सीता पवित्र पावन है, मनोहारी,सुकोमल और अत्यंत सुन्दर है, दुर्लभ भक्ति स्वरूपा है, समस्त
चाहतों की जननी है. सीता का नाम जन जन में प्रचलित है, जो राम से पहले ही बहुत आदर व
सम्मान के साथ लिया जाता है.बहुत प्राचीन समय से अनेक घरों में बच्चियों का नाम सीता,
जानकी या वैदेही के नाम पर रखा जाता रहा है. अत: यह अफ़सोस करना कि लोग अपनी बच्चियों
का नाम सीता के नाम पर नहीं रखना चाहते नितांत निराधार है. सीता ,राधा, मीरा आदि का नाम
स्मरण करते ही हृदय में भक्ति का उदय होता है. बहरहाल किसी भी प्रकार के विवाद को अलग
रखते हुए इस पोस्ट में भी मेरा उद्देश्य 'सीता जन्म' के आध्यात्मिक चिंतन को आगे बढ़ाना है.
मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -२' में हमने यह जाना था कि
'सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में
समर्थ हैं वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त
सीता जन्म अर्थात भक्ति का उदय हृदय में कैसे हो , आईये इस बारे में थोडा मनन करने का प्रयास करते हैं.
गोस्वामी तुलसीदास जी श्री रामचरितमानस में लिखते हैं :-
बिनु बिस्वास भगति नहि, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु
राम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीव न लेह विश्रामु
अर्थात बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं यानि 'राम कृपा'
नहीं होती और श्री राम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शान्ति नहीं पा सकता.
'सत्-चित-आनंद' या राम में विश्वास होना ,अर्थात हृदय मे ऐसी पक्की धारणा का होना कि जीवन में असली
आनंद स्थाई चेतनायुक्त आनंद(सत्-चित-आनंद) ही है,जिसको पाना संभव है और जिसका निवास
भी हमारे हृदय में ही है,अत्यंत आवश्यक है.
इसके लिए गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस के प्रारम्भ में ही यह प्रार्थना करते हैं :-
भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिनौ
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम
मैं भवानी जी और शंकर जी की वंदना करता हूँ . (क्यूंकि) भवानी जी 'श्रृद्धा' और शंकर जी 'विश्वास' का ही
स्वरुप हैं. श्रद्धा- विश्वास के बिना सिद्ध जन भी अपने अंत:करण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते.
मुझे बहुत अफ़सोस होता है जब ब्लॉग जगत में मैं यह पाता हूँ कि कुछ लोग 'शिव-पार्वती' अथवा 'शिवलिंग'
के बारे में बिना जाने ही दुष्प्रचार और मखौल करने में लगे हुए हैं.उनकी क्षुद्र सोच पर मुझे हँसी ही आती है.
हमारे यहाँ अध्यात्म में 'प्रतीकों' का सहारा लिया जाता है,जैसा कि आज के विज्ञान में भी किया जाता है,
जैसे पानी को 'H2O' क्यूँ दर्शाते हैं और H2O का मतलब पानी में दो भाग हाइड्रोजन व एक भाग
ओक्सीजन का होना है,यह एक वैज्ञानिक अच्छी प्रकार से जानता है, परन्तु ,एक साधारण आदमी
को बिना जाने न तो H2O का मतलब समझ आयेगा न ही वह यह विश्वास करेगा कि पानी दो गैसों
हाइड्रोजन व ओक्सिजन से मिलकर बना है. इसके लिए सर्वप्रथम तो उसे 'विज्ञान' पर श्रद्धा रखनी
होगी. श्रद्धा के कारण ही वह विज्ञान को समझने का जब प्रयत्न करेगा तभी उसे कुछ कुछ
समझ उत्पन्न हो सकेगी. जैसे जैसे उसका ज्ञान और अनुभव बढ़ता जायेगा, तैसे तैसे उसे यह
'विश्वास' भी उत्पन्न होता जायेगा कि हाँ पानी दो गैसों से मिलकर ही बना है.प्रतीक गुढ़ रहस्यों को
आसानी से समझने के माध्यम हैं. भवानी 'श्रद्धा' का प्रतीक हैं और शंकर जी 'विश्वास' का.
'श्रद्धा' यानि भवानी जी शक्ति है जिसके द्वारा जीव सत्संग का अनुसरण कर निष्ठापूर्वक प्रयास
करता है और सद्ज्ञान प्राप्ति का अधिकारी हो पाता है. ज्ञान की प्राप्ति पर विश्वास होता है.
यह विश्वास यानि 'शिव' ही कल्याणस्वरुप है जो मन के सभी संशयों के विष को पी डालता है ,
जिससे जीव एकनिष्ठ हो परमात्मा का ध्यान कर पाता है.और परमात्मा के ध्यान से जैसे जैसे हृदय
में शान्ति और आनंद का अनुभव होने लगता है, तैसे तैसे शान्ति और आनंद की प्राप्ति की चाहत
व तडफ भी हृदय में नितप्रति बलबती होकर हृदय में 'भक्ति' का उदभव करा देती है.
'भक्ति' के लिए राम कृपा और सत्संग की आवश्यकता है.सत्संग और 'राम कृपा' के सम्बन्ध
में मैंने अपनी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में लिखा है.सुधिजन चाहें तो मेरी इस पोस्ट का
भी अवलोकन कर सकते हैं,जो कि मेरी लोकप्रिय पोस्टों में से एक है.
भक्ति के बारे में गोस्वामीजी लिखतें हैं :-
भक्ति सुतंत्र सकल गुन खानी ,बिनु सत्संग न पावहि प्रानी
पुण्य पुंज बिनु मिलहि न संता, सतसंगति संसृति कर अंता
भक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
पुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो
पाता है.
क्यूंकि सत्संगति से ही 'श्रद्धा' , 'विश्वास' के बारे में सही सही जानकारी होती है.वर्ना अज्ञान
पर आधारित अंध श्रद्धा तो जीव के पतन का कारण भी हो सकती है.यदि चाहत 'राम' के बजाय संसार
की होगी तो वह भक्ति की जगह वासना बन 'कारण शरीर' का निर्माण करेगी ,जिसके फलस्वरूप जैसा
कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन -१' में बताया था ,जन्म मरण (संसृति)
के बंधन का निर्माण होगा.
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १७ (श्रद्धा त्रय विभाग योग) में श्रद्धा के 'सत', 'रज' और 'तम' गुणी स्वरूपों
की विवेचना की गई है.सुधिजन चाहें तो 'श्रद्धा' के बारे में और अधिक जानने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता
का अध्ययन कर सकते हैं. श्रद्धा पूर्वक मनन करने से ही गुढ़ रहस्य प्रकट हो पाते हैं.
वर्ना लोग बिना पढ़े और जाने ही 'अश्रद्धा' के कारण अपनी भिन्न भिन्न विपरीत धारणा
भी बना लेते हैं.'श्रद्धा' और 'विश्वास' राम भक्ति रुपी मणि को पाने के सुन्दर साधन हैं.
राम भक्ति एक अक्षय मणि के समान है .यह जिसके हृदय में बसती है उसे स्वप्न में भी लेशमात्र
दुःख नहीं होता. जगत में वे ही मनुष्य चतुर शिरोमणि हैं जो इस भक्ति रुपी मणि के लिए भलीभाँती
यत्न करते हैं.तुलसीदास जी इस बारे में लिखते हैं:-
राम भगति मनि उर बस जाके, दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताके
चतुर शिरोमनि तेइ जग माहीं ,जे मनि लागि सुजतन कराहीं
इस पोस्ट को विस्तार भय से अब यहीं समाप्त करता हूँ. अगली पोस्ट में चार प्रकार के भक्तों और
'सीता लीला' के ऊपर कुछ और चिंतन का प्रयास करेंगें.
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष होता है कि सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन की मेरी पिछली दोनों
पोस्ट सुधीजनों द्वारा पसंद की गयीं हैं. उनकी सुन्दर सारगर्भित टिप्पणियों से मैं निहाल हो जाता
हूँ.मैं सभी सुधिजनों का इसके लिए हृदय से आभारी हूँ. मैं सभी पाठकों से अनुरोध करूँगा कि मेरी इस
पोस्ट पर भी अपने अमूल्य विचार अवश्य प्रस्तुत करें.
चाहतों की जननी है. सीता का नाम जन जन में प्रचलित है, जो राम से पहले ही बहुत आदर व
सम्मान के साथ लिया जाता है.बहुत प्राचीन समय से अनेक घरों में बच्चियों का नाम सीता,
जानकी या वैदेही के नाम पर रखा जाता रहा है. अत: यह अफ़सोस करना कि लोग अपनी बच्चियों
का नाम सीता के नाम पर नहीं रखना चाहते नितांत निराधार है. सीता ,राधा, मीरा आदि का नाम
स्मरण करते ही हृदय में भक्ति का उदय होता है. बहरहाल किसी भी प्रकार के विवाद को अलग
रखते हुए इस पोस्ट में भी मेरा उद्देश्य 'सीता जन्म' के आध्यात्मिक चिंतन को आगे बढ़ाना है.
मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन -२' में हमने यह जाना था कि
'सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में
समर्थ हैं वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त
नकारात्मकता का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण
ही करती रहतीं हैं.
सीता जन्म अर्थात भक्ति का उदय हृदय में कैसे हो , आईये इस बारे में थोडा मनन करने का प्रयास करते हैं.
गोस्वामी तुलसीदास जी श्री रामचरितमानस में लिखते हैं :-
बिनु बिस्वास भगति नहि, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु
राम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीव न लेह विश्रामु
अर्थात बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं यानि 'राम कृपा'
नहीं होती और श्री राम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शान्ति नहीं पा सकता.
'सत्-चित-आनंद' या राम में विश्वास होना ,अर्थात हृदय मे ऐसी पक्की धारणा का होना कि जीवन में असली
आनंद स्थाई चेतनायुक्त आनंद(सत्-चित-आनंद) ही है,जिसको पाना संभव है और जिसका निवास
भी हमारे हृदय में ही है,अत्यंत आवश्यक है.
इसके लिए गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस के प्रारम्भ में ही यह प्रार्थना करते हैं :-
भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिनौ
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम
मैं भवानी जी और शंकर जी की वंदना करता हूँ . (क्यूंकि) भवानी जी 'श्रृद्धा' और शंकर जी 'विश्वास' का ही
स्वरुप हैं. श्रद्धा- विश्वास के बिना सिद्ध जन भी अपने अंत:करण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते.
मुझे बहुत अफ़सोस होता है जब ब्लॉग जगत में मैं यह पाता हूँ कि कुछ लोग 'शिव-पार्वती' अथवा 'शिवलिंग'
के बारे में बिना जाने ही दुष्प्रचार और मखौल करने में लगे हुए हैं.उनकी क्षुद्र सोच पर मुझे हँसी ही आती है.
हमारे यहाँ अध्यात्म में 'प्रतीकों' का सहारा लिया जाता है,जैसा कि आज के विज्ञान में भी किया जाता है,
जैसे पानी को 'H2O' क्यूँ दर्शाते हैं और H2O का मतलब पानी में दो भाग हाइड्रोजन व एक भाग
ओक्सीजन का होना है,यह एक वैज्ञानिक अच्छी प्रकार से जानता है, परन्तु ,एक साधारण आदमी
को बिना जाने न तो H2O का मतलब समझ आयेगा न ही वह यह विश्वास करेगा कि पानी दो गैसों
हाइड्रोजन व ओक्सिजन से मिलकर बना है. इसके लिए सर्वप्रथम तो उसे 'विज्ञान' पर श्रद्धा रखनी
होगी. श्रद्धा के कारण ही वह विज्ञान को समझने का जब प्रयत्न करेगा तभी उसे कुछ कुछ
समझ उत्पन्न हो सकेगी. जैसे जैसे उसका ज्ञान और अनुभव बढ़ता जायेगा, तैसे तैसे उसे यह
'विश्वास' भी उत्पन्न होता जायेगा कि हाँ पानी दो गैसों से मिलकर ही बना है.प्रतीक गुढ़ रहस्यों को
आसानी से समझने के माध्यम हैं. भवानी 'श्रद्धा' का प्रतीक हैं और शंकर जी 'विश्वास' का.
'श्रद्धा' यानि भवानी जी शक्ति है जिसके द्वारा जीव सत्संग का अनुसरण कर निष्ठापूर्वक प्रयास
करता है और सद्ज्ञान प्राप्ति का अधिकारी हो पाता है. ज्ञान की प्राप्ति पर विश्वास होता है.
यह विश्वास यानि 'शिव' ही कल्याणस्वरुप है जो मन के सभी संशयों के विष को पी डालता है ,
जिससे जीव एकनिष्ठ हो परमात्मा का ध्यान कर पाता है.और परमात्मा के ध्यान से जैसे जैसे हृदय
में शान्ति और आनंद का अनुभव होने लगता है, तैसे तैसे शान्ति और आनंद की प्राप्ति की चाहत
व तडफ भी हृदय में नितप्रति बलबती होकर हृदय में 'भक्ति' का उदभव करा देती है.
'भक्ति' के लिए राम कृपा और सत्संग की आवश्यकता है.सत्संग और 'राम कृपा' के सम्बन्ध
में मैंने अपनी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' में लिखा है.सुधिजन चाहें तो मेरी इस पोस्ट का
भी अवलोकन कर सकते हैं,जो कि मेरी लोकप्रिय पोस्टों में से एक है.
भक्ति के बारे में गोस्वामीजी लिखतें हैं :-
भक्ति सुतंत्र सकल गुन खानी ,बिनु सत्संग न पावहि प्रानी
पुण्य पुंज बिनु मिलहि न संता, सतसंगति संसृति कर अंता
भक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
पुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो
पाता है.
क्यूंकि सत्संगति से ही 'श्रद्धा' , 'विश्वास' के बारे में सही सही जानकारी होती है.वर्ना अज्ञान
पर आधारित अंध श्रद्धा तो जीव के पतन का कारण भी हो सकती है.यदि चाहत 'राम' के बजाय संसार
की होगी तो वह भक्ति की जगह वासना बन 'कारण शरीर' का निर्माण करेगी ,जिसके फलस्वरूप जैसा
कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन -१' में बताया था ,जन्म मरण (संसृति)
के बंधन का निर्माण होगा.
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १७ (श्रद्धा त्रय विभाग योग) में श्रद्धा के 'सत', 'रज' और 'तम' गुणी स्वरूपों
की विवेचना की गई है.सुधिजन चाहें तो 'श्रद्धा' के बारे में और अधिक जानने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता
का अध्ययन कर सकते हैं. श्रद्धा पूर्वक मनन करने से ही गुढ़ रहस्य प्रकट हो पाते हैं.
वर्ना लोग बिना पढ़े और जाने ही 'अश्रद्धा' के कारण अपनी भिन्न भिन्न विपरीत धारणा
भी बना लेते हैं.'श्रद्धा' और 'विश्वास' राम भक्ति रुपी मणि को पाने के सुन्दर साधन हैं.
राम भक्ति एक अक्षय मणि के समान है .यह जिसके हृदय में बसती है उसे स्वप्न में भी लेशमात्र
दुःख नहीं होता. जगत में वे ही मनुष्य चतुर शिरोमणि हैं जो इस भक्ति रुपी मणि के लिए भलीभाँती
यत्न करते हैं.तुलसीदास जी इस बारे में लिखते हैं:-
राम भगति मनि उर बस जाके, दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताके
चतुर शिरोमनि तेइ जग माहीं ,जे मनि लागि सुजतन कराहीं
इस पोस्ट को विस्तार भय से अब यहीं समाप्त करता हूँ. अगली पोस्ट में चार प्रकार के भक्तों और
'सीता लीला' के ऊपर कुछ और चिंतन का प्रयास करेंगें.
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष होता है कि सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन की मेरी पिछली दोनों
पोस्ट सुधीजनों द्वारा पसंद की गयीं हैं. उनकी सुन्दर सारगर्भित टिप्पणियों से मैं निहाल हो जाता
हूँ.मैं सभी सुधिजनों का इसके लिए हृदय से आभारी हूँ. मैं सभी पाठकों से अनुरोध करूँगा कि मेरी इस
पोस्ट पर भी अपने अमूल्य विचार अवश्य प्रस्तुत करें.
बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं यानि 'राम कृपा'नहीं होती और श्री राम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शान्ति नहीं पा सकता.
ReplyDeleteभक्ति के मर्म को समझाते हुए आपने उसकी महता को भी समझाने का पूरा प्रयास किया है .....लेकिन भक्ति का प्रारंभ तब तक नहीं हो सकता जब तक हम ईश्वर के दर्शन नहीं कर लें ...ईश्वर के दर्शन करने के लिए मन में श्रद्धा का होना आवश्यक है .....बिना श्रद्धा के हम ईश्वर को पाने की कल्पना भी नहीं कर सकते ..और ईश्वरीय अनुभूति हमें एक समर्थ गुरु के माध्यम से ही होती है ..और जब हमें वह अनुभूति हो जाती है फिर हमारे चारों और आनंद ही आनंद रहता है ....बहुत सुंदर और गहरे तरीके से आपने विचार किया है ....!
आपके साथ हुए सत्संग के लिए आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट....... जानकी के चरित्र से जुडी हर बात मन को भाती है.
ReplyDeleteइस तरह के सत्संग पर सार्गर्भित टिप्पणियों की आवश्यकता कहां है। इस सत्संग में आकर हम तो मधुर वचनों से ज्ञान का अर्जन करते हुए धन्य होते हैं। आज भी धन्य हुआ।
ReplyDelete'श्रद्धा' और 'विश्वास' राम भक्ति रुपी मणि को पाने के सुन्दर साधन हैं.
ReplyDeleteअध्यात्म से जुड़ी यह ज्ञान चर्चा बहुत सार्थक सन्देश दे रही है ...!!
आभार...
इतने गहन चिंतन से लिखे इस आलेख से ज्ञान लाभ कर रही हूँ.--आभार।
ReplyDeleteबहुत सार्थक आलेख...
ReplyDelete"सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन"
ReplyDeleteएक नए नज़रिए से फिर रामायण के रूबरू हो रहे हैं.... बहुत बहुत आभार.
बेहद गहन मनन और चिन्तन का परिणाम है जो इतनी सूक्ष्मता से विश्लेषण किया है और भक्ति का स्वरूप समझाया है।
ReplyDeleteसीता जी पर अध्यातिक चिंतन वास्तव में भारत की प्राचीन चिंतन और सनातन परंपरा का द्योतक है... आपका यह आलेख सारगर्भित है...
ReplyDeleteराकेश जी लगता है कि आप पर भगवान राम की कृपा कुछ ज्यादा ही है, अगले लेख का भी इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteभक्ति सुतंत्र सकल गुन खानी ,बिनु सत्संग न पावहि प्रानी
ReplyDeleteपुण्य पुंज बिनु मिलहि न संता, सतसंगति संसृति कर अंता
भक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
पुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो
पाता है.
आपकी हर पोस्ट हमें सुन्दर ज्ञानवर्धक बातें सिखाती है आज भी इन पंक्तियों से सारी बात पूरी हो जाती है कि बिना प्रयास के कुछ भी हासिल नहीं होता फिर वो चाहे भगवान का गुणगान ही क्यु न हो |
बहुत सुन्दर पोस्ट |
विश्वास ही भक्ति का आधार स्तम्भ है ...जब तक मन में विश्वास नहीं होगा तो भक्ति कैसे होगी ?
ReplyDeleteचिन्तनपरक लेख।
ReplyDeleteसत्संग की महिमा बताती हृदय में श्रद्धा और विश्वास का बीजारोपण करती इस सुंदर पोस्ट की जितना सराहना की जाये कम है... ईश्वर प्राप्ति की इच्छा यानि शुद्ध आनंद की कामना हृदय में सत्संग से ही उत्पन्न होती है, इस सत्संग के लिए आभार!
ReplyDeleteबिनु सत्संग बिबेक न होई"
ReplyDeleteआदरणीय ,श्रीयुत राकेश जी ,मैं अधिक कहने की स्थिति मैं नहीं हूँ ,परन्तु आप अपने नामानुरुप शीतल ज्ञान -प्रकाश को आलोकित करते हुए हर दग्ध उर, को संतृप्त कर रहे हैं ,
ग्रन्थ साहिब जी का श्लोक -" सत संगति किया सो तरया"
कुछ इसी प्रसंग से मिल जीवन- दर्शन प्राणित करता है
बहुत मनोरम लगता है आपका आलेख / सद्बचन ....
शुभ-कामनाएं जी /
वाह,मन निर्मल और आनंदित हो गया ......इतने सुन्दर प्रसंग को पढ़ने का मौका देने के लिए आभार
ReplyDeleteआपके साथ हुए सुन्दर सत्संग के लिए आभार !....
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और मननीय आलेख...बहुत अध्यात्मिक शान्ति मिलती है..आभार
ReplyDelete---सही तो यही है कि जगतमाता जानकी जी के प्रसंग पर कोई कैसे/क्या टिप्पणी करे, उस पर आपकी सुंदर सरस संप्रेषणीय भाषा ....
ReplyDelete" ज्यों गूँगेहि मीठे गुड़ कौ रस अन्तरगत ही भावै.."
-- जहां तक शिव लिंग की बात है ....अति-गूढ़ भी है सरलतम भी..
१ .सृष्टि सृजन के दौरान रूद्र देव अपने अर्ध नारीश्वर रूप को विभाजित करके स्त्री-पुरुष के भाव रूप में प्रत्येक वस्तु में परवश किया ..जीव में वही पुरुष-स्त्री भाव ...लिंग-योनि भाव बना जिससे जीव की उत्पत्ति की स्वचालित प्रजनन प्रक्रिया का आरम्भ हुआ ..और ब्रह्मा को स्वयं मानव, जीव आदि बनाने से छुट्टी मिली...--अब उस विश्वरूप परब्रह्म को न पूजा जाय तो फिर किसे ???
२--सीधी-सरल सी बात है यह लिंग व योनि की पूजा है....जिस वस्तु, बात, भाव पर दुनिया चलाती है ..उसे क्यों न पूजा जाय ...ऐसा कौन दुनिया में पैदा हुआ है जो इसकी पूजा नहीं करता हो अपने जीवन में ....
---मेरे ब्लॉग vijanaati-vijaanaati-science ...स्त्री विमर्श गाथा .भाग ४ में भी यह संदर्भित विषय देखें....व आलेख सृष्टि व जीवन में भी यह विषय संदर्भित है....
--तात्विक अर्थ में शिवलिंग शिव अर्थात कल्याण के देव / ईश्वर का चिन्ह है -लिंग -- वैशेषिक ४/१/१ के अनुसार...." तस्य कार्य लिंगम " अर्थात उस (ईश्वर या अन्य किसी ) का कार्य ( जगद रूप या कोइ भी कृत-कार्य )ही उसके होने का लक्षण (प्रमाण ) है | अतः --लिंग का अर्थ सिर्फ पुरुष लिंग नहीं अपितु चिन्ह,प्रमाण, लक्षण व अनुमान भी है |
@ बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती,
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत |
राकेश भैया, बहुत ही सुन्दर पोस्ट शृंखला लिख रहे हैं यह आप | बधाई भी, धन्यवाद भी | :)
ReplyDeleteहाँ एक बात कहना चाहूंगी | आपने कहा
"मुझे बहुत अफ़सोस होता है जब ब्लॉग जगत में मैं यह पाता हूँ कि कुछ लोग 'शिव-पार्वती' अथवा 'शिवलिंग'
के बारे में बिना जाने ही दुष्प्रचार और मखौल करने में लगे हुए हैं.उनकी क्षुद्र सोच पर मुझे हँसी ही आती है." |
मुझे लगता है कि उनसे हमें करुणा (सिम्पथी ) होनी चाहिए, कि दुर्भाग्य से उन्हें भक्ति जैसा सुगम मार्ग नहीं मिल पा रहा | आप जानते हैं ना कि अंगुलिमाल डाकू "राम राम" बोल ही नहीं पा रहा था - तो उसे कहा गया कि "मरा मरा" बोल - और वही उल्टा राम जाप उसे क्या से क्या बना गया!! यह भी जानते हैं कि कंस शत्रु भाव से "विष्णु - मैं तुझे मार दूंगा" बोल कर भी तर गया |
तो यह सोचिये - कि ये जो लोग शत्रुवत भाव से भी प्रभु का नाम ले रहे हैं, यही नाम इतना शक्तिशाली है कि यही उन्हें सही राह पर खींच ही लाएगा !! :)
अर्थात बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं यानि 'राम कृपा'नहीं होती और श्री राम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शान्ति नहीं पा सकता.
ReplyDeleteचिंतन मनन करने वाला लेख ... सार्थक लेखन
शिल्पा बहिना,
ReplyDeleteआपके पवित्र उद्गार मन को छूते हैं.
आपकी सुन्दर टिपण्णी प्रेरणास्पद है.
अगर मैं सहीं हूँ तो वें 'वाल्मिकी'जी थे
जो 'मरा मरा' जप कर ही तर गए.
आभार.
गुरूजी प्रणाम - दुनिया में बिना श्रधा के भक्ति हो ही नहीं सकती ! यानि हर कार्य में मनुष्य की श्रधा विद्मान है ! चोर --चोरी में श्रधा होने की वजह से ही चोरी ( भक्ति ) करता है ! अतः यह श्रधा हर व्यक्ति की अलग - अलग हो सकती है ! लेकिन सीता माता की श्रधा उस अनमोल खजाने को देती है , पाने वाला ही जाने - दूसरा कोई नहीं जान सका ! बहुत ही भक्ति मय समां किन्तु बहुत दिनों के बाद !
ReplyDelete'श्रद्धा' यानि भवानी जी शक्ति है जिसके द्वारा जीव सत्संग का अनुसरण कर निष्ठापूर्वक प्रयास
ReplyDeleteकरता है और सद्ज्ञान प्राप्ति का अधिकारी हो पाता है. ज्ञान की प्राप्ति पर विश्वास होता है.
यह विश्वास यानि 'शिव' ही कल्याणस्वरुप है जो मन के सभी संशयों के विष को पी डालता है ,
गहन अध्ययन को व्यक्त करती पोस्ट
भक्तिमय, सारगर्भित पोस्ट, आभार
ReplyDeleteजोत से जोत जलाते चलो, अध्यात्म की गंगा बहाते चलो...
ReplyDeleteजय हिंद...
राकेश जी ,बहुत तार्किक तरीके से आपने आध्यात्म की महत्ता को स्थापित किया है ....... किसी भी सत्ता में विश्वास करने के लिये शुरुआत तो उसकी स्वीकॄति से ही हो सकती है .......आभार !
ReplyDeleteभक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
ReplyDeleteपुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो पाता है....
बहुत ही तार्किक एवं वैज्ञानिक चिंतन को समावेशित करता आध्यात्मिक आलेख मन को संबल प्रदान करते अति भाव पूर्ण लेख हेतु कोटि कोटि आभार....सादर !!!
श्रद्धा और विश्वास साथ-साथ रहने वाले भाव हैं।
ReplyDeleteश्रद्धा है तो आत्मविश्वास है, आत्मविश्वास है तो ईश्वर पर विश्वास है, शिव-पार्वती पर विश्वास है।
आपके लेख शांतिदायक होते हैं।
ji han = ve valmiki ji hi the ...
ReplyDeleteआज के दौर में श्रृद्धा रखने से पहले प्रश्न अवश्य खड़े होते हैं...
ReplyDeleteबाप रे इतना कुछ!
ReplyDeleteकाजल भाई, सही और "सच्ची श्रद्धा" हो तो इन खड़े हुए
ReplyDeleteप्रश्नों पर विराम लगने लगता है.ज्ञान और अनुभव से
जब "विश्वास" आता है ,तो सभी प्रश्नों पर पूर्ण विराम
लग जाता है.
आभार.
राम भक्ति एक अक्षय मणि के समान है .यह जिसके हृदय में बसती है उसे स्वप्न में भी लेशमात्र दुःख नहीं होता.
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और भक्तिभाव जगाने वाली सारगर्भित बातें हैं|
बहुत सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteज्ञानवर्धन तो हुआ ही, चित्त को शांति भी मिल रही है आप के लेखों को पढ़कर.
ReplyDeleteDivine and thanks:) Feeling very peaceful within...
ReplyDeleteभक्तिमय, सारगर्भित पोस्ट, आभार
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आना और उसे पढ़ना मन को शांति पहुंचता है.
ReplyDeleteराम भक्ति एक अक्षय मणि के समान है .यह जिसके हृदय में बसती है उसे स्वप्न में भी लेशमात्र
ReplyDeleteदुःख नहीं होता. जगत में वे ही मनुष्य चतुर शिरोमणि हैं जो इस भक्ति रुपी मणि के लिए भलीभाँती
यत्न करते हैं
prabhu jri Ramji ki mahima ka gungan karne ke lie aapka bhar.......samaj ko dharmik disha ki wor unmukh karta manav kalyaankari lekh.
बहुत सुन्दर और भक्ति से परिपूर्ण पोस्ट! सीता जी के बारे में अच्छी जानकारी मिलने के साथ साथ मन को बहुत सुकून मिलता है! गहरे भाव के साथ और भक्ति भावना से हर शब्द आपने लिखा है जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! सार्थक आलेख!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
नमस्कार राकेश जी ...
ReplyDeleteएक और भक्ति, श्रधा और विशवास के भव सागर में गोता लगवा दिया आपने आज ... तथ्य को भक्ति से जोड़ दिया ... बहुत ही तार्किक लेख है आपका ... आपसे आग्रह है समाज में फैली भ्रांतियों को तार्किक रूप से निवारण करें तो सभी का भला होगा ...
Its always a great experience to read about our mythological character in so much detail.
ReplyDeleteNice read !!!
आदरणीय श्री राकेश जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी मिली! सुन्दर प्रस्तुती!
'श्रद्धापूर्वक मनन और चिन्तन से ही वृत्तियों का उन्नयन संभव है .'
ReplyDelete-आज के सत्संग हेतु आभार !
माँ जानकी को नमन ....जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनायें
ReplyDeleteराकेश जी हमारी संस्कृति में सभी भगवान अपनी अपनी शक्ति से ही शक्तिवान हैं आदि देव महादेव की पत्नी मां भवानी उनकी शक्ति हैं । शक्ति के बिना शिव शव हैं । और भगवान कृष्ण की भूमि बृज में जय श्री कृष्णा नहीं बल्कि राधे राधे से लोग एक दूसरे का अभिवादन करते हैं । माना जाता है राधा जी का स्मरण करो तो बांके बिहारी तो स्वंय चले आयेंगें । और मां सीता भगवान राम की शक्ति हैं । आपने शोधपरक लेख लिखा है । बधाई
ReplyDeleteबिनु बिस्वास भगति नहि, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु ।
ReplyDeleteराम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीव न लेह विश्रामु ।
राकेश जी, इस गूढ रहस्य कि हमारी सकल संसार की रचना ही श्रद्धा - विश्वास पर आधारित है , इतने सरल व स्पष्ट भाव में आपने व्याख्या कर दी है । इतने सुंदर, शुभ व भावपूर्ण लेख प्रस्तुति के लिये साधुवाद भी व धन्यवाद भी ।
aadarniy sir
ReplyDeletevaise to main pahle hi aapko guru dronachary maan chuki hun.
jis tarah se unhone apne shishhyon ko (kourav-pandav) sixhit kiya jo aaj ek itihaas ban chuka hai vaise hi aap din par din is bhakti -ras me ham sabhi ko tan -man se bhigo diya hai .
ham bhi jo aapke blog par itna kuchh padhne ko milausse anbhigy the
ye to aapka hi jabardast prayaas hai jo ham sab aapke dwra itni suxhmta se v gahanchintan se likhe gaye har post ko padh kar labhanvit ho rahen hain.
maa seeta ke rup-gun ka bakhan bhi itni tallinta se kiya hai ki bas usme dubte hi chale jaao.
बिनु बिस्वास भगति नहि, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु
राम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीव न लेह विश्रामु
bilkul saty vachan bina vishwaas ke to bhakti upjti hi nahi .
bhale hi ham diya jala kar ,ghanti baja kar apni puja ko sampann kar lete hain .
lekin itne hi palon me agar do minute ke liye bhi hamne hsrddha se naam liya hi janki ya kisi bhi bhagwan k dil se yaad kiya tabhi hamari puja sarthak hoti hai varna vah kewal ek dainik karm ki tarah ho jaata hai .
ab bas karti hun aap bhi sochte honge ki are itna bada comments .
par sir ye meri aadat jab tak main kisi bhi rachna ki jad tak nahi pahunchti tab tak main tippni nahi daalti hun.
aap bhi thakjayenge padhte padhte--;)
hardik abhinandan ke saath
bhakti ras se ot -prot is ati mahtv purn aalekh tatha aapke athak parishram ke liye
hardik badhai
poonam
आदरणीय पूनम जी
ReplyDeleteमैं आपका हृदय से आभारी हूँ. आपने बहुत मनोयोग से मेरी पोस्ट को पढा और उस पर जो टिपण्णी आपने की है उससे मेरा बहुत अधिक उत्साहवर्धन हुआ है.आपने टिपण्णी पढकर थकने की बात की है ,पर मेरा मन तो भरता ही नहीं, आपकी टिपण्णी को बार बार पढ़ने का मन करता है.आप मेरी तुलना गुरू द्रोणाचार्य से कर रहीं हैं,तो मुझे लगता है जैसे एक बहिन अपने भाई को 'राजा भय्या' ही देखना चाहती है या एक माँ अपने लाल को 'कान्हा' के रूप में देखती है,ऐसे ही आप भी मुझे प्यार भरा सम्बोधन करके मेरा उत्साह कई गुणा बढ़ा रहीं हैं.मैं आपके स्नेह और प्यार के समक्ष नतमस्तक हूँ. आपका सदा उऋणी रहूँगा.
सीता जन्म आध्यात्मिक चिंतन लेख माला की सभी पोस्ट चित्त को शांत करतीं हैं ,संकेन्द्रण ,बढ़ातीं हैं ,मन के बिखराव को कम करतीं हैं .आभार .
ReplyDeleteअन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है .
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
Posted by veerubhai on Sunday, August 21
हर मनुष्य को प्रकृति द्वारा विचारने की शक्ति मिलती है.विचार को कर्म में परिणत करते समय शत-प्रतिशत फल की सहज कामना रहती है. असफल होने पर ही विखंडन प्रारंभ होता है. जीवन संघर्ष का ही पर्याय है. इस परिस्थिति में ही श्रद्धा की आवश्यकता होती है . बाकी आपने सविस्तार पोस्ट में समझा ही दिया है . शुभकामना.
ReplyDeleteसार्थक लेख...
ReplyDeleteआपका चिन्तन न केवल आपको सुख देता है बल्कि हम लोग भी इस ज्ञानरूपी गंगा में गोते लाग कर धन्य हो गये हैं!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..!!
ReplyDeleteईश्वर प्राप्ति के लिये ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग में भक्ति मार्ग सुगम भी है और सहज भी। ज्ञान मार्ग पर चलने में जहाँ मेहनत अधिक है, वहीं अहंकार भाव आ जाने की संभावना रहती है लेकिन भक्ति मार्ग विनम्रता की ओर ले जाता है। जरूरत विश्वास की होती है, और ये भी सच है कि दिक्कत भी विश्वास की ही होती है।
ReplyDeleteआप अफ़सोस न करें, सदविचार प्रसार के अपने कार्य में लगे रहें तो हम जैसों पर भी भक्ति रस के कुछ छींटे गिरने का चांस बना रहेगा। अफ़सोस करने करवाने को हम जैसे बहुत हैं।
sargarbhit post hai ,bahut sunder jankari mili
ReplyDeleteराकेश जी , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , अध्यात्म के बिना तो , मन में शांति नहीं मिलती , मनुष्य अगर सब बातो को समझ जाये तो दुनिया में प्यार व शांति ही रहे .
ReplyDeleteआपने जिस तरह पानी का उदारहण दिया है , वह बहुत कुछ दर्शाता है.
शक्ति के प्रतिक और मन को सुकून देने वाले हमारे परम पूज्य आराध्य देव के बारे में जितनी बार पढ़े अच्छा ही लगता है . मन शांत हो जाता है .
आपकी मेरे ब्लॉग पर अभिव्यक्ति अच्छी लगी . मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है . मै आपको follow कर रही हूँ . आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है. धन्यवाद
Rakesh ji aapka bahut dhanyvaad meri post par apni anmol tippani karne ke liye.
ReplyDeleteaapki yeh post padhi padh kar accha laga.
You are welcome at my new post-
ReplyDeletehttp://urmi-z-unique.blogspot.com
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You are also welcome at-
ReplyDeletehttp://khanamasala.blogspot.com
सुन्दर भक्तिमय पोस्ट.
ReplyDeleteअर्थात बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं यानि 'राम कृपा'
ReplyDeleteनहीं होती और श्री राम जी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शान्ति नहीं पा सकता.
adbhut likha hai ,aanand aur shanti dono hi is satsang me hai ,ye to sahi hai bina vishwas ke bhakti nahi .shiv shakti ke baare me bhi jaankar achchha laga .
पूनम सिन्हा जी लिखतीं हैं.
ReplyDeletepunam sinha punamsinha0@gmail.com to me
show details 6:49 PM (2 hours ago)
आपकी रचना को पढ़ कर आपके गहन अध्ययन और चिंतन के प्रति नत मस्तक होने का मन करता है..!
न जाने कितने दिनों के प्रयास के बाद इतना सार गर्भित लेख हम सबको यूँ ही मिल जाता है... !
आपका आशीर्वाद और प्रेम हम सबको आपकी रचना के रूप में मिलता रहे..यही प्रार्थना और कामना है मेरी..!
धन्यवाद !!
किसी तकनीकी कारणवश आपके ब्लॉग पर मेरे विचार नहीं पोस्ट हो पा रहे हैं..
Bahut hi sundar shabd aur bhaav prastut kiye hai aapne. Bahut bahut badhai...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख । श्रध्दा और विश्वास के बल पर आदमी जब ईश्वर को पा सकता है तो दुनियाई काम तो बहुत आसान हैं इन दो गुणों के होते । आपके अगले लेक की प्रतीक्षा रहेगी ।
ReplyDeleteशिव-पार्वती का प्रतीक लिंग और योनी को हम इस प्रकार भी जान सकते हैं कि शिव हमारे सबसे प्राचीन देवता हैं जब मनुष्य को निसर्ग के कोप से जूझना होता था और जैसे कि प्राकृतिक और स्वाभाविक है प्रजनन अपने जाति की निरंतरता बनाये रखने के लिये आवश्यक था भी और है भी । तो लोगों को प्रजनन की तरफ आकृष्ट (?) करने के लिये शायद इस तरह के चिन्हों की आवश्यकता रही हो । वैसे शाम गुप्ता जी की बात सही है ।
इस आलेख को पढ़ने के बाद अद्भुत शान्ति और निर्मलता की अनुभूति हो रही है ! राकेश जी आपकी व्याख्या बहुत ही सरस एवं चिंतनीय है ! इतने ज्ञानवर्धक आलेख के लिये आपका आभार एवं धन्यवाद !
ReplyDeleteनमस्कार राकेश जी ..
ReplyDeleteआज सुबह सुबह आपका लेख पढ़ कर मन प्रसन्न और ....चित शांत ...हो गया ...बहुत अच्छा लगा अपने इष्ट को ऐसे पढ़ कर बहुत वक़्त के बाद .....सच्चे शब्दों में इस तरह का लेख पढ़ा ....आभार
anu
सही कहा आपने...बिना विश्वास भक्ति नहीं हो सकती...
ReplyDeleteसब से पहले तो आप मेरे ब्लॉग पर आए और आप ने अपने महत्वपूर्ण विचारों से मुझे अनुग्रहित किया उस के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद....आप काफी आस्तिक इंसान मालूम होते हैं। जो कि एक बहुत ही अच्छी बात है। आपके कुछ आलेख पढे पढ़ कर बहुत अच्छा लगा कि आज भी भक्ति-भाव लोगों में बाकी है। जो कि प्रायः कम होता जान पड़ता है। और खास कर उस पर लिखते बहुत कम ही लोग हैं। शिव पार्वती को तो मैं भी मानती हूँ। सुंदर प्रस्तुत के लिए आपका बहुत-बहुत आभार॥
ReplyDeleteमुझे कई बार बहुत विस्मय होता है की ब्लोगिंग की दुनिया में आप जैसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति मौजूद है ... आपकी पोस्ट पढ़ कर मन प्रसन्न हो जाता है ... अपने सच कहा है की बिना विश्वास भक्ति संभव नहीं ... अपने विचारों से यूँ ही अवगत करते रहिएगा ....
ReplyDeleteगुरूजी प्रणाम -मेरे ब्लॉग का समर्थन बंद करके , फिर से दुबारा समर्थक करें ! यदि कोई अड़चन होगी , तो वह मुक्त हो जाएगी !
ReplyDeleteसंपूर्ण शोधपरक और गहन अध्ययन के पश्चात लिखी गई है. इस तरह का लेखन बिना आंतरिक ज्ञान के संभव नही है. H2O के उदाहरण से ही समझ आरहा है कि आपमे आध्यात्म और विज्ञान का अदभुत तालमेल है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
गहन चिंतन से परिपूर्ण बहुत सार्थक आध्यात्मिक पोस्ट । आभार ।
ReplyDeleteश्रद्धा' यानि भवानी जी शक्ति है जिसके द्वारा जीव सत्संग का अनुसरण कर निष्ठापूर्वक प्रयास करता है और सद्ज्ञान प्राप्ति का अधिकारी हो पाता है. ज्ञान की प्राप्ति पर विश्वास होता है. यह विश्वास यानि 'शिव' ही कल्याणस्वरुप है जो मन के सभी संशयों के विष को पी डालता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, ज्ञानवर्धक और भक्तिभाव जगाने वाली सारगर्भित,सार्थक आध्यात्मिक के साथ हुए सत्संग के लिए आभार राकेश जी !
गुरूजी प्रणाम - अब ठीक हो गया है ! तस्वीर गलती से पोस्ट हो गया था ! जिसे मै तुरंत मिटा दिता था ! अब कोई परेशानी नहीं है ! धन्यवाद
ReplyDeletebahut saarthak lekhan. sahi kaha aapne...
ReplyDelete''हृदय मे ऐसी पक्की धारणा का होना कि जीवन में असली
आनंद स्थाई चेतनायुक्त आनंद(सत्-चित-आनंद) ही है,जिसको पाना संभव है और जिसका निवास
भी हमारे हृदय में ही है,अत्यंत आवश्यक है.''
gyaanvardhak lekh, dhanyawaad.
राकेश जी , आपने ब्लॉगजगत को भक्ति भाव से ओत प्रोत कर दिया है । हैरान हूँ कि ब्लोगर्स में इतनी भक्ति भावना है । सार्थक सत्संग ।
ReplyDeleteकभी मिलेंगे तो और चर्चा करेंगे ।
जीवन भक्ति और श्रद्धा के सहारे ही जिया जा सकता है। जो इससे भटक कर दूसरा आधार ढूंढता है वह समय बीतने पर पश्चाताप के सिवा और कुछ नहीं पाता है।
ReplyDeleteआप बहुत ही सुंदर और समाजोपयोगी संदेश बाँट रहे हैं। शुभकामना।
aaj hi yaatra se vaapas aai hoon aapke blog par aakar laga sari thakaan mit gai.satsang to main kabhi gai nahi par aapke blog se laabhanvit ho rahi hoon.bhakti ras me kuch to hai jo man ko shaanti ke saath ek nai chetna bhi deta hai.sita ji ke upar likha aalekh bahut achcha laga.
ReplyDeleteब्लॉग के जरिये आपका यह अप्रतिम कार्य आदर और बधाई के काबिल है शुभकामनायें
ReplyDeleteaaderniy rakesh ji...bahut dino tak kuch paristhtiyon vasn blogging se door tha..bhakti swarupa sita..shradha swaroopa parwati ..shiv roopi bishwas ki prapti...sare sanshayon se mukti...parmatma me lagan..iswar ki prapti.. ye sab samjhna atyant durah hai..aap itni baarki se gahan adhyatm ko ham jaise sadharan logon ke samjhne layak bana dete hain..aapka blog padhne ke liye hi nahi apitu manan karne ke liye hai..dil ki anant gehraiyon se main aapki lekhni ko pranam karta hoon...apka lekhan ashutosh ko ashtosh may kar dega...aapko aaur aapki lekhni ko pranam..aaur bhakti swarupa se nivedan ki aapko apni bhakti se sarabor rakhe..taki nana prakar ke mayawi maya tatwon se pare rahte hue ham bhi ishwar parapti ki shaswat rah ka anugaman kar sakein...sadar pranam ke sath
ReplyDeleteBahut hi sharthak lekh....
ReplyDeletebahut kux sikhane ko mila....
apke blogg ka anusharan kar raha hun
vishwash hi aise hi padhne ko milega..!
Abhar
राकेश भाई, आपका चिंतन तो गजब का है
ReplyDeleteयहां तो तन भी अपना स्वस्थ न हुआ, खैर
Bahut Sundar chintan.. Yahan hamesha kuch naya sikhne ko milta hai, shradha aur vishwas such me bhakti ke 2 atut sthambh hai.. bahut dhanyawad Rakesh kumarji..
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteप्रणाम !
अद्भुत ! अप्रतिम ! संग्रहणीय !
सीता जन्म शृंखला के द्वारा ब्लॉग जगत में आध्यात्म की गंगा बहाने के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं ।
थके हारे पथिक को शीतल जल के साथ विश्राम मिलने पर जिस शांति और आनन्द की प्राप्ति होती है , वही स्थिति आपके आलेखों का पठन करते हुए एक ब्लॉगर की होती है …
अत्युत्तम !
भक्ति और आध्यात्म की धारा अनवरत बहती रहे … तथास्तु !
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपके ज्ञानार्जन और चिंतन को नमन - आभार
ReplyDeleteभक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
ReplyDeleteपुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो
पाता है.
आपकी हर पोस्ट से हमें सुन्दर और ज्ञानवर्धक सत्संग प्राप्त होता है, ये सुख ही बहुत बड़ा है हमारे लिए और सत्संग से भक्ति, पुण्य और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है... बस आप अपने सत्संग की गंगा बहते जाइये...
इस पोस्ट में भी बहुत ही गहन चिंतन देखने को मिला.लेख अद्भुत और जानकारीपूर्ण लगा.अन्यत्र इस विषय पर इतने सुलझे हुए सुन्दर लेख मिलना दुर्लभ ही है जितने आप ने अब तक इस सिरीज़ में लिखे हैं.अगले अंक की प्रतीक्षा में .
ReplyDeletesarthak post, satsang ke bina kho jaana asaan ho jaata hai… Shilpa Mehta ji ka comment bhi bahut achcha laga… aur apka comment meri post 'Meet my God' par bahut hi sunder laga, dhanyawaad!
ReplyDeleteचिंतन-मनन करने वाली उत्कृष्ट पोस्ट हेतु बधाई स्वीकार करें.सौ फीसदी सही कहा,कि बिना श्रद्धा ,भक्ति एवं ,सत्संग के कुछ भी प्राप्त होना संभव नहीं है ...और ज्ञान तो बिलकुल भी नहीं .
ReplyDeleteआभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! सत्संग का अमृत-प्रवाह यूँ ही चलता रहे और इस बहाने हमें भी कुछ जानने को मिलता रहे।
बच्चों के नाम रखने के बारे में, महाभारत सरीखे ग्रंथ घर में रखने के बारे में बहुत से अन्धविश्वास फैलाये जाते देखे हैं। इसी प्रकार दुष्प्रचार और मखौल का काम शिव-पार्वती' अथवा 'शिवलिंग' तक ही सीमित नहीं रहा है। चहुँ ओर सर्वज्ञानी ही दिख रहे हैं।
sarthak post padhvane ke liye aabhar aapka .......
ReplyDeleteआदरणीय गुरु जी मेरा सदर नमस्ते स्वीकार कीजिये!बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक चिंतन.........
हम सब भारतीय एक मन हों, एक विचार हों और एक दूसरे की शक्ति बनें
बड़े अच्छे लेख प्रस्तुत कर रहे हैं । बस ज़रूरत है कि हम सब इन पर चिंतन मनन करें।
हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़े काफी गहरी हैं। आज आवश्यकता है , आम इंसान को ज्ञान की, जिस से वो अन्धविश्वास से बाहर आ सके
आपको पुनः बधाई ।
उम्दा चिंतन...सत्संग का आनन्द आ गया.
ReplyDeleteप्रिय मदन भाई,
ReplyDeleteआपकी प्रेरक टिपण्णीयाँ मेरा मार्गदर्शन करती हैं.
आपका हमेशा इंतजार बना रहता है.
परन्तु,मुझे पता है आप एक अच्छे नेक कार्य में व्यस्त थे.
माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिन्दा न कीजियेगा.
टिपण्णी के लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ.
आदरणीय राकेश जी,
ReplyDeleteसार्थक आध्यात्मिक पोस्ट । आभार ।
सार्थक चिंतन।
ReplyDelete------
कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
राकेश जी ..
ReplyDelete'सत्-चित-आनंद' या राम में विश्वास होना ,अर्थात हृदय मे ऐसी पक्की धारणा का होना कि जीवन में असली
आनंद स्थाई चेतनायुक्त आनंद(सत्-चित-आनंद) ही है,जिसको पाना संभव है और जिसका निवास
भी हमारे हृदय में ही है,अत्यंत आवश्यक है.
एकदम सही कहा है आपने..हमारी पौराणिक कथाओं में रूपकों का इस्तेमाल हुआ है और आप उसको सरल शब्दों में प्रस्तुत करके चिंतन को नए आयाम देते हैं ..बहुत शुक्रिया और शुभकामनाएं
भक्ति स्वतंत्र है और सभी सुखों की खान है . परन्तु ,सत्संग के बिना प्राणी इसे पा नही सकता.
ReplyDeleteपुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते और सत्संगति से ही जन्म-मृत्यु रूप 'संसृति' का अंत हो
पाता है.
kitna sunder bhav hai jeevan ka sar yahi hai aaj se hamesha yad rakhungi
aap ki sabhi post pr mene bahut kuchh padha aur jana hai me shyad kabhi kbhi is vishya pr itna kabhi nahi padhti aapka dhnyavad .aapke karan hi bahut kuchh jana aur socha
saader
rachana
As always felt really peaceful after reading this post.And, I love the name Siya...
ReplyDeleteमैं तो सबके लिए प्रार्थना करती हूँ कि आपके इस सराहनीय प्रयास से अप्ल मात्र भी लाभ अवश्य उठायें. परिवर्तन भी अवश्य होगा . शुभकामना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट....... गहन चिंतन देखने को मिला....
ReplyDeleteअद्भुत और जानकारीपूर्ण !
-hardeep
बहुत बहुत सुन्दर ....
ReplyDelete.मन को तृप्त करने वाला चिंतन ...लेख
सुंदर पोस्ट.शुभकामना.
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और मननीय आलेख| इतने सुन्दर प्रसंग को पढ़ने का मौका देने के लिए धन्यवाद|
ReplyDelete'निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छलछिद्र न भावा !'
ReplyDeleteभगवन राम का ये उद्घोष मुझे अकसर याद आता है !
आप मानस का प्रचार-प्रसार कर बड़ी सेवा कर रहे हैं !
शायद पहली बार आया हूँ आप के ब्लॉग पर| काफी कुछ है यहाँ पर, बार बार आना पड़ेगा| आप के ब्लॉग को अपनी घुमक्कड़ी में शामिल कर लिया है| आपका बहुत बहुत आभार इतने सुंदर ब्लॉग का पता ठिकाना बताने के लिए|
ReplyDeletesarthak v man ko shanti dene wala lekh...jo marg darshan bhee kar raha hai.......
ReplyDeleteaabhar
राम भले ही हर चीज में रमते हों,पर सीता का नाम राम के पहले आता है. ये इस बात का द्योतक है की हमारे नज़र में स्त्रियों की क्या महता है. स्त्री जो सृजन करती है, जो आदि शक्ति है, जो सहनशीलता की मूर्ति है. वो पूजनीय है
ReplyDeleteप्रतिको को समझाने के लिए आपने जो जल के रसायनिक सूत्र का उदाहरण दिया है वो अतुलनीय है
-----------------------------
मुस्कुराना तेरा
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अन्ना जी के तीन....
गहन अध्यन मनन का नतीजा है यह उत्कृष्ट रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई |
आशा
चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
ReplyDeleteभक्ति में शक्ति...
ReplyDeleteजय हिंद...
मुझे बहुत अफ़सोस होता है जब ब्लॉग जगत में मैं यह पाता हूँ कि कुछ लोग 'शिव-पार्वती' अथवा 'शिवलिंग'
ReplyDeleteके बारे में बिना जाने ही दुष्प्रचार और मखौल करने में लगे हुए हैं.उनकी क्षुद्र सोच पर मुझे हँसी ही आती है.
हमारे यहाँ अध्यात्म में 'प्रतीकों' का सहारा लिया जाता है,जैसा कि आज के विज्ञान में भी किया जाता है,
जैसे पानी को 'H2O' क्यूँ दर्शाते हैं और H2O का मतलब पानी में दो भाग हाइड्रोजन व एक भाग
ओक्सीजन का होना है,यह एक वैज्ञानिक अच्छी प्रकार से जानता है, परन्तु ,एक साधारण आदमी
को बिना जाने न तो H2O का मतलब समझ आयेगा न ही वह यह विश्वास करेगा कि पानी दो गैसों
हाइड्रोजन व ओक्सिजन से मिलकर बना है. इसके लिए सर्वप्रथम तो उसे 'विज्ञान' पर श्रद्धा रखनी
होगी. श्रद्धा के कारण ही वह विज्ञान को समझने का जब प्रयत्न करेगा तभी उसे कुछ कुछ
समझ उत्पन्न हो सकेगी. जैसे जैसे उसका ज्ञान और अनुभव बढ़ता जायेगा, तैसे तैसे उसे यह
'विश्वास' भी उत्पन्न होता जायेगा कि हाँ पानी दो गैसों से मिलकर ही बना है.प्रतीक गुढ़ रहस्यों को
आसानी से समझने के माध्यम हैं. भवानी 'श्रद्धा' का प्रतीक हैं और शंकर जी 'विश्वास' का.
bilkul sahi kaha aapne, aajkal kuchh log apne ko budhdhijeevi dikhane ke liye ninda marg chun lete hain.
aapke mangalmay gyan ke liye abhaar.
shubhkamnayen
इतनी गहराई से भारतीय मनीषा के स्पंदनों को पहचान कर,
ReplyDeleteरसमय आत्मीयता से हम सबके साथ बांटने के लिए आपका
आभार. जल के सम्बन्ध में वैज्ञानिक संकेत का सहारा लेकर
भी आपने 'प्रतीक' द्वारा 'मूल' तक जाने की पद्धति के पीछे
निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भी पुष्टि की.
'श्रद्धा' और 'विश्वास' की प्रमाणिक शास्त्रीय आधारों पर
स्थापना करने वाली 'पोस्ट' के लिए बधाई.
"राम भगति मनि उर बस जाके, दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताके
चतुर शिरोमनि तेइ जग माहीं ,जे मनि लागि सुजतन कराहीं"
आपने लिखा." अगली पोस्ट में चार प्रकार के भक्तों और
'सीता लीला' के ऊपर कुछ और चिंतन का प्रयास करेंगें."
उस अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है
सादर, मंगल कामनाओं सहित
सबकी अपनी अपनी सोच है. पर हमें अपनी आस्था और विश्वास बनाये रखना चहिये. फिर वो चाहे किसी भी विषय पर हो.
ReplyDeleteयहाँ तो यही बात चरितार्थ होती है "मानों तो देवता न मानों तो पत्थर"
"भक्ति सुतंत्र सकल गुन खानी ,बिनु सत्संग न पावहि प्रानी
ReplyDeleteपुण्य पुंज बिनु मिलहि न संता, सतसंगति संसृति कर अंता"
rakesh ji pahali baar aapko padha aur achambhit rah gayi...ek k baad ek sita ji ka vritant padhati hi chali gayi....mantr mugdh si...ye doha meri mano sthiti ko bhalibhanti udhrit kar raha hai...aap ko follow karane se ruk hi nahin sakati..:)..aapke agale lekh ki pratiksha me.....
चिंतन परक लेख.
ReplyDeleteविश्वास के बिना कुछ भी नही
ReplyDeleteसच ही तो है मानों तो देव नही तो
पत्थर।आपकी आध्यात्मिक रचना
प्रेरणा प्रदान करती है।मेरे ब्लाग
पर आने के लिये बहुत आभारी हूँ।
मेरी रचना तुम्हारी बारी, मई में लिखी
है उसे जरुर पढें अच्छा लगेगा। धन्यवाद।
बहुत सार्थक आलेख...
ReplyDeleteराकेश जी, "एक नूर ते सब जग उपजेया / कौन भले कौन मंदे"... "हरी ॐ तत सत"...
ReplyDeleteसांकेतिक भाषा में जिस शब्द से सृष्टि की रचना मानी जाती है वो हैं संख्या '३' जिसमें ऊपर चंद्रमा है और मध्य में पूँछ, यानी ॐ अर्थात चंद्रमा का सार सतयुगी त्रेयम्बकेश्वर ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अंश, महेश अर्थात अमृत शिव (विषधर / नीलकंठ महादेव), के मस्तक पर, और माँ पार्वती की कृपा से धरा का राजा पार्वती-पुत्र गणेश, अर्थात शिव के मूलाधार में मंगल ग्रह का सार जाना जा सकता है! परम ज्ञान इस प्रकार तीन भागों में विभाजित किया गया - भक्ति, ज्ञान (साधारण भौतिक) , और विज्ञान (गूढ़ भौतिक ज्ञान) ...
जो 'बहिर्मुखी' होने के कारण आपको दुःख मिल रहा है, उस का कारण वर्तमान 'कलियुग' का होना है (जब मानव क्षमता केवल २५ से ० % के भीतर रह जाती है),,, और हिन्दू मान्यतानुसार काल का नियंत्रण महाकाल / भूतनाथ शिव के हाथ में है... जिसे ब्रह्माण्ड रुपी अनंत शून्य में व्याप्त शक्ति के प्रतिबिम्ब अथवा मॉडल के रूप में साकार पृथ्वी को केंद्र में तुलना में बिंदु समान जान शिवलिंग-पार्वती योनी द्वारा दर्शाय जाता आ रहा है, वैसे ही कैसे कृष्ण / कृष्णा अथवा काली के माध्यम से शक्ति के रौद्र रूप को दर्शाया गया है, क्यूंकि काली शिव के ह्रदय में दर्शाई जाती है, अर्थात वो द्योतक है ज्वालामुखी की...
(अनंत शून्य के मध्य में एक बिंदु समान पृथ्वी / नादबिन्दू विष्णु को गणितज्ञं शून्य के ३६० डिग्री में 'टेनजेंट कर्व' के माध्यम से देख सकते है, और उनके अष्टम अवतार को संख्या '8' को लिटा अनंत तो दर्शाया जाता आ ही रह है :)
इसी कारण गीता में 'बहुरूपिया कृष्ण', अर्थात परमात्मा, जो सब जीव-निर्जीव, प्राणी आदि में स्वयं विराजमान है कहते हैं, मेरी शरण में आओ तो में आपको परम सत्य तक ले जाउंग :)
बहुत ज्ञानवर्धक और मननीय आलेख.....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteराकेश भाई ,
ReplyDeleteआपकी लेखनी को सिर्फ़ मैं पढ के नतमस्तक हो सकता हूं उस पर कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं है । सिर्फ़ एक बात कहना चाहता हूं , मेरी सोच थी कि आज धर्म का इतना दुरूपयोग हुआ है कि इसे फ़िर समाज को भूल ही जाना चाहिए , किंतु आपकी लेखनी जैसे यदि धर्म की व्याख्या हो तो क्या कहने । यकीनन ये सब अब युगों तक विश्व के लिए सहेजा जा सकेगा । बहुत बहुत शुभकामनाएं लिखते रहिए हमेशा
Waiting for your next post! Always a very good experience to read your posts, learn so much and get so much peace of mind.
ReplyDeleteसच, बहुत मन उदास था, इसलिए आज कुछ अलग पढने की इच्छा थी। वो कमी आपके ब्लाग पर आकर पूरी हो गई।
ReplyDeleteये कहना की बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है, ठीक नहीं है। पढने के दौरान मैं जो आनंद की अनुभूति होती है, उसको शब्द देना कठिन है।
बहुत सुंदर सर
आपके चिंतन को प्रणाम!! दर्शन और आध्यात्म का सरल-सरस संगम कर देते है,आप। निर्मल भाव भरते है आप अपनी वाणी में। व्याख्या निशंक आदरणीय बन उठती है। नमन!!
ReplyDeleteराकेश जी ..आपके लेख से मन भक्तिमय हो गया ....
ReplyDeleteमेरा मानना है कि श्रद्धा और भक्ति के बगैर पूजा अर्चना करना सिर्फ पाखण्ड या दिखावा होता है...नहीं तो सिर्फ आरती करना एक तरह की लिप सर्विस है जिसमे आदमी सामने वाले से सिर्फ बोल कर झूठा वादा करता है ..और प्रभु इस सबको जानते है ... मन के भीतर देख सकते है.... भक्ति के लिए विश्वास जरूरी है..विश्वास होगा तो सर भक्ति से झुक जायेगा ... और श्रद्धा भक्ति से प्रभु मन में ऐसे आन्नद को उत्तपन करते हैं जिस से ह्रदय खिल जाता है और मनमस्तिष्क को दिव्यदर्शन होते है ..फिर परमानंद की प्राप्ति होती है ...जो इस भौतिक संसार की खुशियों से इतना ज्यादा होता है कि खुशी से रोम रोम लहराता है... और यह सब तभी मिलता है जब जब हम अपने आराध्य भगवान और गुरु पर पूर्ण आस्था रखते हैं ...और यह आस्था और विश्वास अध्यात्मिक गुरु की शरण में और सत्संग में आने से मिलता और बढता है... अतः आप गुरु का कार्य भी कर रहे हैं और ब्लॉग में सत्संग भी दे रहे हैं... आपका यह आध्यात्मिक चिंतन हमारे ज्ञान को बढ़ाते हैं.. लेकिन ज्ञान सिर्फ ज्ञान की श्रेणी में रखा जाए तो सिर्फ बौधिक ज्ञान हुवा ..इसको अन्त्स्मन में अंगीकार करे महसूस करे तो हम सबका इस को पढ़ना सार्थक होगा .... आपका ह्रदय से आभार
निश्चित ही सत्संग की महिमा अपरम्पार है!
ReplyDeleteविश्वास ही भक्ति का आधार स्तम्भ है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! और शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
बिनु बिस्वास भगति नहि, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु
ReplyDeleteराम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीव न लेह विश्रामु
bhut hi achchi prastuti.thanks.
bahut hi sunder prastuti , chama chahati hoon der se aane ke liye .......har bar post padh kar man ko asim prasannta hoti hai . abhar ,,,,,, ... hardik dhanyavd .
ReplyDeletepost ki jankari ke liye shukriya .
http/sapne-shashi.blogspot.com
meri nayi post par aapki samikhsa ka intjar hai waqt milne par jaroor aye .
दीपावली के अवसर पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteपर्वों की श्रृंखला में आपको सभी पर्वों की शुभकामनाएँ!
उम्दा चिंतन, जानकी के चरित्र से जुड़ी हर बात मन को भाति है। आपकी नई पोस्ट का इतेजार है।
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवं मनभावक पोस्ट धन्यवाद इस जानकारी लिए
ReplyDeletehttp://mangaldoshpujainujjain.com/
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