मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपध्ये
मैं मन के समान शीघ्र गति युक्त , वायु के समान प्रबल वेग वाले, इन्द्रियों को जीत लेने वाले,
बुद्धिमानों में श्रेष्ठ , वायुपुत्र, वानर समूह के अग्रणी ,श्री रामदूत की शरण को प्राप्त होता हूँ.
मेरी पिछली पोस्ट 'हनुमान लीला -भाग १' पर सुधिजनों ने अपने अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किये हैं.
'हनुमान' शब्द की व्याख्या के सम्बन्ध में भी सुधिजनों की सुन्दर जिज्ञासा व विचार जानने को मिले.
केवल राम जी कहते हैं :-
Dr M.N. Gairola जी का कहना हैं:-
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपध्ये
मैं मन के समान शीघ्र गति युक्त , वायु के समान प्रबल वेग वाले, इन्द्रियों को जीत लेने वाले,
बुद्धिमानों में श्रेष्ठ , वायुपुत्र, वानर समूह के अग्रणी ,श्री रामदूत की शरण को प्राप्त होता हूँ.
मेरी पिछली पोस्ट 'हनुमान लीला -भाग १' पर सुधिजनों ने अपने अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किये हैं.
'हनुमान' शब्द की व्याख्या के सम्बन्ध में भी सुधिजनों की सुन्दर जिज्ञासा व विचार जानने को मिले.
केवल राम जी कहते हैं :-
"हनुमान" शब्द अपने आप में एक अलग व्याख्या की अपेक्षा रखता है .उस पर प्रकाश डालने की आवश्यकता है ..
Dr M.N. Gairola जी का कहना हैं:-
Ego,is the biggest obstacle in realization..that way hanuman can be iterpreted as annihilation of Ego......
वंदना जी लिखती हैं :-
कहते है जिसने अपने मान का हनन कर दिया हो वो है हनुमान्…जो मान अपमान से परे हो गया हो और
जिस हाल मे प्रभु खुश रहे और रखें उसी मे अपनी खुशी चाही हो वो ही कहलाता है हनुमान्…हनुमान होना
आसान कहाँ है ?
Sunil Kumar जी लिखते हैं :-
श्री हनुमान निश्छल ह्रदय और अनन्य भक्ति का एक अद्भुत संगम हैं.उन पर गहरा विश्वास अकल्पनीय
बाधाओं से मुक्ति दिला सकता है.
veerubhai जी कहते हैं :-
हनू -मान का मतलब ही उच्चतर मान है .मन की उद्दात्त अवस्था है
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति जी कहती हैं:-
हनुमान तत्व की स्थापना के लिए कपि मन को बार बार सत्संग की जरूरत पड़ती है
हनुमान शब्द की व्याख्या यद्धपि आसान नही है. फिर भी इस पोस्ट मे 'हनुमान' जी को समझने का प्रयास
करते हुए आईये चंचल कपि मन और बुद्धि को केंद्रित कर डॉ. नूतन जी के अनुसार कुछ समय सत्संग का ही
आश्रय लेते हैं.
हनुमान शब्द में 'ह' हरि यानी विष्णु स्वरुप है, जो पालन कर्ता के रूप में वायु द्वारा शरीर,मन
और बुद्धि का पोषण करता है.कलेशों का हरण करता है.
हनुमान शब्द में 'नु' अक्षर में 'उ' कार है, जो शिव स्वरुप है. शिवतत्व कल्याणकारक है ,
अधम वासनाओं का संहार कर्ता है.शरीर ,मन और बुद्धि को निर्मलता प्रदान करता है.
हनुमान शब्द में 'मान' प्रजापति ब्रह्मा स्वरुप ही है. जो सुन्दर स्वास्थ्य,सद् भाव और
सद् विचारों का सर्जन कर्ता है.
निष्कर्ष हुआ कि ह-अ, न्- उ , म्-त यानि हनुमान में अ उ म् अर्थात परम अक्षर 'ऊँ' विराजमान है जो
एकतत्व परब्रहम परमात्मा का प्रतीक है. जन्म मृत्यु तथा सांसारिक वासनाओं की मूलभूत माया का विनाश
ब्रह्मोपासना के बिना संभव ही नही है.हनुमान का आश्रय लेने से मन की गति स्थिर होती है ,जिससे शरीर में
स्थित पाँचो प्राण (प्राण , अपांन, उदान, व्यान ,समान) वशीभूत हो जाते हैं और साधक ब्रह्मानंद रुपी अजर
प्याला पीने में सक्षम हो जाता है.
पिछली पोस्ट में भी हमने जाना था कि हनुमान जी वास्तव में 'जप यज्ञ' व 'प्राणायाम' का साक्षात ज्वलंत स्वरुप ही हैं. आयुर्वेद मत के अनुसार शरीर में तीन तत्व वात .पित्त व कफ यदि सम अवस्था में रहें तो शरीर निरोग रहता है.इन तीनों मे वात यानी वायु तत्व अति सूक्ष्म और प्रबल है.जीवधारियों का सम्पूर्ण पोषण -क्रम वायु द्वारा ही होता है. आयुर्वेदानुसार शरीर में दश वायु (१) प्राण (२) अपान (३) व्यान (४) उदान (५) समान (६) देवदत्त (७) कूर्म (८) कृकल (९) धनंजय और (१०) नाग का संचरण होना माना गया है.शरीर मे इन दशों वायुओं के कार्य भिन्न भिन्न हैं. हनुमान जी पवन पुत्र हैं . वायु से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध है.शास्त्रों में उनको ग्यारहवें रूद्र का अवतार भी कहा गया है.एकादश रूद्र वास्तव में आत्मा सहित उपरोक्त दश वायु ही माने गए हैं.अत : हनुमान आत्मा यानि प्रधान वायु के अधिष्ठाता हैं.
वात या वायु के अधिष्ठाता होने के कारण हनुमान जी की आराधना से सम्पूर्ण वात व्याधियों का नाश होता है.
प्रत्येक दोष वायु के माध्यम से ही उत्पन्न और विस्तार पाता है.यदि शरीर में वायु शुद्ध रूप में स्थित है तो शरीर निरोग रहता है. कर्मों,भावों और विचारों की अशुद्धि से भी वायु दोष उत्पन्न होता है.वायु दोष को पूर्व जन्म व इस जन्म में किये गए पापों के रूप में भी जाना जा सकता है.अत: असाध्य से असाध्य रोगी और जीवन से हताश व्यक्तियों के लिए भी हनुमान जी की आराधना फलदाई है. गोस्वामी तुलसीदास की भुजा में जब वायु प्रकोप के कारण असाध्य पीड़ा हो रही थी , उस समय उन्होंने 'हनुमान बाहुक' की रचना करके उसके चमत्कारी प्रभाव का प्रत्यक्ष अनुभव किया.
वास्तव में चाहे 'हनुमान चालीसा' हो या 'हनुमान बाहुक' या 'बजरंग बाण' ,इनमें से प्रत्येक रचना का मन लगाकर
पाठ करने से अति उच्च प्रकार का प्राणायाम होता है.प्राण वायु को सकारात्मक बल की प्राप्ति होती है.पापों का शमन होता है.इन रचनाओं के प्रत्येक शब्द में आध्यात्मिक गूढ़ अर्थ भी छिपे हैं.जिनका ज्ञान जैसे जैसे होने लगता है तो हम आत्म ज्ञान की प्राप्ति की ओर भी स्वत: उन्मुख होते जाते हैं.
हनुमान जी सर्वथा मानरहित हैं, वे अपमान या सम्मान से परे हैं. 'मैं' यानि 'ego' या अहं के तीन स्वरुप हैं .शुद्ध स्वरुप में मै 'अहं ब्रह्मास्मि' सत् चित आनंद स्वरुप ,निराकार परब्रह्म राम हैं.साधारण अवस्था में जीव को 'अहं ब्रह्मास्मि' को समझना व अपने इस शुद्ध स्वरुप तक पहुंचना आसान नही.परन्तु, जीव जब दास्य भाव ग्रहण कर सब कुछ राम को सौंप केवल राम के कार्य यानि आनंद का संचार और विस्तार करने के लिए पूर्ण रूप से भक्ति,जपयज्ञ , प्राणायाम व कर्मयोग द्वारा नियोजित हो राम के अर्पित हो जाता है तो उसके अंत: करण में 'मैं' हनुमान भाव ग्रहण करने लगता है. तब वह भी मान सम्मान से परे होता जाता है और 'ऊँ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे ...तन मन धन सब है तेरा स्वामी सब कुछ है तेरा, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ..' के शुद्ध और सच्चे भाव उसके हृदय में उदय हो मानो वह हनुमान ही होता जाता है.
लेकिन जब सांसारिकता में लिप्त हो 'मैं' या अहं को तरह तरह का आकार दिया जाता हैं तो हमारे अंदर यही मैं 'अहंकार' रुपी रावण हो विस्तार पाने लगता है. जिसके दसों सिर भी हो जाते हैं. धन का , रूप का , विद्या का , यश का आदि आदि. यह रावण या अहंकार तरह तरह के दुर्गुण रुपी राक्षसों को साथ ले हमारे स्वयं के अंत;करण में ही लंका नगरी का अधिपति हो सर्वत्र आतंक मचाने में लग जाता है.अत: अहंकार रुपी रावण की इस लंका पुरी को ख़ाक करने के लिए और परम भक्ति स्वरुप सीता का पता लगाने के लिए 'मैं' को हनुमान का आश्रय ग्रहण करने की परम आवश्यकता है.अहंकार की लंका नगरी को शमन कर ज्ञान का प्रकाश करने का प्रतीक यह हनुमान रुपी 'मैं ' ही हैं .
कबीर दास जी की वाणी में कहें तो
सर राखे सर जात है,सर काटे सर होत
जैसे बाती दीप की,जले उजाला होत
अर्थात सर या अहंकार के रखने से हमारा मान सम्मान सब चला जाता, परन्तु अहंकार का शमन करते रहने
से हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
से हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
करने वाले व्यक्ति के भीतर और बाहर ज्ञान का उजाला होने लगता है.
इस पोस्ट में हनुमान शब्द की व्याख्या सुधिजनों की जिज्ञासा और रूचि को ध्यान में रखते हुए ही मैंने आप सभी के सत्संग के माध्यम से करने की कोशिश की है. हनुमान लीला अत्यंत कल्याणकारी और अपरम्पार है. अगली पोस्ट में हनुमान लीला का चिंतन आगे बढ़ाने का प्रयास प्रभु की कृपा व सुधिजनों की दुआ और आशीर्वाद से पुनःकरूँगा. आशा है आप सब इस पोस्ट पर भी अपने अपने अमूल्य विचार व अनुभव प्रकट करने में कोई कमी नही रखेंगें और अपने सुविचारों से मेरा सैदेव मार्ग दर्शन करते रहेंगें.
राकेश जी वीर हनुमान जी का आशिर्वाद हमेशा हम सब पर बना रहे, आपके शब्दों के माध्यम से बहुत कुछ जानने को मिला है।
ReplyDeleteहनुमान बचपन के मित्र हैं, जब भी डर लगा उन्हीं को याद किया है।
ReplyDeleteलेखनी का यह अंदाज़ पसंद आया भाई जी !
ReplyDeleteवाकई हनुमान श्रद्धा हैं , शक्ति हैं ! उन्हें महसूस किया जा सकता है !
आभार आपका !
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ओम...सब कुछ हनुमान में निहित...
ReplyDeleteआज की दुनिया के हिसाब से मेरे लिए हनुमान विश्वास का प्रतीक है जो उनका राम के प्रति था...
जहां विश्वास होता है वहां सवाल नहीं होते...
जहां सवाल होते हैं वहां विश्वास नहीं होता...
जय हिंद...
सुंदर व ज्ञानवर्धक लेख के लिये आभार।सच में हमारे प्राणवायु रूपी हनुमान की आराधना व निरंतर ध्यान से ही हमारे अंदर अहंकार रूपी रावण के आधिपात्य वाली लंका का दहन संभव है।
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक जानकारी ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत सटीक विश्लेषण के साथ ज्ञानवर्धक पोस्ट... 'बजरंग बाण' से लाभ का अनुभव मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी किया है..
ReplyDeleteजय हनुमान..जय श्री राम
aaderniy bhaisaheb...kabhi hanumat shabd ki itni acchi vyakhya nahi suni thi..hamesh kee tarah prabhu chintan karne aaur unki mahima jaane ka suawsar prapt hua,,..sadar pranam ke sath
ReplyDeleteहनुमान शब्द की सुन्दर व्याख्या... सुंदर व ज्ञानवर्धक लेख के लिये आपका बहुत-बहुत आभार...
ReplyDeleteबेहद सूक्ष्म और गहन विश्लेषण किया है और ये काफ़ी मनन और चिन्तन के बाद ही किया जा सकत है या फिर जिस पर प्रभु कृपा बरसती हो और आप मे ये दोनो ही गुण विराजमान हैं तभी पाठकों को इस अति उत्तम ज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं जिसके लिये हम आपके आभारी हैं……………
ReplyDeleteहनुमान तो भक्ति की पराकाष्ठा हैं । उन्होने तो राम से भी ज्यादा राम के नाम को चाहा । उन्ही का गुणगान किया तभी तो जब प्रभु इस धराधाम को छोड कर जाने लगे तो हनुमान जी से कहा साथ चलने को वैकुण्ठ मे मगर हनुमान जी ने सिर्फ़ यही पूछा प्रभु क्या वहाँ भी मुझे आपके पावन चरित्रों का गुणगान सुनने को मिलता रहेगा तो प्रभु बोले वहाँ तो सिर्फ़ शांत रस का ही वास होता है सब एक दूसरे के मन की बात बिना कहे ही जान जाते हैं तो हनुमान जी ने कहा प्रभु वो वैकुण्ठ आपको ही मुबारक मै तो आपके नाम की अनमोल बूँटी पिये बिना रह ही नही सकता मै तो दिन रात जहाँ भी आपके नाम का गुणगान हो वहीं रहना चाहता हूँ इसके लिये चाहे मुझे इस धराधाम पर ही क्यों ना रहना पडे कम से कम आपके नाम के रस मे डूबा तो रहूँगा………तो ऐसी है राम नाम की महिमा और ऐसे हैं हमारे हनुमान जी जिन्होने भगवान से भी बढकर उनके नाम की महिमा मानी तभी तो प्रभु ने अपने से ज्यादा हनुमान जी को पुजवाया ………उनके जैसा भक्त ना हुआ है और ना होगा । आज राम से ज्यादा हनुमान जीके मन्दिर पाये जाते हैं ये सब उसी परम भक्ति का प्रताप है । समर्पण और प्रेम हो तो हनुमान जी जैसा
ReplyDeleteहनुमान शब्द में दो शब्दों का मेल है! एक है 'हनु' और दूसरा है 'मान' अर्थात ऐसा व्यक्ति जिसके मान (अभिमान-अहंकार) के भाव का त्याग हो चुका है ! जिसे मान-सम्मान की कोई अभिलाषा न हो, वही सच्चे अर्थ में हनुमान है! अहंकार व्यक्ति कभी ऊंचाई पर पहुँच नहीं सकता ! श्री हनुमान जी के पावन व्यक्तित्व से हम यह सीख ले सकते हैं की उनका नाम है हनुमान और काम भी उनके नाम के अनुकूल ही है! हनुमान जी हर कठिन कार्य को सहज कर लेते हैं और सारे कार्य को ये समझते हैं कि भगवान राम ने किया है! उनकी महानता के बारे में जितना भी कहा जाये कम है ! हनुमान जी से बढ़कर जगत में कोई नहीं है!
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दरता से हनुमान जी बारे में लिखा है जिससे और भी नयी जानकारी मिली! भावपूर्ण प्रस्तुती!
हनुमान शब्द की विस्तृत व्याख्या पढना मन को बहुत अच्छा लगा... बचपन में जब अँधेरे में डर लगता था तो सभी एक ही कहना था कि बजरंग बली का नाम लो फिर क्या डर दूर हो जाता था ..
ReplyDeleteपिछली पोस्ट समय पर नहीं पढ़ पाई थी जिसका मुझे खेद है.. अब पढ़ लेती हूँ ... समय बहुत कम मिलता है इसीलिए देर सबेर हो जाती है... आप अन्यथा न समझे... घर परिवार और ऑफिस की भागम भाग में बहुत सी परेशानियाँ में उलझ जाती हूँ , जिसे व्यक्त करना मुश्किल होता है..इसलिए ब्लॉग पढना कम ही होता है.. ... आपने ब्लॉग पर आकर शिकायत की अच्छा लगा... जब भी समय मिलता है मैं जितना हो सकता है पढने की कोशिश करती हूँ..
सादर
सुन्दर विश्लेष्ण के साथ ही अदभुत और आनंदित करने वाला प्रसंग .......पढ़ने का सुअवसर देने के लिए आपका बहुत -बहत आभार
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जायेगी! आपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
ReplyDeleteVery very Nice post our team like it thanks for sharing
ReplyDeletebahut khub....accha laga padh kar
ReplyDeleteभावविभोर करती पोस्ट ... संकट के समय सबसे पहले उन्हीं का नाम याद आता है ...
ReplyDeleteबहुत ही अदभुत और गहन विश्लेषण किया है आप ने..बेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट ...आभार ।
ReplyDeleteVery Nice post our team like it thanks for sharing
ReplyDeleteहनुमान जी सर्वथा मानरहित हैं, वे अपमान या सम्मान से परे हैं।--
ReplyDeleteगीता में इसी गुण को सात्विक प्रवृति कहा गया है ।
हालाँकि इसे अपनाने वाले विरले ही मिलते हैं ।
आपका ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने का प्रयास अत्यंत सराहनीय है राकेश कुमार जी ।
राकेश जी पवनपुत्र श्रधेय हनुमान जी का अध्यात्मिक वर्णन धरोहर है सारे ब्लॉग जगत की.आप यूं ही रसस्वादन करते रहे आभार सहित
ReplyDelete'हनुमान बाहुक' या 'बजरंग बाण' ,इनमें से प्रत्येक रचना का मन लगाकर पाठ करने से अति उच्च प्रकार का प्राणायाम होता
ReplyDeletelike it
हनुमान शब्द और हनुमान तत्व की बहत सुंदर व्याख्या पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteआभार आपका।
क्या बात है, क्या बात है.. जबाव नहीं...
ReplyDelete---..दास्य-भक्ति, भक्ति का सर्वश्रेष्ठ भाव है...तेरा तुझको अर्पण.. समर्पण भाव, अहन्कार को शून्य करता है ....उसी भक्ति के श्रेष्ठ्तम प्रतिमान हैं ...हनुमान ।......
"पवन तनय सन्कट- हरण,मारुति सुत अभिराम,
अन्जनि पुत्र सदा रहें, स्थित हर घर –ग्राम ।
स्थित हर घर- ग्राम, दिया वर सीता मां ने ,
होंय असम्भव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।
राम दूत ,बल धाम ,श्याम, जो मन से ध्यावे,
हों प्रसन्न हनुमान, क्रपा रघुपति की पावे ॥"
२.
Sache hridya aur vishwas se ki gayi bhakti, hamare mann ke andar ke andhkaar rupi ahankaar ka shaman karke gyaan aur sadbhavna ki jyot jala deti hai. Bahut sundar vyakyan.. Is prastuti ke liye bahut bahut abhar aapka.
ReplyDeleteबहुत सुंदर मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि ...: महत्व ..... में click करे
ReplyDeleteव्याख्या को बहुत ही सुन्दर रूप प्रदान किया है। हनुमान, क्यों कि वे जितेन्द्रीय है, और स्वयं के मान अवगुण का हनन करने वाले है, इसीलिए हनुमान हुए। स्वामीभक्ति और समर्पण इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।
ReplyDeleteशानदार अद्वितीय आलेख !...पवनसुत हनुमान की जय !
ReplyDeleteबहुत गहन और सूक्ष्म विश्लेषण... ह-अ, न्- उ , म्-त यानि हनुमान में अ उ म् अर्थात परम अक्षर 'ऊँ' विराजमान है जो
ReplyDeleteएकतत्व परब्रहम परमात्मा का प्रतीक है. सादर आभार|
bahut gyaanvardhak lekh. aapke satsang se hanuman shabd ki vistrit vyaakhya jaanane ko mili. aabhar.
ReplyDeleteसुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल
ReplyDeleteप्रभु प्रताप तें गरुड़ हि खाई परम लघु ब्याल
साखा मृग के बड़ी मनुसाई
साखा ते साखा पर जाई ....
सो सब तव प्रताप रघुराई
नाथ न कछु मोरी प्रभुताई
ऐसे विनयशील हैं प्रभु हनुमान
सार्थक सत्संग के लिए धन्यवाद
अति सुन्दर तार्किक,सरस,सुगम एवं मनोरम प्रस्तुति ! जय श्रीराम !!!
ReplyDeleteI was waiting for this post. Finally it's here!
ReplyDeletenicely written! I liked it very much!
Jay Hanumaan!
आपके लेख हमेशा प्रेरणादायी रहते है...
ReplyDeleteआप को बारम्बार प्रणाम....
apki post gyanwardhak hai.
ReplyDeleteहनुमान के शब्द व्याख्या और आध्यात्म व्याख्या के बीच कोई फर्क नहीं है ... अतुलित बल धामी ज्ञानी और अनन्य भक्ति वाले प्रभू हनुमान के विस्तृत रूप को जानना स्वयं प्रभू राम को जानना ही होगा ...
ReplyDeleteआपके आलेखों की प्रतीक्षा रहेगी ...
Rajesh ji chunki net par zyaad aana nahi hota Post ko bataane ke lie aapka hriday se abhaar.
ReplyDeleteNissandeh bahut hi achhi vyaakhya ki hai aapne bahut achhi gyaanvardhak post.
आपके आलेख से सदैव कुछ नया ज्ञान मिलता है..आभार
ReplyDeletehanuman shabd ki vyaakhya pahli baar padhi hai arthat hanuman shabd ke arth ko hi pahli bar jana hai.bahut bahut aabhari hoon.bahut gyaanvardhak post.
ReplyDeleteबहूत हि ज्ञानवर्धक रचना है....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुती है....
इस ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये आपका
धन्यवाद ||
प्रभावी प्रस्तुति.
ReplyDeleteहनुमान तत्व पर आपका गहन शोध सराहनीय है और हृदय को एक उच्च स्थिति में ले जाता है, जीवन को सुंदर बनाने के लिए ऐसे सत्संग होते रहने चाहिए. आभार! अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है.
ReplyDeleteHamesha ki tarah gyan bhara sandesh, sabse sunder baat he ki apne baki logon ke feedback to bhi apni post mein shaamil kiya hai…
ReplyDeletesachmuch Hanuman jaise gun mil jaaen to ishwar ko kush karna bhi aajaae… prernadayak post, dhanyawaad!
सर राखे सर जात है,सर काटे सर होत
जैसे बाती दीप की,जले उजाला होत
sunder, sachchi aur sateek seekh!
Wish you and your family a Merry Christmas.
ReplyDeleteYou are welcome at my new posts-
http://urmi-z-unique.blogspot.com
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हनुमान लीला अत्यंत कल्याणकारी और अपरम्पार है| आपने बहुत गहन और सूक्ष्म विश्लेषण किया है।| धन्यवाद|
ReplyDeleteनिष्कर्ष हुआ कि ह-अ, न्- उ , म्-त यानि हनुमान में अ उ म् अर्थात परम अक्षर 'ऊँ' विराजमान है जो
ReplyDeleteएकतत्व परब्रहम परमात्मा का प्रतीक है. जन्म मृत्यु तथा सांसारिक वासनाओं की मूलभूत माया का विनाश
ब्रह्मोपासना के बिना संभव ही नही है.हनुमान का आश्रय लेने से मन की गति स्थिर होती है ,जिससे शरीर में
स्थित पाँचो प्राण (प्राण , अपांन, उदान, व्यान ,समान) वशीभूत हो जाते हैं और साधक ब्रह्मानंद रुपी अजर
प्याला पीने में सक्षम हो जाता है.
bahut sunder gyan de rahe hain aap...nirmal..aabhaar hai aapka
shubhkamnayen
जय हनुमान।
ReplyDeletelearned so many thing through this post today..
ReplyDeletefacts like this can never b found in books or over net...
really so glad to have read this post.
पता नहीं क्यों, समस्त वाक्य मुझे नीचे से आधे कटे हुए दृष्टिगत हुए...सो पढ़ न पायी ...
ReplyDeleteक्या यह प्रविष्टि आप मुझे मेरे मेल द्वारा भेज सकते हैं...आपकी बड़ी कृपा होगी..
मेरा मेल आई डी है-
ranjurathour@gmail.com
हूँ......
ReplyDelete'मैं' था जब हरि नाहीं
अब हरि हैं मैं नाहीं ......
अहंकार के रखने से हमारा मान सम्मान सब चला जाता, परन्तु अहंकार का शमन करते रहने
ReplyDeleteसे हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
करने वाले व्यक्ति के भीतर और बाहर ज्ञान का उजाला होने लगता है.
bahut achchi prastuti.
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसादर नमस्ते,
आपका ब्लॉग सिर्फ़ पढ़ने या देखने लायक नहीं है ..बल्कि मनन और चिंतन करने के लिये भी है ..मैं चाहती हूँ इसे सुनने के लिये भी बनाउं ...और जब भी समय मिलेगा आपकी कई श्रंखलाओ के पॉडकास्ट बनाना चाहूंगी... और इस "हनुमान लीला" के दोनों भागों मे वर्णित बातों को पढ़कर लगा कि ये सब अनुभव हुआ है मुझे फ़िर कभी इस पर ....
आभार आपका इस श्रंखला के लिये..
अहंकार हनन करने वाले वज्रांग बली के नाम की इतनी सुन्दर और विस्तृत व्याख्या के लिये आभार!
ReplyDeleteमानव जीवन का परम लाभ अपने अराध्य को लक्ष्यबिंदु बनाना और उसी भावना में ओत-प्रोत होकर उन्ही की और प्रवाहित होना है . जीवन की प्रत्येक क्रिया उन्ही के लिए हो साथ-साथ अपने जगत को भी सनातन सुख - शांति के मार्ग दिखाने में हम समर्थ और सहभागी हों . इसके लिए अमूल्य वचनों का अध्ययन एवं अनुशीलन की चेष्टा तो की ही जा सकती है . इस दृष्टि से आपका प्रत्येक आलेख उपयोगी एवं उपादेय है . हार्दिक आभार..
ReplyDeleteआपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा । हमेशा आते रहूँगा । मेरे पोस्ट पर आते रहिएगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजीवन को सुंदर बनाने के लिए ऐसे सत्संग होते रहने चाहिए.
ReplyDeleteहमारे साथ तो कई सारे हनुमान है
ReplyDeleteअनुमान है कि जितने पवन हैं
सब हनुमान हैं
इसलिए हम सबको देते सदा सम्मान हैं
निष्कर्ष हुआ कि ह-अ, न्- उ , म्-त यानि हनुमान में अ उ म् अर्थात परम अक्षर 'ऊँ' विराजमान है जो
ReplyDeleteएकतत्व परब्रहम परमात्मा का प्रतीक है. जन्म मृत्यु तथा सांसारिक वासनाओं की मूलभूत माया का विनाश
ब्रह्मोपासना के बिना संभव ही नही है.हनुमान का आश्रय लेने से मन की गति स्थिर होती है ,जिससे शरीर में
स्थित पाँचो प्राण (प्राण , अपांन, उदान, व्यान ,समान) वशीभूत हो जाते हैं और साधक ब्रह्मानंद रुपी अजर
प्याला पीने में सक्षम हो जाता है.
वाह!!! कितना सुंदर विग्रह , वैसे विज्ञान भी परमाणु के विग्रह से उत्पन्न शक्ति को प्रमाणित करता है.
हम धन्य हुए. आभार.....
सुन्दर जानकारी ...नए विग्रह...नए अर्थ .
ReplyDeletebajrang bali ke baare me sundar si jaankari:))
ReplyDeletetahe dil se shukriya!
अध्यात्मिक विश्लेषण के सिद्धहस्त पुरोधा को नमन ,गंतव्य को पाना, जब हनुमान लक्षित हों ,तब शेष क्या बचता ही है,राम-मय , राम-रस सर्वत्र वर्षित हों उठता है ....भींज उठता है ,युगों का ,मरुधर .....हम तहे दिलse आभारी हैं आपके इस अध्यात्मिक आलेख / सद्द्वचन का जी /
ReplyDelete‘रामकाज लगी तव अवतारा। सुनतहि भयहु पर्वताकारा' Jai Hanuman
ReplyDeleteराकेश भाई साहब, आपसे आमने-सामने मिलने के बाद यकीनन कह सकता हूँ कि आप जो लिखते हैं वो आपका अनुभव किया हुआ है। हनुमान जी का आशीर्वाद हम सबको मिलता रहे।
ReplyDeleteइंतजार है अब आपकी पोस्ट्स का पॉडकास्ट सुनने का।
राकेश जी आप ज्ञान बांट रहे हैं भक्तिज्ञान की लूट है लूट सके तो लूट ।
ReplyDeleteहम जैसे छोटी झोली वाले जितना भी भर पायें ये कम ना होगा । अहंकार रूपी लंका का दहन हुनुमान ही कर सकते हैं । तनमनधन सब कुछ है तेरा, गाते तो रोज हैं पर फिर भी आपस में तेरा मेरा करते रहते हैं । हनुमान की शरण ही इससे मुक्ति दिलायेगी ।
सर राखे सर जात है,सर काटे सर होत
ReplyDeleteजैसे बाती दीप की,जले उजाला होत
मान सम्मान को हनु बनाए रखने के लिए हनू -मान चिकित्सा पूजा अर्चना .
मैं भी हनुमान भक्त हूँ परन्तु इतनी विस्तृत जानकारी थी ही
ReplyDeleteनहीं ! पढ़कर बिलकुल लग रहा था कि किसी सत्संग में सामिल हो गया हूँ जहाँ आध्यात्मिक प्रज्ञान का प्रकाश ज्वलंत हो रहा है !
आपके विचार पे मैं नतमस्तक हूँ !
apki post gyaan gagar hai :] itani naveen jaankari ke liye sabhi pathak aabhari hain!
ReplyDeletegyanvardhak post hae jab bhi aapke blog par kuchh nya hota hae use fursat se dekhti hun. satsang ke liye kahin jane ki jarurat nahin bas aapke blog ko kholo aur ram jao.thanx.
ReplyDeleteहनुमान जी सर्वथा मानरहित हैं, वे अपमान या सम्मान से परे हैं. 'मैं' यानि 'ego' या अहं के तीन स्वरुप हैं .शुद्ध स्वरुप में मै 'अहं ब्रह्मास्मि' सत् चित आनंद स्वरुप ,निराकार परब्रह्म राम हैं.साधारण अवस्था में जीव को 'अहं ब्रह्मास्मि' को समझना व अपने इस शुद्ध स्वरुप तक पहुंचना आसान नही.परन्तु, जीव जब दास्य भाव ग्रहण कर सब कुछ राम को सौंप केवल राम के कार्य यानि आनंद का संचार और विस्तार करने के लिए पूर्ण रूप से भक्ति,जपयज्ञ , प्राणायाम व कर्मयोग द्वारा नियोजित हो राम के अर्पित हो जाता है तो उसके अंत: करण में 'मैं' हनुमान भाव ग्रहण करने लगता है. तब वह भी मान सम्मान से परे होता जाता है और 'ऊँ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे ...तन मन धन सब है तेरा स्वामी सब कुछ है तेरा, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ..' के शुद्ध और सच्चे भाव उसके हृदय में उदय हो मानो वह हनुमान ही होता जाता है.
ReplyDeletebahut sunder aur vyapak drishtikon ke sath ki gai vyakhya....
tan man dhan sab hai tera to KYA MERA??? fir kisi tarah ka AHAM kyun??
bahut hi achha maargdarshan mila aapki is post se...
र 'ऊँ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे ...तन मन धन सब है तेरा स्वामी सब कुछ है तेरा, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ..' के शुद्ध और सच्चे भाव उसके हृदय में उदय हो मानो वह हनुमान ही होता जाता है.
ReplyDeleteआरती में तो सब गा लेते हैं पर इस भाव को अपनाना ही तो सच्ची आरती है .. सुन्दर प्रस्तुतिकरण
आदरणीय राकेश जी!! हनुमान जी के नाम मतलब और उसमे निहित ओम के स्वरुप को आपने हमें बताया .. और यह भी की हनुमान जी मान और सम्मान से परे भगवान का वह स्वरूप है जो अपनी राम भक्ति के लिए भक्तों में परमभक्त भगवान बने …वह भक्त योगी थे .. और सदा शरणागत/शरणांगति में रहे .. इसलिए वह खुद को प्रभु राम का भक्त कह कर भी प्रभु राम से एकाकार रहे …और अह्म ब्रह्मास्मि… इस शब्द का अर्थ अहं से नहीं वाकई यह अध्यात्म का गूड स्वरुप है .. और बहुत विराट है .. इसको संकीर्ण दायरे से सिर्फ खुद तक देखना प्रभु को नकारना जैसा और अभिमान का ध्योतक होगा ..आपका लेख बहुत हमें सदा कुछ नया सिखा जाता है ..सादर धन्यवाद
ReplyDeleteदानाय लक्ष्मी सुकृताय विद्या
चिंता परब्रह्मानिश्चिताय
परोपकाराय वचांसि यस्य
वन्द्यस्त्रीलोकीतिलकः स एकः |
जिसकी धन सम्पदा दान के लिए होती है..जिसकी विद्या पुण्यार्जन के लिए होती है ..जिसका चिंतन निरंतर परमब्रह्मतत्व के निश्चय में लगा रहता है और जिसकी वाणी परोपकार में लगी रहती है - ऐसा पुरुष सबके लिए वन्दनीय है और तीनों लोकों का तिलक स्वरुप है…
पुनर्दद्ताघ्नता जानता सं गमेमहि|| ….हम दानशील पुरुष से विश्वासघात आदि ना करने वालों से और विवेक विचार और ज्ञानवां से सत्संग करते रहे …. और इस उद्देश्य की पूर्ति आपके ब्लॉग में आ कर होती है .. आपका सादर आभार
आदरणीय राकेश जी!! हनुमान जी के नाम मतलब और उसमे निहित ओम के स्वरुप को आपने हमें बताया .. और यह भी की हनुमान जी मान और सम्मान से परे भगवान का वह स्वरूप है जो अपनी राम भक्ति के लिए भक्तों में परमभक्त भगवान बने …वह भक्त योगी थे .. और सदा शरणागत/शरणांगति में रहे .. इसलिए वह खुद को प्रभु राम का भक्त कह कर भी प्रभु राम से एकाकार रहे …और अह्म ब्रह्मास्मि… इस शब्द का अर्थ अहं से नहीं वाकई यह अध्यात्म का गूड स्वरुप है .. और बहुत विराट है .. इसको संकीर्ण दायरे से सिर्फ खुद तक देखना प्रभु को नकारना जैसा और अभिमान का ध्योतक होगा ..आपका लेख बहुत हमें सदा कुछ नया सिखा जाता है ..सादर धन्यवाद
ReplyDeleteदानाय लक्ष्मी सुकृताय विद्या
चिंता परब्रह्मानिश्चिताय
परोपकाराय वचांसि यस्य
वन्द्यस्त्रीलोकीतिलकः स एकः |
जिसकी धन सम्पदा दान के लिए होती है..जिसकी विद्या पुण्यार्जन के लिए होती है ..जिसका चिंतन निरंतर परमब्रह्मतत्व के निश्चय में लगा रहता है और जिसकी वाणी परोपकार में लगी रहती है - ऐसा पुरुष सबके लिए वन्दनीय है और तीनों लोकों का तिलक स्वरुप है…
पुनर्दद्ताघ्नता जानता सं गमेमहि|| ….हम दानशील पुरुष से विश्वासघात आदि ना करने वालों से और विवेक विचार और ज्ञानवां से सत्संग करते रहे …. और इस उद्देश्य की पूर्ति आपके ब्लॉग में आ कर होती है .. आपका सादर आभार
Profound and divine. The interaction in the beginning stands out. Great post Sir...
ReplyDeleteSorry for a late reply, catching up with family after 2.5 years...
ॐ हनुमते नमः!
ReplyDeleteकई बार यह पोस्ट पढ़ चुके हैं... हाँ कमेन्ट के रूप में उपस्थिति दर्ज नहीं हो पायी थी अब तक:(
आपने लिखा..."मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२' आपका इंतजार करती है,अनुपमा जी."
राकेश जी, सच तो यह है, हम आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा करते हैं...
सत्संग में सम्मिलित होने का सौभाग्य जो मिलता है!
सादर!
राकेश जी नमस्कार ...आपकी पोस्ट को बार बार पढ़ती हूँ |जब बात काफी समझ में आती है तभी टिप्पणी करती हूँ |इतनी ज्ञानवर्धक और मार्गदर्शक बातों से दूर रहा ही नहीं जा सकता बल्कि हम तो आभारी हैं आपके कि आप इतने अच्छे तरह से सत्संग कि बातें बता रहे हैं ....संग्रहणीय है आपका प्रयास !!कृपया मेरे विलम्ब को अन्यथा न लें |आप बड़े है ,ज्ञानी हैं ..आपकी कोई बात का मुझे बुरा नहीं लगता |इस बार अपने ब्लॉग पर मैंने अपना गाया हुआ कबीर भजन पोस्ट किया है |समय हो सुनियेगा |
ReplyDeleteसादर ...!
अपने ईष्टदेव के बारे में जितना पढ़ूं लगता है कम है।
ReplyDeleteराकेश जी .......आपको आध्यात्म का अपार अनुभव है . बहुत बहुत आभार हमसब के बीच इतने ज्ञानवर्धक पोस्ट देने के लिए..........
ReplyDeleteसच है इस एक शब्द या इस एक नाम "हनुमान" की व्याख्या करना वाकई नामुमकिन है मगर फिर भी आपने सरल शब्दों मे इस नाम की महिमा का बहुत ही अच्छी तरह वर्णन किया है जिसके मध्यम से हम सभी को इस विषय में बहुत ही अच्छी एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकी आभार....
ReplyDeleteRakesh ji Nischay hi apka post bahut hi sarahneey hai .... bahut bahut abhar . mere blog pr ap amantrit hain.
ReplyDeleteहनुमान लीला पढ़ने से कृतार्थ हुए.आभार.
ReplyDeleteरस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआज सुबह का समय अत्यधिक लाभकारी रहा. आपको नमन.
ReplyDelete"टिप्स हिंदी में"ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
लेकिन जब सांसारिकता में लिप्त हो 'मैं' या अहं को तरह तरह का आकार दिया जाता हैं तो हमारे अंदर यही मैं 'अहंकार' रुपी रावण हो विस्तार पाने लगता है. जिसके दसों सिर भी हो जाते हैं. धन का , रूप का , विद्या का , यश का आदि आदि. यह रावण या अहंकार तरह तरह के दुर्गुण रुपी राक्षसों को साथ ले हमारे स्वयं के अंत;करण में ही लंका नगरी का अधिपति हो सर्वत्र आतंक मचाने में लग जाता है.अत: अहंकार रुपी रावण की इस लंका पुरी को ख़ाक करने के लिए और परम भक्ति स्वरुप सीता का पता लगाने के लिए 'मैं' को हनुमान का आश्रय ग्रहण करने की परम आवश्यकता है.अहंकार की लंका नगरी को शमन कर ज्ञान का प्रकाश करने का प्रतीक यह हनुमान रुपी 'मैं ' ही हैं
ReplyDeletebahut sarthak evam sundar chintan.
लेकिन जब सांसारिकता में लिप्त हो 'मैं' या अहं को तरह तरह का आकार दिया जाता हैं तो हमारे अंदर यही मैं 'अहंकार' रुपी रावण हो विस्तार पाने लगता है. जिसके दसों सिर भी हो जाते हैं. धन का , रूप का , विद्या का , यश का आदि आदि. यह रावण या अहंकार तरह तरह के दुर्गुण रुपी राक्षसों को साथ ले हमारे स्वयं के अंत;करण में ही लंका नगरी का अधिपति हो सर्वत्र आतंक मचाने में लग जाता है.अत: अहंकार रुपी रावण की इस लंका पुरी को ख़ाक करने के लिए और परम भक्ति स्वरुप सीता का पता लगाने के लिए 'मैं' को हनुमान का आश्रय ग्रहण करने की परम आवश्यकता है.अहंकार की लंका नगरी को शमन कर ज्ञान का प्रकाश करने का प्रतीक यह हनुमान रुपी 'मैं ' ही हैं
ReplyDeletebahut sarthak evam sundar chintan.
हनुमान शब्द की बहुत सुन्दर व्याख्या की है |नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
ReplyDeleteआशा
hanuman ji ke naam ki itni sunder vyakhya bas aanad hi aaga
ReplyDeleteaapko navvarsh shubh ho
saader
rachana
अर्थात सर या अहंकार के रखने से हमारा मान सम्मान सब चला जाता, परन्तु अहंकार का शमन करते रहने
ReplyDeleteसे हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
करने वाले व्यक्ति के भीतर और बाहर ज्ञान का उजाला होने लगता है.
kitna sundar likha hai ,adbhut hai hanumaan shabd .rakesh ji bahut thandi hai yahan aur main shardi aur bukhar me jakdi hoon is karan net se jud nahi paa rahi ,aapko aana pada iske liye mafi chahti hoon ,lagta hai blog se door ho rahi hoon ab likhne ki ichchha nahi hoti ,tabiyat bhi thik nahi hai ,nutan barsh ka abhinandan karte huye aapko dhero badhai deti hoon ,nav barsh mangalmaya ho .
प्रियवर , निज जीवन के ८२ वर्षों के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि आपका निम्नांकित कथन अक्षरशः सत्य है !
ReplyDelete"हनुमान चालीसा' का मन लगाकर पाठ करने से अति उच्च प्रकार का प्राणायाम होता है.प्राण वायु को सकारात्मक बल की प्राप्ति होती है.पापों का शमन होता है.आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है !"
भैया मुझे आध्यात्म का जो थोड़ा बहुत ज्ञान इस जीवन में हुआ वह केवल भजन और चालीसा गायन के कारण तथा आप जैसे महात्माओं से प्राप्त संदेशों से ही हुआ!
बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है !
ReplyDeleteनववर्ष की बहुत बहुत बधाई !
गहन विश्लेषण, हनुमान शब्द रूप में "ओमकार' का ही प्रतीक है. यह ज्ञान मार्ग का द्योतक है,जहां अत्यधिक सतर्कता की अनिवार्ययता है. यदि जरा भी विचलित हुए, अहंकार जरा सा भी छू भर जाये तो जानो 'हनु' ठुड्डी तो गयी. 'हनुमान' बनने के लिए अपने निजी मान-मर्यादा की तिलांजलि देनी होगी. सर्वस्व आराध्य के चरणों में समर्पित करना होगा. अनाम =अरूप बनकर. सेवक और दास नाम धर कर भक्ति की शरण में जाकर, अनुगामिनी बनकर ही हनुमान जैसा कृपा प्राप्त और शील-शौय की खान बना जा सकता है.
ReplyDeleteबहुत ही गूघ=गहन और सार्थक विश्लेषण साथ में समीक्षकों का भी आभार सभी से सीखने को मिला. एक दो अभी और फिर से पढूंगा. मनन करूंगा तब तक के लिए नस्कर और हनुमान जी के चरणों में प्रणाम, नमन और वंदन.
बेहतरीन भाव संयोजन ।
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
You have explained in such details not only the word , but also the philosophy behind being called 'Hanumaan'. Person who has conquered ego is Hanumaan. Why not? Who else is there whose entire being was but an extension of His Lord. Hanuman stands out as an example of great potential sans ego ... for all that he achieved he dedicated to Lord Ram ... as you said 'तेरा तुझ को अर्पण'. If only we could adapt this philosophy in life...probably a huge chunk of our pains caused by hurt ego will disappear .
ReplyDeleteThank you for this wonderful post Rakesh ji.
हनुमान की पूजा तो शुरू से करते आये लेकिन उनके बारे में इतना विषद ज्ञान पहली बार मिला...ज्ञानवर्धक आलेख के लिये आभार और बधाई...आपके ब्लॉग पर आने के बाद एक दूसरी दुनियां में ही पहुँच जाते हैं....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteज्ञान का सागर है इस ब्लॉग में - नया साल मंगलमय हो
ReplyDeleteबेहद ज्ञानवर्धक
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
vikram7: आ,साथी नव वर्ष मनालें......
आपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाए ।
ReplyDeleteआदरणीय गुरु जी नमस्ते ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ज्ञान की बातें बताई हैं आपने तथा तार्किक विश्लेषण कर के मन को मोह लिया है भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् की अग्रिम शुभकामनाएं !!आइये विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।नव वर्ष ज़रूर मनाऐं, परन्तु इस बार 23 मार्च को हर्षोल्लास के साथ !ताकि दुनिया को भी पता चले कि हमें अपनी संस्कृति जान से प्यारी है ........
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteआप और आप के परिवार को नव वर्ष की हार्दिक बधाई .....:) बहुत सारी जानकारी एक ही पोस्ट से मिली .... पढ़ कर अच्छा लगा .....शुक्रिया....ऐसे ही हमारा ज्ञानवर्धन करते रहे .....
ReplyDeleteनमस्कार जी, आप का लेख पढ कर बहुत अच्छा लगा, मै तो इतना धार्मिक नही लेकिन यहां बहुत से मित्रो को आप का लिंक भेज रहा हुं, बहुत से लोग पढेगे आप का यह सुंदर लेख, लेकिन उन्हे टिपण्णिया देनी नही आती.
ReplyDeleteRespected Rakesh ji,
ReplyDeleteFirst of all ..Thanks for all the good wishes in form of comment on my blog. Your comment is really very touching.
Now I wish you a very happy, peaceful and prosperous new year!
महोदय जी ,
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामना ! ईश्वर से प्रार्थना करते हैं , कि आप सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहो , और आपके उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेखों से हमे भी आनंद तथा ज्ञान की प्राप्ति होती
रहे ! धन्यवाद !
जय श्रीराम !
हे भगवान. हनुमान नाम पर ही इतनी जानकारी !
ReplyDeleteguruji प्रणाम ! मै बारह दिनों के लिए रिफ्रेशेर क्लास के लिए हैदराबाद चला गया था ! अतः ब्लॉग की क्रम / उपस्थिति बंद हो गयी थी ! आज ही लौटा हूँ ! इस अवसर पर वश यही कहूँगा ---भगवान सभी के दिल में शांति और सहन की शक्ति दें ! मै और मेरी धर्मपत्नी की ओर से आप सभी को सपरिवार -नव वर्ष की शुभ कामनाएं !
ReplyDeleteNavVarsh par mangalkaamnayen
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ. ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार.
ReplyDeleteज्ञान का सागर है.
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामना
आदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विश्लेषण किया है!
आपका ब्लाग देखा। हनुमान शब्द की बहुत सटीक व्याख्या की है। शुभकामना।
ReplyDeleteअदभुद...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा..
बधाई एवं नववर्ष की शुभकामनाएँ.
सादर.
आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ :-)
ReplyDeleteप्रभु हनुमान भक्तिमय उपासना एवं प्रेम साधना की पराकाष्ठा हैं..........हनुतत्व असीमित एवं वृहद एवं विशाल सत्ता है आपने अत्यंत ही गूढ़ ज्ञान का समावेश कर गागर में सागर कि सूक्ति को सार्थक किया है इस भक्तिमय आलेख में ...नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThank you for the New Year wishes, Rakesh :) Wishing you the same! I can't read Hindi and sometimes I have trouble seeing your page translated to English, so this is why I haven't returned the follow sooner.
ReplyDeleteBest Wishes,
Fiona :)
नव वर्ष मंगलमय हो ..
ReplyDeleteबहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
जय हो राम भक्त श्री हुनुमान जी की ....
ReplyDeleteआभार आपका प्रेम-पूर्वक कथा कहने का !
नव-वर्ष की बधाई स्वीकारें!
बहुत अच्छी भावमयी रचना .. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteश्रद्धा विश्वास रूपिणम्
ReplyDeleteबहुत व्यापक अर्थ देते हुये सार्थक विवेचन हेतु
ReplyDeleteआभार !
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं !
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें....
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो
ReplyDeleteबहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
Wish you and yours a happy ,healthy ,prosperous and peaceful new year.
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं !
ReplyDeletenamaskar rakesh kumar ji
ReplyDeletehanuman ka bulava bahut khas tha . mai niyam se hanuman chalisa padhti hoon ......hanuman ji ki lila to sabhi jante hai ........par mai or ego ka gudh arth .....janae ko mila . dil hanuman maye ho gaya . gyan vardhak post hoti hai aapki ....aaj shabd nahi hai samiksha ke liye ..........baas itna hi kahoongi ............JAI HANUMAN GYAN GUN SAGAR
JAI KAPISH TIHUN LOK UJAGAR ...
RAMDOOTH ATULIT BALDHAMA
ANJANI PUTRA PAWAN SUT NAMA............., NAMAN ...SALAM .....ABHAR .
..............SHASHI PURWAR
namaskar ......hanuman lila ki link me abhivyakti par de raho hoon ..... aap wahan dekh sakte hai ..dhanyavad .
ReplyDeleteभगवान श्रीहनुमंत का सारत्व, पूर्ण दास्त्वभाव है।
ReplyDeleteश्रीमान राकेश जी,
ReplyDeleteआपका मेरे ब्लॉग (जीवन विचार) पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद। भविष्य मे भी इसी प्रकार हौसला बढ़ाते रहेँ।
आपको भी नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ।
धन्यवाद
http://jeevanvichar.blogspot.com
सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteराकेश भैया - इस सुन्दर आलेख शृंखला के लिए धन्यवाद | क्या अपना मेल id दे सकेंगे ? मेरे पास नहीं है |
हनुमान जी के बारे में अनुराग जी की सुनाई विनोबा जी की गीता सुन रही थी - उसमे यह कहानी आई | आपकी इस हनुमान लीला पर यहाँ शेयर कर रही हूँ |
रामदास जी रामायण कथा लिखते - और अपने शिष्यों को सुनते | जब वे कथा कहते, तो हनुमान जी भी अदृश्य हो वहां उपस्थित होते और अपने प्रिय श्री राम की कथा सुनते और आनंदित होते | एक दिन गुरु जी बोले "हनुमान जी अशोक वाटिका में गए और वहां सफ़ेद फूल देखे |" तब हनुमान तुरंत प्रकट होकर बोले - नहीं - मैंने वहां लाल फूल देखे थे | ...... रामदास जी ने कहा - नहीं फूल सफ़ेद थे, और हनुमान जी बोले नहीं वे लाल थे |
हनुमान जी राम जी के पास समस्या लेकर गए - तो राम जी बोले - फूल तो सफ़ेद ही थे | किन्तु तुमने जो क्रोध से आँखें लाल की हुई थीं - तुम्हे शुभ्र भी लाल नज़र आया |
तो - हम दुनिया को वैसा देखते हैं जैसा हमारा मनोभाव हो - और यह सिर्फ हम जैसे साधारण जन ही नहीं, बल्कि श्री आंजनेय जी पर भी लागू होता है |
bhaiya - meri tippani spam me chali gayi hai - please use publish kar dein
ReplyDeletehappy new year
सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteराकेश भैया - इस सुन्दर आलेख शृंखला के लिए धन्यवाद | क्या अपना मेल id दे सकेंगे ? मेरे पास नहीं है |
अनुराग जी की सुनाई विनोबा जी की गीता सुन रही थी - उसमे हनुमान जी के बारे में यह कहानी आई | यहाँ शेयर कर रही हूँ |
रामदास जी रामायण कथा लिखते - और अपने शिष्यों को सुनते | जब वे कथा कहते, तो हनुमान जी भी अदृश्य हो वहां उपस्थित होते और अपने प्रिय श्री राम की कथा सुनते और आनंदित होते | एक दिन गुरु जी बोले "हनुमान जी अशोक वाटिका में गए और वहां सफ़ेद फूल देखे |" तब हनुमान तुरंत प्रकट होकर बोले - नहीं - मैंने वहां लाल फूल देखे थे | ...... रामदास जी ने कहा - नहीं फूल सफ़ेद थे, और हनुमान जी बोले नहीं वे लाल थे |
हनुमान जी राम जी के पास समस्या लेकर गए - तो राम जी बोले - फूल तो सफ़ेद ही थे | किन्तु तुमने जो क्रोध से आँखें लाल की हुई थीं - तुम्हे शुभ्र भी लाल नज़र आया |
तो - हम दुनिया को वैसा देखते हैं जैसा हमारा मनोभाव हो - और यह सिर्फ हम जैसे साधारण जन ही नहीं, बल्कि श्री आंजनेय जी पर भी लागू होता है |
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteएक फ़रियाद, माँ के दरबार में ;-
ReplyDeleteतर्ज :- सो बर ज़न्म लेंगे, सो बर फना हओंगे
इक बार चले आओ, अब और न तडपाओ |
दर्शन ज़रा दिखलाओ, फ़रियाद न ठुकराओ ||
रस्ता तेरा ताकता हूँ, सोता हूँ न जगता हूँ |
दिन रात तड़पता हूँ, दर्शन को तरसता हूँ ||
दर्शन दिखला जाओ, अब और न..............
इंसान बेचारा हूँ, तकदीर का मारा हूँ |
मैं दास तुम्हारा हूँ, संसार से हारा हूँ ||
करूणा दिखला जाओ, अब और न .............
तेरी शान निराली है, झोली मेरी खाली है |
नादान रहा बरसों, अब होश संभाली है ||
दामन मेरा भर जाओ, अब और न ...........
'शशि; शीश झुकाता है, आवाज़ लगाता है |
महिमा तेरी गाता है, लोगों को सुनाता है ||
Wish you and your family a very Happy New Year.
ReplyDeleteYou are welcome at my new posts-
http://urmi-z-unique.blogspot.com
http://amazing-shot.blogspot.com
राकेशजी,
ReplyDeleteनए साल में कुछ ऐसा कमाल दिखाएँ,
पवनपुत्र के सीने में जैसे सियाराम आये !
एक महत्वपूर्ण विषय पर उत्कृष्ट जानकारी साझी कर रहे हैं आप. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,राकेश जी नई पोस्ट को लंबा खीच रहे है,...
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
मेरे नए पोस्ट "तुझे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपका ब्लॉग हमारी धार्मिक पुस्तकों के बारे में ज्ञान बढाता है... चिंतन करने पर मजबूर करता है.......
सर राखे सर जात है,सर काटे सर होत
ReplyDeleteजैसे बाती दीप की,जले उजाला होत
मन प्रसन्न हो गया आदरणीय राकेश भईया आपकी पोस्ट पढके...
सादर आभार.
बहुत ही गहन विषय है..ध्यान से पढना होगा..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
Rakesh Kumar ji,
ReplyDeleteAapko aur Aapke pariwaar ko Nav Varsh ki hardik Shubh Kamnayein:)
2012 mein bhi aap apne blog ke zariye hamara gyaan badhayein:)
जितनी बार आपके ब्लॉग पर आओ, ज्ञानवर्धन होता है.आपका आभार.
ReplyDeleteलो हम भी आ गये आपकी हनुमान पोस्ट पर। अब यह न कहना आये नही। हनुमान जी की बस आरती आती है हमें...:) आपकी तरह जबरदस्त लेखक नही हैं राकेश भाई। जय हनुमान!!
ReplyDeleteअशोक व्यास जी ने निम्न टिपण्णी मेल से प्रेषित की है.
ReplyDeleteराकेशजी
ब्लॉग पर प्रतिक्रिया न पहुंचा पाने के कारन
फिर से पत्र का सहारा ले रहा हूँ
आपके आत्मीय वचनों के लिए आपकी विनयशीलता को नमन,
जीवन के मर्म से जुड़े शब्दों का सारगर्भित उपहार प्रस्तुत करने के लिए आभार,
हनुमान जी ज्ञान गुण सागर हैं, सारे लोकों में उजियारा करने वाले हैं
उनकी कृपा से 'कुमति का निवारण' करने की एक भूमिका आपका ब्लॉग भी निभा
रहा है, बधाई
'जय जय जय हनुमान गुसाईं, कृपा करो गुरुदेव की नाईं
Ashok Vyas
सत्संग लाभ मिला, यहां आ कर.
ReplyDeleteblog pr aane ke .... aadhyatmik chintan ko bl milata hai ....apki es sundar pravishti ke liye abhar Rakesh ji
ReplyDeleteबहुत ज्ञानप्रद प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteAapke blog pe mai hamesha aatee rahtee hun..aapke bhasha prabhutv se bhee abhibhut hun!
ReplyDeleteNaya saal bahut mubarak ho!
बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपका स्वागत है ब्लॉगर्स मीट वीकली 25 में
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.com/2012/01/25-sufi-culture.html
अहंकार के रखने से हमारा मान सम्मान सब चला जाता, परन्तु अहंकार का शमन करते रहने
ReplyDeleteसे हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
करने वाले व्यक्ति के भीतर और बाहर ज्ञान का उजाला होने लगता है.
" हनुमान " मात्र एक शब्द नहीं यह जीवन और जगत की सत्यता का प्रतीक है ....भक्ति और भावनाओं का अनुपम संगम है ...श्रद्धा और निश्छल प्रेम का जीवंत उदाहरण है ......अदम्य शक्ति और संयम , दृढ़ता और साहस अनगिनत ....अनकहा ....और कल्पना से परे .है "हनुमान " ....आपने बेहद गंभीर और सार्थक तरीके से व्याख्या की आपको हार्दिक बधाई ....!
आपकी पोस्ट हमेशा से हमे ज्ञान की उस नदी की सैर कराती हैं --जहाँ हम दुपकी लगाकर अपने मन का मेल साफ करते हैं ...यहाँ आने के लिए पुरे मन को एकाकार करने की जरूरत रहती हैं राकेश जी .. वरना आप जानते हैं मुझे कुछ समझ नहीं आता ---और जब तक आप कुछ समझोगे नहीं तो यहाँ आना व्यर्थ हैं --सिर्फ कापी -पेस्ट करने वाला काम मुझे कताई पसंद नहीं हैं ..
ReplyDeleteवायु का सम्बन्ध हनुमानजी से जुडा होना जानकार में हतप्रभ हूँ ...आज से पहले मैनें ये बात सोची भी नहीं थी --जो बात सोची ही नहीं उसका इतना चमत्कारी वर्णन पढ़कर मन प्रसन्न हो गया--इसके लिए दिल से धन्यवाद देती हूँ ---हाँ, इतना जरुर जानती हूँ की वात और वायु के विकार से ही शरीर असाध्य रोगों से घिर जाता हैं ...और हनुमान -चालीसा पढने से इस रोग का शमन होता हैं ... एकबार फिर आपको नमन की आपके द्वारा हम भी इस बहती गंगा में अपने मन के मेल को धो लेते हैं ...धन्यवाद !
"अहंकार के रखने से हमारा मान सम्मान सब चला जाता, परन्तु अहंकार का शमन करते रहने
ReplyDeleteसे हमें स्वत; ही मान सम्मान मिलता है. जैसे दीप की बाती जलने पर उजाला करती है,वैसे ही अहंकार का शमन
करने वाले व्यक्ति के भीतर और बाहर ज्ञान का उजाला होने लगता हैं ..."
एकदम सही बात की हैं --फिर भी इन्सान अहंकार करता हैं --जबकि उसे पता हैं की साथ कुछ नहीं ले जाना हैं --खाली हाथ आया हैं खाली हाथ ही जाना हैं ...
ज्ञान वर्धक पोस्ट ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति......
ReplyDeletewelcom to new post --"काव्यान्जलि"--
राकेश जी नव वर्ष की वधाई ,,,,,,,,,,,मैं यहाँ घर पैर ही हूँ २ जन को गिर गयी थी लिगामेंट्स में प्रोब्लुम हो गयी है .........आज आपकी पोस्ट देखि बहुत जानकारी मिलती है
ReplyDeletebahut khoob sir
ReplyDeletesundar post
shree bajarangbali ki jai ho
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट,आभार।
ReplyDeleteAdhyatam ke kshetra mein aapka gyan ki jitani bhi prashansa ki jaye kam hai. Ishwar milan mein sabse badi badha ahankar hai aur adhyatm ahankar ke visarjan ki ek vidhi hai. jap dhyan aadi us visarjan ki vidhi hai.
ReplyDeleteanupam prastuti.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति बारहा पढने के काबिल .आप भाई साहब अध्यात्म के माहिर हैं ब्लॉग जगत में आपका अलग स्थान है .
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
लोहड़ी पर्व के साथ-साथ उत्तरायणी की भी बधाई और शुभकामनाएँ!
शारदा अरोड़ा जी ने निम्न टिपण्णी मेल से प्रेषित की है.
ReplyDeleteRakaesh kumar ji , aapko bhi naye varsh ki hardik shubh kamanayen ..
ham log Andmaan gaye hue the , is vajah se net bhi acces nahi kiya ,
Comment ke liye shukriya , aapke blog ko padha , bahut achchi vykhya
hai , dhero comments bhi aaye hue hain ..
with best compliments
Sharda Arora
मकर संक्रांति की शुभकामनायें.
ReplyDeleteदास्य भाव की भक्ति का स्पर्श लिए रहती है आपकी व्याख्या .ब्लॉग पर आपकी दस्तक उत्साह वर्धक रही .
ReplyDeleteदगैल और रखैल नेताओं को पार्टी में लेने से पार्टी का कद बढ़ता है .भारत विकास के रास्ते पर बढ़ता है .
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,संक्रांति की बहुत२ शुभकामनाए,....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमकर संक्रांति की शुभकामनायें|
ReplyDeletebajrang bali sada sahay. happy makar sankranti.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआदरणीय रंजना जी के कुछ उदगार,जो उन्होंने मेल से प्रेषित किये हैं:-
ReplyDeleteप्रविष्टि के विषय में तो क्या कहूँ...गूंगा गुड़ का क्या स्वाद बताये...??
बस आप यह आनंद रस प्रवाहित करते रहिये और हम उसमे निमग्न तो जीवन धन्य करते रहेंगे...
अदभुत और गहन विश्लेषण. आपके लेख संग्रह योग्य होते हैं और पढ़ने से भी मन को शांति मिलती है.
ReplyDeleteकैसे हैं आप? काफी दिन हो गए आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आए! वक़्त मिलने से मेरे सभी ब्लॉग पर नया पोस्ट पढने आइयेगा! उम्मीद करती हूँ आप एवं आपके परिवार में सब कुशल मंगल है!
ReplyDeleteपढ़कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
sankatmochayaan ka bahut hi gyaan vardhak vishleshan......aabhar
ReplyDeletesir, excellent interpretation indeed......
ReplyDeletei am sorry that due to my over-busy schedule i could not go through your post earlier...
प्रकृते क्रियमाणानि गुणे कर्माणि सर्वस,
अहंकार बेमुधात्मा कर्ताहम इतिमन्यते.
door to relization opens when we annihilate our egos ..
Jay Hanuman Aarti milele ka
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