नहिं कलि करम न भगति बिबेकू, राम नाम अवलंबन एकू
कालनेमि कलि कपट निधानू, नाम सुमति समरथ हनुमानू
'कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है.केवल रामनाम ही एक आधार है.कपट की खान
कलियुग रुपी कालनेमि को मारने के लिए 'रामनाम' ही बुद्धिमान और समर्थ श्रीहनुमानजी हैं.'
मेरी पोस्ट 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-२' में श्रीरामचरितमानस में वर्णित कलियुग का
निम्न आध्यात्मिक निरूपण किया गया था.
तामस बहुत रजोगुण थोरा , कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा
हमारे हृदय में जब तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि बहुत बढ़ जाये ,रजोगुण अर्थात
कालनेमि कलि कपट निधानू, नाम सुमति समरथ हनुमानू
'कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है.केवल रामनाम ही एक आधार है.कपट की खान
कलियुग रुपी कालनेमि को मारने के लिए 'रामनाम' ही बुद्धिमान और समर्थ श्रीहनुमानजी हैं.'
मेरी पोस्ट 'रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-२' में श्रीरामचरितमानस में वर्णित कलियुग का
निम्न आध्यात्मिक निरूपण किया गया था.
तामस बहुत रजोगुण थोरा , कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा
हमारे हृदय में जब तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि बहुत बढ़ जाये ,रजोगुण अर्थात
क्रियाशीलता कम हो जाये,और सतोगुण यानि ज्ञान व विवेक का तो मानो लोप ही हो जाये, चहुँ ओर विरोधी
वृत्तियों का ही हृदय में वास हो, सब तरफ अप्रसन्नता और विरोध हो, तो कह सकते हैं हम उस समय
'घोर 'कलियुग' में ही जी रहे है.
कलियुग मन की निम्नतम स्थिति या अधोगति की वह अवस्था है जिस में सकारात्मक सोचने और
निर्णय करने की शक्ति यानि विवेक का सर्वथा अभाव होने से कोई सद्कर्म नही हो पाता. न ही मन
ईश्वर से जुड़ने अर्थात भक्ति का आश्रय ले पाता है. मन में विरोधी वृत्तियों का वास 'कालनेमि' राक्षस
के समान सदा ही धोखा देने और ठगने में लगा रहता है. 'कालनेमि' हमारे अहंकार रुपी रावण का ही
एक सहयोगी है. जो ठग विद्या में अति निपुण है.यह 'राम नाम' का झूंठा प्रदर्शन और ढोंग करके
हनुमान जी को भी ठगना चाहता है.परन्तु, हनुमान जी सदा सजग है,बुद्धिमान है.इसीलिए वे कालनेमि
राक्षस के कपट को समझ लेते हैं और अंतत:उसका वध कर डालते है. सही प्रकार से नित्य सजग 'नाम
स्मरण' वीर हनुमान की तरह ही हमारी कपट और ढोंग से रक्षा करता रहता है.
मेरी पिछली पोस्ट 'हनुमान लीला - भाग २' में हमने जाना कि 'हनुमान' शब्द ने किस प्रकार से अपने अंदर
'ऊँ' कार रुपी परमात्मा के नाम को धारण कर रक्खा है. यदि हम हृदय में 'आकार' को धारण करते हैं,तो
अहंकार की उत्पत्ति होती है. आकार शरीर,मन ,बुद्धि आदि किसी भी स्तर पर दिया जा सकता है.यदि
शरीर के आधार पर मैं स्वयं को मोटा,पतला,गोरा,शक्तिशाली,सुन्दर आदि होने का मान दूँ तो तदनुसार ही
मेरे अहंकार का उदभव होता है व मैं खुद को वैसा ही समझने लगता हूँ .इसी प्रकार मन के आधार पर सुखी,
दुखी, बुद्धि के आधार पर बुद्धिमान, तार्किक आदि होने का अहंकार होता है. पर 'हनुमान' तो किसी भी
आकार को धारण न कर केवल 'ऊँ' कार को ही धारण करते हैं.जिसका अर्थ है वे हमेशा 'ऊं ' को ध्याते हैं,
'ऊं' का भजन करते हैं,'ऊं' का ही मनन करते हैं.हनुमान इतने निरभिमानी हैं कि वे परमात्मा के ध्यान
में स्वयं को भी भूल जाते हैं.इसीलिए जाम्बवान (रीछ पति) को उनका आह्वाहन करते हुए कहना पड़ता है
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना,का चुप साधी रहेउ बलवाना
पवन तनय बल पवन समाना,बुद्धि बिबेक बिग्यान निधाना
'ऊँ' को ध्याने से 'ऊं' का जप करने से प्राणायाम की स्थिति होती है , प्राण की उर्ध्व गति होती है.सांसारिक
और विषयों के चिंतन से प्राण की अधोगति होती है.क्यूंकि तब 'साँस' विषमता को प्राप्त होता रहता है.
परन्तु , जब 'ऊँ' का उच्चारण किया जाता है तो जितनी देर या लम्बा हम 'ओ' बोलते हैं , शरीर से कार्बन
डाई ऑक्साइड (CO2) उतनी ही अधिक बाहर निकलती है. जैसे ही 'म' कहकर 'ओम्' का उच्चारण पूर्ण कर
लिया जाता है , इसके बाद लंबी साँस के द्वारा ऑक्सीजन (O2) शरीर में गहराई से प्रवेश करती है.इस
पूरी प्रक्रिया में जहाँ शरीर स्वस्थ होता है,मन और बुद्धि भी शांत होते जाते हैं. अधिकतर मन्त्रों में 'ऊँ' का
सर्वप्रथम होने का यही कारण है कि 'ऊँ' परमात्मा का आदि नाम है तथा प्राण को हमेशा 'उर्ध्व' गति प्रदान
करता है.इसीलिए तो हनुमान 'ऊँ' को सैदेव हृदय में धारण किये हुए हैं.कहते हैं जब उनसे पूछा गया कि
'सीता राम' कहाँ हैं तो उन्होंने अपना सीना फाड़ कर सभी को 'सीता राम' के दर्शन करा दिए.'सीता' यानि
परमात्मा की परा भक्ति , राम यानि 'सत्-चित-आनन्द' परमात्मा सदा ही उनके हृदय में विराजमान हैं.
हनुमान की भगवान के प्रति अटूट शरणागति सभी के लिए अनुकरणीय है.शरणागति का सरलतम
अर्थ है 'आश्रय'की अनुभूति.दुनिया का ऐसा कोई जीव नही है जिसको आश्रय या सहारे की आवश्यकता
न हो.परन्तु आश्रय किसका ?यह बात अलग हो सकती है.भविष्य की अनिश्चितता के कारण प्राय: सभी
के मन मे संदेह,भय,असुरक्षा घर किये रहते हैं.यदि सही आश्रय मिल जाता है तो व्यक्ति निश्चिन्त सा हो
जाता है.सांसारिक साधन कुछ हद तक ही सहारा देते हैं,अत: वे सापेक्ष (relative) हैं.जब तक समुचित
सहारे का अनुभव नही होता,मन अशांत होता रहता है.ईश्वर का आश्रय होने से चित्त में आनन्द का
आविर्भाव होता है,चित्त में निश्चिन्तता आती है. हनुमान हमेशा निश्चिन्त हैं ,क्यूंकि उनका आश्रय
'राम' हैं, जो निरपेक्ष(absolute) है,स्थाई और चेतन आनन्द है,शरणागत वत्सल है.
समस्त अनिश्चिंतता,भय संदेह ,असुरक्षा का कारण 'मोह' अर्थात अज्ञान है,अज्ञान के साथ अभिमान
अर्थात यह मानना कि मुझे किसी आश्रय की आवश्यकता नही है अत्यंत शूलप्रद और कष्टदायी होता है.
रावण को लंका दहन से पूर्व समझाते हुए इसलिये हनुमान जी कहते हैं.
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान
शस्त्र और शास्त्र दोनों के धनी श्री गुरू गोविन्द सिंह जी भी सुस्पष्ट शब्दों में कहते हैं:-
सबै मंत्रहीनं सबै अंत कालं
भजो एक चित्तं सुकालं कृपालं
'जब अंत समय आता है तो सभी मंत्र निष्फल हो जाते हैं,
इसीलिए मन लगाकर कृपा सिंधु प्रभु का भजन करो.'
यदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
जाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.
आप सभी सुधिजनों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने मेरी हनुमान लीला की पिछली
दोनों पोस्टों ('हनुमान लीला-भाग १' तथा 'हनुमान लीला - भाग २') को मेरी लोकप्रिय (popular) पोस्टों
में लाकर प्रथम व द्वितीय स्थान पर पहुँचा दिया है.आशा है आप मेरी इस पोस्ट पर भी अपने प्यार,
सहयोग और सुवचनों के द्वारा मेरा उत्साहवर्धन अवश्य करेंगें.यदि आप सभी की अनुमति और परामर्श
हो तो अगली कड़ी भी मैं हनुमान लीला पर ही आधारित रखना चाहूँगा.
आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएँ,मकर सक्रांति की शुभकामनाएँ और आनेवाले गणतंत्र दिवस की
बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
कलियुग मन की निम्नतम स्थिति या अधोगति की वह अवस्था है जिस में सकारात्मक सोचने और
निर्णय करने की शक्ति यानि विवेक का सर्वथा अभाव होने से कोई सद्कर्म नही हो पाता. न ही मन
ईश्वर से जुड़ने अर्थात भक्ति का आश्रय ले पाता है. मन में विरोधी वृत्तियों का वास 'कालनेमि' राक्षस
के समान सदा ही धोखा देने और ठगने में लगा रहता है. 'कालनेमि' हमारे अहंकार रुपी रावण का ही
एक सहयोगी है. जो ठग विद्या में अति निपुण है.यह 'राम नाम' का झूंठा प्रदर्शन और ढोंग करके
हनुमान जी को भी ठगना चाहता है.परन्तु, हनुमान जी सदा सजग है,बुद्धिमान है.इसीलिए वे कालनेमि
राक्षस के कपट को समझ लेते हैं और अंतत:उसका वध कर डालते है. सही प्रकार से नित्य सजग 'नाम
स्मरण' वीर हनुमान की तरह ही हमारी कपट और ढोंग से रक्षा करता रहता है.
मेरी पिछली पोस्ट 'हनुमान लीला - भाग २' में हमने जाना कि 'हनुमान' शब्द ने किस प्रकार से अपने अंदर
'ऊँ' कार रुपी परमात्मा के नाम को धारण कर रक्खा है. यदि हम हृदय में 'आकार' को धारण करते हैं,तो
अहंकार की उत्पत्ति होती है. आकार शरीर,मन ,बुद्धि आदि किसी भी स्तर पर दिया जा सकता है.यदि
शरीर के आधार पर मैं स्वयं को मोटा,पतला,गोरा,शक्तिशाली,सुन्दर आदि होने का मान दूँ तो तदनुसार ही
मेरे अहंकार का उदभव होता है व मैं खुद को वैसा ही समझने लगता हूँ .इसी प्रकार मन के आधार पर सुखी,
दुखी, बुद्धि के आधार पर बुद्धिमान, तार्किक आदि होने का अहंकार होता है. पर 'हनुमान' तो किसी भी
आकार को धारण न कर केवल 'ऊँ' कार को ही धारण करते हैं.जिसका अर्थ है वे हमेशा 'ऊं ' को ध्याते हैं,
'ऊं' का भजन करते हैं,'ऊं' का ही मनन करते हैं.हनुमान इतने निरभिमानी हैं कि वे परमात्मा के ध्यान
में स्वयं को भी भूल जाते हैं.इसीलिए जाम्बवान (रीछ पति) को उनका आह्वाहन करते हुए कहना पड़ता है
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना,का चुप साधी रहेउ बलवाना
पवन तनय बल पवन समाना,बुद्धि बिबेक बिग्यान निधाना
'ऊँ' को ध्याने से 'ऊं' का जप करने से प्राणायाम की स्थिति होती है , प्राण की उर्ध्व गति होती है.सांसारिक
और विषयों के चिंतन से प्राण की अधोगति होती है.क्यूंकि तब 'साँस' विषमता को प्राप्त होता रहता है.
परन्तु , जब 'ऊँ' का उच्चारण किया जाता है तो जितनी देर या लम्बा हम 'ओ' बोलते हैं , शरीर से कार्बन
डाई ऑक्साइड (CO2) उतनी ही अधिक बाहर निकलती है. जैसे ही 'म' कहकर 'ओम्' का उच्चारण पूर्ण कर
लिया जाता है , इसके बाद लंबी साँस के द्वारा ऑक्सीजन (O2) शरीर में गहराई से प्रवेश करती है.इस
पूरी प्रक्रिया में जहाँ शरीर स्वस्थ होता है,मन और बुद्धि भी शांत होते जाते हैं. अधिकतर मन्त्रों में 'ऊँ' का
सर्वप्रथम होने का यही कारण है कि 'ऊँ' परमात्मा का आदि नाम है तथा प्राण को हमेशा 'उर्ध्व' गति प्रदान
करता है.इसीलिए तो हनुमान 'ऊँ' को सैदेव हृदय में धारण किये हुए हैं.कहते हैं जब उनसे पूछा गया कि
'सीता राम' कहाँ हैं तो उन्होंने अपना सीना फाड़ कर सभी को 'सीता राम' के दर्शन करा दिए.'सीता' यानि
परमात्मा की परा भक्ति , राम यानि 'सत्-चित-आनन्द' परमात्मा सदा ही उनके हृदय में विराजमान हैं.
हनुमान की भगवान के प्रति अटूट शरणागति सभी के लिए अनुकरणीय है.शरणागति का सरलतम
अर्थ है 'आश्रय'की अनुभूति.दुनिया का ऐसा कोई जीव नही है जिसको आश्रय या सहारे की आवश्यकता
न हो.परन्तु आश्रय किसका ?यह बात अलग हो सकती है.भविष्य की अनिश्चितता के कारण प्राय: सभी
के मन मे संदेह,भय,असुरक्षा घर किये रहते हैं.यदि सही आश्रय मिल जाता है तो व्यक्ति निश्चिन्त सा हो
जाता है.सांसारिक साधन कुछ हद तक ही सहारा देते हैं,अत: वे सापेक्ष (relative) हैं.जब तक समुचित
सहारे का अनुभव नही होता,मन अशांत होता रहता है.ईश्वर का आश्रय होने से चित्त में आनन्द का
आविर्भाव होता है,चित्त में निश्चिन्तता आती है. हनुमान हमेशा निश्चिन्त हैं ,क्यूंकि उनका आश्रय
'राम' हैं, जो निरपेक्ष(absolute) है,स्थाई और चेतन आनन्द है,शरणागत वत्सल है.
समस्त अनिश्चिंतता,भय संदेह ,असुरक्षा का कारण 'मोह' अर्थात अज्ञान है,अज्ञान के साथ अभिमान
अर्थात यह मानना कि मुझे किसी आश्रय की आवश्यकता नही है अत्यंत शूलप्रद और कष्टदायी होता है.
रावण को लंका दहन से पूर्व समझाते हुए इसलिये हनुमान जी कहते हैं.
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान
शस्त्र और शास्त्र दोनों के धनी श्री गुरू गोविन्द सिंह जी भी सुस्पष्ट शब्दों में कहते हैं:-
सबै मंत्रहीनं सबै अंत कालं
भजो एक चित्तं सुकालं कृपालं
'जब अंत समय आता है तो सभी मंत्र निष्फल हो जाते हैं,
इसीलिए मन लगाकर कृपा सिंधु प्रभु का भजन करो.'
यदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
जाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.
आप सभी सुधिजनों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने मेरी हनुमान लीला की पिछली
दोनों पोस्टों ('हनुमान लीला-भाग १' तथा 'हनुमान लीला - भाग २') को मेरी लोकप्रिय (popular) पोस्टों
में लाकर प्रथम व द्वितीय स्थान पर पहुँचा दिया है.आशा है आप मेरी इस पोस्ट पर भी अपने प्यार,
सहयोग और सुवचनों के द्वारा मेरा उत्साहवर्धन अवश्य करेंगें.यदि आप सभी की अनुमति और परामर्श
हो तो अगली कड़ी भी मैं हनुमान लीला पर ही आधारित रखना चाहूँगा.
आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएँ,मकर सक्रांति की शुभकामनाएँ और आनेवाले गणतंत्र दिवस की
बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
'ऊँ' को ध्याने से 'ऊं' का जप करने से प्राणायाम की स्थिति होती है , प्राण की उर्ध्व गति होती है.सांसारिक
ReplyDeleteऔर विषयों के चिंतन से प्राण की अधोगति होती है.क्यूंकि तब 'साँस' विषमता को प्राप्त होता रहता है.
एक मन्त्र वाक्य ....बाकी की बात बाद में करेंगे ....अभी मुझे सोचना है फिर टिप्पणी करूँगा .......!
बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDelete--
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहाँ, कोई नहीं प्रपंच।।
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आना किसी पूजा-अर्चना स्थल पर हो आने सा लगता है
ReplyDeleteहनुमान जी के बारे में जितना कहा जाये उतना कम ही है। आप भी अपने लेख में कुछ विशेष ले कर आते है।
ReplyDeleteसब कुछ दिन प्रतिदिन सत्य होता दिख रहा है..
ReplyDeleteवे बचपन से ही संकट मोचक रहे हैं ..
ReplyDeleteआभार आपका !
कलियुग में न कर्म है,न भक्ति है और न ज्ञान ही है
ReplyDeleteये सत्य है की कलयुग में किसी का कोई कर्म नहीं है लेकिन हनुमान का कलयुग में सभी पर पूरा प्रभाव है ..... सुंदर प्रस्तुति
जय बजरंग बलि की जय
गहन लेख आपका आभार....राकेश जी
आपका लेख में गहराई है ..समझने के लिए बहुत कुछ है.
ReplyDelete.ॐ का ज्ञान दिया ,धन्यवाद ..
kalamdaan.blogspot.com
Thanks for imparting wisdom about OM...
ReplyDeleteProfound post Sir...
सच है कलयुग में सिर्फ हनुमान जी ही सही मार्ग पर चलने के प्रेरणा दे सकते है वर्ना कालनेमि तो है ही पथ्भ्रस्त करने को . जय हनुमान राकेश जी
ReplyDeleteआपके सद-लेखन को शत शत प्रणाम |
ReplyDeleteआपके लिखे पर टिप्पणी करने की तो मेरी काबिलियत नहीं है - बस प्रसाद ले कर इस सत्संग से जा रही हूँ |
बचपन से हनुमान जी की पूजा अर्चना कर रहे हैं. कभी बाधाओं को उन्होंने ही पार करवाया है. इतना गंभीर अध्यनन पहले कहीं देखा नहीं. आपका अध्यनन देख विस्मित हूं..
ReplyDeleteकितना सात्विक लेखन है आपका ... इस अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार ।
ReplyDeleteकलयुग प्रभाव की सटीक व्याख्या हुई है…
ReplyDelete"तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि बहुत बढ़ जाये ,
बस यही कलयुग है।
इससे अलिप्त रहने का मार्ग ही हनुमान सत्संग है।
बहुत सुन्दर भक्तियुक्त विश्लेषण, राकेश जी, प्राणाम स्वीकारें!!
सच है कलयुग में सिर्फ हनुमान जी ही कालनेमि के प्रभाव से बचा सकते हैं। बहुत गहन आलेख के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteगुरूजी प्रणाम ! यह अंक भी आध्यात्म अनुभूति से सराबोर कर दिया ! " ईश्वर का आश्रय होने से चित्त में आनन्द का आविर्भाव होता है,चित्त में निश्चिन्तता आती है.! " बहुत खूब !
ReplyDelete" एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति "... उपनिषद कहते हैं कि - एक ही सत्य है जिसे बहुत ढंग से कहा जाता है .उसी सत्य को आपने पुनर्व्याख्यायित किया है .जिसके लिए आप बधाई एवं नमन योग्य हैं . सही कहा आपने विचार ही वो दिव्य-दृष्टि है जिससे हनुमान बन कर श्री राम को पाया जा सकता है .राम से साक्षात्कार ही परमानन्द की अनुभूति देती है . जो इस संसार रूपी दीर्घ रोग का सबसे श्रेष्ठ औषध है . पुन : आपका बहुत-बहुत आभार पुन : श्रेष्ठ चिंतन के लिए .
ReplyDeleteआप के द्वारे, सत्संग का प्रसाद पाकर, मन निर्मल और भावना शुद्ध हो जाती है ....
ReplyDeleteजय वीर हनुमान ....
हनुमान हमेशा निश्चिन्त हैं ,क्यूंकि उनका आश्रय
ReplyDelete'राम' हैं, जो निरपेक्ष(absolute) है,स्थाई और चेतन आनन्द है,शरणागत वत्सल है.
भक्तिमय करती हुई ज्ञान की गंगा... संग्रहनीय पोस्ट !
यदि सही आश्रय मिल जाता है तो व्यक्ति निश्चिन्त सा हो
ReplyDeleteजाता है.सांसारिक साधन कुछ हद तक ही सहारा देते हैं,अत: वे सापेक्ष (relative) हैं.जब तक समुचित सहारे का अनुभव नही होता,मन अशांत होता रहता है.ईश्वर का आश्रय होने से चित्त में आनन्द का आविर्भाव होता है,चित्त में निश्चिन्तता आती है.
आपके आलेख को पढ़कर मन बहुत आनंदित है... वही है सबसे बड़ा सहारा जो हमें निश्चिन्त कर देता हैं "हमारा ईशवर" स्थाई और चेतन आनन्द... आभार आपका
nice post
ReplyDeleteone has to limit greedy and selfishness.
Aapke blog mein to gyaan ki anupam sarita beh rahi hai... achha laga yahan aana... ab nitya padha karunga.. :)
ReplyDeleteयदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
ReplyDeleteजाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.....बिल्कुल सही कहा राकेश जी आप ने.....भक्तिमय करती अमूल्य आलेख..आभार
हनुमानजी का सहारा तो हमसब को है ...अगली कड़ी में भी हनुमान लीला का वर्णन हो तो आनंद आ जाएगा ,आभार
ReplyDeleteआदरणीय गुरु जी नमस्ते ...बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट है आपका अभी थोड़ा समझने की कोशिश कर रहा हूँ ...आगे फिर आउंगा फिर बातें होंगी ...
ReplyDeleteसांसारिक साधन कुछ हद तक ही सहारा देते हैं,अत: वे सापेक्ष (relative)हैं.जब तक समुचित
ReplyDeleteसहारे का अनुभव नही होता,मन अशांत होता रहता है.ईश्वर का आश्रय होने से चित्त में आनन्द का
आविर्भाव होता है,चित्त में निश्चिन्तता आती है. हनुमान हमेशा निश्चिन्त हैं ,क्यूंकि उनका आश्रय
'राम' हैं, जो निरपेक्ष(absolute) है,स्थाई और चेतन आनन्द है,शरणागत वत्सल है.
Ram naam ki loot hai loot sake to loot, antkal pachhtayega pran jayein jab chhoot.
is chintan ke liye hriday se abhaar.
shubhkamnayen
आपकी पोस्ट पढ़ते समय चित्त एकाग्र हो जाता है, कुछ पल के लिए स्वयम् को भुला देता हूँ, चमत्कारी कलम के धनी हैं आप. प्रभु की यह कृपा आप पर सदा बनी रहे.
ReplyDeleterakesh ji badhaayee ,aapkaa blog padhaa itne vistaar aur aasaan tareeke se samjhaayaa aapne
ReplyDeleteराकेश सहब, अभी अपनी स्थिति आपकी पोस्ट के शुरुआती पैराग्राफ़ जैसी है लेकिन भविष्य के लिये आपकी पोस्ट के ही थर्ड लास्ट अनुच्छेद का अवलंबन है -
ReplyDelete’यदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
जाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है."
साकार और निराकार मार्ग बेशक अलग हों लेकिन मंजिल दोनों की एक ही है, जिसको जैसे समझ आये उसी रूप में अपना ले।
आप जो भी लिखेंगे,आपकी लेखनी मार्ग दर्शन का काम करेगी - ऐसा विश्वास है। आप से मिलने के बाद यकीनन ऐसा कह सकता हूँ क्योंकि आपने इन सात्विक भावनाओं को जीवन में उतार रखा है।
स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखें।
बहुत अच्छी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ,,बेहतरीन पोस्ट.लाजबाब
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
.....भक्तिमय करती अमूल्य आलेख..आपके ब्लाग पर आना किसी पूजा-अर्चना स्थल पर हो आने सा
ReplyDeleteलगता है
very nice...very detailed and expressed nicely
ReplyDelete:)
good post!
सुंदर चिंतन ..... बजरंग बली में बहुत आस्था है मेरी है ..
ReplyDeleteaap ki ye post bhi bahut hi uttm hai,hanumaan ji ke prti aap ki aasthadekh kar bahut khushi huee.....bhaktipurn post ke liye shukriya....
ReplyDeleteहनुमत-कृपा सब पर बनी रहे !
ReplyDeleteaapke adhyatm chintan ka jababa nahin sir ji ! aap to itani gahrayiyan pa gaye ki ab vapas aana gunah hoga .... chalata rahe yah aatm manthan prabhu ka .
ReplyDeleteghayanvardhak aur hanuman ji ki kripa sab kuch hai
ReplyDeleteआध्यात्म का गहन परिप्रेक्ष्य यहाँ मिलता है ...
ReplyDeleteअमूल्य आलेख.......सुंदर चिंतन !!!
ReplyDeleteHinumt kripa nishchay hi badi se badi badhaon ko par kara deti hai .....bahut hi prabhavshali post badhai sweekaren Rakesh ji.
ReplyDeletehanumant apni kripa sab par banaye rakhe ....yahi prarthana hai....badhiya prastuti
ReplyDeleteनमस्कार राकेश जी
ReplyDeleteजय हनुमान ..........आपकी हनुमान लीला से हम हर बार भाव बिहोर हो गए .....हनुमान तो तारण हार है हार संकट को हार लेते है . जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ....जय कपिश तिहूँ लोक उजागर .........
Hanuman is an element a system for eiminating corruption and purifying our hearts from lust and ego and the likes.Good to read this post .
ReplyDeletenamaskaar rakeshji
ReplyDeletebahut hi sundar post
khaskar mere jaise yuva ke liye to ek gyan vardhak post
dhanaywad is post ke liye
jai hanumaaan
jai shree raam
om namah shivay
जब 'ऊँ' का उच्चारण किया जाता है तो जितनी देर या लम्बा हम 'ओ' बोलते हैं , शरीर से कार्बन
ReplyDeleteडाई ऑक्साइड (CO2) उतनी ही अधिक बाहर निकलती है. जैसे ही 'म' कहकर 'ओम्' का उच्चारण पूर्ण कर लिया जाता है , इसके बाद लंबी साँस के द्वारा ऑक्सीजन (O2) शरीर में गहराई से प्रवेश करती है.इस पूरी प्रक्रिया में जहाँ शरीर स्वस्थ होता है,मन और बुद्धि भी शांत होते जाते हैं.
अध्यात्म ओर भक्ति के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्य का समावेश करने से
यह पोस्ट अतुलनीय हो गई है|कलियुग में श्रीरामभक्त हनुमानजी पर आस्था बनी रहे...
इस पोस्ट के लिए आभार!
प्राण वायु की तरह आत्मसात करने वाली पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सार्थक एवं बुद्धिगम्य विवेचन है.कथा में प्रतीकात्मकता के समावेश से चरित्रो को अच्छा स्पष्टीकरण मिला है -आभार !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया राकेश जी...
ReplyDeleteआध्यात्म को बेहद सहज तरीके से हम तक पहुंचाया है...
शुक्रिया...
अगली लीला की प्रतीक्षा रहेगी...
सादर.
राकेशजी, बहुत अच्छा लगा पढ़कर| आप इतने अच्छे ज्ञान बाटते हैं, इसकेलिए शुक्रिया|
ReplyDeleteशुभ कामनाएं!!!
हनुमान जैसी अनन्य भक्ति का यदि एक अंश भी किसी इंसान में आ जाए तो पूर्ण जीबन ही नहीं युगों युगों तक उसे मुक्ति मिल सकती है ... आपका विवेचन .. कथ्य और शिल्प भक्ति के सरोवर में गोते लगवाता है ...
ReplyDeleteॐ के उच्चारण का महत्त्व बहुत जानकारी पूर्ण लगा ।
ReplyDeleteलोग इस सत्संग का फायदा उठायें तो धार्मिक क्रांति आ सकती है ।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू, राम नाम अवलंबन एकू
ReplyDeleteकालनेमि कलि कपट निधानू, नाम सुमति समरथ हनुमानू
वाह राकेश जी अद्भुत व आनंददायी प्रस्तुति। मन व आत्मा दोनों पवित्र हो गयी। हार्जिक आभार।
बेहतरीन प्रस्तुतियां. आपके लेखो को पढ़ लेना ही पर्याप्त होगा. परमानंद की स्थिति बन जाती है. नमन.
ReplyDeleteयदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
ReplyDeleteजाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.very nice.thanks n aabhar.
सदा की भांति शोधपूर्ण, गहन और गवेश्नात्मक प्रवृत्तियों को समाहित किये हुए, बार-बार पठन और मनन करने योग्य युगीन आवश्यकताओं की माँग के अनुरूप रचना और विषद विवेचन. आपके श्रम, सात्विक प्रवृत्ति और निश्छल अनुराग को प्रणाम. लेखनी को नमन. पवनसुत वीरवर हनुमत से प्रार्थना की आपकी लगन को इसी प्रकार सतत बनाये रखे. आपसे और भी उच्च और लोकमंगल के उत्कृष्ट कार्य कराएँ.
ReplyDeleteपोस्ट के साथ अलबेला खत्री जी की सीडी याद आ गई...देश को भ्रष्टाचार से हनुमंत ही बचा सकते हैं...
ReplyDelete
जय हिंद...
राकेश जी ,बहुत सुंदर प्रस्तुती . मुझे याद है बचपन में हम जो हनुमान चालीसा ,आरती गाते थे , वो
ReplyDeleteआज तक कंठस्थ है | हालाँकि आज कल जीवन की आपाधापी में पूजा पाठ के लिए ज्यादा वक़्त नहीं
निकाल पा रहा , मगर हनुमान चालीसा अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ |
एक दोहा जो में अक्सर गुनगुनाता हूँ ;
"लाल देह लाली लसे अरु धरी लाल लंगूर
ब्रज देह दानव दलन जय जय कपिसुर "
विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद .
सार्थक चिंतन के लिये बधाई !
ReplyDeleteआभार आपका .........
'कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है.केवल रामनाम ही एक आधार है.कपट की खान
ReplyDeleteकलियुग रुपी कालनेमि को मारने के लिए 'रामनाम' ही बुद्धिमान और समर्थ श्रीहनुमानजी हैं.'..ekdam sachi baat kahi gayee hai..
Bahut sundar aadhytmik sarthak chitran prastuti ke liye aabhar!
बहुत खूबसूरती के साथ आपने हनुमान जी के बारे में हर एक शब्द लिखा है! सार्थक चिंतन एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुती ! मन को बड़ी शांति मिली आपका पोस्ट पढ़कर! जय बजरंग बलि ! हनुमान जी का आशीर्वाद सदा हम सब पर बना रहे!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://khanamasala.blogspot.com
जब हम प्राथमिक विद्यालय में थे तब नित्य हनुमान चालीसा और सुंदरकाण्ड का पाठ किया करते थे।
ReplyDeleteहनुमान चालीसा आज भी याद है।
भक्तिमय आलेख के लिए आपका आभार।
आदरणीय श्रीराजेशकुमारजी,
ReplyDeleteपहले तो आपका बहुत धन्यवाद,जो आपने मेरे लिए चिंता जताई ।
मैं कुछ दिनों से पीठ के दर्द से परेशान था,इसीलिए नया न लिख़ पाया, आज इसी `दर्द` को लेकर एक गीत पोस्ट किया है,शायद आपके मने को भा जाये..!!
अनेकानेक शुक्रिया के साथ, आप का परिचय मेरा परम सौभाग्य समझते हुए, आपके स्वास्थ्य एवं कलम के चमत्कार प्रति शुभ भाव प्रकट करते हुए आपको प्रणाम ।
मार्कण्ड दवे ।
मनन करने योग्य सार्थक और ज्ञानवर्धक भी. राकेश जी यूँ ही आप हम सभी इस ज्ञान गंगा का प्रसाद देते रहें.
ReplyDeleteसार्थक ज्ञानवर्धक आलेख ......आभार.
ReplyDeleteजय श्री राम !
ReplyDeleteजय बजरंग बली!
प्रभात बेला में भक्तिभाव से भरा ,ज्ञानपरक लेख पढ़्कर मन आनंदित हो गया। साधुवाद !
बहुत संदर प्स्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut achchhi vyakhya ki hai ....
ReplyDeleteaapka lekh Hanuman leela ka dono bhaag jivan mein aadhyaatm ke pravesh aur jan-chetna ki jaagriti mein sahayak hai. vishleshanaatmak aalkeh ke liye aabhar.
ReplyDeleteओम की महिमा का सार्थक विवेचन ………बेहद वृहद व्याख्या
ReplyDeletebahot achha post
ReplyDeleteहिंदी दुनिया
कवन सो काज कठिन जग माहीं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति मान्यवर 1
साधुवाद.
जय हनुमान....सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसमस्त अनिश्चिंतता,भय संदेह ,असुरक्षा का कारण 'मोह' अर्थात अज्ञान है,अज्ञान के साथ अभिमान
ReplyDeleteअर्थात यह मानना कि मुझे किसी आश्रय की आवश्यकता नही है अत्यंत शूलप्रद और कष्टदायी होता है.
Rakesh ji this is so truly said . Ego is the basic reason behind each and every sort of hurt . Meaningful and enlightening . Thanks .
सार्थक प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
सच में कलियुग हमारी सोच,कर्म और विचारों का ही प्रतिरूप है. सदैव की तरह बहुत सारगर्भित और ज्ञानप्रद प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,सार गर्वित अच्छी पोस्ट
ReplyDelete..
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
भावमयी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
aadernkiya bhaisaheb....bahut dino ke baad blog par aana hua...lekin is lame samyantraal kee suruaat hanumaan ji ke sath sath om ke bishay me itni gahnata ke sath jaane ke sath hui..aapka blog hamesha chintan ke liye prerit karta hai....iswar ne kabhi mauka diya to aapse mulakat jarur hogi..aap hanumaat leela per abhi aaur likhte rahein..sadar badhayee aaur sadar pranam ke sath
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
आदरणीय गुरूजी नमस्ते ! मै बचपन में हनुमान जी का बहुत भक्त था | हनुमान चालीसा पूरा कंठस्थ था | जिस समय स्कुल की परीक्षा का परिणाम निकलना होता था तो उस समय हनुमान जी की बहुत याद आती थी तथा मै हनुमान जी से वादा करता था की यदि वे मुझे पास कर देंगे तो मै उन्हें एक किलो लड्डू चढाऊंगा | आज सोचता हूँ तो लगता है की कितना हास्यास्पद था वो विचार .......वाह भइये तुने तो भगवान को भी नहीं छोड़ा ....भगवान को भी घूस !!! उस उम्र में सपने में अक्सर भुत प्रेत मेरे सपने में आकर मुझे बहुत डराते थे | ये ऐसे दुष्ट थे की हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद भी नहीं भागते थे |
ReplyDeleteये तो भला हो महर्षि दयानंद जी का जिनकी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को मिला जिसे पढ़ कर दिल को मजबूती मिली तथा मन के सारे भ्रम दूर हो गए .......उसी तरह आप भी एक अच्छा कार्य कर रहे हैं ....रुढिवादी शब्दों के जाल से निकाल के इन्हें एक सम्यक अर्थ प्रदान कर रहे हैं तथा आज के हालात में ये जरुरी भी है | हनुमान शब्द से सदैव हमारे मन में एक ही आकृति आती है पूंछ युक्त एक ऐसा इंसान जो की बन्दर की आकृति वाला है .....| किन्तु यदि हम रामायण पढ़ के चिंतन करें तो यह स्पष्ट हो जाता है की यह एक काल्पनिक व्यक्तित्व है | हनुमान जी जैसे शुर वीर, स्वामी भक्त तथा चारों वेद के विद्वान को बन्दर का स्वरूप कैसे कहा गया ?? ये बात समझ के बाहर है ..........
Madan bhai,
DeleteBahut bahut dhanyvaad aapka apna anubhav aur najaria prakat karne ke liye.
vaastav men bahut si Gyan-vigyan ki baaten prateekaataatmak roop se batlaai gayin hain,un prateekon ko sahi prakar se humen samjhne
ki koshish karni chaahiye.
Yadi koi nakshe (map} ko sahi samjhne ka prayaas karega aur naksha sahi hoga to vah nakshe ki madad se gantvy sthaan par jaroor pahunch jaayega.Naksha yadi sahi architect dawara samajh-boojh kar pramaanik banaya gaya hoga to usmen humen shraddha vishvas karna hi padega.
गणतंत्र दिवस की
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएँ.बहुत सुन्दर,व्याख्या
Der se aane ke liye mafi chahungi Rakesh ji.........
ReplyDeletebasant panchami ki hardik shubhkamnayen........
भैया - आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार है |
ReplyDeleteवैसे - की हुई टिप्पणियां गायब हो जाती हैं अक्सर - फिर भी i will try - वसंतोत्सव की शुभकामनाएं | :)
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ReplyDeleteआदरणीय राकेश भाईजी, एक तो आप कंजूस हैं मुझसे आपका नम्बर गुम हो गया और आप कभी फ़ोन नही करते। मै भी तो नाराज़ हो सकती हूँ भई? इस कलयुग में आप जैसे राम भक्त गिने चुने लोग ही हैं। आप पर ईश कृपा हमेशा बनी रहे और हमें भी थोड़ा-थोड़ा इस भक्ति का प्रसाद मिलता रहे बस इश्वर से यही प्रार्थना है।
ReplyDeleteसादर
शानू
सुनीता शानू has left a new comment on your post "हनुमान लीला - भाग ३":
ReplyDeleteSunita Shanu ji ki mail dwara preshit tippani ka nimn saaransh hai:-
आदरणीय राकेश भाईजी, ..... इस कलयुग में आप जैसे राम भक्त गिने चुने लोग ही हैं। आप पर ईश कृपा हमेशा बनी रहे और हमें भी थोड़ा-थोड़ा इस भक्ति का प्रसाद मिलता रहे बस इश्वर से यही प्रार्थना है।
सादर
शानू
Posted by सुनीता शानू to मनसा वाचा कर्मणा at January 29, 2012 2:51 PM
Very insightful.. Padhke ek alag anoobhooti ka ehsaas ho raha hai.. Apki post me chintan karne ke liye bahut kuch hai. Is vishay ko vistar me itni khoobsurti se prastut karne ke liye aneko aabhar apka. Agli post ka intezaar rahega...
ReplyDeleteयदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
ReplyDeleteजाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.
लेकिन लोग मोह के चलते तो प्रभु के चरणों में आटे हिन् ..उनका क्या भला होगा .. सार्थक पोस्ट
रोचक, मनोरंजक, सराहनीय एवं अद्भुत प्रस्तुति......
ReplyDeleteक्या यही गणतंत्र है
इस भाग को पढकर सिर्फ़ इतना ही कहना है फ़िलहाल राकेश भाई कि , पहले के दो भागों को भी पढता हूं पहले ...कमाल का कार्य कर रहे हैं आप । आपको नमन
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में सारगर्भित व्याख्या ! अति उत्तम ज्ञानवर्धक भक्तिमय लेख । आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति अच्छी लगी.,जय बजरंगबली ....
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
There was a rich merchant who had 4 wives. He loved the 4th wife the most and adorned her with rich robes and treated her to delicacies. He took great care of her and gave her nothing but the best.
ReplyDeleteHe also loved the 3rd wife very much. He's very proud of her and always wanted to show off her to his friends. However, the merchant is always in great fear that she might run away with some other men.
He too, loved his 2nd wife. She is a very considerate person, always patient and in fact is the merchant's confidante. Whenever the merchant faced some problems, he always turned to his 2nd wife and she would always help him out and tide him through difficult times.
Now, the merchant's 1st wife is a very loyal partner and has made great contributions in maintaining his wealth and business as well as taking care of the household. However, the merchant did not love the first wife and although she loved him deeply, he hardly took notice of her.
One day, the merchant fell ill. Before long, he knew that he was going to die soon. He thought of his luxurious life and told himself, "Now I have 4 wives with me. But when I die, I'll be alone. How lonely I'll be!"
Thus, he asked the 4th wife, "I loved you most, endowed you with the finest clothing and showered great care over you. Now that I'm dying, will you follow me and keep me company?" "No way!" replied the 4th wife and she walked away without another word.
The answer cut like a sharp knife right into the merchant's heart. The sad merchant then asked the 3rd wife, "I have loved you so much for all my life. Now that I'm dying, will you follow me and keep me company?" "No!" replied the 3rd wife. "Life is so good over here! I'm going to remarry when you die!" The merchant's heart sank and turned cold.
He then asked the 2nd wife, "I always turned to you for help and you've always helped me out. Now I need your help again. When I die, will you follow me and keep me company?" "I'm sorry, I can't help you out this time!" replied the 2nd wife. "At the very most, I can only send you to your grave." The answer came like a bolt of thunder and the merchant was devastated.
Then a voice called out : "I'll leave with you. I'll follow you no matter where you go." The merchant looked up and there was his first wife. She was so skinny, almost like she suffered from malnutrition. Greatly grieved, the merchant said, "I should have taken much better care of you while I could have !"
Actually, we all have 4 wives in our lives
a. The 4th wife is our body. No matter how much time and effort we lavish in making it look good, it'll leave us when we die.
b. Our 3rd wife ? Our possessions, status and wealth. When we die, they all go to others.
c. The 2nd wife is our family and friends. No matter how close they had been there for us when we're alive, the furthest they can stay by us is up to the grave.
d. The 1st wife is in fact our soul, often neglected in our pursuit of material, wealth and sensual pleasure.
इतनी सुन्दर टिपण्णी फिर भी आप बेनामी?
Deleteक्या आप शिल्पा बहिन तो नहीं ?
शिक्षाप्रद रोचक टिपण्णी के लिए आपका आभार.
@ क्या आप शिल्पा बहिन तो नहीं ?
Deleteन - नहीं राकेश भैया - यह मैं नहीं हूँ | हाँ - यह कहानी मैंने शेयर की thee - परन्तु यह टिपण्णी मेरी नहीं है :) |
@ बेनामी जी - आपकी टिपण्णी बहुत ही शिक्षाप्रद है - बहुत सुरुचिपूर्ण कहानी है, बड़ी सारगर्भित | आभार | :)
मेरे सभी ब्लोगों पर आपका स्वागत है! काफी दिनों के बाद मैंने सभी ब्लॉग पर नया पोस्ट किया है! आपको जब वक़्त मिले ज़रूर आइयेगा !
ReplyDeletethere always so much to learn from your posts :)
ReplyDeleteenjoyed n learned !!
यदि हृदय में मोह और अभिमान छोड़ प्रभु को धारण कर हनुमान जी की तरह प्रभु का भजन किया
ReplyDeleteजाये तो कलि युग रुपी कपट की खान कालनेमि हमारा कुछ भी बिगाड नही सकता है.
सार्थक कथन!!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |
Deleteबेहतरीन अनुपम प्रस्तुतीकरण..
ReplyDeleteMY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
सुन्दर व्याख्या।
ReplyDeleteबहुत अच्छी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट ...
आदरणीय भाई जी,
ReplyDeleteएक शब्द में सारी बात कहना चाहूँगा --
'वाह !'
आदरणीय राकेश जी..प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteॐ की महत्ता का वैज्ञानिक वर्णन अति सुन्दर एवं प्रमाणिक है.
हनुमान जी की लीला का जितना वर्णन करें कम ही है अतः अगली पोस्ट भी इसपर मिले तो बहुत ही अच्छा रहेगा...
आज सुबह ही रामचरित मानस सुन रहा था और आप ने हनुमान जी की महिमा का वर्णन भी सुना दिया
हनुमान तेहि परसा कर पुनि किन्ह प्रणाम .
राम काज कीन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम
जय श्री राम
वाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteनई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
Adhyatm ki madhur dhara pravahit karne ke liye dhanyavad.
ReplyDeleteबहुत हि आध्यत्मिक और लाभकारी लेख...
ReplyDeleteसाधुवाद!
sir
ReplyDeletebahut dino baad aaj aapke post ko padh saki hun.bahut bahut hi achcha laga.
vise bhi aap apni har post ko gahrai me duub kar hi likhte hain to usme padhne wala bhi dub jaaye ye aashchary ki baat nahi hai.ek -ek panktiyan seedhe hi man me utarti si chali jaati hain.mujhe to lagta hai ki jitna sundar kand padh kar nahi yaad ho paya usse kahin jyaada aapki post
padh kar aasaani se samajh me aa jata hai aur yhi aapke lekhan ki khoobi hai.
mere blog par nirantar mera housla banaye rakhne ke liye aapko hardik
dhanyvaad-----
poonam
दुनिया में एक आम आदमी की तरह मोह रुपी नाव में बैठ जीवन की नदिया पार कर रहे थे और इस नदिया में उलझ कर रह गए .. अत्याधिक कार्यव्यवस्ता की वजह से नेट पर आना नही हो पा रहा है..आई हूँ तो यह सुन्दर पोस्ट पड़ी ..जिसमे हनुमान जी का वर्णन, ॐ के बारे में लिखा है.. ॐ तो इस ब्रहमांड की उत्पत्ति का कारक है .. जब कुछ नहीं था सिर्फ शून्य था चारों दिशा तो तो सिर्फ ओम नाद था ..और सृष्टि का सृजन इस के अनाहत नाद से हुवा..big bang ॐ के स्पंदन की प्रतिध्वनि से हूवा ...ब्रह्माण्ड को सक्रिय रूप मिला ... ओम में बहुत ताकत है... यह विचलित मन को शन्ति प्रदान करता है.. शरीर को स्वस्थ खिला रूप प्रदान करता है.. जैसा आपने बताया ...ओम परमब्रह्मा परमात्मा का आदि नाम है.. सच में इसक उच्चरण सकून देता है ...प्रभु हनुमान जी के बारे में पकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी...हम में प्रभु भयमुक्त करे और कालनेमि से बचाएं .. सादर ..
ReplyDeleteदुनियां में एक आम आदमी की तरह मोह रुपी नाव में बैठ जीवन की नदिया पार कर रहे थे और इस नदिया में उलझ कर रह गए .. अत्याधिक कार्यव्यवस्ता की वजह से नेट पर आना नही हो पा रहा है..आई हूँ तो यह सुन्दर पोस्ट पढ़ी ..जिसमे हनुमान जी का वर्णन, ॐ के बारे में लिखा है.. ॐ तो इस ब्रहमांड की उत्पत्ति का कारक है .. जब कुछ नहीं था सिर्फ शून्य था चारों दिशा तो तो सिर्फ ओम नाद था ..और सृष्टि का सृजन इस के अनाहत नाद से हुवा..big bang ॐ के स्पंदन की प्रतिध्वनि से हूवा ...ब्रह्माण्ड को सक्रिय रूप मिला ... ओम में बहुत ताकत है... यह विचलित मन को शान्ति प्रदान करता है.. शरीर को स्वस्थ खिला रूप प्रदान करता है.. जैसा आपने बताया ...ओम परमब्रह्मा परमात्मा का आदि नाम है.. सच में इसका उच्चारण सकून देता है ...प्रभु हनुमान जी के बारे में आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी...हमें प्रभु भयमुक्त करे और कालनेमि से बचाएं .. सादर ..
ReplyDeletehanuman ji ki lila unki bhakti ke bare me sunder barnan hai .aapeki har post ko padh kar man pavitr ho jata hai aapka jitna dhnyavad kiya jaye kam hai
ReplyDeletesaader
rachana
ॐ हनुमते नमः!
ReplyDeleteनाम जप ही इस युग में मुक्ति का आधार है...
इस भक्ति रुपी पून्य सलिला भगीरथी में स्नान कर मन आत्मा पवित्र हो गयी!!!
आपकी लेखनी यूँ ही दिव्य दर्शन कराती रहे हमें सदा सर्वदा!
सादर!!!
हनुमान जी की लीला का बखान चलता रहे.... ज्ञानियों में अग्रगण्य भक्त हृदय प्रभु हनुमान की जय!!!
हनुमान जी की लीला तो अपरम्पार है... अआपकी सभी पोस्ट बहुत अच्छी लगी .
ReplyDeleteबड़ा गड़बड़झाला है
राकेश जी आप ने मेरा कुशल क्षेम जानना चाहा । मै एकदम ठीक हूं पूरे एक महीने का प्रवास और फिर पाहुनदारी में थोडा सा व्यस्त हो गई थी इसीसे लिखना पढना बंद सा था ।
ReplyDeleteहमारे ये सारे सांसारिक व्यवधान हनुमान स्वरूप ऊँ के मंत्र से वश में हो जाते है । आपकी ये हनुमान लीला कितनों का मार्गदर्शन कर रही है आप शायद नही जानते । आपके इन अध्यात्म से ओतप्रोत लेखों से आप ब्लॉग जगत के मनोमालिन्य को भी विदीर्ण कर सकेंगे ऐसी आशा है ।
जी ....
ReplyDeleteअब से ॐ का जाप शुरू .....
वैसे पहले भी कभी कभार किया करती थी ......
पर नियति को कोई टाल नहीं सकता ....
आज युवराज (क्रिकेटर)को कैंसर का सुन कर तो यही कहा जा सकता है ..
क्या खिलाड़ियों के शरीर में स्फूर्ति कम होती है जो इस तरह की गंभीर बिमारियों का शिकार हो जाते हैं ....?
सुंदर प्रस्तुति........पोस्ट बहुत अच्छी लगी!
ReplyDeleteसुन्दर और उच्च विचारों का संगम एवं पवित्रता का आभास आपके ब्लॉग पर मिल रहा है!....शुभ कामनाएं!
ReplyDeletebahut hi sundar adhyaatmik aalekh ...
ReplyDeleteसुन्दर..सुन्दर.....कलियुग केवल नाम अधारा....
ReplyDelete----त्रिगुण सदैव मानव-मन में रहते हैं...गुणावगुण..न्यूनता-आधिक्य कारण वे मानव मन को सतयुग, त्रेता, द्वापर कलियुग में लेजाते रहते हैं...अति-सुन्दर तात्विक वर्णन....
---यह राकेश जी की ही महिमा है...वास्तव में तो हनुमान जी...रामजी की....कि अनाम /अनामिका जी ने भी इतनी सुन्दर तात्विक कथा वर्णन की.....वे बधाई के पात्र हैं...और हम सब आनन्द के...
saadar nmskaar,aap gau seva se juden hai jaankar khushi huee kripya is baaren me vistaar se btaayen,taaki aap ke baare me padh kar aur logon ko bhi prerna mile
ReplyDeletegauvanshrakshamanch.blogspot.com
rakeshji,aapke blog par aana har bar sarthak ho jata hai......kalyug ki paribhasha saral shabdo me bata di aapne aur sri hanumaanji ke baare me itni rochak jankari ke liye dhanywaad......hanumaan ke aage hum sab natmastak hai
ReplyDeletebehatar prastuti ke liye abhar Kailash ji.
ReplyDeleteहमारे हृदय में जब तमोगुण अर्थात आलस्य, अज्ञान, प्रमाद, हिंसा आदि बहुत बढ़ जाये ,रजोगुण अर्थात
ReplyDeleteक्रियाशीलता कम हो जाये,और सतोगुण यानि ज्ञान व विवेक का तो मानो लोप ही हो जाये, चहुँ ओर विरोधी
वृत्तियों का ही हृदय में वास हो, सब तरफ अप्रसन्नता और विरोध हो, तो कह सकते हैं हम उस समय
'घोर 'कलियुग' में ही जी रहे है.
bahut sahi kaha ,yadi vikaro ko door karle to sambhal sakte hai ,jai bajarangbali aap hi uddhar karo is yug ka jagat ka .subhprabhat rakesh ji .
प्रियवर ,
ReplyDeleteकृष्णाजी से अभी अभी, अपने परमप्रिय श्री हनुमानजी पर आपका यह सुंदर ज्ञानवर्धक आलेख सुना ! नयी नयी बातें जानीं! उनपर श्रद्धा और बढी !
राकेशजी लगे रहिये ! कलियुग में मानवता के उद्धार के सरलतम साधन- " सिमरन -भजन कीर्तन " के प्रचाररत , निगुरुओं के सद्गुरु- "श्रीमहावीर हनुमानजी" के विषय में जितना लिखें कम् होगा ! ऐसे ही लिखते रहें ! आपपर श्री राम कृपा सदा सर्वदा ऐसी ही बनी रहे !-
विश्वम्भर श्रीवास्तव "भोला" [एवं] श्रीमती कृष्णा
Great post--bahut sundar charcha.. Jai shri Hanuman.
ReplyDeleteआपने बहुत तार्किक तरीके से व्याख्या की है ,
ReplyDeleteसाधुवाद
बबूल का गोंद काफ़ी सुन्दर सा पारदर्शिता लिए हुए होता है.न मिले तो हमें आदेश कीजियेगा.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,.
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
अत्याधिक क्षमाप्रार्थी..यह पोस्ट पढ़ी भी थी एयरपोर्ट पर ही कहीं किन्तु जल्दबाजी में कमेंट न दे पाया था..शायद सोचा होगा कि गन्तव्य पर पहुँच कर लूँगा..उम्र का असर देखिये..भूल गये. :)
ReplyDeleteतर्कसंगत है संपूर्ण व्याख्या...ॐ का उच्चारण नित कर्मों में सम्मलित किया हुआ है.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,नये पोस्ट का बेकरारी से इन्तजार,.....में
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
राकेशजी धार्मिक आस्था को बढाने वाले प्रस्तुति। आभार!
ReplyDelete