शुभ भावों और विचारों का ऐसा बहायें रंग, मन भीगे होली में और खूब जमे सत्संग
तन की होली तो आज सभी खेल रहें है,चलिए थोडा मन की होली भी खेल ली जाये.
मन की होली के लिए प्रथम 'शुभ' के प्रतीक गणेशजी का ध्यान करते हुए मन -मष्तिक में
सुंदर भावों और विचारों का आवाहन करते हैं और फिर सर्जन के प्रतीक ब्रह्मा जी का
पूजन करते हैं ताकि एक अच्छी सार्थक पोस्ट का सर्जन हो . वाणी की प्रतीक सरस्वती जी
का वंदन करते हुए आईये रंगों की सुंदर बौछार शुरू करते है. लेकिन साहब रंग भी तो 'श्रेय'
मार्का पक्के ही होने चाहिए जो सत्यम शिवम सुंदरम के भावों को पोषित करते हुए जीवन
को आनंदमय बना सदा कल्याण करें . 'प्रेय' मार्का नकली और सस्ते रंगों से तो बचना
पड़ेगा जो मिलावटी होते हैं और अन्ततः नुकसान ही करते हैं.
लेकिन 'श्रेय' मार्का रंग आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे रंगों की पहचान के लिए
विवेक की अति आवश्यकता है. अब विवेक कहाँ से लाएं? चिंता की कोई बात नहीं है ,यह
भी मिल ही जायेगा, बस थोडा सत्संग जमा लिया जाये, क्योंकि रामचरितमानस में
तुलसीदास जी कह गए हैं:-
बिनु सत्संग बिबेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
यूँ तो सत्संग और राम कृपा से सभी परिचित होंगे ,फिर भी जब रंग बहाने ही हैं तो यहाँ सत्संग
और राम कृपा को थोडा और समझने का प्रयास करते हैं. सत्संग का मतलब सच्चा संग.
साधारणतया सत्संग का मतलब हम कुछ कीर्तन, भजन, गाना या प्रवचन आदि सुनना ही समझते
हैं. लेकिन संग तो हमारा बहुत सी चीजों से हो सकता है. जैसे भोजन करते समय भोजन का.
अच्छा पोष्टिक सतोगुणी भोजन ग्रहण करें तो खाने का सत्संग होता है .इसी प्रकार सही समय
पर सही काम करें तो समय का सत्संग होता है. सुबह जल्दी उठकर शौच आदि से निवर्त हो
व्यायाम, स्नान ध्यान पूजन करें तो सुबह के समय का अच्छा सत्संग हो जाता है..अच्छी
ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें तो पुस्तकों का सत्संग हो जायेगा. अच्छी पोस्टों का पढ़ना ,
उनपर सार्थक टिप्पणिओं और प्रति-टिप्पणिओं को पढ़ना और करना भी ब्लॉग
जगत का सत्संग है. अच्छे सकारात्मक सद् विचारों का संग भी सुन्दर सत्संग है.
सद् गुणी ज्ञानवान व्यक्तिओं का संग भी सत्संग ही कहलाता है कर्णप्रिय शांति ,
आनन्द और सद् भावों का संचार करने वाले संगीत का सत्संग . आदि आदि.
मतलब ये कि जब तक हम सत्संग नहीं करते हैं तब तक हमारा बुरी बातों से निसंग नहीं हो पाता.
यदि हम तमो रजो गुणी खाना ही खाते रहेंगे तो सतो गुणी खाने के आनन्द का अनुभव कैसे कर
सकते हैं.सत्संग से आनन्द का अनुभव जैसे जैसे बढ़ता जाता है, अनावश्यक बेकार कि बातों से
छुटकारा मिलता जाता है. सत्संग से कितनें लोगों को बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग,शराब,
गुस्सा करना आदि से छुटकारा पाते हुए मैंने देखा है . जैसे जैसे बुरी बातों से निसंग
होता जाता है ,मन में मोह यानि अज्ञान का विनाश हो ज्ञान का प्रकाश होता जाता है,
ज्ञान के उदय होने से ही विवेक का उदय होता है .विवेक के द्वारा ही निश्चल तत्व
समझने में आने लगता है कि जीवन में क्या करना है और क्या नहीं. ऐसा समझ आते
ही तो फिर जीवन निश्चल तत्व की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है . यदि ऐसा
जीवन में घटित होता है और सभी भ्रमों से छुटकारा मिल जाये तो यही जीवन मुक्ति है.
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने मोह-मुद्गर में लिखा है
सत्संग गत्वे निसंगत्वं, निसंगत्वे निर्मोहत्वम
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वम,निश्चल तत्वे जीवनमुक्ति
भज गोविन्दम भज गोविन्दम ,गोविन्दम भज मूड मते
तो फिर मुक्ति के लिए उलझन और भटकन कैसी? मुक्ति तो आप-हम सब का इन्तजार कर रही
है, बस जरा सत्संग जमा लीजिए . लेकिन थोडा रुकिए, राम कृपा को भी तो समझ लेते हैं.राम
कृपा हमारे पिछले और वर्तमान कर्मों का ही तो समग्र रूप है . भूतकाल में यदि हमने अच्छे विचारों,
भावों और कर्मों का संग किया हो तो सत्संग हमे कभी न कभी दैव योग से
मिल ही जाता है ,और यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग
करें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.
पिछले का पछताना क्या,अब तो वर्तमान की ही सोचें . कहा भी गया है
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
आईये 'श्रेय' रंगों की बौछार से सत्संग जमा ही लेते हैं.
आपकी सार्थक और रंगारंग टिप्पणिओं का इन्तजार है.
देर न लगाइये बस आ जाईये ,खुशी के रंगों से नहला जाईये .
आप सभी को होली के पावन रंगमय पर्व पर बहुत बहुत मंगल कामनायें .
जाते जाते हमारी पत्नी साहिबा की ओर से कुछ रसमयी तुकबंदी
कोयल की कूक सुन
मन में उठी उमंग
रोम रोम बहने लगी
मादक,मृदुल तरंग
उपवन में चलने लगी
मीठी ,मधुर बयार
आते ही मधुमास ने
दिया है अपना प्यार
फागुन में जब मौज से
पूछा उसका हाल
चहुँ और उड़ने लगा
केसरिया गुलाल
डाल डाल लहरा गया
सुंदर पुष्प गुलाब
साँसों में राधा बसी
धडकन में नन्द लाल
पिचकारी का 'बैट' है
'गेंद ' बने हैं गाल
क्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
तन की होली तो आज सभी खेल रहें है,चलिए थोडा मन की होली भी खेल ली जाये.
मन की होली के लिए प्रथम 'शुभ' के प्रतीक गणेशजी का ध्यान करते हुए मन -मष्तिक में
सुंदर भावों और विचारों का आवाहन करते हैं और फिर सर्जन के प्रतीक ब्रह्मा जी का
पूजन करते हैं ताकि एक अच्छी सार्थक पोस्ट का सर्जन हो . वाणी की प्रतीक सरस्वती जी
का वंदन करते हुए आईये रंगों की सुंदर बौछार शुरू करते है. लेकिन साहब रंग भी तो 'श्रेय'
मार्का पक्के ही होने चाहिए जो सत्यम शिवम सुंदरम के भावों को पोषित करते हुए जीवन
को आनंदमय बना सदा कल्याण करें . 'प्रेय' मार्का नकली और सस्ते रंगों से तो बचना
पड़ेगा जो मिलावटी होते हैं और अन्ततः नुकसान ही करते हैं.
लेकिन 'श्रेय' मार्का रंग आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे रंगों की पहचान के लिए
विवेक की अति आवश्यकता है. अब विवेक कहाँ से लाएं? चिंता की कोई बात नहीं है ,यह
भी मिल ही जायेगा, बस थोडा सत्संग जमा लिया जाये, क्योंकि रामचरितमानस में
तुलसीदास जी कह गए हैं:-
बिनु सत्संग बिबेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
यूँ तो सत्संग और राम कृपा से सभी परिचित होंगे ,फिर भी जब रंग बहाने ही हैं तो यहाँ सत्संग
और राम कृपा को थोडा और समझने का प्रयास करते हैं. सत्संग का मतलब सच्चा संग.
साधारणतया सत्संग का मतलब हम कुछ कीर्तन, भजन, गाना या प्रवचन आदि सुनना ही समझते
हैं. लेकिन संग तो हमारा बहुत सी चीजों से हो सकता है. जैसे भोजन करते समय भोजन का.
अच्छा पोष्टिक सतोगुणी भोजन ग्रहण करें तो खाने का सत्संग होता है .इसी प्रकार सही समय
पर सही काम करें तो समय का सत्संग होता है. सुबह जल्दी उठकर शौच आदि से निवर्त हो
व्यायाम, स्नान ध्यान पूजन करें तो सुबह के समय का अच्छा सत्संग हो जाता है..अच्छी
ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ें तो पुस्तकों का सत्संग हो जायेगा. अच्छी पोस्टों का पढ़ना ,
उनपर सार्थक टिप्पणिओं और प्रति-टिप्पणिओं को पढ़ना और करना भी ब्लॉग
जगत का सत्संग है. अच्छे सकारात्मक सद् विचारों का संग भी सुन्दर सत्संग है.
सद् गुणी ज्ञानवान व्यक्तिओं का संग भी सत्संग ही कहलाता है कर्णप्रिय शांति ,
आनन्द और सद् भावों का संचार करने वाले संगीत का सत्संग . आदि आदि.
मतलब ये कि जब तक हम सत्संग नहीं करते हैं तब तक हमारा बुरी बातों से निसंग नहीं हो पाता.
यदि हम तमो रजो गुणी खाना ही खाते रहेंगे तो सतो गुणी खाने के आनन्द का अनुभव कैसे कर
सकते हैं.सत्संग से आनन्द का अनुभव जैसे जैसे बढ़ता जाता है, अनावश्यक बेकार कि बातों से
छुटकारा मिलता जाता है. सत्संग से कितनें लोगों को बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग,शराब,
गुस्सा करना आदि से छुटकारा पाते हुए मैंने देखा है . जैसे जैसे बुरी बातों से निसंग
होता जाता है ,मन में मोह यानि अज्ञान का विनाश हो ज्ञान का प्रकाश होता जाता है,
ज्ञान के उदय होने से ही विवेक का उदय होता है .विवेक के द्वारा ही निश्चल तत्व
समझने में आने लगता है कि जीवन में क्या करना है और क्या नहीं. ऐसा समझ आते
ही तो फिर जीवन निश्चल तत्व की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है . यदि ऐसा
जीवन में घटित होता है और सभी भ्रमों से छुटकारा मिल जाये तो यही जीवन मुक्ति है.
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने मोह-मुद्गर में लिखा है
सत्संग गत्वे निसंगत्वं, निसंगत्वे निर्मोहत्वम
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वम,निश्चल तत्वे जीवनमुक्ति
भज गोविन्दम भज गोविन्दम ,गोविन्दम भज मूड मते
तो फिर मुक्ति के लिए उलझन और भटकन कैसी? मुक्ति तो आप-हम सब का इन्तजार कर रही
है, बस जरा सत्संग जमा लीजिए . लेकिन थोडा रुकिए, राम कृपा को भी तो समझ लेते हैं.राम
कृपा हमारे पिछले और वर्तमान कर्मों का ही तो समग्र रूप है . भूतकाल में यदि हमने अच्छे विचारों,
भावों और कर्मों का संग किया हो तो सत्संग हमे कभी न कभी दैव योग से
मिल ही जाता है ,और यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग
करें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.
पिछले का पछताना क्या,अब तो वर्तमान की ही सोचें . कहा भी गया है
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
आईये 'श्रेय' रंगों की बौछार से सत्संग जमा ही लेते हैं.
आपकी सार्थक और रंगारंग टिप्पणिओं का इन्तजार है.
देर न लगाइये बस आ जाईये ,खुशी के रंगों से नहला जाईये .
आप सभी को होली के पावन रंगमय पर्व पर बहुत बहुत मंगल कामनायें .
जाते जाते हमारी पत्नी साहिबा की ओर से कुछ रसमयी तुकबंदी
कोयल की कूक सुन
मन में उठी उमंग
रोम रोम बहने लगी
मादक,मृदुल तरंग
उपवन में चलने लगी
मीठी ,मधुर बयार
आते ही मधुमास ने
दिया है अपना प्यार
फागुन में जब मौज से
पूछा उसका हाल
चहुँ और उड़ने लगा
केसरिया गुलाल
डाल डाल लहरा गया
सुंदर पुष्प गुलाब
साँसों में राधा बसी
धडकन में नन्द लाल
पिचकारी का 'बैट' है
'गेंद ' बने हैं गाल
क्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
बिनु सत्संग बिबेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
ReplyDeletexxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
सत्संग मतलब "सत्य का संग" और सत्य क्या है ? जो सदा एक सा रहता है , इस सृष्टि में जितनी भी चीजें है सब परिवर्तनशील हैं लेकिन परमात्मा सदा एक सा रहता है , और इस परमात्मा को पाकर हम विवेक की प्राप्ति कर सकते हैं ...विवेक ज्ञान से उपर की अवस्था है ..तुलसी दास का यह कथन की बिना सत्संग के विवेक प्राप्त नहीं हो सकता , और सत्संग राम यानि ईश्वर की कृपा के बिना नहीं मिलता , जिसे सत्संग मिल जाए उसे समझना चाहिए निश्चित ही उस पर ईश्वर की कृपा हुई है...और ज्यादा जानकारी के लिए आप मेरा ब्लॉग "धर्म और दर्शन" देख सकते हैं ..आपका आभार राकेश जी इस विचार को हम सबके साथ साँझा करने के लिए ..!
🙏🙏🙏
Deleteसाधु भाव ।
ReplyDeleteआपको होली की हार्दिक शुभकामनायें , राकेश जी ।
आपने बहुत सुंदर विश्लेषण प्रस्तुत किया है ...आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteतन रंग लो जी आज मन रंग लो,
ReplyDeleteतन रंग लो,
खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
प्यार के ले लो...
खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...
जय हिंद...
होली की शुभकामना....
ReplyDeleteशशि दीदी (आपकी पत्नी साहिबा) की कविता पढ़ कर लगता है उनका अलग से ब्लॉग खुलवाना पड़ेगा...फिर आपको घर में ही कम्पीटिशन का सामना करना पड़ेगा और इस जुगलबंदी को बांचने के आनंद से पूरा ब्लॉगवुड बलिहारी-बलिहारी जाएगा...
ReplyDeleteहोली की पुन: शुभकामनाएं...
जय हिंद...
सतंसग की सहज व्याख्या आपने की जो बहुत ही उपयोगी है. जीवन में अगर मनुष्य इसे सहज रूप से अपना ले तो यहीं पर स्वर्ग है. होली के रंगो का सहारा लेकर आपने बहुत ही सार्थक आलेख लिखा.
ReplyDeleteआपको परिवार व इष्ट मित्रों सहित होली की घणी रामराम.
आये थे पेय पदार्थ पाने को, आपने उलझा दिया ’श्रेय’ और ’प्रेय’ रंगों में:)
ReplyDeleteसत्य कहते हैं आप, जो असली है वही दुर्लभ है और जो सुलभ है वह नुकसान पहुंचाने का माद्दा रखते हैं। आपके विचार बहुत शुद्ध हैं, आते रहेंगे सरजी हम। कहते हैं संगति का असर जरूर होता है, आशा है हमें भी आपके सत्विचार प्रभावित करेंगे ही।(आप मत बिगड़ जाईयेगा हमारी संगति में:))
आपकी श्रीमति जी की कविता भी बहुत सुंदर लगी।
आभार स्वीकार कीजियेगा।
@ > केवल राम जी,
ReplyDeleteभाई आपका 'धर्म और दर्शन',करता है दिल को मगन
आपका शुभ सत्संग ,भरता है जीवन में रंग .
बहुत बहुत आभार आपका.
@ > आ. डॉ.दराल जी
आपके 'साधू भाव'ने मन में उठाई उमंग
फूले फूले हम फिरें ,पी ली होली की भंग
@ > भाई खुशदीप जी,
आपके दर्शन से मेरे ब्लॉग पर हुआ प्रभात
खुशियों के दीप जले,अब तो बन गयी बात
@ > आ. ताऊ श्री
ReplyDeleteआपके शुद्ध विचार, करते हैं आशा का संचार
आप बनाके अदभुत भेष,तमाशाये ब्लोगे जगत देखते हो.
@ > प्रिय संजय जी,
बद की शोहबत में मत बैठो,इसका है अंजाम बुरा
बद न बने तो बद कहलावे,बद अच्छा बदनाम बुरा
मो सम कौन कुटिल खल कामी.अच्छा लगे अपना लेना,
बुरा लगे ठुकरा देना .
@ > प्रिय संजय जी
ReplyDeleteश्रीमती जी दे रहीं मन से आशीर्वाद,फलो फूलों नितदिन सदा रहो आबाद
जनता से नेता खेल रहे हैं
ReplyDeleteभ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
हास्य व्यंग से ओत प्रोत , होली पर बहुत सुन्दर कविता है ।
आपकी पत्नी साहिबा में बहुत काव्य प्रतिभा है ।
शुभकानाएं ।
बड़ा सुन्दर विवेचन, सत्पुरुषों का आशीर्वाद बना रहे।
ReplyDelete@ > Rajesh kumar'Nachiketa'ji,
ReplyDeleteआपको भी होली की बहुत बहुत शुभ कामनायें
मिल जुल कर हम सभी खुशियों के रंग बहायें
@ > वंदना जी,
बहुत बहुत आभार आपका ,जो रचना की है पसंद
आपके 'चर्चा मंच' का,कल बनेगें हम भी अंग
@ > डॉ.दराल जी,
श्रीमती जी खुश है बहुत,करती हैं आभार
'काव्य प्रतिभा'प्रशंसा से,निखेरिगी उनकी धार
@ > प्रवीण पाण्डेय जी,
सूक्ष्म टिप्पणी करने में आपका है कमाल
सत्पुरुषों के आशीर्वाद से हम सब हों निहाल
.
ReplyDeleteसत्संग की महिमा का परिचय करती बेहतरीन पोस्ट । सत्संग न मिलना व्यक्ति का दुर्भाग्य है । सत्संग , हरी-कृपा से ही मिलता है । यही मनुष्य को पशु से श्रेष्ट बनाता है । सत्संग द्वारा ही एक दुसरे के पठित , दृश्य, श्रव्य एवं अनुभूत ज्ञान को लेकर ही हम अपना मानसिक विकास करते हैं।
कविता बहुत सुन्दर है। तीखे व्यंग के साथ , बेहतरीन सन्देश दे रही है।
.
@ > डॉ.दिव्या जी,
ReplyDeleteसत्संग की महिमा आपने,बढ़िया दी है बताय
कविता की प्रशंसा से ,श्रीमतीजी रहीं हरषाय
लेख और कविता की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
बहुत सही ज्ञान की बातें बताई आपने! मैं आपकी बातो से पूरी तरह सहमत हूँ.
ReplyDeleteकिन्तु सतपुरुष जल्दी मिलते कहाँ हैं आज कल. जिसको भी हम सत्पुरुष समझते हैं
बाद में वही किसी गलत कांड में लिप्त नजर आता है. हाँ यह हो सकता है की जहाँ तक
हो सके किसी की भी अच्छी बातों को अपनाना तथा बुरी बातों को छोड़ने की कोशिश करें.
विद्वानों की संगती करे .
होली की कविता ने तो मान मोह लिया आभार स्वीकार कीजिये!
होली के पावन पर्व पर आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं !
ईश्वर से प्रार्थना है कि रंगों का यह अद्भुत पर्व आप सभी के जीवन में हर्ष और उल्लास,
सुख तथा समृद्धि तथा स्वास्थ्य और सफलता की ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! होली मुबारक हो
@ > भाई मदनजी,
ReplyDeleteजी हाँ,आपने सही कहा .
साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुहाई
सार सार को गहि लेई,थोथा देई उडाई
सत्पुरुष भी ईश कृपा से ही मिलते हैं.
Bakmas
Deleteसतसंग, की व्याखा आप से सुन कर मन विभोर हो उठा, धन्यवाद.
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें ...
राकेश साहब,
ReplyDeleteअच्छी जगह से अच्छी चीजें मिल रही हैं तो अच्छी तरफ़ से ही लेंगे, हा हा हा।
बड़ों से आशीर्वाद मिलना खुशी की बात है, कोशिश रहेगी इसका मान रख सकूँ।
आभारी हूँ।
गुरूजी आप को और आप की संगिनी गुरु माँ को मेरा प्रणाम कहिये !समयाभाव में भी कम्पूटर खोल ही लिया ! बहुत दिनों से गुरु वाणी के इंतज़ार में था ! वह भी पा गया ! सत्संग की ब्याख्य आप ने बहुत ही बारीकी से की है !सभी बिचार और शब्द बड़े भाव पूर्ण है !समझने वाले को सम्यक और न समझने वाले को .........क्या कहे ? जीवन में लोग एक दुसरे के उप्पर उंगली ज्यादा उठाते है ....वे सत्संग से दूर हो जाते है ! सत्संग को परिपूर्ण करने के लिए ..मनुष्य जाती को ....अपने तरफ उठी ...चार उंगुलियो के रहस्य को कंट्रोल करना पड़ेगा ...वे है १)..सीर .२) बक्ष / सीना . ३) कमर ..और ) पैर ! इन चारो के सम्यक उपयोग और कल्याणकारी ..प्रगति ही सम्पूर्ण सत्संग का रसास्वादन कराती है ...अन्यथ ...सब कुछ ढोंग ही होगा ! संक्षेप में जिसके पास ...जीवन में अनुशासन ..नहीं है ......उससे सत्संग की अपेक्षा नहीं की जा सकती ! बेहद सुन्दर .....एक बार फिर प्रणाम
ReplyDeleteरंग के त्यौहार में
ReplyDeleteसभी रंगों की हो भरमार
ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।
आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो। आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो व सपनों को साकार करें। आप जिस भी क्षेत्र में कदम बढ़ाएं, सफलता आपके कदम चूम......
होली की खुब सारी शुभकामनाये........
सुगना फाऊंडेशन-मेघ्लासिया जोधपुर,"एक्टिवे लाइफ"और"आज का आगरा" बलोग की ओर से होली की खुब सारी हार्दिक शुभकामनाएँ..
समय मिले तो ये पोस्ट जरूर देखें.
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
लिक http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
आपका कीमती सुझाव और मार्गदर्शन अगली पोस्ट को और अच्छा बनाने में मेरी मदद करेंगे! धन्यवाद…..
कविता के माध्यम से वर्तमान सामाजिक चिंताओं को भी अभिव्यक्ति मिली है ...आपका आभार इस रचना को हम तक पहुंचाने के लिए ...आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDelete'गेंद ' बने हैं गाल
ReplyDeleteक्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
kavita jach gayi ,lekh bhi saarhak ,sach hai saath sundar hona jaroori hai tabhi har rang ka aanand hai .
आपका लेख और आपकी श्रीमती जी की कविता
ReplyDeleteअत्यंत रोचक लगी। प्रशंसनीय लेखन के लिए बधाई।
=======================
क्या फागुन की फगुनाई है।
डाली - डाली बौराई है॥
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
=============================
होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
@ > राज भाटिया जी,
ReplyDeleteआपने इस ब्लॉग पर आकर,हमको किया निहाल
फिर इतनी प्रशंसा करदी, मत पूछो हमरा हाल
होली की आपको भी बहुत बहुत शुभ कामनायें.
@ > प्रिय संजयजी,
एक बार फिर से आने का बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी अच्छी बातें ,दिल में भरती आल्हाद
@ > G.N.SHAW (B.TECH.),
गुरु गोरख नाथ जी ,आप हैं बेमिसाल
अनुशासन अपनाकर ही ,सुधरे हम सब का हाल
@ > S. S. Rajpurohit ji,
होली की शुभ कामना ,आप भी करें स्वीकार
इस पोस्ट पर आपकी टिपण्णी का,हम करेंगे इंतजार
@ > भाई केवल राम जी,
ReplyDeleteआपकी सुंदर टिपण्णी का ,श्रीमती जी करतीं आभार
स्नेह और प्रेम बनाये रक्खें,प्रेम ही जीवन का सार
@ > ज्योति सिंह जी,
श्रीमतीजी की कविता, आपको क्या जँच गई
कह रहीं हैं श्रीमती जी ,बात आपने सच कही
साथ का सुन्दर होना जरूरी है
वर्ना तो सभी कुछ आधा अधूरी है.
बहुत बहुत आभार आपका इस सुंदर टिपण्णी के लिए.
@ > डॉ.डंडा लखनवी जी,
आपकी सुन्दर बधाई,श्रीमती जी के मन को बहुत भायी
आपकी सुन्दर कविता ने भी,क्या खूब रस धार बहायी
होली की आपको भी बहुत बहुत शुभ कामनायें
आप तो 'सेर' थे राकेश जी यह 'शेरनी ' कहा से आ गई 'सेर पे सवा सेर ' के मुहावरे को चित्रित करती हुई...
ReplyDeleteसबसे पहले उन्ही को शुभ कामनाए ! आखिर गृहणी है तेल और तेल की धार समझने वाली !
आपको कहने के लिए अल्फाज नही है -- " तुसी ग्रेट हो पाप्पे "
.
ReplyDeleteWish you a wonderful Holi . Sorry for delayed greetings .
Enjoy !
.
राकेश जी पहली बार आपका ब्लाग देखा । सभी पोस्टें देखीं । लेकिन ग्यान चर्चा के दृष्टिकोण से मेरी
ReplyDeleteआपसे असहमति है । साधारण भावों में आप इनको मान सकते हैं । पर असल अर्थों में नहीं । चलिये आप तुलसी को लेकर चले हैं । तो मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ ।.. तात स्वर्ग अपवर्ग धरि धरिय तुला एक अंग । तूल ना ताहि सकलि मिल जो सुख लव सतसंग ।..यानी तुलसी के अनुसार स्वर्ग और अपवर्ग ( इसे अच्छे अच्छे नहीं जानतें कि अपवर्ग क्या होता है ) को तराजू पर एक तरफ़ और एक क्षण के सतसंग को एक तरफ़ । तो सतसंग का पलङा बहुत भारी होगा । मेरा प्रश्न है । वो एक क्षण का सतसंग कौन सा है ? जो स्वर्ग और उससे लाख गुने अपवर्ग पर भारी है ?
भाई केवलराम जी ने भी आपकी पोस्टों पर स्पष्ट कमेंट नहीं किया । दूसरे ब्लागर धर्म के बारे में ना के बराबर जानकारी रखते हैं । अतः उनके विचार उस अनुसार ठीक ही हैं ।
अपबर्ग यानी मोक्ष
Delete'प्याज भी नाराज है
ReplyDeleteरूठा हम से तेल
महँगाई हँसकर कहे
मुझसे होली खेल "
यथार्थ चित्रण ....होली मंगलमय हो
आदरणीय राकेशजी,
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की शुभ कामनाएं.
एक बार तो पढ़ चूका हूँ पोस्ट.
अभी तृप्ति नहीं हुई.
समय मिलते ही फिर मिलता हूँ.
@ > RAJEEV KUMAR KUL.JI
ReplyDeleteमैंने जो भी कहा है वह साधारण भाव से ही है.जो अच्छा लगे उसे अपना लिया जाये,जो बुरा लगे उसे छोड़ दिया जाये.भाई केवल राम जैसा ठीक समझते हैं,वैसा मत प्रकट कर रहें हैं और कर सकते हैं.
दूसरे ब्लोगर्स धर्म के बारे में कितनी जानकारी रखते हैं,ये आप जाने,मै नहीं जानता.मेरा उद्देश्य केवल आनन्द की प्राप्ति है,न कि
किसीको दुःख पहुँचाना.दुनिया में मत मतांतर होता ही है.मेरी किसी भी बात से आपको ठेस पहुंची हो तो छमा चाहता हूँ.आप तुलसी से सहमत है या नहीं, लेकिन 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में आपको जो अनुचित जान पड़े वह मुझे और सभी ब्लोगर जन के हित के लिए बता सकते हैं.आपकी यह जानकारी कि 'इसे अच्छे अच्छे भी नहीं जानते कि अपवर्ग क्या होता है' यह दर्शित करता है कि आपकी जानकारी उन अच्छों अच्छों से भी अधिक है.मै तो साधारण ब्लोगर मात्र हूँ.आप ज्ञान चर्चा अपने स्तर के ज्ञानी व्यक्ति के साथ कर सकते हैं.मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसत्संग की बहुत सुन्दर व्याख्या की है आपने.
जीवनचर्या के हर कार्य में सत्संग का अनुभव किया जा सकता है.
अगर प्रभु कृपा हो जाए तो.
पहली सीढ़ी प्रभु कृपा ही है.
आप अत्यंत भाग्यशाली हैं,कि आप इस सीढ़ी को पा चुके हैं.
आपके लिए आतम चिंतन ही सत्संग है,और हम जैसों के लिए आप जैसे सज्जनों का संग सत्संग है.
महज शब्दों के अर्थ जानने से आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती.
अगर भाव समझ में आ जाये तो समझिये कि सत्संग हो गया.
भाई केवल जी ने भी सत्संग के बारे में बहुत ही अच्छा लिखा है.
अगर मेरी समझ में न आये,तो प्रभु कृपा प्राप्ति में देर है.
प्रभु कृपा तो हर समय बरस ही रही है,कहीं सीप के मुख में जाकर मोती बन जाती है,कहीं रेत पर गिर कर रेत हो जाती है.
प्रभु की लीला.
ब्लॉग पर सत्संग उपलब्ध करवाने के लिए साधुवाद.
मैं तो आपके सत्संग स्थल में अंतिम पंक्ति में बैठा हूँ.
लेकिन आपकी अमृत बूंदे मुझ तक पहुँच ही जाती हैं.
अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है.
शुभ कामनाएं.
bahut sunder lekh! satsang ki nai paribhasha seekhne ko mili... bahut bahut dhanyawaad...
ReplyDeleteDarshan Kaur Dhanoye ji ki tippani se bilkul sehmat hun... bahut hi pyari aur sachchi kavit hai!
भीड़ जुटायी जतन सो, सत्संग दिया भुनाय.
ReplyDeleteआया श्रोता सुन रहा, जो भी वह सुन पाय.
जो भी वह सुन पाय आपने बोर किया क्यों?
पत्नी की कविता से स्वागत नहीं किया क्यों?
@ >आ.दर्शन कौर जी,
ReplyDeleteपहली शुभ कामना श्रीमतीजी को दे ,आपने उनको किया प्रसन्न
आपके सुंदर सुंदर वचनों से, हर्षित हुआ है मन.
बहुत बहुत आभार आपका मेरे ब्लॉग पर दर्शन देने के लिए.
@ > डॉ.दिव्या जी,
शुभ कामना आपसे मिली,प्रभु का है प्रसाद
आपको दे शुभ कामना,श्रीमती जी भी कर रहीं याद
@ > सुरेंद्र सिंह 'झंझट'जी,
होली मंगलमय हो,मंगल दिखे सर्वत्र
सकारात्मक यथार्थ चित्रण हो,तो भ्रम हो जाता विनष्ट
@ > भाई विशाल जी,
ReplyDelete'Sagebob'से विशाल बन,सबको किया है सन्न
आपकी मर्म भरी टिपण्णी से ,मन हो गया प्रसन्न.
भाई इतनी देर न लगाया करो,आपका स्थान अंतिम पंक्ति में नहीं
मेरे दिल में है.दिल चीर कर कैसे दिखाऊँ ?
@ > Anjana (Gudia)ji,
आपके न आने से ,दिल हो रहा था बेचैन
कविता की मुक्त प्रशंसा से,श्रीमतीजी के खुशी से भर आये नैन
@ > प्रतुल वशिष्ठ जी,
देर से आप आये ,पर आये तो सही
सत्संग से बोर हुए,पर कविता से हर्षाये तो सही
मेरे ब्लॉग पर आप आये, आपका बहुत बहुत स्वागत है.
आपके प्रबुद्ध विचारों से हम सब लाभांवित होंगे.
प्रासंगिक अभिव्यक्ति लिए है कविता ..... सार्थक विचार....
ReplyDeletebeautifully written
ReplyDeleteराकेश जी,हम तो साधारण इंसान है --सत्संग यानी 'सामाजिक समारोह में जाना 'बस इतना ही ज्ञान है --भक्ति भी दो मिनट की कर ली इससे ज्यादा की अपेक्षा नहीं कर सकती --आपके विचार कुछ समझ में आते है ,कुछ समझने की कोशिश करती हु--और जो समझ आता है उसी से अपने आपको धन्य समझती हु --
ReplyDeleteज्ञान और सत्संग पर अनेक मतभेद है --बड़े -बड़े ज्ञानियों के विचार आपस में टकराए है -हम तो उनकी तुलना में बहुत छोटे है --
आप तो इसी तरह अपनी ज्ञान की गंगा बहते रहे --जिस की इच्छा हो दुबकी लगाए न हो तो जय राम जी की -
सुखद रहा कविता पढ़ना.
ReplyDeletesatsang ke vishay me aapke vichar gyanvardhak hain.mere blog"kanooni gyan" par aane ke liye aabhar.
ReplyDeleteसबसे पहले तो देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ. राकेश जी होली के पावन रंगमय पर्व पर आपको सपरिवार बहुत बहुत मंगल कामनायें...
ReplyDeleteसत्संग के महत्व पर आपके विचार बहुत ही ज्ञानवर्धक हैं. आप सत्संग का अर्थ समझाने में पूर्णतया सफल रहे हैं, गहन विश्लेषण है विचारों का आपकी पोस्ट में.
आपकी श्रीमति जी की कविता भी उतनी ही सुंदर लगी जितनी सुन्दर आपकी पोस्ट है..
यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग
ReplyDeleteकरें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.....
सत्संग को बड़े सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने...
आपको साधुवाद!
क्रिकेट की होली खिले
खेलें मेरे लाल
प्याज भी नाराज है
रूठा हम से तेल
महंगाई हँस कर कहे
मुझसे होली खेल
जनता से नेता खेल रहे हैं
भ्रष्टाचार की होली,
भाभी जी कविता दा जवाब नहीं...उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं !
।। हरि ऊँ ।।
ReplyDeletesatsang ki vrihad vyakhyaa mujhe bahut hi achhi lagi ...
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसत्संग की बहुत सुन्दर व्याख्या की है आपने.
बहुत सुन्दर कविता बेहतरीन सन्देश दे रही है ।
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteबहुत खूब राकेश भाई , पोस्ट तो उसी दिन पढ लिया था मगर ऐन टीपते समय शायद इधर उधर निकल गया । पोस्ट पर टिप्पणियां और प्रतिटिप्पणियां खुद बता रही हैं कि चर्चा और विश्ले्षण सार्थक रहा है । शुभकामनाएं राकेश भाई । लिखते रहिए
ReplyDeleteवाह आपकी पत्नी साहिबा जी की रचना भी कम नहीं है जी.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteगहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख .....
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
सत्संग की व्याख्या पढ़ कर आनंद आ गया !
ReplyDeleteकविता तो ऐसी कि जब भी पढ़ें होली आ जाय !
सुन्दर प्रस्तुति !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteapki kavita padhkr mera mann bahut prasan hua...mai asha karta hu ki aage bhi aap aisi man mohak kavita tatha lekh likhte rahege.
ReplyDeleteगहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुन्दर , सार्थक , काव्यात्मक सत्संग।
ReplyDeleteबढ़िया सत्संग चल रहा है ।
ReplyDeleteजब भी यहाँ आती हूँ और नयी पोस्ट नहीं दिखती तो बार-बार इसी सत्संग का लाभ उठाती हूँ।
ReplyDeleteभारत की जीत की बधाई ।
ReplyDeleteजनता से नेता खेल रहे हैं
ReplyDeleteभ्रष्टाचार की होली,
पर आओ हम सब मिलकर खेलें
प्यार,विश्वास,स्नेह की होली
बहुत खूब .....!!
पत्नी श्री की कविता रसमय लगी ....
नमस्ते गुरु जी! कब तक होली खेलेंगे आप? लगता है की होली का रंग अभी तक नहीं उतरा.
ReplyDeleteमैं पहले तो क्षमा चाहूँगा कि इतनी प्यारी सारगर्भित पोस्ट पढने से रह गयी ! यह अनूठी है और आप साधुवाद के पात्र हैं !
ReplyDeleteभाभी जी की कविता ( आप द्वारा इस रचना को तुकबंदी कहने पर मैं विरोध प्रकट करता हूँ :-) ) ने इस लेख में रस घोल दिया !
आप दोनों को हार्दिक शुभकामनायें !
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteबहुत अछ्छी पोस्ट है ये! और आपकी पत्नी द्वारा लिखा हुआ तो मन को भा गया....
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteaaderniy rakesh ji..aapke blog ki bishay bastu mahaj padhne ke liye hi nahi apitu chintan evam manan aur bauddhik chudha ki tripti ka paryay hai...isliye aapse bina ijajat liye barabar aata rahunga.. pavitra rango ki holi khelne ke liye ye jaruri hai ki man bhi pabitra ho.यूँ तो सत्संग और राम कृपा से सभी परिचित होंगे ,फिर भी जब रंग बहाने ही हैं तो यहाँ सत्संग
ReplyDeleteऔर राम कृपा को थोडा और समझने का प्रयास करते हैं. सत्संग का मतलब सच्चा संग.
साधारणतया सत्संग का मतलब हम कुछ कीर्तन, भजन, गाना या प्रवचन आदि सुनना ही समझते
हैं. लेकिन संग तो हमारा बहुत सी चीजों से हो सकता है. जैसे भोजन करते समय भोजन का.
अच्छा पोष्टिक सतोगुणी भोजन ग्रहण करें तो खाने का सत्संग होता है ...main bhi shuru mein barnit kiye gaye tathyon se mail khata vyakti tha..aaj pehli baar satsanga ke bishay me mujhe margdarshan mila..satsang ke rango se holi khelne ke liye to aapne pavitra kar hi diya tha..uske baad bhabhi ji ki manmohak kriti ke shabd rango se holi khelne mein maja aa gaya..wah..sone pe suhaga..pranam ke sath