पूर्ति पर आनंद मिले या न मिले. अथवा जो आनंद मिले वह स्थाई न होकर अस्थाई ही रहे.
जैसे जैसे हमारी सोच व अनुभव परिपक्व होते जाते है ,हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाई
आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने लगते हैं.वास्तव में चाहत माया का ही रूप है.जीव और
ईश्वर के बीच ईश्वर को पाने की चाहत अर्थात 'श्री ' (सीता) जी किस प्रकार से शोभा पाती हैं इसका
वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं :
उभय बीच श्री सोहइ कैसी , ब्रह्म जीव बिच माया जैसी.
जैसा कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में कहा कि 'सीता जन्म' हृदय स्थली में 'सत्-चित-आनंद' को पाने
की सच्ची चाहत का उदय होना है.अर्थात ऐसी चाहत जो हमे 'स्थाई चेतन आनंद' की प्राप्ति करा सके,
जिस आनंद को हमारे शास्त्रों में 'सत्-चित-आनंद' या परमात्मा के नाम से पुकारा गया है.
'सीतारूपी' चाहत अत्यंत दुर्लभ है जो आत्मज्ञान के अनुसंधान व खोज का ही परिणाम है,सीताजी
भक्ति स्वरूपा हैं, जो समस्त चाहतों की 'जननी' , अत्यंत सुन्दर , श्रेय व कल्याण करनेवाली है.
सीता जी की सुंदरता का निरूपण करते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं :-
सुंदरता कहुं सुन्दर करई, छबि गृहं दीपसिखा जनु बरई
सब उपमा कबि रहे जुठारी , केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी
सीताजी की शोभा, सुंदरता को भी सुन्दर करनेवाली है.वह ऐसी मालूम होती हैं मानो सुन्दरता रुपी घर
में दीपक की लौं जल रही हो.सारी उपमाओं को तो कवियों ने झूंठा कर रखा है. मैं जनक नंदनी श्री
सीताजी की किससे उपमा दूँ .
कहते हैं सीताजी का अवतरण तब हुआ था जब वैदेह राजा जनक ने प्रजा के हितार्थ वृष्टि कराने
हेतू भूमि में हल चलाया था और हल की नोंक भूमि में गड़े एक घड़े से टकराई थी.उस घड़े में से ही एक
अति सुन्दर सुकोमल कन्या प्रकट हुई,जिसका नाम हल के नुकीले भाग के नाम पर "सीता" रखा गया.
जनक जी ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में अपनाया इसलिये उनका नाम "जानकी" या "वैदेही"
भी कहलाया. राजा जनक पूर्ण आत्मज्ञानी हैं जिन्हें अपनी देह में भी किंचित मात्र आसक्ति नहीं है .
इसीलये उन्हें 'वैदेह' कहते हैं. वे अपने आत्मस्वरूप में सदा स्थित हो आत्म तृप्त रहते हैं.उन्हें कर्म
करने की कोई आवश्यकता नहीं है तो भी लोकहितार्थ वृष्टि हेतू पृथ्वी पर हल चलाने का 'कर्म योग'
करते हैं. जिसके फलस्वरूप 'सीता' यानि भक्ति का प्रादुर्भाव होता है.वृष्टि का अभिप्राय यहाँ
आनंद से ही है.
उपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता
है, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल की
नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोज
का कार्य संपन्न कर् पाता है.
सीता जी 'सत्-चित-आनंद' परमात्मा यानि 'राम' का ही वरण करतीं हैं. राम को 'राम को पाने की
चाहत' यानि सीताजी अत्यंत प्रिय है. इसलिये इनको 'रामवल्लभाम' भी कहते हैं.सीताजी की वंदना
करते हुए श्रीरामचरितमानस के शुरू में ही गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :-
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम
सर्वश्रेयस्करीम सीतां नतोSहं रामवल्लभाम
जो उत्पत्ति ,स्थिति और संहार करनेवाली हैं, कलेशों का हरण करनेवाली हैं, सब प्रकार से कल्याण
करनेवाली हैं,श्री राम जी की प्रियतमा हैं,उन सीता जी को मैं नमस्कार करता हूँ.
सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.
.ऐसी 'भक्ति' माता सीता जी का मैं हृदय से नमन करता हूँ .
सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी
अगली पोस्ट में हम 'सीताजी' व उनकी लीला के आध्यात्मिक चिंतन करने का एक और प्रयास करेंगें.
मैं सभी सुधिजनों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरी पिछली पोस्ट 'सीता जन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१'
पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियाँ देकर मेरा उत्साहवर्धन किया है . जिससे यह पोस्ट मेरी लोकप्रिय पोस्टों
(Popular Posts) में अति शीघ्र ही चौथे स्थान पर आ गई है.
मैं आशा करता हूँ कि इस पोस्ट पर भी सुधिजनों का प्यार और कृपा मुझ पर बनी रहेगी.
उपयोगी पोस्ट!
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर आकर अपार आनंद की प्राप्ति हुई है ! अभी तो आपकी बहुत सारी पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ना हैं ! गूढ़ विषय पर आपकी लेखनी बड़ी ही सरलता व सहजता से चली है ! मेरा साधुवाद स्वीकार करें !
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
ReplyDeleteआभार इस पोस्ट के लिए ..!!
आजकी इस चर्चा से यह सिद्ध हुआ कि इच्छा रूपी सीता ही माया है, सीता ही भक्ति है, क्या वही आत्मज्ञानी की बुद्धिस्वरूपा भी नहीं है...ज्ञानवर्द्धक इस पोस्ट के लिये आभार!
ReplyDeleteसीता भक्ति है - और बिना सीता के राम को नहीं पाया जा सकता |राधा भक्ति है - जिसके द्वारा मानव मात्र श्याम जी तक पहुँच पाए |
ReplyDeleteविदेह जी [अर्थात जो देह से नहीं आत्मा से ही बंधा हो ) के ही मन की भूमि पर जब प्रभु प्रेम का हल चलता है - तब ही सुकोमल भक्ति जन्म लेती है - नहीं तो नहीं |
यह बात तो सर्वमान्य सत्य है कि भक्ति तो हमेशा प्रभु का वरण करती ही है | किन्तु इससे भी अधिक ध्यान देने की बात यह है कि प्रभु भी भक्ति का ही वरण करते हैं - और उसे आपने ह्रदय में स्थान देते हैं ....
माफ़ कीजिये - ऊपर "भक्ति जन्म लेती है" लिख आई हूँ | नहीं - जन्म नहीं लेती - वह तो पहले से ही मौजूद है, पर अब तक अप्रकट थी | अब बस प्रकट हो जाती है मन के आँगन में - और फिर बढती जाती है - बढती ही चली जाती है - जब तक प्रभु को प्राप्त ना कर ले ....
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और मार्गदर्शक लेख के लिए बहुत बहुत आभार|
ReplyDeleteशिल्पा जी,
ReplyDeleteशब्द भावों को समझने के लिए होते हैं.अप्रकट से प्रकट होने का नाम हम'जन्म' भी दे सकते हैं.
राम या कृष्ण भी तो जब साकार रूप से प्रकट होते है,तो उनके प्रकट होने को भी हम उनका जन्म होना
मानते हैं.परमात्मा और परमात्मा की भक्ति हमेशा थे,हमेशा हैं,और हमेशा ही रहेंगें.शास्वत और
संतान हैं ये.
'संतान' को 'सनातन' पढियेगा.
ReplyDeleteमाँ जानकी को प्रणाम।
ReplyDeleteअच्छी उपमाएं दी हैं आपने !
ReplyDeleteइस सबके बावजूद भी यह शोचनीय है कि प्रायः लोग अंधविश्वास में पड़कर न तो न तो अपनी बेटियों का नाम ही सीता रखते हैं और न ही उनके जैसा भाग्य उनके लिए पसंद करते हैं।
bahut hi badiya gyanopayogi prastuti ke liye aabhar!
ReplyDeleteअद्भुत दर्शन!! अनुपम चिंतन!! प्रेरक चित्रण!!
ReplyDeleteसीता जन्म के साथ ही विदेह भाव, कर्मयोग और भक्तिमार्ग की समयक् स्थापना!!
भक्ति का प्रकट होना या जन्म होना, हमारे अहंकार का नाश करता है।
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन और विश्लेषण।
ReplyDeleteआपने सारे प्रकरण को बहुत ही सरलता से हमारे सामने रखा है। मन तृप्त हुआ इसे पढ़कर।
अध्यात्मिक चेतना से जागृत यह आलेख देश की प्राचीन संस्कृति से परिचय करा रही है.. सीता जी के संस्कृति और अध्यात्मिक महत्व को बताती यह आलेख बढ़िया है... संग्रहनीय है... उत्तम
ReplyDeleteसीता माता की अपार महत्ता को दर्शाती अतुलनीय पोस्ट आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteसीता जी की सही मायने में पहचान हो रही है...आपकी यह आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक पोस्ट हमें रामभक्ति का मार्ग दिखाती है...आपका ह्रदय से आभार
ReplyDeleteसीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
ReplyDeleteवे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.
मन को शांत करने वाली पंक्तियाँ ... सुन्दर प्रस्तुति
सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
ReplyDeleteवे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.
आपने इस श्रखंला में ज्ञान, बह्क्ति और प्रेम की सरिता प्रवाहित कर रखी है जिसमें डूबने के बाद निकलना मुश्किल है, बहुत ही श्रेष्ठतम कार्य, शुभकामनाएं.
रामराम.
भूल सुधार:-
ReplyDeleteबह्क्ति = भक्ति, पढा जाये.
रामराम.
सीता जी के कई नामों की व्याख्या पड़ने को मिली .
ReplyDeleteपढ़ के अच्छा लगा.
---------------------------------------------
मैंने आपको फोल्लो किया है,
...लेकिन आज की भागमभाग में स्थाई आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने का भी समय नहीं लोगों को, वे तो अस्थाई आनंद से काम चलाए बैठे हैं :(
ReplyDeletebahut hi bahumulya bichaar...in tathyon ke bishay mein bahut samay se thodi bahut jaankari hai lekin aapke lekho se choti choti mahatwapurna baaaton ka gyan ho jata hai...aapki agli post ka intzaar rahega..pranam
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन....
ReplyDeleteज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
आभार !
Anmol vichar ...
ReplyDeleteAbhar!
आपके विचार और आलेख प्रभावित करते हैण...अत्यंत सरल होना इनकी खूबी है. सीताजी व उनकी लीला के आध्यात्मिक चिंतन का इन्तजार करेंगे.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.
आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक बढ़िया आलेख है
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और व्याख्यात्मक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteइतना सुन्दर चित्रण सिर्फ़ आप ही कर सकते है राकेश जी…………आप पर प्रभु की पूर्ण कृपा बरस रही है बिना भक्ति मे डूबे कोई इतना गहन और सूक्ष्म विश्लेषण नही कर सकता…………हम तो आपकी ज्ञानमयी वाणी से कृतकृत्य हुये…………ये परम लाभ हमे निरन्तर कराते रहिये…………आभारी रहेंगे।
ReplyDelete"सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी"
ReplyDeleteअध्यात्मिक चेतना से ओतप्रोत, ज्ञानवर्धक आलेख आत्मा को शांति प्रदान कर रहा है... बहुत - बहुत आभार आपका...
बहुत ज्ञानवर्धक और सार्थक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।...अभार..
ReplyDeleteउपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
ReplyDeleteजनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता
है, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल की
नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोज
का कार्य संपन्न कर् पाता है.
badi hi sundarata se varnan kiya ,kab padh daali pata hi nahi chala ,sita janm adbhut raha aur uska aadhaar bhi ,ek ek naam ke arth spsht jo kiye hai aapne wo to kamaal hai ,saath me dohe to chaar chaand laga dete hai inme ,aapko padhna bhi saubhagya hai hamara .kafi samya baad padhna hua ,sukhad anubhav raha .aapki aabhari hoon aur na aane ke liye mafi chahti hoon .
आदरणीय गुरु जी नमस्ते ! इस लेख को हमने बहुत ध्यान से तथा एक एक शब्दों को पढ़ा है |
ReplyDeleteबहुत सार्थक लिखा है आपने | आप के इस लेख को पढ़ के यूँ लग रहा है की साक्षात् वेद ज्ञान ही मिल रहा है |
आपने सीता शब्द की बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है | अब ये किसी को ये संशय नहीं होना चाहिए
की ये सीता शब्द मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के बारे में नहीं अपितु परम पिता परमात्मा से सम्बंधित है
bahut gyaanvardhak post hai.aabhar.
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! शानदार और मार्गदर्शक आलेख!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक अध्यात्मिक चिंतन !
ऐसी 'भक्ति' माता सीता जी का मैं हृदय से नमन करती हूँ ...
सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी
.
राकेश जी..आपकी पोस्ट अभूत ज्ञानवर्धक है...सीता ,जनक सभी को आपने किस प्रकार दार्शनिकता से जोड़ दिया है...ये अनुपम है ...सुन्दर प्रस्तुति है..!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...इस ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteकुछ दिन पहले वाल्मीकि रामयण का हिन्दी अनुवाद पढ़ा था. लेकिन उसमें इस तरह के वर्णन का अभाव था. काफ़ी अच्छा है. चिन्तन से परिपूर्ण.
ReplyDeleteबहुत गहराई के साथ और विचारणीय बात का उल्लेख किया है आपने! मैं ये मानती हूँ की अगर चाहत हो किसी चीज़ को पाने की तो वो चाहत ज़रूर पूरी होती है ! ये निर्भर करता है की वो चाहत पूरी होने पर कभी ख़ुशी या कभी गम से झेलना पड़ता है! हर इंसान के जीवन में ख़ुशी और गम दोनों आते हैं जो एक सिक्के के दो पहलु समान होते हैं! सीताजी की परम भक्ति और अपने पति परमेश्वर श्री राम जी से चाहत ही उनके पास खींच लायी! उन दोनों का अटूट बंधन इस बात का प्रतिक है की जहाँ चाह है वहाँ राह है!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://khanamasala.blogspot.com
भाई,इस ब्लॉग को पढ़ते ही सारा tension दूर हो जाता है.
ReplyDeleteआपका अद्भुत योगदान है ब्लॉग जगत को.वाह.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकिसी भी चाहत की उत्पत्ति आनंद प्राप्ति के लिए होती है. यह अलग बात है कि उस चाहत की
ReplyDeleteपूर्ति पर आनंद मिले या न मिले. अथवा जो आनंद मिले वह स्थाई न होकर अस्थाई ही रहे.
जैसे जैसे हमारी सोच व अनुभव परिपक्व होते जाते है ,हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाई
आनंद की चाहत को अधिक महत्व देने लगते हैं.वास्तव में चाहत माया का ही रूप है.
मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ और हाँ चाहत पूर्ति पर आनंद मिल सकता है पर ये कभी स्थाई हो ही नहीं सकता क्युकी मानव स्वभाव कभी स्थिर रहता ही नहीं वो एक चाहत पूरी होते ही दूसरी चाहत की तरफ भागता है और उसके दुःख का सबसे बड़ा कारण भी यही है |
बहुत सुन्दर विचार यहाँ आकार कुछ अलग मिलता है और अच्छा भी लगता है | हर बार की तरह एक और ज्ञानवर्धक पोस्ट जिसका वर्णन बहुत खूबसूरती से किया गया है |
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया :)
"उपरोक्त कहानी से यह समझ में आता है कि भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
ReplyDeleteजनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता
है, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल की
नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोज
का कार्य संपन्न कर् पाता है."
बड़े ही तार्किक और प्रायोगिग ढंग से आपने गूढ़ तथ्यों का व्याख्यान किया है
आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए मेरा आभार स्वीकारें
फणि राज
सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी
ReplyDeleteaapka aabhar ke aapne सीय राममय ke adhyatmik chintan ke dwar ko prakashmaan kiya.
shubhkamnayen
सहज शब्दों में सूक्ष्म-ज्ञान की व्याख्या कर जनक,सीता,राम के विराट स्वरूप की अनुभूति कराती अलौकिक पोस्ट.
ReplyDeleteआदरणीय राकेश जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
सीय राममय सब जगजानी, करउ प्रनाम जोरि जुग पानी
ज्ञानवर्द्धक पोस्ट के लिये आभार ...
...और निरंतर बहती ज्ञान गंगा का प्रवाह कभी मंद न हो , इसके लिए
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
राकेश जी, आनंद आया!
ReplyDelete'योगिराज कृष्ण', निराकार 'योगेश्वर विष्णु' के अष्टम और 'सर्वश्रेष्ठ अवतार', अर्थात निराकार शक्ति रूप से आरम्भ कर अन्धकारमय अनंत निरंतर बढ़ते शून्य के ही भीतर साकार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को एक आम मनोरंजक और सरल सांकेतिक कथा के माध्यम से दर्शा गए प्राचीन योगी - जिसमें प्रथम अवतार मगरमच्छ है; दूसरा कूर्म अर्थात कछुआ; तीसरा वराह अर्थात जंगली सूअर; चौथा नरसिंह अर्थात आधे सिंह और आधे मानव; पांचवे, पूर्ण मानव रूप में शक्तिशाली वामन; छटे कुल्हाड़ी वाले परशुराम; सातवें धनुर्धर राम; आठवें सुदर्शन-चक्र धारी श्री कृष्ण... जो कहते हैं कि यद्यपि सम्पूर्ण सृष्टि उनके (विराट रूप के) भीतर है, 'माया' से सब उन्हें अपने भीतर देखते हैं!
वर्तमान में हमारे सौर-मंडल के एक सदस्य पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति पर शोध कार्य का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है,,, और जैसा वर्तमान में भी 'हम' जान पाए हैं, अरबों वर्षों से असंख्य तारों आदि से बनी अनंत विभिन्न तस्तरिनुमा गैलेक्सियों में उपस्थित हमारी सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाली गैलेक्सी, जो सुदर्शन-चक्र समान शून्य में अपने केंद्र के चारों और घूम रही है जहां अपार शक्ति वाला 'ब्लैक होल' उपस्थित माना जाता है वर्तमान में, और प्राचीन 'हिन्दू' के शब्दों में 'सहस्त्र सूर्यों के प्रकाश वाले कृष्ण',,,
और हमारी गैलेक्सी के किनारे की ओर उसके ही भीतर उपस्थित हमारे सौर-मंडल को ब्रह्माण्ड का सत्व माना गया है अनादिकाल से...और 'कृष्ण' भी कहते हैं कि वे ही (हिन्दू के लिए गंगाधर एवं चंद्रशेखर शिव अर्थात पृथ्वी पर प्राप्त शक्ति के स्रोत) सूर्य और (रहस्यमय शक्ति के स्रोत, जिसे सागर में ज्वार-भाटा प्रतिबिंबित करते हैं) चन्द्रमाँ को प्रकाशमान करते हैं :)
और हमारी कथाएँ मानव को सौर-मंडल के ९ सदस्यों, सूर्य से शनि तक, के सार के माध्यम से ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब मानते हुए, संकेत करते हैं धनुर्धर अर्जुन और धनुर्धर राम को विभिन्न काल में सूर्य का ही मोडल होना...और उसी प्रकार द्रौपदी और सीता को चन्द्रमा का प्रतिरूप!... जिसे चकोर भी पाने के लिए 'पीयू पीयू' करते दीखता है... और शिव के मस्तक पर भी उनको कूल रहने के लिए 'इंदु' अर्थात चन्द्रमा को दर्शाया जाता आ रहा है 'हिन्दू' द्वारा :)
गुरूजी प्रणाम ..आज के समय में इसकी उपयोगिता नकारा नहीं जा सकता ! ज्ञान की समुचित उपयोग जनकल्याण में होनी चाहिए ! तभी ज्ञान की उपयोगिता सिद्ध होती है ! बहुत सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteजब हम सत-चित-आनंद के लिए सघन विचार करते हैं तो वह घनीभूत होकर हमारी चेतना में अनवरत चलता रहता है |अचानक हमें सूक्ष्म परिवर्तन महसूस होता है , उस आनंद की झलक मिलती है | ये सतत स्मरण ही हमारे ह्रदय में सीता जी यानी भक्ति को जगाते रहते है .आपका पोस्ट अमूल्य है |जो ह्रदय की धरोहर है| शुभकामना|
ReplyDeleteबहुत सुंदर..!!!
ReplyDeleteआप इतना समय ज्ञानवर्धक बातें लिख कर यहाँ प्रेषित करने में लगाते हैं..कभी आपसे आमने-सामने वार्तालाप होगा तो..'ज्ञान-गंगा' अवश्य बहेगी..!!!
हार्दिक शुभकामनाएँ..!!
बहुत ही सुंदर लिखते है आप राकेश जी, हमेशा अगली कड़ी का इंतजार रहता है, सच में आपके पोस्ट बहुमूल्य होते हैं,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गहन और गूढ़ आध्यात्मिक चिंतन का सहज प्रवाह और निर्वाह. सुंदर प्रस्तुति. आभार. मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
इतनी सुन्दर व्याख्या अन्यत्र दुर्लभ है .भाई साहब .कृतार्थ हो गया यह पल .
ReplyDelete",हम अस्थाई आनंद की अपेक्षा स्थाईआनंद की चाहत को....चाहत माया का ही रूप है.जीव औरईश्वर के बीच ईश्वर को पाने की चाहत अर्थात 'श्री ' (सीता) जी किस प्रकार से शोभा पाती हैं......."
ReplyDeleteसदा , सद -चित . सद-आनंद ही मनुष्य मात्र का जीवन जीवन उद्देश्य रहा है ,जिसको कई प्रतिमानों में रख कर अपनी तईं जानने का प्रयास किया गया , जिसमें आपकी अध्यात्मक शैली अनूठी लगती है .माता सीता का आधार पसंद आया , शक्ति स्वरुप ,कितनी स्वीकार हैं पता लगता है ....... सद प्रयास बहुत ही सफल है ,,शुभकामनायें जी /
@ भले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु
ReplyDeleteजनकल्याण के लिए उसे ‘जमीन में हल चलाने‘ अर्थात निरंतर ‘कर्मयोग‘ की भी आवश्यकता
है, जिससे भक्तिरुपी सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके। हल की
नोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत ‘सीता‘ जी की खोज
का कार्य संपन्न कर पाता है।
ज्ञान, भक्ति और कर्म की सुंदर व्याख्या।
रामकथा के मर्म की उत्तम विवेचना करते हैं आप।
आपके ब्लॉग पर आकर अपार आनंद की प्राप्ति हुई . सुन्दर चित्रण राकेश जी भक्तिरुपी सीताजी की खोज का गहन और सूक्ष्म विश्लेषण, आपकी ज्ञानमयी अध्यात्मक अनूठी शैली से कृतकृत्य हुये बहुत आभार.
ReplyDeleteआपके गूढ़ अध्यन का लाभ हमें भी मिल रहा है ... सीता और रजा जनक के माध्यम से जीवन के गहरे रहस्य को खोल दिया आपने ... गज़ब का व्याख्यान है ...
ReplyDeleteराकेश जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी पोस्ट लिखने का ...
हमेशा की तरह 'राम-कथा' का प्रसाद सुखद रहा...सीता मैया की जय हो !
ReplyDeleteचिंतन जारी रखें. हम सब का कल्याण हो रहा है. आभार.
ReplyDeleteजानकारी से भरे आलेख के लिए धन्यवाद...
ReplyDeletejai SIYA-RAM,
ReplyDeleteApne gyan ko is tarah baant kar aap ek nek kary kar rahe hain. dhanyawad
सीता जी के बारे में कभी इतनी गहनता से विचार नहीं किया.आप की लेखनी द्वारा एक नया अध्याय पढ़ रहे हैं.
ReplyDeleteउनके इस विराट स्वरूप से परिचय करवाया.
आभार.
Wonderful post...
ReplyDeleteLoved the deep meaning conveyed and especially the lines by Tulsidas ji...
Shubh Din.
जनक नंदिनी माँ सीता से जुडी एक सुंदर ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteसीता जी के बारे में इतना ज्ञान बस यही आकर मिला
ReplyDeleteआभार आपका इस सर्जन के लिए
आमतौर पर पूरे दिन जिस तरह की खबरों के बीच रहता हूं, मन दुखी रहता है।
ReplyDeleteलेकिन इस तरह की पोस्ट पर आकर वाकई सुकून मिलता है। तमाम नई जानकारी मिली आपके इस लेख से। आपके साथ मैं भी'भक्ति' माता सीता जी का मैं हृदय से नमन करता हूँ .
सीय राम मय सब जग जानी | करउं प्रनाम जोरिजुग पानी |
ReplyDelete............बस आनंद ही आनंद
........आपके सुन्दर अध्यात्मिक चिंतन ko पढ़कर मन पवित्र हो जाता है
करउ प्रनाम जोरि जुग पानी" ----ati-sundar
ReplyDeleteभाई राकेश जी आपकी हर पोस्ट सुन्दर और सराहनीय होती है |बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteराकेश जी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये, मुझे समर्थन दिया , बहुत- बहुत आभार / आपकी प्रस्तुति भी बहुत प्रभावपूर्ण है / एक बार पुनः आभार, धन्यवाद , आता रहूँगा
चिंतन की अथाह गहराई है हर पोस्ट में | उत्तम पोस्ट |
ReplyDeleteराकेश जी ,संबल देने के लिए आभार . आध्यात्म को जीवन में उतारने पर एक अलग शक्ति मिलती है.
ReplyDeleteआप भी सीता व राम जी का जो वर्णन करते हो
ReplyDeleteकि बस बोलती बंद हो जाती है,
देर से आया क्योंकि मैं श्रीखंण्ड महादेव की दुर्गम यात्रा पर गया हुआ था।
माता सीता के विषय में इतना गहन अध्ययन आपकी विद्वता को प्रदर्शित करती है .पढने में आनंद आ गया .आभार .
ReplyDeletesita shbd me sansar hai .itna pavan varnan kiya ki man prasan hogaya .sita ji ko aaj bahut achchhi tarah jana
ReplyDeleteabhar
rachana
सुंदरता कहुं सुन्दर करई, छबि गृहं दीपसिखा जनु बरई
ReplyDeleteसब उपमा कबि रहे जुठारी , केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी
wah.....man ekdam mantr-mugdh ho gaya.bahut achcha laga.
सीता मैया ..............
ReplyDeleteएक अध्यात्मिक चिंतन का सुख ही नहीं, वरन नारी जाती और परंपरा का दर्शन भी... एक आदर्श संस्कृति भी
....सर आपका ब्लॉग एक अनुपम भेट है हम सबके लिए.
सार्थक प्रयास...बधाई
ReplyDeleteदर्शन से भरपूर पोस्ट |अच्छी जानकारी |बधाई
ReplyDeleteआशा
दर्शन व अध्यात्म से पूर्ण है आपका यह ब्लॉग मन को शांति पहुंचाता है एक बार फिर राम चरित को पढ़ने की इच्छा जागी है
ReplyDeleteअध्यात्म,दर्शन,और मार्ग दर्शक पोस्ट.पहले मुझे किष्किन्धा कांड और सुन्दर कांड मुह जबानी याद था सुन्दर कांड और राम रक्षा स्त्रोत रोज पढ़ लिया करती थी. फिर इधर घर गृहस्थी में इतना व्यस्त हुई ये सब करना मुश्किल हो गया पर मैं ये भी मानती हूँ की घर गृहस्ती की जो जिम्मेदारी प्रभू ने मुझे दी है उसका निर्वाह भी अगर एक दो प्रतिशत कर सकूं तो वो भी प्रभु की पूजा अर्चना के बराबर ही है.पर इतना जानती हूँ की फिर जब व्यस्तता कम होगी तो ये ही पूजा पाठ फिर से शुरू कर पाऊँगी
ReplyDeleteआपकी श्रद्धा,भक्ति और परिपूर्ण ज्ञान को प्रणाम...
ReplyDeleteइतना अच्छा लेख....इतना गहन अध्ययन....
नि:शब्द कर दिया आपने !!
काफी लम्बे समय से आप सभी की रचनाओं से दूर रही हूँ !
अभी भी कोशिश में हूँ कि नियमित रह सकूं...क्षमा चाहती हूँ..!!
बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक...
ReplyDeleteभले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर 'कर्मयोग' की भी आवश्यकता है
ReplyDeleteज्ञानगंगा यूँ ही बहती रहे ..., आभार!
सीता ही शक्ति है .... आदिशक्ति ..... मात्... माया ... सभी ... बहुत ही सुंदर लेख ...
ReplyDeleteसाधुवाद.
बहुत ज्ञानवर्धक भी है और मार्गदर्शक भी ...
ReplyDeleteआभार इस पोस्ट के लिए ..!!
निरंतर कर्म करते हुए उन कर्मों को रामजी के चरणों में अर्पित करें तो ही सीताजी की प्राप्रि संभव है । बहुत ही ज्ञानवर्धक तथा रोचक पोस्ट । अगली कडी का इन्तजार करेंगे ।
ReplyDeleteI read both the posts, part 1 and 2. It gave me peace of mind.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये , आपका आभार ... यहाँ आ कर सीता का अर्थ ही अलग पाया ... वो शक्ति है , भक्ति है ... सीता के
ReplyDeleteविषय में इतना गहन अध्ययन ...आपका पोस्ट अमूल्य है...
great and an insightful read... Lovely !!
ReplyDeleteMythology is great and interesting.
gud effort!!!!111
ReplyDeleteDear Rakesh ji,
ReplyDeleteNamaskaar!
Your post is really very knowledgeable and meaningful. Congrats on writing such a nice post.
Wish you all the best.
adhyatm par bahut sunder dhang se vivechan karte hai sukhad laga padhna...
ReplyDeletebadhai......subhkamanye...
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन सुन्दर दर्शन आपकी लेखनी से जो पाया वो बहुत अच्छा लगा मन को...
ReplyDeleteदर्शन ***दर्शन ****दर्शन ! सीता जी के अद्भुत दर्शन *****
ReplyDelete"सीताजी की शोभा, सुंदरता को भी सुन्दर करनेवाली है.वह ऐसी मालूम होती हैं मानो सुन्दरता रुपी घर
में दीपक की लौं जल रही हो.सारी उपमाओं को तो कवियों ने झूंठा कर रखा है. मैं जनक नंदनी श्री
सीताजी की किससे उपमा दूँ "
आपकी लेखनी को सलाम राकेश जी ...
kya baat hai sahab ji
ReplyDeleteaapse aur aapki kavitao se milkar khusi hui
आपके लिए ख़ास शुद्ध शाकाहारी रेसिपी पोस्ट किया है मैंने !
ReplyDeletehttp://khanamasala.blogspot.com
मेरे इन दोनों ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
http://urmi-z-unique.blogspot.com
http://amazing-shot.blogspot.com
हाज़िर हूँ सर ...
ReplyDeleteआनंदमय लेखनी और आश्रम की अनुभूति दिलाता आपका ब्लॉग, मन भाव विभोर हो उठता है !
प्रणाम स्वीकार करें
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteaabhar
ReplyDelete"सीता "शब्द की सुन्दर सार्थक व्याख्या करती एक विज्ञ पोस्ट ....http://sb.samwaad.com/
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/ http://veerubhai1947.blogspot.com/
आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ६-८-११ शनिवार को नयी-पुरानी हलचल पर ..कृपया अवश्य पधारें..!!
ReplyDeleteसुन्दर चिंतन....
ReplyDeleteaapki ye post zara-si padhi hi thi ki, ek khayal aaya ki kyon na iska pratham part pahle padh lena chahiye... aur yakinan maine koi galti nahi ki... itne sundar varnan ke liye bahut-bahut dhnyawaad... aur itnee saari jaankaariyon ke liye abhaar...
ReplyDeleteagle part ka intzaar rahega...
राम-कथा के दार्शनिक और आध्यात्मिक पक्ष लौकिक पक्ष से कहीं अधिक
ReplyDeleteसमृद्ध और कल्याणमय हैं -वहाँ मन में प्रश्न नहीं जागते .बस समाधान और प्रशान्ति !
bahut sunder
ReplyDeleteउपस्थित श्रीमान...
ReplyDeleteजय हिंद...
बहुत ज्ञानवर्धक ,अति सुंदर मनमोहक
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये , आपका आभार
जय श्री राम
जय श्री राम
आपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
ReplyDeleteपर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
`⋎´✫¸.•°*”˜˜”*°•✫
..✫¸.•°*”˜˜”*°•.✫
☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
/ .. ˚. ★ ˛ ˚ ✰。˚ ˚ღ。* ˛˚ 。✰˚* ˚ ★ღ
!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट ...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ. सीता माँ के बारे में इतना अच्छा वर्णन पहली बार पढ़ा.. बहुत खुशी हुई.. अब हमेशा आते रहूँगा ..
धन्यवाद.
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
aadarniy sir
ReplyDeletemain aapse vilamb se tippni karne ke liye xhama chahti hun .dar-asal bar -bar ye likhna ki swasthy theek nahi ho pa raha hai achha nahi lagta isi se bahut sharmindagi mahsus karti hun.
aaj badi himmat juta kar aap ke blog par aai hun.
addhbhut vishhleshhan kiya hai aapne maa seeta ke naam ki itni sundar tareeke se vykhya ki hai ki vo aapjaise virle hi kar paate hain.bahut hi badhiya laga padh kar .aap to guru dronachary jaise ho gaye hain mere liye aap jaise gyani ki mai kya commet duh kabhi kabhi sochna pad jaata hai.vilab ke liye aapse punah xhama chahti hun.
thodi der ho jaaye par aapke blog par aaungi jarur.
sadar naman
poonam
राकेश जी सबसे पहले मेरा धन्यवाद स्वीकार कीजिये मेरे ब्लॉग को अनुसरित एवं उचित मार्ग दर्शन के लिए .आपके अध्यात्मिक ज्ञान की गंगा को सदर नमन . विश्लेषण और शोध दोनों ही उत्कृष्ट हैं.
ReplyDeleterakesh ji padharane ke liye,aabhar.seeta ji ke baare m aakane mehanat se jankarijutakar hamari nazar ki sadhuwad ke patrhai aap.
ReplyDeleteऑस्ट्रेलिया में आपका हार्दिक स्वागत है! ऑस्ट्रेलिया बहुत ख़ूबसूरत देश है और यहाँ देखने के लिए बहुत ही सुन्दर सुन्दर जगह है! मैं पर्थ में रहती हूँ जो बहुत बड़ा शहर है, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है और यहाँ लोग बहुत अच्छे हैं! पूरे पश्चिम ऑस्ट्रेलिया की आबादी है २.३ मिलियन ! आप मेरे सभी ब्लॉग पर आकर हर एक पोस्ट पर इतनी सुन्दर टिप्पणी देते हैं जिसके लिए मैं आपका शुक्रियादा करना चाहती हूँ!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
ज्ञानवर्द्धक पोस्ट...
ReplyDeleteनीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
ReplyDeleteचलो मेरा लिखा मत पढ़ो,
पोस्ट आपका इंतजार कर रहीं हैं
सीता जी के बारे में ज्ञान बढ़ाने के लिए आभार हमको तो यह सब मालूम ही नहीं था
ReplyDeleteVery beautifully written Rakesh ji...
ReplyDeleteReally well presented... The lines by Tulsidas ji are thought provoking.
Have a great week ahead:)
"'सीता जन्म' हृदय स्थली में 'सत्-चित-आनंद' को पाने
ReplyDeleteकी सच्ची चाहत का उदय होना है."
राकेश सर,आपकी आलेख गहन अध्यात्मिक अनुभव का सार है.साथ ही अत्यंत मार्गदर्शी एवं अनुकरणीय भी है. वर्तमान समाज को दिशा दिखाते आलेख के लिए बधाई स्वीकार करें
अध्यात्मिक चेतना से जागृत कराती यह आलेख, देश की प्राचीन संस्कृति से परिचय कराती यह आलेख, सीता जी के संस्कृति और अध्यात्मिक महत्व को बताती यह आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है...
ReplyDeleteआपकी लेखनी को सलाम राकेश जी.. अब हमेशा आता रहूँगा .. बधाई स्वीकार करें !!
Raakesh Ji, many-many thanks to join me.. A lot of thanks.. Please accept... Your creation really incredible..
ReplyDeleteआप अपना कीमती वक़्त देकर मेरे हर एक ब्लॉग पर आकर इतनी सुन्दरता से टिप्पणी देते हैं उसके लिए धन्यवाद कहना भी कम होगा!
ReplyDeleteYou are welcome at my new posts-
http://urmi-z-unique.blogspot.com/
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गहन चिंतन से परिपूर्ण भक्ति और ज्ञान वर्धक आलेख..आभार
ReplyDeleteसीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं
ReplyDeleteवे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता
का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं.
भक्ति ही इश्वर के पथ पर हमें ले जाती है… सच है… और भक्ति में ही हम कठिन समय में इश्वर की सामर्थ पाते हैं… बहुत सुंदर पोस्ट! दरअसल यह पोस्ट पहले ही पढ़ ली थी पर किसी करणवश टिप्पणी नहीं कर पाई… इश्वर से प्रार्थना है की आप इसी तरह सबका मार्गदर्शन करते रहें!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
swatantrata divas ki badhai aapko .
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामना स्वतंत्रता दिवस की|
ReplyDeleteIt's great stuff. I enjoyed to read this blog.
ReplyDeleteभले ही व्यक्ति पूर्ण आत्मज्ञानी भी हो जाये,परन्तु जनकल्याण के लिए उसे 'जमीन में हल चलाने ' अर्थात निरंतर'कर्मयोग' की भी आवश्यकताहै, जिससे 'भक्तिरुपी' सीताजी का उदय हो पाए और चहुँ और आनंद की वृष्टि हो सके. हल कीनोंक उस आत्मज्ञानी व्यक्ति की प्रखर बुद्धि का प्रतीक है जिससे वह परम चाहत 'सीता' जी की खोजका कार्य संपन्न कर् पाता है.
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक है... मार्गदर्शी एवं अनुकरणीय...
यहाँ पर आकर बहुत अच्छा लगा|
आप मेरे बड़े भैया जैसे ही हैं और मेरे सभी ब्लॉग पर आकर प्रत्येक पोस्ट पर अपना कीमती वक़्त देकर टिप्पणी करने के लिए ये बहन दिल से शुक्रियादा करती है! मैं भले ही ऑस्ट्रेलिया में क्यूँ न रहूँ पर भारतीय हूँ और अपने देश के प्रति प्यार हमेशा बरकरार रहेगा! मैं भारत में पली बड़ी हूँ,अपना बचपन वहीँ बिताया,स्कूल कॉलेज से लेकर मेरा परिवार और दोस्त सभी भारत में है इसलिए मैं हमेशा जुडी रहती हूँ! आप मेरे खाना मसाला ब्लॉग पर आए देखकर बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ!
" सीता जी यानि भक्ति ही जीव जो परमात्मा का अंश है को अंशी अर्थात परमात्मा से जोड़ने में समर्थ हैं ,वे हृदय में आनंद का 'उदभव' करके उसकी 'स्थिति' को बनाये रखतीं हैं.हृदय की समस्त नकारात्मकता का 'संहार' करके कलेशों का हरण कर लेतीं हैं और सब प्रकार से जीव का कल्याण ही करती रहतीं हैं."
ReplyDeleteवाह, भला इससे सुंदर व सार्थक व्याख्या क्या हो सकती है। आज आपका सीता जी पर यह लेख पढकर मन व हृदय दोनों सीताजी के प्रति भक्तिभाव से सराबोर हो गया ।
राकेश जी सीता जी के जन्म के बारे में पहले से भी जानती हूँ
ReplyDeleteपर आपने विस्तार से बताया है इसके लिये धन्यवाद।
आपसे एक भ्रम दूर करना था।मैने कहीं सुना था कि जिस घडे
से सीता जी निकलीं थीं उसमै संत लोगों ने दानव के विनाश
के लिये अपने खून जमा कर सीता जी के जन्म
की लीला रची थी क्या ये सही है। मेरी रचना उसकी यादें
अधूरी थी लाइट चली गई थी अब पुनः पढै।
निशा जी, बहुत बहुत आभार आपका मेरी इस पोस्ट पर
ReplyDeleteपधारने के लिए.आपकी पोस्ट पर निम्न टिपण्णी मैंने की है.
'वाह! अब आनंद आया आपकी सुन्दर भावपूर्ण
प्रस्तुति पढकर.
बहुत बहुत शुक्रिया निशा जी पूरी कविता पढवाने के
लिए और मेरे ब्लॉग पर भी आपके आने के लिए.
आपने सीता जन्म के बारे में ठीक ही कहा है
कि पौराणिक कहानी अनुसार ऋषि मुनियों
ने कर के रूप में अपना रक्त रावण और दानवों
को दिया था, जिसे घड़े में भरकर जनकपुरी के
पास की भूमि में गाड दिया गया था.जिस से
कालांतर में 'सीता'जी प्रकटी.
आध्यात्मिक चिंतन के अनुसार इसको ऐसे माना
जा सकता है कि रावण अहंकार का प्रतीक है,
दानव कुविचारों और कुभावों के, जिस कारण
ऋषि मुनियों को खुद अपने से ही संघर्ष और
तप करना पड़ता था ,'प्रेम' और 'भक्ति' के
अन्वेषण के लिए.क्यूंकि शुष्क ज्ञान मार्ग में अहंकार
और कुविचार बाधक होते थे.यह संघर्ष और तप ही रक्त
का द्योतक है जो अन्वेषण के 'कालपात्र' के रूप
में घड़े में डालकर भूमि में गाड दिया गया.
यह 'कालपात्र' जब निकला तब ऋषि मुनियों
का 'प्रेम' और 'भक्ति' पर किया हुआ अन्वेषण
ही सीता रूप में प्रकट माना जा सकता है.'
आध्यात्मिक चिंतन की यह प्रभावशाली कड़ी निरंतर चलती रहे!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteToday your blog has received immense pleasure! Today, after reading this article on your Sita, both mind and heart became enamoured with devotion towards Sitaji.
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