढने का अवसर मिला |
ये बहुत ही आश्चर्य की बात है की आप के इस महत्वपूर्ण पोस्ट की सूचना मेरे डैश बोर्ड पर क्यों नहीं डिस्प्ले हुई |
आपने बिलकुल सही लिखा है योग में तब तक आरूढ़ नहीं हुआ जा सकता जब तक कि परमानन्द का मनन न हो
औरउसे पाने की इच्छा न हो .इसी इच्छा के उदय होने को हृदय में 'सीता जन्म' होना माना गया है.
संतोष त्रिवेदी जी के शब्दों में -----प्रभु की कृपा भयउ सब काजू,जनम हमार सुफल भा आजू .....
आपने इतनी सरस और सुन्दर व्याख्या की है जो को दिल को छू गया |
इश्वर आप पर ऐसी ही असीम अनुकम्पा बनाए रखे यही इश्वर से प्रार्थना है …
…ह्रदय से आभारी हूँ आप द्वारा प्रदत्त इस असीम ज्ञान के लिए !!!!!!!!!!
आपको तथा आपके परिवार,मित्रगण तथा शुभचिंतकों को दीपावली की बहुत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteराकेश जी , आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
ReplyDeleteBahut gayanvardhk lagi aapki post hardik shubkamnayen..
ReplyDeleteराकेश जी, आपको एवं आपके सभी पाठकों को, ज्योति पर्व की मंगल कामनाएं, नववर्ष आप सभी के लिए उत्साहवर्धक, और ज्ञानप्रकाश वर्धक हो!!
ReplyDeleteजी इस समय मिर्जापुर से लखनऊ के सफर पर हूं। आपको पढा, हमेशा की तरह एक नया चिंतन और नई जानकारी मिली।
ReplyDeleteमुझे पक्का भरोसा है कि दीप पर्व आपके लिए शुभकारी रहा होगा।
आदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
नाम ,जप.योग सभी को आपने अपने इस लेख में समाहित करके उनपे चर्चा की...एक स्थान पे सब पढ़ने को प्राप्त हुआ...शुक्रिया !!
ReplyDeleteजप -यज्ञ सबसे सहज और सुगम यज्ञ है !इसको जगजननी माँ सीताजी की रहनी से समझाकर सुधिजनो को सम्प्रेरित करने का प्रयास अभिनंदनीय है !
ReplyDeleteभोला-कृष्णा
बढ़िया प्रस्तुति शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे आये आपका में अभिनानद करता हु
दीप उत्सव स्नेह से भर दीजिये
रौशनी सब के लिये कर दीजिये।
भाव बाकी रह न पाये बैर का
भेंट में वो प्रेम आखर दीजिये।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
दिनेश पारीक
Naam, jap aur yog ko aapne apni rachna se aur bhi mahatwapurna bana diya.. Itni sundar rachna ke liye aabhar..
ReplyDeleteAwesome read...
ReplyDeletelogic wid mythology makes ur writing worth a read !!!
आदरणीय राकेश जी मान देने का आभार आप गुनीजनो से स्नेह पाके अच्छा लगता है ।
ReplyDeleteमैंने पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ीं बेहद सारगर्भित और ज्ञान से परिपूर्ण शायद येही वजह है की मैं इस पोस्ट में इससे सम्बंधित जानकारी यहाँ एकत्रित कर रहा हूँ ।
मुझे बहुत ज्ञान नहीं थोडा बहुत बस आप जैसे साधू संतों के सानिध्य से उन्हें पढके ही जाना है ।
मेरा ये गंभीरता से मानना है की सत्संग में अहम् व स्वार्थ हटा के बैठना चाहिए लेकिन मुझसे कोई भूल जाये तो बिना हिचक त्रुटी बताके मार्दर्शन करें यदि ध्रष्टता हो जाए तो क्षमा ।
एक जानकारी जो नेट पर पायी उसका उल्लेख कर रहा हूँ:
जप तीन प्रकार का होता है- वाचिक उपांशु और मानसिक ।
वाचिक जप में नाम बोलकर जपते हैं
उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिसे दूसरा न सुन सके। मानसिक जप में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते। तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है।
अथार्त मानसिक जप सबसे श्रेष्ठ है ।
सके साथ ही नाम जप में एक सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य ये भी है
जिसे ऊपर किसी सत्संगी भाई ने कहा था की परमात्मा के जिस नाम को जपा जाये उसका रूप ध्यान किया जाये यदि हम निर्गुण अथार्त निराकार ब्रह्म का रूप ध्यान करना चाहते हैं जैसे ऊ को जपते समय उसके लिए निर्गुण ब्रह्म के विशेषणों (गीता १२-३/४) के अनुसार जपना चाहिए ।
परन्तु यदि ऊ के साथ हम सगुन(साकार) भगवान् का ध्यान करते हैं तो हमे उसी के अनुसार प्रभु के रूप का चिंतन करना चाहिए जैसे हम राम नाम का जप कर रहे हैं तो हमे श्रीराम हाथ में धनुष लिए दिखाई देने चाहिए या हम दुर्गा माँ का ध्यान कर रहे हैं तो हमे माँ अपने शेर पे बैठे ध्यान में लानी चाहिए इत्यादि ।
सत्संगी भाई बहनों को पढ़ा बहुत अच्छा लगा यूँ ही जानकारी देते रहें।
आदरणीय राकेश जी मैंने देखा एक महीने में एक पोस्ट बहुत कम है आप जैसे गुनीजनो का मार्गदर्शन व ज्ञान
हमे और मिलना चाहिए ।
पुनः आपको व आपकी लेखनी को कोटि नमन
साधुवाद !
Human has left a new comment on your post "सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -५":
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी मान देने का आभार आप गुनीजनो से स्नेह पाके अच्छा लगता है ।
मैंने पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ीं बेहद सारगर्भित और ज्ञान से परिपूर्ण शायद येही वजह है की मैं इस पोस्ट में इससे सम्बंधित जानकारी यहाँ एकत्रित कर रहा हूँ ।
मुझे बहुत ज्ञान नहीं थोडा बहुत बस आप जैसे साधू संतों के सानिध्य से उन्हें पढके ही जाना है ।
मेरा ये गंभीरता से मानना है की सत्संग में अहम् व स्वार्थ हटा के बैठना चाहिए लेकिन मुझसे कोई भूल जाये तो बिना हिचक त्रुटी बताके मार्दर्शन करें यदि ध्रष्टता हो जाए तो क्षमा ।
एक जानकारी जो नेट पर पायी उसका उल्लेख कर रहा हूँ:
जप तीन प्रकार का होता है- वाचिक उपांशु और मानसिक ।
वाचिक जप में नाम बोलकर जपते हैं
उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिसे दूसरा न सुन सके। मानसिक जप में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते। तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है।
अथार्त मानसिक जप सबसे श्रेष्ठ है ।
सके साथ ही नाम जप में एक सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य ये भी है
जिसे ऊपर किसी सत्संगी भाई ने कहा था की परमात्मा के जिस नाम को जपा जाये उसका रूप ध्यान किया जाये यदि हम निर्गुण अथार्त निराकार ब्रह्म का रूप ध्यान करना चाहते हैं जैसे ऊ को जपते समय उसके लिए निर्गुण ब्रह्म के विशेषणों (गीता १२-३/४) के अनुसार जपना चाहिए ।
परन्तु यदि ऊ के साथ हम सगुन(साकार) भगवान् का ध्यान करते हैं तो हमे उसी के अनुसार प्रभु के रूप का चिंतन करना चाहिए जैसे हम राम नाम का जप कर रहे हैं तो हमे श्रीराम हाथ में धनुष लिए दिखाई देने चाहिए या हम दुर्गा माँ का ध्यान कर रहे हैं तो हमे माँ अपने शेर पे बैठे ध्यान में लानी चाहिए इत्यादि ।
सत्संगी भाई बहनों को पढ़ा बहुत अच्छा लगा यूँ ही जानकारी देते रहें।
आदरणीय राकेश जी मैंने देखा एक महीने में एक पोस्ट बहुत कम है आप जैसे गुनीजनो का मार्गदर्शन व ज्ञान
हमे और मिलना चाहिए ।
पुनः आपको व आपकी लेखनी को कोटि नमन
साधुवाद !
Posted by Human to मनसा वाचा कर्मणा at October 28, 2011 3:25 PM
दिवाली की व्यस्तता के कारण समय पर उपस्थित नहीं हो सका... आपका अध्यात्मिक चिंतन प्रेरित करता है... शांति देता है.. आपके पास अध्यातिम्क ज्ञान का विपुल भंडार है... और हम लाभान्वित हो रहे हैं... सीता जी पर अध्यात्मिक चिंतन अन्यत्र नहीं पढ़ा था... अनुपम ...
ReplyDeleteRakesh bhaiya - अभिभूत हूँ | इतना भक्तिमय सुन्दर सद्चिन्तन !!!! आपके ब्लॉग पर आना सत्संग है |
ReplyDeleteआज तो Human जी की टिप्पणियां पढ़ कर भी अद्भुत आनंद मिला |
वैसे एक कथा है - "श्री राम नाम " और "श्री राम बाण " की शक्ति में किसकी शक्ति अधिक है - इस पर | यदि आप उसे भी यहाँ सुनाएं - तो बहुत अच्छा होगा |
आभार आपका - इतनी सुन्दर पोस्ट के लिए |
शिल्पा बहिन,
ReplyDelete'श्री राम नाम' और 'श्री राम बाण' की शक्ति में किसकी शक्ति
अधिक है की कथा आप जरूर जानतीं हैं तो आप ही सुनाये न.
सभी का भला होगा.
मुझे तो बस इतना ही पता है कि 'राम ते अधिक राम का नामा'.
'Human' ji की टिप्पणियाँ वास्तव में अनमोल हैं.
आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख..मन को बहुत शान्ति मिली..आभार
ReplyDeleteभैया - जानती तो हूँ - पर आप जैसी सुन्दर परिभाषाओं के साथ सुनाने की (अभिव्यक्ति की ) मुझमे काबिलियत नहीं है | दूजे - यहाँ कथा होगी तो कम लोग पढ़ पायेंगे - जबकि आप सुनायेंगे तो अधिक जनों तक पहुंचेगी | तो कथा आपको मेल से भेज देती हूँ - आप आगे जब समय मिले - उसे आपके शब्दों में पोस्ट कर दीजियेगा |
ReplyDelete:)
आपकी बहन :)
आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख ,बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ पढ़कर सही कहा आपने प्रभु का नाम जपने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है सीता जी की सुरक्षा के विषय में पूछने पर हनुमान जी ने जो बताया वह पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleterakeshji...
ReplyDeleteआपका ब्लॉग गंगा नदी की पवित्र धारा सा है..
जिसमें हम सभी समय-समय पर डुबकी लगा कर
धन्य हो जाते हैं..इतना गहन अध्ययन और विवेचना
अब धीरे-धीरे असंभव ही होती जा रही है...
अब लोग इन सब ग्रंथों और चरित्रों का वर्णन अपने किये हुए
किसी कार्य को justify करने के लिए प्रयोग करते हैं...न कि उनसे
सीख लेने के लिए...फिर चाहे राम हो या कृष्ण,राधा हो या सीता.
आज के समाज में हर कोई अपने आप को सही साबित करने की
होड़ में है....अब इन सब चरित्रों में जिससे उनका मिलान हो जाए..
बस उदाहरण स्वरुप हम उसे ही सबके सामने रखते हैं...!
शायद हम वही लेख और कथानक पढ़ते भी हैं जो हमारी सोच और
विचारों से मेल खा जाएँ और हम अक्सर उदाहरण के लिए उन्हें ही
प्रस्तुत भी करते हैं...!!
आज के परिवेश में आध्यात्मिकता शायद कुछ ऐसी ही हो गयी है
कि कुछ भी कह कर हम अपने आप को,अपने विचारों को सही साबित कर सकें..!
वैसे मैं थोड़ा विषय-वस्तु से हट गयी..! क्षमा करें मुझे...!!
आपके ब्लॉग की पवित्रता हम सबको समय-समय पर
मार्ग-दर्शन देती रहे....माँ जानकी से यही प्रार्थना है हम सबकी...!!
***punam***
bas yun..hi...
tumhare liye...
बहुत ही प्रेरणादायक प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की हलचल आज (30/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक आलेख.
ReplyDeleteआपकी पोस्टों पर टिप्पणी करना मेरे बूते के बाहर की बात है.
ReplyDeleteमैं तो अंतिम पंक्ति में बैठा हुआ व्यक्ति हूँ.
आपके आलेखों को पढ़ना,मनन करना,सुधीजनों की टिप्पणियाँ पढ़ कर आनंद लेना मेरे प्रिय कार्य है.
मुआफी चाहूंगा अगर आप को लगा कि मैं आप के ब्लॉग तक नहीं पहुंचा.
देख लीजिये ,आप के ब्लॉग पर दीवानों का मेला लगा है.
असल में हर आत्मा परमानंद की तलाश में है.
लेकिन परमानंद से दूर है क्योंकि शाब्दिक आनंद प्राप्त कर के खुश हो लेती है.
दूसरे व्यावहारिक रूप में किसी अध्यात्मिक कार्य को करने अभिलाषा कम है.
तीसरे अध्यात्म मार्ग पर आवरण ओढ़े बैठे हैं गुरु लोग .और भक्तजन pretend करते हैं.
सो इस मार्ग का अंत एक अंधेरी गुफा में जाकर होता है.
आप जैसे चंद गुणिजन इस मार्ग पर जिस विश्वास के साथ चल रहे हैं उसकी प्रशंसा करने से पहले ही आँख भर आती है .
मेरे अश्रु ही आप के लेखन के लिए योग्य टिप्पणी है,अगर आप स्वीकार करें तो.
प्रिय राकेश जी, पहले तो मैं इस बात के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपकी इतनी ज्ञानमयी व मन व आत्मा के चक्षु खोलने वाले इस लेख पर बिलम्ब से आ पाया,शायद मेरे पूर्व अर्जित पुण्यों में कुछ कमी है, कहते हैं न- एहि सर आवत अति कठिनाई।राम कृपा विनु आइ न जाइ।
ReplyDeleteआपने कितना उत्तम उद्धरण दिया - आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते । सच्चा योग तो उस परमपिता के नाम के जप व चिंतन ही है, क्योंकि केवल परमात्मा व उनका नाम सम्पूर्ण है, और हमारा सुख,शांति व देवत्व तो सम्पूर्णता ही है। पुनः इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक आभार व बधाई।
"जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि का अन्न है,इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,"....
ReplyDelete---सुंदर ...
योग में तब तक आरूढ़ नहीं हुआ जा सकता जब तक कि परमानन्द का मनन न हो और उसे पाने की इच्छा न हो.
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेख को पढ़कर आत्मा पवित्र हो गई.आभार.
आदरणीय भाई राकेश जी आप तो इन्टरनेट के गोस्वामी तुलसीदास हो गए हैं |पूरी पोस्ट राममय या भक्ति भाव से भरी है स्वयं मैं तुलसीदास को महान कवि मानता हूँ क्योंकि रामचरितमानस इतना पठनीय ग्रन्थ इस धरती पर दूसरा नहीं है |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
ReplyDeleteअब पहले से बिना काफी पिए, काफी बेहतर हूं। दवाईयां अवश्य पीनी-खानी पड़ रही हैं। बहरहाल, आपके लेख चिंतन मनन के लिए बेहतर खुराक हैं।
ReplyDeleteराकेश जी उम्मीद करती हूँ कि दिवाली बहुत अच्छे से मनाया आपने अपने परिवार के साथ ! पर्थ में कुछ पता ही नहीं चला कब दिवाली शुरू हुआ औ कब ख़त्म ! खैर हम तीन दिन के लिए घूमने गए थे!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
उलटा नाम जपा जग जाना बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना ।
ReplyDelete----अब और अधिक नाम महिमा क्या कहा जाय...
aapke likhe har shabd ki seekh bahut hi gehri hai....mann mein ek prasanata si ho jati hai hamesha se hi aapka blog padh kar!!!
ReplyDeletehumare blog par aane ka shukriya:)
आपके ब्लॉग को सत्संग नाम देती हूँ मैं ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भक्तिभाव से परिपूर्ण आलेख|
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
aadarniy sir
ReplyDeletebahut dino baad aapke blog par aai hun .hriday se xhama chahti hun.
sir aapke is anupam kriti ke liye muhe shabd nahi mil rahen hain.jitni vilaxhanta ke saath aapne jap ke mahtv ko vyakhyiit kiya hai utne hi mere shabd aapko comments karne ke liye tukxh lagte hain.
aap jis prkar se bhakti bhav me samahit hokar apne antarman ke udgaron ko shabd roop me prastut karte hain vah atulniy hai aapki har post ki sarthakta isi se sidhh ho jaati hai ki aapko padhne wale bhi bhakti bhav me purn taya leen ho jaate hain .bahut hi gahan adhdhyayan karte hain aap.aapki yah vishhisht pratibha kisi ke comments ki mohtaaj nahi hai.
aage kya likhun----------
shabd nahi mil pa rahe hain is anupam kriti ke liye .aap aise hi hamara marg -darshan karte rahain.bas isi ki abhilashi hun.
sadar naman ke saath
poonam
Thanks Rakesh ji for your encouraging comments on my blog. Please dont add ji, after my name, I am very much younger than you.
ReplyDeleteI am always short of words after reading your posts, they inspire and freshen up the mind instantly.
Keep posting Sir:)
सबसे पहले मैं आप से देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ त्योहारों के होने की वजह से जल्दी नहीं आ पाई पर आपकी पोस्ट बिना पढ़े कैसे रह जाती इसलिए आ गई |
ReplyDeleteआनंद की परिकाष्ठा परमानन्द है. हर मनुष्य में चिंतन मनन करने की स्वाभाविक
प्रक्रिया होती है.परन्तु , परमानन्द का चिंतन करना ही वास्तविक सार्थक चिंतन है.परमानन्द
परमात्मा का स्वाभाविक रूप है ,जिससे जुडना 'योग' कहलाता है. जब मनुष्य परमानन्द
के विषय में चिंतन मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा उससे जुड़ने का यत्न भी करता है
तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है........आपकी इतनी सी बात ने ही सारे लेख का सार समझा दिया पर पूरा लेख पढकर बहुत अच्छा लगा बहुत कुछ सिखने और समझने को मिला आपका बहुत - बहुत शुक्रिया :)
अतिसुन्दर...वाह!
ReplyDeletethnx for your appreciation..........
ReplyDeleteतभी तो कहते हैं " राम से बड़ा राम का नाम "...
ReplyDeleteनाम जप के अभूतपूर्व परिणामों को साक्षात् अनुभव किया है ....
बहुत आभार एवं शुभकामनायें !
sundar aalekh
ReplyDeleteआपका लेखन इतना गहन एवं गूढ़ होता है कि उसे हल्के स्तर पर पढ़ना तथा आत्मसात करना तो संभव ही नहीं है ! एक सार्थक चिंतन एवं दिशा दिखाता यह आलेख भी अनुपम है ! देर से आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ! कारण एक ही है दीपावली के त्यौहार की वजह से अतिरिक्त व्यस्तता ! अनेकानेक शुभकामनायें व साधुवाद स्वीकार करें !
ReplyDeleteखोजी हुआ शब्द का, धन्य सन्त जन सोय
ReplyDeleteकह कबीर गहि शब्द को, कबहूँ न जाये बिगोय.gudh aadhyatm ka daan
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
ReplyDeleteइसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.
राकेश जी क्षमा प्रार्थी हूँ .....जो पहले आपके आग्रह पर भी आपकी पोस्ट नहीं पढ़ पाई....आपकी पोस्ट सरसरी तौर से नहीं पढ़ी जा सकती....थोडा समय ले कर भली-भाँती समझना होता है ...
बहुत गहन चिंतन किया है जप का ...आनंदित हो गया मन ....!!
निम्नलिखित टिपण्णी श्री संजय(ब्लॉग:मो सम कौन कुटिल खल)ने मेल द्वारा प्रेषित किया है:-
ReplyDeleteराकेश सरजी,
सुप्रभात.
कमेंट पब्लिश नहीं हो पा रहा है, इसलिये मेल कर रहा हूँ।
"कल कहीं जा रहा था तो गाज़ियाबाद से होकर निकलना हुआ। यकीन कीजिये, सबसे पहले आपका ध्यान आया और रात को मेल चैक किया तो आपका प्रेम पगा उलाहना। आज सोचकर आया था कि अनुपस्थिति का स्पष्टीकरण दूँगा, पोस्ट तो पहले ही पढ़ चुका था लेकिन फ़िर से पढ़ने पर डाक्टर नूतन और human के कमेंट्स पढ़कर और भी खुशी हुई।
स्पष्टीकरण अलग से नहीं दे रहा, विशाल भाई की टिप्पणी का शुरुआती 90% चुराकर आपको पेश। जिस दिन मन से सरल हो गया तो शेष १०% अश्रु भरे नयन वाला भी पेश कर देंगे। विशाल भाई हमपेशा भी हैं, नाम के अनुसार विशाल ह्रदय वाले भी हैं, टिप्पणी चुराने का बुरा नहीं मानेंगे:)
कमेंट देर से करता हूँ भाई साहब, लेकिन बार बार आकर आनंद से सरोबार जरूर होता हूँ। कमेंट न करने के पीछे थोड़ा सा अपराधबोध भी है, उसे स्पष्ट करने लायक शब्द नहीं हैं।
छोटा हूँ आपसे, दिल से कामना है कि आपका विश्वास औरों के दिल में भी विश्वास की सकारात्मक लौ जलाये रखे।"
सादर
--
संजय
http://mosamkaun.blogspot.com/
आपके ब्लॉग पर आकर एक अलौकिक दुनिया में खो जाने का मन करता है.... अति सुन्दर पोस्ट.
ReplyDeleteनाम जप के महत्व के सम्बन्ध में मैं यहाँ पर 'सीता लीला ' का एक संक्षिप्त वर्णन करना चाहूँगा.
ReplyDeleteजब हनुमान जी सीता जी की खोज करके राम जी के पास लौटे तो राम जी ने उनसे पूछा कि हनुमान
जी यह बतलाइये कि लंका में राक्षस राक्षसनियों के बीच घिरी सीता जी अपने प्राणों की रक्षा किस
प्रकार से कर रहीं हैं.तब इस प्रश्न का उत्तर हनुमान जी इस प्रकार से देते हैं (श्रीरामचरितमानस,
सुन्दरकाण्ड, दोहा संख्या ३०):-
नाम पाहरू दिवस निसि, ध्यान तुम्हार कपाट
लोचन निज पद जंत्रित , जाहिं प्राण केहिं बाट
atyant sarthak adhyatm-chintan...
man aahladit ho gaya .
"अति पावन मन आज है, पाया पुण्य प्रसाद
ReplyDeleteपहले क्यूँ न पहुँच सका, इसका भी अवसाद"
चारों युग हमारे ही हृदय में
घटित होते रहते हैं.....
सचमुच! बहुत सुन्दर चिंतन/विवेचन...
सादर नमन...
राकेश जी, आपकी इस पोस्ट को डैशबोर्ड पर , न पाने की वजह से सत्संग से वंचित रह गया. खैर देर से जाने का एक फायदा जरूर हुआ की विषय पर सम्बंधित प्रवचन, और सुधीजनों की भावनाए सत्संग को और पावन बना रही है. किसी ने सच कहा है आप नेट के गोस्वामी तुलसीदास है और यूं ही रामायण रचते रहे.मेरा भी नमन राकेश जी
ReplyDeleteलीजिये आ गई आपके ब्लॉग पे .....
ReplyDeleteसद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
इसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को
धारण कर सबल होने लगता है,जिससे चंचल मन और बुद्धि भी स्थिर होते हैं...
इतना ज्ञान कहाँ से आया आपमें .....?
जप कैसे करते हैं ...?
अगर माला तो कर में फिरे aur मनुआ चहूँ दिसाये तो ...???
respected rakesh kumar ji.... mafi chahti hun... kaam vaystata ke karan apke blog par nhi aa paayi.... man ko shanti deta prabhaavshal aalekh... sadar abhaar....
ReplyDeleteआदरणीय हरकीरत 'हीर' जी,
ReplyDeleteआपका नाम ही 'हर'का स्मरण करता है जी.
आपने निम्न प्रश्न किये हैं
इतना ज्ञान कहाँ से आया आपमें .....?
जप कैसे करते हैं ...?
अगर माला तो कर में फिरे aur मनुआ चहूँ दिसाये तो ...???
मैं अपने स्व-विवेक से आपको उत्तर दे रहा हूँ.
(१)आपके ज्ञानपूर्ण विवेक ने ही मेरे ज्ञान को
आँक कर यह प्रश्न किया.अत: यह प्रश्न ऐसे भी उत्तरित हो सकता है कि जहाँ से आपको ज्ञानपूर्ण विवेक मिला,वहीँ से मुझे भी ज्ञान मिला.
(२)ऊँ, राम,वाहे गुरू,अल्लाह,यीशु आदि आदि निर्देशित किसी भी नाम का बार बार स्मरण व उच्चारण करना जप कहलाता है.जिससे साँस लयबद्ध होता है,मन बुद्धि शांत व स्थिर होते हैं.
इन नामों में जैसे जैसे आपके सकारात्मक भाव और विचार समाविष्ट होते जायेंगें उतना ही नाम जप गहन और असरकारक होता जायेगा.नाम का उच्चारण बिना बोले मन ही मन,बिना बोले केवल जीभ व होंठों को हिलाकर या बोलकर करते हैं.Human जी ने
अपनी उपरोक्त टिप्पणियों में 'जप करने पर' अच्छा विश्लेषण किया है.
(३) यदि हम नकारात्मक चिंतन रखें,और मन को नाम पर केंद्रित न करके अन्यत्र डुलायें,केवल दिखावे के लिए माला हाथ में ले लें तो यही होगा जो आपने कहा यानि
अगर माला तो कर में फिरे aur मनुआ चहूँ
दिसाये तो ...???
तो ईश्वर ही मालिक है,जी..
सच कहा आपने - ईश्वर ही मालिक है !
ReplyDeleteएक और ज्ञान से भरी पोस्ट के लिए बधाई !
ek baar pahle bhi padh chuki hun, lekin comments dena bhool gayee thi... bhool wali koi baat nahi.. bus samay bahut kam mil paata hai..bhala aap logon se door hokar jaayinge kahan....
ReplyDeleteaadhyatmik mera bhi ruchikar vishay hai.. aadhaymik chintan padhkar bahut achha laga..
bahut si baaten man ko bahut sukun pahuchati hai..
saadar.
राकेश जी, आपकी पूरी पोस्ट पढ़ी, बहुत अच्छा लगा आपने जप का महत्व बताया। मुझे भी लगता है सारे दिन की थकान दूर कर देता है सिर्फ़ पाँच मिनिट का जप भी। आपने इसे योग कहा यह भी सच है प्राणायाम ऊँ ध्वनि का उच्चारण शान्त चित्त से जब भी किया जाता है मुझे लगता है मै मेरा मन बहुत शान्त हैं। बस अधिक कुछ नही जानती हूँ। आप तो ज्ञानी हैं कुछ गलत लिखा तो क्षमा करें।
ReplyDeleteसादर
इस पोस्ट को रोज़ आ कर पढ़ जाती हूँ राकेश भैया - अच्छा लगता है यहाँ | आपके लिखे पर टिप्पणी कर पाने की काबिलियत मेरी नहीं है - तो चुप ही निकाल जाती हूँ |
ReplyDeleteआज हरकीरत हीर जी के कुछ प्रश्न देखे, आपके उत्तर भी | यदि आप और वे दोनों ही बुरा ना माने तो कुछ कहना चाहूंगी
१) @ इतना ज्ञान ...
ज्ञान हमें आ ही नहीं सकता उसके बारे में - उसका ज्ञान पाने की चेष्टा ऐसी है जैसे हम गागर में सागर भरना चाहें | यदि ज्ञान से पाने जायेंगे - तो कभी पा नहीं सकेंगे - कि ज्ञान के परिभाषा तो विज्ञान जैसी है - तो गागर में सागर कैसे आयेगी ? उसे पाना हो, खोजना हो - तो सिर्फ भक्ति और प्रेम से पाया जा सकता है | उसे नापने लायक instruments हमारे पास नहीं हैं - गीता के दौरान अर्जुन को दिखाए दिव्य रूप को सिर्फ दिव्य दृष्टी से देखा जा सकता था - (संजय और पार्थ ने देखा था - और किसी ने नहीं ) - तो हमारी आँखें कैसे देखेंगी? भागवतम में कहा है - कि प्रभु अनंत हैं - उनके गुण अनंत हैं, उनका ज्ञान भी अनंत है, और वे अनादि समय से अनंत समय तक हैं | किन्तु वे स्वयं भी इस अनंत समय में भी अपने सारे गुणों को नहीं जान पाए - कि जितने भी अनंत गुण वे अपने अनंत ज्ञान से देख जान पाते हैं - उससे भी अनंत अधिक गुण बचे रह जाते हैं | तो जब वे खुद नहीं जानते अपने गुण - तो हम कैसे उन्हें "ज्ञान" से पा सकते हैं ? यह कोशिश ही नहीं हो - तो ही उसे पाने की कोई संभावना है - नहीं तो नहीं है |
२) @ जप कैसे करते हैं ?
* जप क्या है ? क्या सिर्फ नाम गिनना जप है ? जैसा ऊपर human जी ने कहा है - जप और जाप में फर्क है | मैं महिमा कम ज्यादा होने की बात नहीं कर रही हूँ - पर दोनों में फर्क तो है |
* अब हम ऐसे सोचें - कि मुझे बुखार है - यदि डॉक्टर मुझे कोई दवाई खाने कहें - और मैं विश्वास पर उसे खा लूं - बिना उसे जाने - तो भी वह मुझे फायदा तो करेगी ही ना ? अविश्वास से भी खायी - तो भी फायदा करेगी - परन्तु तब मैं शायद उसकी पूरी dose ठीक से न खाऊँगी | जबकि यदि मुझे उस डॉक्टर पर पूरा अविश्वास हो तो मैं दावा खाऊँगी ही नहीं - तो फायदा करने का सवाल ही नहीं है | :)
* यदि मैं प्रभु का जप करूँ - मन से, बेमन से - तो भी - उसका असर तो होगा ही - परन्तु असर में फर्क होगा |
* परन्तु मेरा विश्वास कम हो / न हो - तो या तो मैं जप करूंगी नहीं - या बेमन से ....
३) अगर माला तो कर में फिरे aur मनुआ चहूँ दिसाये तो ...???
* एक बात कहेंगी - बिल्कुल नोर्मल सी ?
* क्या आपने "एक दूजे के लिए " या ऐसे ही कोई दीवानगी भरी प्रेमकथा आधारित फिल्म देखी है कभी ? उसमे heroine सपना (रति अग्निहोत्री ) अपने hero (कमल हसन) का नाम "वासु" अपने कमरे की दीवारों पर पूरा लिख देती है | क्या आपको लगता है कि वह नाम लिखते उस नायिका (सपना) का मन कही और भटका होगा ? नहीं - क्योंकि - वह काम (कर्म) उसके लिए "ड्यूटी" ( धर्म) नहीं था - बल्कि love (प्रेम) था | परन्तु असलियत में उस फिल्म के सेट पर जिस मजदूर ने शूटिंग के लिए नाम लिखा - उसका मन तो भटक रहा होगा - मेरा बच्चा मेरी पत्नी आदि में ? क्योंकि उसके लिए यह एक ड्यूटी थी - जिसकी उसे मजदूरी मिलनी थी |
* इसी तरह यदि हम जप इसलिए करें कि यह duty है - तो मन भटकेगा | पर यदि उस नाम जप के पीछे प्रेम (भक्ति) है - ( यह नहीं कि मुझे जपना चाहिए इसलिए मैं जप रही हूँ ) तो मन भटक ही नहीं सकता | जब माँ के आगे बच्चा पहली बार चलता है, नाचता है - बोलता है - तो क्या माँ का मन कही और भटक सकता है ? नहीं - क्योंकि उससे प्यारा उस माँ को कुछ है ही नहीं जो उसे उससे खींच सके | इसी तरह जब मेरा कान्हा मुझे इतना प्यारा हो जाये कि मैं उसका नाम बरबस ही लेती रहूँ, मेरा मन रोये उसका नाम लेने को, नाम लिए बिना साँस रुकने सी हो जाए - तब यह प्रेम है (जैसा मीरा का प्रेम है, जैसा राधा का खिंचाव है, जैसी सीता की भक्ति है ) - वह नाम जप असल है | मन भटकने का सवाल ही नहीं उठेगा |
अब यह हरेक का अपना desision है कि वह डॉक्टर पर विश्वास ना करे और दवा ना खाए, या विश्वास करके बिना समझे खाए, या dutifully करे, या प्रेम से करे | हर एक कर्म के अपने असर हैं - और डिग्री के अनुरूप अलग असर होते हैं |
राकेश भैया -माफ़ी चाहूंगी - कुछ अधिक ही बोल गयी शायद :(
:)
शिल्पा बहिना,
ReplyDeleteआप क्यूँ माफ़ी मांग रहीं हैं जी ?
कहाँ अधिक बोल गयीं आप.
भूल गयीं क्या कि जो भी बोली हैं आप,
वह सब कान्हा ही ने तो बुलवाया है आपसे.
बहुत अच्छा लगा आपका यूँ बोलना.
आपपर तो राम जी की कृपा है.
सुंदर पोस्ट पढकर भक्तिमय हो गया,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख आपने ठीक ही कहा
ईश्वर ही सबका मालिक है..बधाई
मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है.....
:)
ReplyDeleteजी राकेश भैया - बात तो सही है :)
@ राम जी की कृपा - हाँ भैया - वह तो है ही | वह तो हम सब पर ही है ना भैया - सिर्फ मुझ पर ही क्यों ? :)
जय हो!
ReplyDelete.बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..
ReplyDeleteएक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com/
http://khanamasala.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराकेश जी बहुत -बहुत आभार .....
ReplyDeleteगुरु नानक ने भी यही कहा है .....
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
आपने बहुत सुन्दरता से मेरी शायरी और कविता पर टिप्पणी दिया है जिससे मेरे लिखने का उत्साह दुगना हो गया! बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteमैं रोज़ सुबह उठकर भगवान से सबके लिए मंगल कामना करती हूँ और सबको ख़ुशी दे सकूँ हमेशा ये कोशिश करती हूँ! अगर हम मेहनत करें तो भगवान से कुछ भी माँगने की ज़रुरत नहीं होती बल्कि भगवान बिन मांगे ही सब कुछ दे देते हैं जैसे की मुझे सब कुछ मिला है ! मेरे माँ पिताजी दादीमा के आशीर्वाद से तथा सभी गुरुजनों से एवं ढेर सारा प्यार अपने दोनों भाई से और बेपन्हा मोहब्बत करने वाला इतना अच्छा हमसफ़र मिला है! मैं 'नाम जप' पर बहुत विश्वास करती हूँ और रोज़ाना मुमकिन नहीं होने पर दो-तीन दिन बैठती हूँ और मन को बड़ा सुकून मिलता है! जब मैं 'नाम जपना' शुरू करती हूँ धीरे धीरे सब कुछ भूलकर भगवान के पास चली जाती हूँ और ऐसा लगता है कि मेरे सामने स्वयं भगवान पधारे हैं और मेरे सर पर हाथ फेर रहे हैं! एक अलग अनुभूति होती है 'जब' करने के समय और मन को इतनी शांति मिलती है जो शब्दों में कहकर नहीं बताया जा सकता!
मेरे नए पोस्ट "वजूद" में आपका स्वागत है.....
ReplyDeleteAapki agli prastuti ke intezaar mein.
ReplyDeleteShubh Din, Rakesh Kumar ji.
राकेश पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ बहुत अच्छी अद्ग्यत्मिक प्रस्तुती ....राम नाम के बारे में तुलसी दास जी कहते है ...राम नाम सुन्दर कर तारी ,शंशय बिहग उडावन हारी
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन व ज्ञानवर्धक आलेख राकेश जी.....
ReplyDeleteजीवन में मनसा वाचा और कर्मणा में कोई अंतर नहीं होना चाहिए
ReplyDeleteबेहद ज्ञान वर्धक आलेख आपकी इस पोस्ट पर आकर मन प्रसन्न हो गया आभार....
ReplyDeleteRespected Rakesh ji,
ReplyDeleteIt feels great to read such a meaningful post.
I like this post very much. Thanks!
Rakesh ji,
ReplyDeleteYou're a regular visitor of my blog. Your comments are also very encouraging Many many thanks for this.
bahut sundar aalkeh Rakesh ji aapko bhaut bhaut badhaayi.
ReplyDeletemanojbijnori12.blogspot.com
आपके ब्लॉग पर आना कुछ पल सद संगति में रहकर सत की खोज करने जैसा है।
ReplyDelete...जय हो।
सीता जन्म की सभी कड़ियाँ एक साथ पढीं, अभी जो ह्रदय की दशा है शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकती...क्या अनुपम अलौकिक व्याख्या आपने की है कि ह्रदय गद गद हो गया..
ReplyDeleteनाम जप तथा स्मरण को साधारण ढंग से हम ऐसे समझ सकते हैं कि ,जैसे हमारे अपने किसी प्रिय जिनके कर्म व व्यक्तित्व से हम अतिशय प्रभावित रहते हैं,उनका सतत स्मरण चिंतन तथा गुणगान हम स्वाभाविक रूप से करते रहते हैं...और यह अवस्था जब स्थिर हो जाती है तो अनजाने ही अपने स्नेही के गुण धर्म हमारे व्यक्तित्व में उतरने लगते हैं और हमें पता भी नहीं चलता...
ठीक ऐसे ही जब गुनागार प्रभु का हम स्मरण चिंतन और गुणगान(नाम जप) करते हैं तो दैवीय गुण हमारे चित्त में स्थापित होने लगते हैं..
(इधर ब्लॉग विचरण ऐसे बंद था कि अपने ही ब्लॉग पर जाना कठिन हो गया था,इसी कारण आपके आलेखों तक भी न पहुँच पायी क्षमा कीजियेगा...)
ये कहने आई हूँ..आप अच्छी कविता भी कर लेते हैं..बीच-बीच में हमें अपनी रचनाओं का आस्वादन कराये. आपकी टिपण्णी से मुझे ऐसा लगा. बाकी आपकी इच्क्षा .. ये निवेदन आया मन में तो कह दिया.
ReplyDeleteYou are welcome at my new posts-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://urmi-z-unique.blogspot.com/
नाम जप का महत्व सभी संत बताते हैं पर आम आदमी का यह जप भी यात्रिक सा हो जाता है । पचासों काम ठीक उसी वक्त याद आते हैं । पर करते रहना चाहिये यही सोचती हूँ । धीरे धीरे मन स्थिर हो ही जायेगा इस आशा में
ReplyDeleteअपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
ReplyDeleteऔचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
नमस्ते राकेश जी... अगली पोस्ट का इन्तजार है..
ReplyDeleteआदरनीय राकेशजी!
ReplyDeleteआप ने हमारे ब्लॉग पर जो टिपण्णी की, उसकेलिए हम अत्यंत आभारी हैं| हिंदी में हमारे ज्ञान बहुत ही तुच्छ हैं| फिर भी हम अगर कुछ लिख पा रहे तो वह सिर्फ हिंदी के प्रति हमारे लगाव हैं| इसलिए आपके टिपण्णी हमें और भी हौसला देती हैं| अनेक अनेक धन्यवाद!
आप हमारे ब्लॉग से जुड़ गए, यह हमारेलिये गर्व की बात हैं| धन्यवाद!
आप के ब्लॉग पढ़कर हमें अच्छा लगा| वैसे तो हिंदी हमारी मातृभाषा नहीं हैं, फिर भी हम हिंदी पढने और लिखने का साहस करते हैं|
आप ने नाम जप के बारे में जो भी लिखा वह बिलकुल सही हैं... कहते हैं दुसरे युगों में जो पुन्य सौ सौ याग करके प्राप्त होतें हिएँ, वह कलि युग में केवल नाम जप से सिद्ध होते हैं| दुःख की बात यह हैं की बहुत कम लोग इस पर ध्यान देतें हैं| आशा करते हैं की आप जैसे लोगों के द्वारा यह ज्ञान ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और सब अपने जीवन को बदले!
हार्दिक शुबकामनाएं!
Mujhe aapke blog pe aamantrit karne ke liye tahe dil se shukriya! Kamaal kee shrunkhala shuru kee hai aapne.Abhi to ek hee kadee padhee hai,lekin ab jald hee urvarit kadiyan padh loongee.Bahut gahara gyaan milega.
ReplyDeleteYou are welcome at my new posts-
ReplyDeletehttp://khanamasala.blogspot.com,
http://seawave-babli.blogspot.com,
http://urmi-z-unique.blogspot.com,
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com,
http://amazing-shot.blogspot.com
अरे काफी दिन से कुछ लिखा नहीं राकेश भाई ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सुधिजनों ने पंचतंत्र की कहानियों के विषय में सुना व पढा अवश्य होगा. कहते हैं इन कहानियों की
ReplyDeleteरचना अल्प समय में ही मंद बुद्धि राजकुमारों को नीति ,आचार व व्यवहार सिखाने के लिए की गई थी.
कहानियों के अधिकतर पात्र पशु पक्षी हैं ,जिनसे कहानियाँ इतनी रोचक व सरल हो गईं हैं कि उनका सार
सहज ही हृदयंगम हो जाता है.इसी प्रकार से गूढ़ आध्यात्मिक तथ्य श्रीरामचरितमानस व अन्य पुराणों
आदि में वर्णित कहानी व लीला के माध्यम से आसानी से ग्रहणीय हो जाते हैं.जरुरत है तो बस
इन कहानी और 'लीला' को रूचि लेकर पढ़ने की और सकारात्मक सूक्ष्म अवलोकन करके समझने की
अच्छा विश्लेषण
ब्लाग में आपका आमंत्रण मिला. धन्यवाद
राकेश जी,
ReplyDeleteपूर्व में दो बार इस पोस्ट पर आ चुका हूँ,
गुजारिश है सप्ताह में एक पोस्ट जरूर लिखे,
आपके नए पोस्ट के इंतजार में....
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,
Mera blog aapke comment ke intezaar mein hai aur mein aapki post ke intezaar mein hoon.
ReplyDeleteUmeed hai dono hi khwahish jaldi puri ho jayegi.
Shubh Din:)
श्री अशोक व्यास जी की निम्न टिपण्णी मेल द्वारा प्राप्त हुई है.
ReplyDeleteRakeshji
Naman
kisi karan se aapke blog par mera comment pahunch nahin paa raha tha
shayad mere computer mein kuchh setting check karne kee avashyakta hai
will look into that
filhaal
jo aapke blog tak nahin pahuncha hai
is mail dwara aap tak pahunchane kee swatantrata le rahaa hoon
राकेशजी
जय सियाराम!
इतने सरल, सटीक ढंग से मन के गूढ़ रहस्यों को खोल कर
उन्नत और आदर्श जीवन का पथ दरसाने वाली आपकी लेखनी
पर 'तुसलीदास'जी की कृपा है
हमारी पावन परम्पराओं में जो 'तर्कयुक्त क्रमबद्धता' है उसे भी
आप सहज ही प्रकट कर पाते हैं, भगवान् राम की असीम अनुकम्पा है
और आपके 'ब्लॉग' तक पहुँचने वाले सभी पाठकों के साथ साथ मैं भी
धन्य हूँ . आपने कहा
"जब मनुष्य परमानन्द
के विषय में चिंतन मनन करता है और मन बुद्धि के द्वारा उससे जुड़ने का यत्न भी करता है
तो वह 'मुनि' कहलाये जाने योग्य है."
प्रार्थना है की हम सब 'मुनि' कहलाने योग्य बन जाएँ
जय श्री कृष्ण
अहंकार की परिधि के पार
जब होता समर्पण श्रृंगार
बह आती मधुरातिमधुर
परमानन्द की रसधार
ऐसी पावन रसधार में नहायें
बहुत बहुत शुभकामनाएं
अशोक व्यास
You are welcome at my new post-
ReplyDeletehttp://urmi-z-unique.blogspot.com/
http://khanamasala.blogspot.com
is safar me ham bhi hamrahi hain aapke.
ReplyDeleteaabhar.
yog hi jivan ka sar hae aur aadhyaatma jivan ka aadhr achhi rachana................
ReplyDeleteआगे तो लिखिये..इन्तजार लगा है...
ReplyDeleteमनु श्रीवास्तव जी ने निम्नलिखित टिपण्णी मेल से प्रेषित की है:-
ReplyDeleteManu Shrivastav manoranjan001@gmail.com to me
rakesh ji.
i m very sorry.
main aapke post tak nahi pahuh paa rha hu mere intetnet ki tabiyat
kharab chal rahi hai. wo chalata kam hai gol gol jyada ghumata hai. n
mobile se frequently visit nahi ho pati. aapke blog pe blog se bhut
si nayi baate janane ko milati hai. mujhe usase lagaw hai
Behad khoobsoorati se likha hai aapne... mann kho jaata hai aapke shabdon mein... :)
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteहम तो ऐसे ही हैं,आप तो ऐसे न थे.
ठन्डे झोंकों जैसी टिप्पणी का इंतज़ार है.
विशाल has left a new comment on the post "सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -५":
ReplyDeleteराकेश जी,
हम तो ऐसे ही हैं,आप तो ऐसे न थे.
ठन्डे झोंकों जैसी टिप्पणी का इंतज़ार है.
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि का अन्न है|
ReplyDeleteआदरणीय श्रीराकेशजी, बिलकुल सही कहा आपने,
उमर खयाम कहते हैं," आत्मा ही अपना स्वर्ग और नर्क है ।"
वॉल्ट हिवप्मेन कहते हैं," निजी सद्गुणों के सिवा कुछ भी शाश्वत नहीं है ।"
मेरी बधाई कृपया स्वीकार करें।
मार्कण्ड दवे ।
bahut hi achchi aur sachchi rachna padhkar kaphi achcha laga.........
ReplyDeleteआपके ब्लॉग से हमेशा बहुत कुछ सिखाने को मिलता है
ReplyDelete[b]सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है.
जप का बहुत महत्व है. डाकू बाल्मीकि राम की जगह मरा जप के महर्षि बाल्मीकि हुए थे
ब्लॉग कहूँ कि मंदिर समझूँ ,या फिर ज्ञानागार
ReplyDeleteइसको पढ़कर जीवन - नैय्या, हो जायेगी पार.
जैसे गेहूँ अनाज आदि शरीर का अन्न हैं, सद् भाव मन का अन्न है और सद् विचार बुद्धि काअन्न है,
ReplyDeleteइसी प्रकार 'जप करना' प्राण और अंत:करण का अन्न है.जप करने से प्राणायाम होता है,प्राण लय को
धारण कर सबल होने लगता है,जिससे चंचल मन और बुद्धि भी स्थिर होते हैं.जप करना सहज और
सरल है.किसी भी अवस्था,काल ,परिस्थिति में जप किया जा सकता है.जप यज्ञ में परमात्मा का नाम
या मन्त्र जिसका जप किया जाता है , बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिसको समझ कर सच्चे हृदय से जप
किये जाने से ही प्रभाव होता है. मन्त्र या नाम में जिस जिस प्रकार के भाव समाविष्ट होते हैं ,वे हृदय
में उदय होकर प्राण और मन का लय कराते जाते हैं. यदि नाम में हम कुभाव समाविष्ट कर स्वार्थ के
लिए दूसरों का अहित सोच केवल दिखावे के लिए ही जप करें तो 'मुहँ मे राम बगल में छुरी' वाली
कहावत चित्रार्थ होगी और बजाय योग के हम पतन की और उन्मुख हो जायेंगें.
bahut sunder bhaav liye hue sadgyan dene ke liye abhaar sweekarein.
saath hi sudhijano-
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला-नीति
Human
shilpa mehta
ke suvichar padh kar bhi man harshit hua.
shubhkamnayen
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ReplyDeleteजनाब राकेश साहब,प्रणाम. जब आपने मेरे ब्लॉग पर आ कर मेरा उत्त्साहवर्धन किया था तो मैं मात्र आपका धन्यवाद ही करके जिम्मेदारी को पूरा समझ रहा था.आज आपके विचार जानकर और आपके ब्लॉग को देखकर आभास हो रहा है की आपकी मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी मुझे अपनी ही निगाह में कुछ ऊंचा उठा गयी है.आज अपने से ही कहने का मन कर रहा है की यार कुछ बात तो है तेरे अन्दर जो इस स्तर के ज्ञानी ने तेरा लिखा सराहा. आपके पास ज्ञान का अथाह सागर है. मैं तो कहूँगा आप स्वयं ज्ञान का समुद्र हैं.विडंबना यह है की आप मात्र ब्लॉग तक ही सीमित हैं.आपके विचारों से सारे समाज को लाभान्वित होना चाहिए.
ReplyDeleteयोगका अर्थ है अपने मनुष्य जन्मको सार्थक बना लेना इस शरीरको बनाके चलाने वालेसे अपनी दुरिया मिटा देना अपने श्वासको मोक्ष द्वारमें बिठा लेना याने सभी शरीरोको, जिवोको देखते हुवेभी सिर्फ और सिर्फ (स्व)काही दर्शन करना याने अपने आपकोही देखना सभी जीवोमें सिर्फ यह मनुष्य शरीर एक ऐसा मथक है जीसमे भगवानका साक्षात्कार हो सकता है बस सिर्फ ईसेही योग कहते है ।
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